1942 में वो कुल 9 साल की थीं जब उनके पिता, स्टेज के जानेमाने नाम, संगीत के चर्चित कलाकार दीनानाथ मंगेश्कर की मृत्यु हो गयी। वो दौर कुछ ऐसा था कि घर में पिता और दुनिया में हिटलर एक ही सी भूमिका बाँधे रखते थे। हिटलर का तो जानते ही हैं, दीनानाथ जी से भी उनके पाँचों बच्चे डरे-डरे रहते थे। लेकिन जब उनकी डेथ हुई तो पूरा परिवार बिखरने को हुआ। लेकिन उनकी गुजराती पत्नी शेवंती और सबसे बड़ी बेटी लता मंगेश्कर ने घर को इमोशनली और फाइनेंशियली, दोनों रूप से संभालने की ठानी। लता जी ने जहाँ फिल्मों का काम करना शुरु कर दिया तो वहीं अपनी बहनों को संगीत सिखाने की ठान ली।
उन्हीं दिनों उनकी तीसरे नंबर की बहन, आशा मंगेश्कर संगीत केंद्र में राग सीखने जाती थीं। एक रोज़ उनका इम्तेहान हो रहा था। उनके गुरु ने उनसे गाने के लिए कहा, आशा जी डरते-डरते गाने लगीं। वो श्रीकृष्ण पर लोक गीत था। उसे पूरा सुने बिना ही उनके गुरु ने टोक दिया और कहा “बस”
इसपर आशा जी इतनी डर गयी कि तुरंत ही बोल पड़ी “बस, क्या मैं फेल हो गयी?” यह सुनते ही वह हँस दिए और बोले “अरे नहीं नहीं, तुम अव्वल हो मेरी नज़र में” आशा जी हैरान हो गयीं, “बोली पर मैंने तो अभी कुछ लिखा ही नहीं, कुछ बताया ही नहीं”
इतना सुन वह मुस्कुराते हुए बोले “देखो आशा, जहाँ वाकई टैलेंट होता है वहाँ इन सब औपचारिकताओं की ज़रुरत नहीं होती। तुम्हारी आवाज़ ही इतनी सुरीली है कि तुम्हें और किसी चीज़ की ज़रुरत नहीं, तुम कल रिकॉर्डिंग के लिए आ जाओ” और इस तरह मात्र दस साल की उम्र में ही आशा मंगेश्कर ने अपना पहला मराठी गाना गाया। फिल्म थी माझा बाल। इस फिल्म में उनकी बहन लता मंगेश्कर एक्ट्रेस के रूप में थीं।
इसके बाद आशा जी कुछ मराठी गानों में अपनी आवाज़ देती रहीं और दूसरी ओर लता मंगेश्कर बड़ी बहन का कर्तव्य निभाते हुए पूरी तरह फिल्मों में काम पकड़ने लगीं। हालाँकि इनके पिता, दीनानाथ मगेश्कर फिल्मी लाइन को बहुत बुरा मानते थे और वह नहीं चाहते थे कि उनका कोई भी बच्चा फिल्मों में आए। पर समय था, समय पर किसका ज़ोर चल सकता था। लता जी ख़ुद नहीं चाहती थीं कि उन्हें क्लासिकल संगीत के सिवा कुछ करना पड़े। न ही ऐसी कोई ख्वाहिश आशा जी की थी।
लेकिन इन सबने ही अपनी ज़िम्मेदारी को बखूबी समझा और जो काम मिलता गया, करते गये। 1948 में आशा जी ने पहली हिन्दी फिल्म में एक गाना गाया, गाना था ‘सावन आया’ और फिल्म थी ‘चुनरिया’। यही वो समय था जब वह लता मंगेश्कर के ही सक्रेटरी गनपतराव भोसले के प्यार में पड़ गयीं। आशा तब मात्र 16 साल की थीं और गनपत 31 साल के थे। लता मंगेश्कर समेत पूरा परिवार उनकी इस मुहब्बत के खिलाफ था, बजाए अलग होने के, आशा जी ने गनपतराव से शादी कर ली और घर छोड़ दिया। इस घटना से उनके परिवार में एक बड़ी खाई उत्पन्न हो गयी जिसे भरने में बहुत समय लगा।
उसी समय लता जी को एक से बढ़कर एक गाने मिलने लगे और लता, शमशाद बेगम और गीता दत्त के मना करने के बाद कोई गाना बचता था तो आशा भोसले को मिलता था। इसी चक्कर में आशा जी को सिर्फ सी ग्रेड फिल्मों के गाने मिलने लगे।
लेकिन उस समय एक म्यूजिक डायरेक्टर ऐसा उभरा जिसने न सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री में म्यूजिक ट्रेंड चेंज किया, बल्कि बिना आशा भोसले के कैरियर को सही पहचान भी दिलाई। यह संगीतकार और कोई नहीं बल्कि बंगालियों से भरी म्यूजिक इंडस्ट्री में इकलौते लाहौरी पंजाबी ओपी नय्यर थे। ओपी ने आशाजी को पहली बार फिल्म छम-छम-छम (1952) के स्टूडियो में देखा था। उन्होंने फिल्म मंगू (1954) में भी उन्हें चांस दिया लेकिन जब सी।आई। डी (1956) रिलीज़ हुई तो आशा जी की सारी इमेज ही बदल गयी। हालाँकि इस फिल्म में उनका एक ही गाना था, वो भी शमशाद बेगम के साथ था – ले के पहला पहला प्यार, बनके आँखों में खुमार, जादू नगरी से आया है” लेकिन इस गाने में शमशाद बेगम से ज़्यादा आशा जी की आवाज़ पसंद की गयी।
