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भारतीय सिनेमा में Geeta Bali के योगदान को दरकिनार नही किया जा सकता.....

एंटरटेनमेंट: केदार शर्मा अपनी फिल्म ‘रंगीन रातें’ की शूटिंग का पहला शेड्यूल लगभग पूरा कर चुके थे. फिल्म में शम्मी कपूर व माला सिन्हा की जोडी थी.

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Geeta Bali
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बात लगभग नब्बे वर्ष पुरानी है. उस वक्त के मशहूर निर्देशक केदार शर्मा ने अपनी फिल्म के सेट पर क्लैप ब्वॉय के रूप में काम कर रहे मशहूर अभिनेता राज कपूर को थप्पड़ मार दिया था. क्योंकि केदार शर्मा अपने काम के प्रति बहुत ही ज्यादा परफेक्शनिस्ट थे. लापरवाही बर्दाश्त नहीं थी. उन्हें बहुत सख्त फिल्म निर्देशक माना जाता था. मगर यह भी सर्वविदित है कि यही केदार शर्मा उस वक्त की एक अदाकारा की जिद के आगे हमेशा नतमस्तक रहते थे. यह अभिनेत्री भी केदार शर्मा की फिल्म में हर तरह का किरदार निभाने को तैयार रहती थी. 1954 के अंतिम समय की बात है. केदार शर्मा अपनी फिल्म ‘रंगीन रातें’ की शूटिंग का पहला शेड्यूल लगभग पूरा कर चुके थे. फिल्म में शम्मी कपूर व माला सिन्हा की जोडी थी. तभी उस अभिनेत्री ने जिद पकड़ ली कि उसे केदार शर्मा की फिल्म ‘रंगीन रातें’ का हिस्सा बनना है. केदार शर्मा परेशान हो गए थे. क्योंकि उनकी फिल्म में कोई किरदार बचा ही नही था. जब अभिनेत्री अपनी जिद पर अड़ी रही, तो निर्देशक केदार शर्मा ने उसे बताया अब तो केवल हीरोईन के भाई का पुरूष किरदार के अलावा कुछ नही बचा और वह भी कैमियो है. केदार शर्मा के साथ सभी को उम्मीद थी कि इस बार अभिनेत्री चुप रह जाएंगी. क्योंकि वह पुरुष किरदार और वह भी कैमियो करने  से रही. आखिर वह उस वक्त की मशहूर स्थापित अदाकारा थीं. लेकिन उसने कह दिया कि वह हीरोइन के भाई का पुरुष किरदार निभाने को तैयार है. फिर उसने नकली मूंछें लगाकर पुरुष पोशाक पहनकर शूटिंग की और फिल्म में हीरोइन माला सिन्हा के भाई के रूप में वह नजर आयीं. उन्हे परदे पर देखकर किसी ने नहीं कहा कि वह पुरुष की बजाय महिला हैं. ऐसा उदाहरण कम से कम हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में दूसरा कोई नही मिलता. जी हां! हम बात कर रहे हैं केदार शर्मा की फिल्म ‘रंगीन रातें’में पुरुष का कैमियो निभाने वाली अदाकारा और उस वक्त की मशहूर अभिनेत्री, गायिका व फिल्म निर्माता रही गीता बाली की. जिनकी 21 जनवरी को आठवीं पुण्यतिथि मनायी गयी. गीता बाली का 21 जनवरी 1965 को महज 34 वर्ष की उम्र में चेचक की बीमारी से निधन हो गया था.

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बहुत कम लोगो को पता होगा कि गीता बाली के लिए हमेशा किरदार मायने रखता था. उन्होने फिल्म चुनते समय कभी भी इस बात पर गौर नहीं किया कि उनका सह कलाकार कौन है. यह एक अलग बात है कि गीता बाली ने बतौर हीरोइन पृथ्वीराज कपूर,भारत भूषण, राज कपूर,शम्मी कपूर,गुरू दत्त, देव आनंद,राजेंद्र कुमार सहित उस वक्त के सभी दिग्गज कलाकारों के साथ अभिनय किया था.

