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भारतीय सिनेमा के पहले सुपरस्टार कहे जाने वाले राजेश खन्ना खन्ना (Rajesh Khanna), जिन्हें प्यार से 'काका' के नाम से पुकारा जाता है; ने जब परदे पर कदम रखा, तो मानो स्क्रीन पर सितारा नहीं, जादू उतर आया. 1960 के दशक के अंत से लेकर 1970 के शुरुआती वर्षों तक, उन्होंने एक के बाद एक सुपरहिट फिल्में दीं और दर्शकों के दिलों पर राज किया. उनकी मुस्कान, स्टाइल और डायलॉग डिलीवरी ने उन्हें 'काका' बना दिया — एक ऐसा नाम जो फैंस की दीवानगी का प्रतीक बन गया, खासकर महिलाओं में!
लेकिन, जितनी तेज़ी से काका की शोहरत ने आसमान छुआ, उतनी ही तेज़ी से वह ढलान की ओर भी बढ़े. उनकी सह-कलाकार और करीबी दोस्त शर्मिला टैगोर (Sharmila Tagore) जो उनके साथ अराधना, अमर प्रेम, दाग और आविष्कार जैसी कई क्लासिक्स फिल्मों में नज़र आई है, ने राजेश खन्ना की जिंदगी के इस उजाले और अंधेरे को बहुत करीब से देखा है. उन्होंने इसका जिक्र एक किताब की प्रस्तावना में किया है.
काका से स्टारडम नहीं थमा
राजेश खन्ना की जीवनी 'डार्क स्टार: द लोनलीनेस ऑफ बीइंग राजेश खन्ना' (Dark Star: The Loneliness of Being Rajesh Khanna) की प्रस्तावना शर्मिला टैगोर ने लिखी है. यह जीवनी गौतम चिंतामणि द्वारा लिखित और रूपा द्वारा प्रकाशित है. प्रस्तावना की बात करे तो इसमें टैगोर ने लिखा है- “जिस तरह उन्होंने दोस्ती की कद्र नहीं की, वैसे ही उन्होंने अपने स्टारडम को भी अपनी मुट्ठी से फिसलने दिया. उन्होंने यह महसूस नहीं किया कि समय बदल रहा था, दर्शकों की पसंद बदल रही थी, और उनके किरदार पुराने होते जा रहे थे.
उनके अनुसार, राजेश खन्ना या तो खुद को समय के साथ ढाल नहीं पाए, या उन्होंने बदलाव की जरूरत को ही नज़रअंदाज़ कर दिया — नतीजा यह हुआ कि लोग उनका मज़ाक बनाने लगे.
दिल दिया यारों को, मगर उम्मीदों ने दूरियां बढ़ा दी
काका की दरियादिली भी शर्मिला टैगोर ने महसूस की. उन्होंने लिखा कि वे अपने खास दोस्तों पर दिल खोलकर खर्च करते थे — महंगे गिफ्ट, यहां तक कि फ्लैट्स भी दे देते थे. लेकिन इसके बदले में उनसे उम्मीदें भी बहुत रखते थे, जिससे कई बार रिश्तों में तनाव आ जाता था. वे सोचते थे कि दोस्त उनके ऊपर किये गये एहसान को चुकाए .
स्टारडम के साथ आई लापरवाही
शर्मिला टैगोर ने बहुत ईमानदारी से माना है कि उन्हें काका की काम में देर से आने की आदत बेहद परेशान करती थी. वह कहती है, "मैं सुबह 8 बजे स्टूडियो पहुंच जाती थी और चाहती थी कि रात 8 बजे तक अपने परिवार के पास लौट जाऊं, लेकिन काका 9 बजे की शिफ्ट में अक्सर दोपहर 12 बजे आते थे. नतीजतन यूनिट मुझ पर शेड्यूल पूरा करने और ओवरटाइम का दबाव डालती थी. उनके लिए यह बात आम बात हो गई थी."
उन्होंने यह भी कहा कि भले ही उनकी जोड़ी राजेश खन्ना के साथ हिट थी, लेकिन उनकी इस आदत की वजह से उन्होंने अन्य अभिनेताओं के साथ काम करना शुरू कर दिया और स्वीकार किया कि यह उनके लिए एक बड़ी राहत थी.
राजेश खन्ना फ़िल्में
राजेश खन्ना ने अपने करियर में कई यादगार और हिट फिल्में दीं, जिनमें सच्चा झूठा, आन मिलो सजना, आनंद, अंदाज, हाथी मेरे साथी, बावर्ची, जोरू का गुलाम, बहारों के सपने, औरत, डोली, इत्तेफाक, आखिरी खत, राज, आराधना, अमर प्रेम, दाग और आविष्कार जैसी फिल्में शामिल हैं. ये सभी फिल्में आज भी दर्शकों के बीच उतनी ही पसंद की जाती हैं, जितनी अपने समय में थीं. उन्हें आखिरी बार इस 2012 की शुरुआत में 'हेवल्स' पंखों के विज्ञापन में देखा गया था. इसके बाद इसी साल 18 जुलाई (2012) को कैंसर के चलते उनका निधन हो गया.
उनके निधन से भले ही एक युग समाप्त हो गया हो, लेकिन 'काका' की चमक कभी मद्धम नहीं पड़ी. वह आज भी भारतीय सिनेमा के इतिहास में पहले सुपरस्टार के रूप में अमर हैं — एक ऐसा सितारा, जिसने परदे पर प्रेम, पीड़ा, रोमांस और अकेलेपन की हर भावना को पूरी शिद्दत से जिया… और दर्शकों के दिलों में हमेशा के लिए जगह बना ली.
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