इसके बाद जब दिलीप कुमार की नया दौर आई और नय्यर साहब ने इस बार फीमेल लीड में सिर्फ आशा भोसले को ही रखने की ठानी तो फिल्म के डायरेक्टर बी-आर चोपड़ा ज़रा असमंजस में हुए। भला उस दौर में बिना लता मंगेश्कर की आवाज़ के कोई बड़ी फिल्म बनती ही नहीं थी। लेकिन ओपी तो अपने मिजाज़ से इकलौते थे, उनसे बहस कोई नहीं कर सकता था। उन्होंने साफ कह दिया कि वो लता से कोई गाना आज क्या कभी नहीं गँवायेंगे। ये ख़बर आशा भोसले के लिए वरदान साबित हुई और नया दौर के सारे गाने, ख़ासकर “मांग साथ तुम्हारा, मैंने मांग लिया संसार, उड़े जब जब ज़ुल्फे तेरी, रेशमी सलवार कुर्ता जाली का” बहुत पॉपुलर हुए। इतने पॉपुलर हुए कि आज भी इनके रिमिक्स बनते रहते हैं।
बस इसके बाद से आशा भोसले ने कम से कम कैरियर की तरफ से पीछे मुड़कर देखना बंद कर दिया। नया दौर के बाद, ओपी ने तकरीबन हर फिल्म में आशा भोसले को लेना शुरु कर दिया। इनमें हावड़ा ब्रिज का वो गाना “आइए मेहरबान” या मेरे सनम का “ये रेशमी, जुल्फों का अँधेरा न घबराइए”, फिर किस्मत फिल्म के गाने “आओ हुज़ूर तुमको, सितारों में ले चलें” को भला कैसे भूल सकते हैं। आशा और ओपी की संगीत की पसंद भी समान थी तो दोनों का मनमुटाव भी सेम शख्स ‘लता मंगेश्कर’ से था। इस खूबी ने इन दोनों को और पास आने पर मजबूर कर दिया।
आशाजी ने सन 60 में अपने पति से तलाक ले लिया और दो बच्चों को उँगलियाँ पकड़ाकर, और एक बच्चा गोद में लेकर कोई 12 साल बाद घर लौट आईं। यहाँ से उनका कैरियर जम्प लेने लगा। उन्हें कैबरे से जुड़े हर तरह के गाने दिए जाने लगे। आलम ये हो गया कि आशा भोसले एक एक दिन में 6-6 गाने रिकॉर्ड करने लगीं।
शम्मी कपूर की फिल्म राजकुमार का एक किस्सा बहुत रोचक है। इस फिल्म में डांस नंबर था “दिलरुबा दिल पे तू ये सितम किये जा”, ये गाना मुहम्मद रफ़ी के साथ डुएट था और कोई भी फीमेल सिंगर इस गाने को गाने के लिए तैयार नहीं थी।
तब ओपी नय्यर को छोड़ संगीतकारों को ही एक फिल्म के लिए 50 हज़ार से ज़्यादा नहीं मिलते थे, तो किशोर कुमार, मुहम्मद रफ़ी और लता मंगेश्कर के अलावा बाकी सिंगर्स भी कुछ सौ में गाने गाया करते थे। लेकिन इस गाने के बोल पढ़ने और सीन समझने के बाद आशाजी बोलीं मुझे इस गाने के लिए 3000 रूपये चाहिए।
संगीतकार शंकर जयकिशन थे, वह सीट से खड़े हो गये। सारे क्रू में हड़कंप मच गया कि इतना पैसा आशा कैसे मांग सकती है। तभी शम्मी कपूर आए और बोले “क्यों शोर किया हुआ है? क्या वो गाना आशा के सिवा कोई गा सकता है? नहीं न? तो 3 नहीं चार हज़ार दो उसको” आशा जी की यही ख़ासियत थी कि वह बोलने से, अपनी बात रखने से कभी चूकती नहीं है।
आशा जी ने एक से बढ़कर एक गाने दिए, 12 हज़ार से ज़्यादा गानों पर परफॉर्म करने का उनके पास वर्ल्ड रिकॉर्ड भी है। लेकिन बात जब किशोर कुमार की या उनकी बहन लता मंगेशकर की आती है तो वो वह हाथ जोड़कर या कान पकड़कर कहती हैं कि किशोर कुमार और लता दीदी तो मेरे लिए भगवान समान हैं। आज के रीमिक्स के दौर से वह इस कद्र खफ़ा रहती हैं कि खुलकर बोलती हैं “उन भगवान समान सिंगर्स, म्यूजिक डायरेक्टर्स के गाने को आप दोबारा बनाने का सोच भी कैसे सकते हैं, आपको हिम्मत कैसे आती है इतनी?”