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बहुत कम लोगो को पता होगा कि गीता बाली के अंदर एक निर्देशक जैसी पारखी नजर थी. वह कलाकार को देखते ही समझ जाती थी कि इसमें प्रतिभा है या नहीं और किस किरदार से यह कलाकार लोकप्रिय होगा. उस वक्त राज कपूर प्रतिष्ठित हो चुके थेे. मगर उनके छोटे भाई शम्मी कपूर का संघर्ष जारी थां षम्मी कपूर को एक फिल्म ‘तुम सा नही देखा’ मिली. इस फिल्म को साइन करने के बाद षम्मी कपूर ने गीता बाली से फिल्म की चर्चा करते हुए फिल्म की कहानी व अपना किरदार बताने के बाद कहा कि,‘‘यदि यह फिल्म सफल नही हुई तो वह अभिनय से संन्यास लेकर कुछ दूसरा काम करने के बारे में सोचेंगे.’ इस पर  गीता बाली ने उनसे कहा,‘तुम्हे ऐसा करने की जरुरत नही पड़ेगी. क्योंकि फिल्म ‘तुमसा नहीं देखा’ से तुम स्टार बन जाओगे और ऐसा ही हुआ था. इतना ही नही 1964 की बात है. उन दिनों राजेश खन्ना मुंबई में वार्डेन रोड स्थित भोला भाई देसाई मेमोरियल हाॅल में नाटक की रिहर्सल किया करते थे. उन्हे रिहर्सल करते वक्त उनकी तन्मयता को देखकर गीता बाली ने राजेष खन्ना से कहा था कि तुम एक दिन बहुत बड़े सुपर स्टार बनोगे. इतना ही नही गीता बाली ने राजेष खन्ना के सामने अपनी फिल्म ‘‘रानो’’में अभिनय करने का प्रस्ताव भी रखा. बताया जाताहै कि तब राजेश खन्ना अपने ज्योतिषी के पास पहुॅचे. राजेष खन्ना के ज्योतिषी  ने उन्हे बताया कि बॉलीवुड में उनका कुछ नहीं होना.है. राजेश खन्ना ने अपने ज्योतिषी की बात को सच मानकर फिल्म ‘रानो’ करने से मना कर दी. तब उसी किरदार के लिए ‘रानो’ में धर्मेंद्र को लिया गया था. .यह अलग बात है कि बाद में इस फिल्म की शूटिंग के दौरान ही 21 जनवरी 1965 को गीता बाली का निधन हो गया और फिल्म ‘रानो’ कभी पूरी नहीं हुई. लेकिन गीता बाली ने राजेश खन्ना से उनके बारे में जो कुछ कहा था वह सच साबित हुआ. वह बॉलीवुड में सुपरस्टार बने.

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गीता बाली की 60 वीं पुण्यतिथि पर गीता बाली के जीवन व करियर पर नजर डालते हैं तो उनके वास्तविक जीवन की कहानी भी उनकी श्वेत-श्याम फिल्मों की पटकथा की तरह लगती है. उसने अपने परिवार - एक अंधे पिता करातर सिंह, आंशिक रूप से बहरी माँ, आंशिक रूप से बहरा बड़ा भाई और एक बहन -की मदद करने के लिए कक्षा 6 के बाद स्कूल छोड़ दिया. गीता बाली का जन्म 30 नवंबर 1930 को ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के अमृतसर में हरिकीर्तन कौर के रूप में हुआ था. उन्होेने बाद मंे छोटा नाम गीता बाली रख लिया था..उनकी एक बड़ी बहन हरिदर्शन कौर थीं, जिनकी बेटी पूर्व फिल्म अभिनेत्री योगिता बाली हैं. गीता बाली को शास्त्रीय नृत्य,गायन, घुड़सवारी और गतका में प्रशिक्षित किया गया था. गीता बाली के पिता करतार सिंह बाली अपने उनका परिवार अपने पिता करतार सिंह,जो एक धार्मिक उपदेशक थे,पूरे परिवार के साथ अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के पास, चैक बाबा साहिब के आसपास रहता थां दोनों बहने भी अपनी प्रस्तुतियां दिया करती थीं.

