संपादकीय देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ और ‘पद्म-अवॉर्डों’ की चर्चा से बॉलीवुड में भी सुगबुगाहट रही है। जिस तरह राजनीति में माननीय प्रणब मुखर्जी और सामाजिक जीवन में नानाजी देशमुख को ‘भारत रत्न’ दिये जाने पर प्रतिक्रियाएं आयी हैं, वैसे ही बॉलीवुड में
Advertisment

Sharad Rai
फिल्म और राजनीति दोनों ही समाज का हिस्सा है। समाज में जो कुछ होता है उससे प्रभावित राजनीति भी होती है और फिल्में भी! और, कई बार फिल्मों का असर भी दोनों वर्ग पर पड़ता है। फिल्मों के डायलॉग नेता मंच पर बोलते हैं और समाज में वैसी ही घटनाएं घटित होती हैं। इनदि
नमस्कार साल 2019...! ‘मायापुरी’ के सभी पाठकों और समूची फिल्म इंडस्ट्री के कर्मियों को नव वर्ष की हार्दिक बधाई! भारतीय-परिवेश में हम स्वागत में ‘नमस्ते’ ही कहेंगे, लेकिन क्या फिल्म उद्योग भी इसी सम्बोधन से अपने नव वर्ष की शुरूआत करता है? यह सहज जिज्ञासा ह
बॉलीवुड वह जगह है जहां दीपावली और ईद की तरह की क्रिसमस का पर्व भी धूमधाम से मनाया जाता है। 25 दिसम्बर को ईसा मसीह का जन्म दिन होता है। इस दिन सभी ईसाई चर्च जाते हैं। चर्च, क्रिसमस-ट्री, क्रिसमस कार्ड, झालर, पेस्ट्री, केक और बच्चों के लिए उपहार! इस माहौल क
कुछ समय पहले बॉलीवुड की एक फिल्म आयी थी- ‘मेरी शादी में जरूर आना’। यह फिल्म दो करोड़ में बनी थी और दो हफ्ते में आठ करोड़ की कलैक्शन की थी! लोगों का मानना था कि वैवाहिक-विषय वाली इस फिल्म की कामयाबी के पीछे फिल्म का शीर्षक भी एक वजह थी- जिसमें हर किसी के लिए
कितनी अजीब बात है कि एक तरफ जहां आमिर खान जैसे एक्टर इस बात को स्वीकार करते हैं कि फिल्म इंडस्ट्री में लेखकों के महत्व को समझा जाना चाहिए और उनको क्रेडिट तथा पारिश्रमिक दिेये जाने में वरीयता दिखाई जानी चाहिए। वहीं फिल्म राईटर्स एसोसिएशन की 68 साल पुरानी स
सितारों के चैरिटी कामों की जब भी चर्चा होती है, हमेशा का ‘मीर फाउंडेशन’ हो या सलमान खान का ‘बीइंग ह्यूमन’- ये छींक भी लेती हैं तो ‘न्यूज’ बनती है। और, साथ ही कमेंट किया गया होता है कि अमिताभ कुछ नहीं करते हैं! इस आरोप की तो इन्तेहा ही हो गई जब केबीसी की ए
इनदिनों पूरे देश में शहरों और स्टेशनों का नाम बदलने की एक बड़ी मुहिम चल पड़ी है। बंबई (मुंबई), मद्रास (चेन्नई), कलकत्ता (कोलकाता), बंगलोर (बंगलुरू), गुड़गांव (गुरूग्राम) और वीटी स्टेशन (सीएसटीएम) के प्राचीन, प्रचलित नाम बदले जा चुके हैं। इलाहाबाद को ‘प्रयाग’
उस समय पूरा देश जलने के लिए तैयार था! बेशक फिल्म आई तो कुछ नहीं था लेकिन, पर्दे पर फिल्म ‘पद्मावत’ आने से पहले एक जनाक्रोश था। विदेशी शासक अलाउद्दीन खिलजी स्वप्न में भी रानी पद्मावती को पाने की कामना कैसे कर सकता था? तलवारें खिंच गई थी एक कल्पना की कहानी
आप ट्रेन में सफर कर रहे हों या बस में, लोग स्मार्ट फोन पर आंखें गड़ाये दिखाई देंगे। खासकर युवा वर्ग : लड़के और लड़कियां अब यू-ट्यूब की ओर आकर्षित हो गये हैं। ये वो वर्ग है जो सिनेमा-थिएटर को पिछले कई सालों से चलाता आ रहा है। संभ्रात और मेच्यौर व्यक्ति अब सिन
Advertisment
Advertisment
Latest Stories