इसी तरह हिमेश रेशमिया ने जब ख़ुद की तुलना आरडी बर्मन से की थी तब आशा जी के मुँह से निकला था कि ऐसे आदमी के तो थप्पड़ पड़ना चाहिए जो ख़ुद की तुलना पंचम से करे और ख़ुद को किशोर कुमार समझने लगे। (फिल्म क़र्ज़ का रीमेक बनाने पर) आशा जी ने साफ़ कहा कि हिमेश न चिंटू (ऋषि कपूर) बन सकते हैं और किशोर कुमार के तो आसपास भी नहीं भटक सकते। वो जिस लेवल पर थे, जिस लेवल पर लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ने कम्पोज़ किया था, वहाँ तक भला कोई ऐरा-गैरा कैसे पहुँच सकता है?
इसी तरह फिल्म डॉन के रीमेक बनने पर, वह कहती हैं कि ‘खाइके पान बनारस वाला’ सुनकर वह रो दी थीं। उन्होंने सिर्फ इसलिए फिल्म नहीं देखी कि उन्हें गाने देखने पड़ेंगे।
अपने और लता जी से बंधे रिश्तों को लेकर भी आशा जी कहती हैं कि जो उस वक़्त था, एक नाराज़गी, एक बचपना था वो तभी तक था, जब हम बड़े होते हैं तो बड़ों की कीमत भी समझ आती है। फिर कहाँ दो बहनों में झगड़ा नहीं होता, मुझे पिंक पसंद है तो उन्हें वाइट पसंद है, पर इसका मतलब ये तो नहीं कि एक दुसरे से प्यार नहीं, एक दुसरे की इज्ज़त नहीं?
आशा जी पूरी श्रृद्धा से ये भी कहती हैं कि “जब माँ गुज़रीं तो उन्होंने कहा कि मेरे बाद लता तुम्हारी आई है, हम सब भाई बहन उसे आई ही मानते हैं, वो अगर कुछ कह दे मैं जवाब नहीं देती, दे ही नहीं सकती। वो जबतक खड़ी हैं, मैं बैठती नहीं हूँ”
अपनी जड़ों से, अपने बड़ों से आशाजी बहुत कुछ सीखती तो हैं ही, साथ-साथ उनका आदर करना भी जानती हैं। वह हेमंत दा यानी हेमंत कुमार को इतना मानती थीं कि उन्होंने अपने बड़े बेटे का नाम भी उन्हीं के नाम पर, हेमंत भोसले रखा था।
आशा जी आज 90 साल की हो गयीं हैं मगर उनसे पूछिए तो वो आज भी वही सोलह साल की लड़की हैं जो खुल के ज़िन्दगी जीती हैं, जिन्हें संगीत से तो प्यार है ही, पर साथ ही घर संभालना, खाना बनाना, बच्चे संभालना बहुत पसंद है। अपने पोते पोतियों की वह फेवरेट दादी हैं। पर उनकी आवाज़ सुन लो आप हैरान हो जाओ कि वो आज भी किसी 20 साल की हीरोइन के लिए गाना गा सकती हैं। उनकी आवाज़ में जो वेर्सलिटी है, जो विभिन्नता है, वह किसी अन्य सिंगर में नहीं। उन्होंने उमराव जान के मुजरे भी गाये तो गुलाम अली के साथ उनकी गज़लों की एल्बम भी है। कैबरे सिंगिंग में तो उनका कोई जवाब है ही नहीं, साथ ही “मेरा कुछ सामान” जैसा आउट ऑफ़ द वर्ल्ड गाना गाकर नेशनल अवार्ड जीतने वाली आशा जी आज भी ज़मीन से वैसे ही जुड़ी हुई हैं।
कभी पूछिए तो मुस्कराहट के साथ कहती हैं, कि नहीं भगवान ने जो दिया जितना दिया, बहुत है। हम दो मंगेश्कर बहनों ने 65 साल तक इंडस्ट्री पर राज किया है। और क्या चाहिए। और ये सच है भी, आशा जी जैसी आवाज़, उनके जैसी विविधता आज भी नेक्स्ट टू इम्पॉसिबल है। हम मायापुरी मैगज़ीन की ओर से आशा-भोसले जी को जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं देते हैं व वह हमेशा स्वस्थ रहें ये कामना करते हैं
- सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’
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