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हालाँकि, दो युवा लड़कियों के इन प्रदर्शनों को रूढ़िवादी सिखों का समर्थन नहीं मिला. दिसंबर 1939 में, उन्हें लाहौर में प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं दी गई. नौ वर्षीय हरकीर्तन यानी कि गीता बाली ने कसम खाई कि वह वापस आएगी और उसी स्थान पर प्रदर्शन करेगी. दृढ़ निश्चयी लड़की ने अपना वादा निभाया.  नौ साल बाद, उसने स्टार, गीता बाली के रूप में उसी मंच पर प्रदर्शन किया. बचपन में गीता को ऑल इंडिया रेडियो, लाहौर में एक कार्यक्रम के लिए गाने के लिए चुना गया था. वह जिंदादिल लड़की अपने जमाने की बेहद लोकप्रिय अमेरिकी चाइल्ड स्टार शर्ली टेम्पल का अनुकरण करना चाहती थी.

मजबूरी में अभिनय को बनाया करियर

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यॅूं तो गीता बाली नौ साल की उम्र से ही संगीत व गायन से जुड़ गयी थी. पर वह अभिनय से नहीं जुडना़ चाहती थी. गीता बाली अपने घर में व गायन से बहुत ख़ुश थीं कि एक दिन अचानक उन्हे बचपन में ही ज़िंदगी की सबसे बड़ी तकलीफ़ पहुंची. गीता बाली के पिता करतार सिंह को चेचक यानी स्मॉलपॉक्स निकल आई...और इस बिमारी ने गीता बाली के पिता की आंखों की रोशनी छीन ली. इस हादसे ने गीता बाली को तोड़ कर रख दिया.....मगर उस वक्त गीता यह नहीं जानती थीं कि एक दिन यही बीमारी उनकी अपनी मौत की वजह बनेगी..खैर,जिंदगी आगे बढ़ती रही. अब गीता बाली के सामने कुछ काम कर पैसा कमा परिवार की आर्थिक मदद करने का सवाल पैदा हुआ, तभी नृत्य निर्देषक पंडित ज्ञान शंकर की नजर उन पर पड़ी, जिन्होंने उन्हें 1942 में एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म, ‘द कॉबलर’ के लिए चुना. उनकी चपलता और लय की समझ ने उन्हें 1946 में आरके शौरी की पंजाबी फिल्म ‘बदनामी’ में एकल प्रदर्शन का मौका दिया. उसी वर्ष, बॉम्बे के एक प्रसिद्ध निर्माता -निर्देशक मजहर खान ने उन्हें एक फिल्म के लिए साइन किया. गीता अपने परिवार और पंडित ज्ञान शंकर के साथ बंबई,अब का मुंबई चली आयी. मजहर की फिल्म में देरी हुई और पंडित शंकर की मुलाकात जाने- माने फिल्म निर्माता केदार शर्मा से हुई, जिन्हें वह अमृतसर के दिनों से जानते थे. गीता पारंपरिक अर्थों में सुंदर नहीं थी. वह काफी पतली थीं, लेकिन शर्मा उनकी हास्य भावना और वाक्पटु आंखों से प्रभावित थे. केदार शर्मा ने अपने भाई और स्टूडियो स्टाफ की इच्छा के विरुद्ध जाकर 1948 में गीता बाली को  फिल्म ‘सुहाग रात’ (1948) के लिए महज 26,000 रुपये की मामूली रकम पर साइन किया. फिल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई. केदार शर्मा ने उन्हें कई फिल्मों में दोहराया. वह बतौर अभिनेत्री 1942 से 1964 तक सक्रिय रहीं.

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1950 के दशक में बाली एक सितारा बन गयीं. उन्होंने  अपने भावी जेठ राज कपूर के साथ ‘बावरे नैन’ (1950) में काम किया. फिर 1952 में अपने होने वाले ससुर पृथ्वीराज कपूर के साथ ‘आनंद मठ’ में काम किया, दोनों ही सफल रहीं.

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बाली को उनकी कॉमिक टाइमिंग और एक अभिनेत्री के रूप में उनकी रेंज के लिए व्यापक रूप से जाना जाता था. बाली की ऑनस्क्रीन जोड़ी सबसे अच्छी देव आनंद के साथ थी, जिनके साथ उन्होंने बाजी (1951), जाल (1952), फेरी (1954), मिलाप (1955), फरार और पॉकेट मार (1956) सहित कई सफल फिल्मों में काम किया.वचन (1955) के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार नामांकन मिला. बाली ने अपने पति शम्मी कपूर के साथ ‘मिस कोका कोला’ (1955), रंगीन रातें (1956), जिसमें उन्होंने एक गाना गाया था और कॉफी हाउस (1957) जैसी फिल्मों में काम किया.नकी अन्य उल्लेखनीय फ़िल्में थीं दुलारी (1949), निशाना (1950), अलबेला (1951), अलबेली (1955), कवि (1955). उनकी आखिरी फिल्म 1963 में जब से तुम्हें देखा है थी.


गीता बाली ने अपने दौर के तमाम लीड अदाकारों भारत भूषण, राजकपूर ,राजें्रद कुमार और देवानंद के साथ कई फ़िल्में कीं. मगर राजेंद्र कुमार ने उनके साथ रोमांस करने से मना कर दिया था....

क्यों गीता बाली संग रोमांस नहीं करना चाहते थे राजेंद्र कुमार

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उन दिनों राजेंद्र कुमार उन अभिनेताओं में से एक थे, जिन्होंने चार दशक के लंबे करियर में कई सुपरहिट फ़िल्में दीं. उनके करियर में एक ऐसा भी समय आया था जब उनकी 6 से 7 फ़िल्में एक ही समय पर सिनेमाघरों में लगी रहती थी. उनके स्टारडम को देखने के बाद कई अभिनेत्री उनके साथ काम करने की इच्छा रखती थीं. हिंदी सिनेमा में राजेंद्र कुमार ने फ़िल्म ‘पतंगा’ से शुरूआत की थी, लेकिन बतौर हीरो पहली बार वह ‘वचन’ में नज़र आए थे. इस फ़िल्म में राजेंद्र कुमार के अलावा गीता बाली भी मुख्य भूमिका में थीं. इस फिल्म में दोनेा भाई बहन बने थे. लेकिन फ़िल्म ‘वचन’ के बाद राजेंद्र कुमार और गीता बाली ने कभी साथ में काम नहीं किया. फ़िल्म ‘वचन’ करने से गीता बाली ने कई फ़िल्में कर चुकी थीं. ‘वचन’ में भी उनके अभिनय को लोगों ने खूब पसंद किया था. यही नहीं इस फ़िल्म के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर बेस्ट एक्ट्रेस के लिए नॉमिनेट भी किया गया था. फ़िल्म में वह राजेंद्र कुमार की बड़ी बहन बनी थीं. इस फ़िल्म में राजेंद्र कुमार ने इतने दिल से अपना किरदार निभाया था, कि वह मन ही मन गीता को अपनी बहन मानने लगे थे. वहीं ‘वचन’ के बाद गीता बाली एक्ट्रेस के साथ -साथ निर्माता भी बन गई थीं. ऐसे में वह अपनी एक फ़िल्म के लिए राजेंद्र कुमार को अपने अपोज़िट बतौर हीरो लेना चाहती थीं, लेकिन राजें्रद कुमार ने उनके ऑफ़र को ठुकरा दिया. राजेंद्र कुमार ने बताया कि वह उन्हें दिल से बहन मानते हैं, ऐसे में वह उनके साथ पर्दे पर रोमांस नहीं कर सकते.

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50 और 60 के दशक के कई ऐसे अभिनेता और अभिनेत्री रहे  जिनकी अदायगी के चर्चे आज भी लोग करना पसंद करते हैं. मगर उस काल में गीता बाली के अभिनय का कोई मुकाबला ही नहीं था. उस काल के निर्देशक व कलाकार भी गीता बाली की तारीफ करते नहीं थकते थे. जी हां! एक बार उस वक्त के मशहूर फिल्म निर्देशक केदार शर्मा ने गीता बाली की चर्चा करते हुए कहा था-‘‘मैं उन्हें हमारे महान कलाकारों में से एक मानता हूं. उनके जैसा प्रदर्शन करने वाला कोई नहीं था. वह बहुत बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं. जब उन्होंने उद्योग में प्रवेश किया, तो सभी ने उन्हें नकार दिया था. मैंने उन पर विश्वास किया और उन्हें स्टार बना दिया.’’

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मीना कुमारी ने एक बार कहा था, ‘एक अभिनेत्री के रूप में गीता मुझसे अधिक निपुण हैं. उसका दायरा बहुत व्यापक है. ” इतना ही नही मशहूर अभिनेता अशोक कुमार ने एक बार कहा था- ‘मैंने गीता बाली जैसी स्वाभाविक अभिनेत्री दूसरी नहीं देखी. किसी भी किरदार में उन्हें देखकर यह नहीं लगता था कि वह एक्टिंग कर रही हैं. उनके साथ काम करने का मतलब चुनौती से कम नहीं होता था.’’

आजादी के बाद नरगिस, मधुबाला, सुरैया, नलिनी जयवंत आदि धीर गंभीर किरदारों के जरिए छाई हुई थीं.  उसी दौर में गीता बाली अदाकारी के शोख अंदाज लेकर उभरीं थीं. पंजाब की अल्हड़, चंचल और बिंदास लड़की, जो हर हाल में मस्त रहना जानती है. उस दौर में हॉलीवुड की फिल्मों में जिस मासूम चुलबुलेपन के लिए रीटा हेवर्थ मशहूर थीं, वही गीता बाली की सहज -स्वाभाविक अदाकारी का सबसे बड़ा आकर्षण था. उन्हें टॉमबॉय कहा जाता था. हीरो चाहे कोई हो, फिल्म की कामयाबी के लिए गीता बाली का नाम काफी था.

सबसे ज्यादा फिल्में देव आनंद के साथ

Geeta Bali & Dev Anand
निर्देशक की हैसियत से गुरुदत्त ने अपनी पहली फिल्म ‘बाजी’ में गीता बाली को (वह इससे पहले कई फिल्मों में नजर आ चुकी थीं) उस दौर के तेजी से उभरते सितारे देव आनंद के साथ पेश किया. इस फिल्म का निर्माण देव आनंद ने ही किया था. हालांकि फिल्म की नायिका कल्पना कार्तिक थीं, लेकिन ‘तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले’ और ‘सुनो गजर क्या गाए’ पर लहराती सह-नायिका गीता बाली के साथ देव आनंद की जुगलबंदी ने दर्शकों को ज्यादा मोहित किया.बाद में यह जोड़ी ‘जाल’, ‘जलजला’, ‘फेरी’, ‘फरार’, ‘मिलाप’ और ‘पॉकेट मार’ में साथ आई. बतौर अभिनेता गुरुदत्त की पहली फिल्म ‘बाज’ की नायिका भी गीता बाली थीं.

फिल्म चुनने का आधार सिर्फ किरदार


हम पहले ही बता चुके है कि गीता बाली के लिए फिल्म चुनने का आधार सिर्फ किरदार होता था. उन्होने कभी भी अपने सह कलाकार को लेकर कोई फरमाइश नहीं की. भगवान दादा के साथ ‘अलबेला’ में उनकी जोड़ी ने जो धूम मचाई थी, वह इस फिल्म के गीतों ‘भोली सूरत दिल के खोटे’, ‘शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के’, ‘शाम ढले खिड़की तले’, ‘धीरे से आ जा री अंखियन में’ और ‘किस्मत की हवा कभी नरम कभी गरम’ में आज भी गूंजती है. उनकी दूसरी फिल्मों के ‘ये रात ये चांदनी फिर कहां’ (जाल), ‘चुप-चुप खड़े हो जरूर कोई बात है’ (बड़ी बहन), ‘हम प्यार में जलने वालों को’ (जेलर), ‘सारी-सारी रात तेरी याद सताए’ (अजी बस शुक्रिया), ‘चंदा मामा दूर के’ (वचन) जैसे गीत भी उनके सुनहरे दौर की कहानियां सुनाते हैं.

बचपन से ही तकलीफें झेलती रही गीता बाली के अंदर दूसरों की मदद करने की अजीब सी इच्छा रहती थी. मशहूर अभिनेता अनिल कपूर और फिल्म निर्माता बोनी कपूर के पिता सुरिन्दर कपूर कभी गीता बाली के सचिव हुआ करते थे. बाद में गीता बाली ने ही उन्हे भी फिल्म निर्माता बनने में मदद की थी. यही वजह है कि सुरिंदर कपूर बतौर निर्माता उनकी हर फिल्म गीता बाली को श्रद्धांजलि के साथ शुरू होती थी. इतना ही नहीं गीता बाली ने तो गुरूदत्त को भी फिल्म निर्माता बनने में मदद की,जिसका निर्देशन में उन्होंने 1951 में देव आनंद की फिल्म ‘बाजी ’ की थी. गीता बाली ने 1953 में गुरुदत्त  को निर्देशक लेकर फिल्म का निर्माण किया.फिल्म में दत्त ने खुद मुख्य भूमिका निभाई और गीता बाली फिल्म में उनकी बहन की भूमिका में थीं. इस फिल्म में निर्माता के तौर पर दोनों का नाम था.

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गीता बाली के भाई का नाम दिग्विजय सिंह था. दिग्विजय सिंह भी फिल्म निर्देषक थे और 1952 में अपने भाई की ही फिल्म ‘राग रंग’ में गीता बाली ने अशोक कुमार के साथ काम किया था. गीता बाली की बड़ी बहन की बेटी योगिता बाली भी अभिनेत्री बनी. योगिता बाली की पहली शादी अशोक कुमार के भाई व गायक किशोर कुमार के साथ हुई थी,पर यह विवाह ज्यादा नहीं चला. बाद में योगिता ने मिथुन चक्रवर्ती के साथ दूसरी शादी की.

व्यक्तिगत जीवन और मृत्यु

1955 में फिल्म ‘मिस कोका कोला’ के दौरान बाली की पहली मुलाकात अभिनेता शम्मी कपूर से हुई. लेकिन फिल्म ‘रंगीन रातें’ कैमियो किरदार निभाते हुए इस फिल्म की  की शूटिंग के दौरान षम्मी कपूर से प्यार हो गया, जहां वह मुख्य अभिनेता थे. चार माह बाद, जोड़े ने मुंबई के मालाबार हिल के पास बाणगंगा मंदिर में शादी कर ली. जी हां! फिल्म‘ रंगीन रातें’ की रानी खेत’ में शूटिंग 4 माह काम करने के बाद ही गीता बाली और शम्मी कपूर में ऐसा इष्क हो गया था कि दोनो ने विवाह करने का मन बना लिया था. शम्मी कपूर ने रौफ अहमद को अपनी किताब ‘शम्मी कपूर: द गेम चेंजर’ में बताया था कि कैसे उनकी शादी गीता से हुइ. . शम्मी ने बताया कि एक मंदिर में दोनों की शादी हुई जिसमें परिवार का कोई भी सदस्य शामिल नहीं था. उन्होंने बताया कि इस कुछ सवाल थे जो उनके मन में उस वक्त आए थे. गीता मुझसे एक साल बड़ी थी, वह मेरे पिता पृथ्वीराज कपूर के साथ फिल्म आनंद मठ में काम कर चुकी हैं. वह मेरे भाई राज कपूर की फिल्म फिल्म बावरे नैन में उनके अपोजिट थीं.  मुझे बिल्कुल नहीं पता था कि मेरा परिवार हमारी शादी पर कैसे रिएक्ट करेगा. लेकिन मुझे ज्यादा सोचना नहीं था क्योंकि मुझे गीता हर हाल में मेरे साथ चाहिए थी. गीता के साथ मुझे अपनी पूरी जिंदगी बितानी थी. लेकिन यहां परेशानी तो खुद गीता थी. गीता मुझे कहती कि शम्मी, आई लव यू. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती, लेकिन मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती. मैं अपने परिवार को कैसे छोड़ सकती हूं. वह सब मुझ पर निर्भर हैं. उनके पास और कोई नहीं हैं. लेकिन मैंने भी हार नहीं मानी. अंततः गीता बाली के हां कहने पर हमने मुंबई में एक मंदिर में जाकर 24 अगस्त 1955 की सुबह चार बजे विवाह किया था.’’ गीता बाली और शम्मी कपूर की शादी के एक साल बाद, 1 जुलाई 1956 को शिरोडकर अस्पताल, मुंबई में उनके एक बेटे, आदित्य राज कपूर का जन्म हुआ. पांच साल बाद, 1961 में, उनकी एक बेटी कंचन कपूर हुई.

खेल खेलते हुए भी खेल को बदलने का साहस कपूर खानदान से आने वाले कई सितारों और नायकों में से जो अक्सर नामों की चमक में खो जाते हैं, वह हैं पत्नियां. कपूर उपनाम की शक्ति, बॉलीवुड जैसे उद्योग में जिस तरह की हलचल पैदा करने की क्षमता से मुनाफा कमाती है, वह स्वतंत्र अस्तित्व की किसी भी संभावना पर भारी पड़ती है. इस परिवार में शादी करने वाले कई लोगों की दुर्दशा ऐसी ही है, और ऐसी ही दुर्दशा 50 के दशक की नायिका गीता बाली की भी थी, जिन्होंने खेल खेलते हुए भी खेल को बदलने का साहस किया.

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गीता बाली ने चमक दमक और अत्यधिक धन की संभावना दिखाने वाली फिल्म इंडस्ट्र की जोड़-तोड़ और राजनीति से बचते हुए पूरी तरह से स्वतंत्र रहने का विकल्प चुना. वह बहुत अधिक व्यक्तिगत विवरण प्रकट करने से बचती रही और फिर भी जब अपनी राय बताने का मौका आया तो बोली. वह एक चतुर महिला थीं, जो अच्छी तरह जानती थी कि उसे क्या चाहिए. वह यह भी जानती थी कि इसे और भी बेहतर तरीके से कैसे प्राप्त किया जाए.

गीता अक्सर बताया करती थीं कि उन्हे ज़िंदगी में सबसे ज्यादा तकलीफ़ तब हुई जब उनके पिता को चेचक निकल आई और उनकी आंखों की रोशनी चली गयी थी. लेकिन क़िस्मत की किस्मत का खेल निराला होता है.. ...1965 में ख़ुद गीता बाली को भी चेचक निकल आई...उन्होने आईना मांगा और अपना चेहरा देखकर चीख उठीं...चेचक ने उनके खूबसूरत चेहरे को बेहद बदसूरत और ख़ौफ़नाक बना दिया था...यह सदमा गीता बाली बर्दाश्त नहीं कर पायीं. और 21 जनवरी 1965 को उनका निधन हो गया...

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उनकी मृत्यु के बाद ष्षम्मी कपूर ने 27 जनवरी 1969 को गुजरात के भोजपुर की नीला देवी से दूसरी शादी इस शर्त पर की कि उनकी अपनी कोई संतान नही होगी. शम्मी कपूर जब तक जिंदा रहे,वह अपने दिल से गीता बाली को निकाल नहीं पाए.

गीता बाली एक प्रसिद्ध बॉलीवुड महिला अभिनेता, गायिका, नर्तक और निर्माता थीं, जिन्होंने सिनेमा जगत पर अपनी अमिट छाप छोड़ी. हालाँकि, उनकी मृत्यु के 60 साल बाद भी बहुत कम लोगों को उनकी दुखद कहानी याद है.

 

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