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जब महबूब खान ने प्रेम चोपड़ा से कहा “तुझसे कहा था न कोई गड़बड़ मत करियो, पर तू माना नहीं, अब भुगत”

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By Siddharth Arora 'Sahar'
जब महबूब खान ने प्रेम चोपड़ा से कहा “तुझसे कहा था न कोई गड़बड़ मत करियो, पर तू माना नहीं, अब भुगत”
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एक समय था कि जब बच्चों के लिए प्रेम चोपड़ा का नाम ही कंपा देने के लिए काफी होता था। प्रेम चोपड़ा का चेहरा देखते ही कि लगता था कि ये परफेक्ट विलन है, लेकिन, गब्बर जैसा क्रूर और खूंखार नहीं, बल्कि कुछ ऐसा जिससे नफरत हो जाए, जिसको देखकर लगे कि इससे नीच तो हो ही नहीं सकता। पर क्या प्रेम चोपड़ा वास्तविकता में ऐसे ही हैं? क्या प्रेम चोपड़ा विलन बनने ही मुम्बई आए थे?

जब महबूब खान ने प्रेम चोपड़ा से कहा “तुझसे कहा था न कोई गड़बड़ मत करियो, पर तू माना नहीं, अब भुगत”

आइए शुरु से शुरू करते हैं।

23 सितम्बर 1935 में जन्में प्रेम चोपड़ा रनबीर लाल और रूपरानी चोपड़ा के छः बच्चों में तीसरे थे। वह लाहौर में जन्में थे। लेकिन जब पार्टीशन का टाइम आया तो उनके परिवार को पहले दिल्ली फिर शिमला जाना पड़ा। उनके पिता की सरकारी नौकरी थी, सरकार स्टेबल होते ही फिर पक्की नौकरी शिमला में सेट हो गयी। प्रेम अपने बाकी भाइयों के साथ शिमला के ही सनातनी स्कूल में पढ़े। लेकिन जब वह बीएम कॉलेज गये तो वहाँ अंग्रेज़ी मीडियम से पढ़े लड़कों को देख उन्हें काम्प्लेक्स होने लगता था। वो लड़के थिएटर करते थे, डिबेट करते थे, जहाँ देखो वहाँ कांफिडेंट दिखते थे। प्रेम चोपड़ा ने ठान लिया कि उन्हें भी थिएटर करना है, उन्हें भी एक्टिंग करनी है। उन्होंने प्ले में कोशिश की तो उन्हें काम मिलने लगा। फिर उन्हें आल टाइम हिट प्ले मर्चेंट ऑफ वेनिस में लीड रोल करने का मौका मिला और उनकी एक्टिंग देख दर्शकों ने तालियाँ बजा-बजा के सारा समा बांध दिया।

जब महबूब खान ने प्रेम चोपड़ा से कहा “तुझसे कहा था न कोई गड़बड़ मत करियो, पर तू माना नहीं, अब भुगत”

बस यहीं प्रेम चोपड़ा ने तय कर लिया कि उन्हें एक्टिंग करनी है। फिल्में देखने का शौक तो उन्हें हमेशा से था ही, सो उन्होंने सोचा कि मुम्बई जाकर कम से कम एक बार कोशिश तो ज़रूर करनी चाहिए।

पर पिताजी ने साफ़ मना कर दिया। बोले “ये सब अनसर्टेन प्रोफेशन है, इसमें कोई स्टेबिलिटी नहीं है। कोई फायदा नहीं ये सब करके, जाओ आइएएस वाइएस बनो, डॉक्टरेट करो, या चार्टेड अकाउंटेंसी में जाओ। लेकिन इसमें मत समय बर्बाद करो, मेरा बड़ा परिवार है, मैं तुम्हें हर महीने पैसे नहीं भेज सकता”

जब महबूब खान ने प्रेम चोपड़ा से कहा “तुझसे कहा था न कोई गड़बड़ मत करियो, पर तू माना नहीं, अब भुगत”

पर प्रेम चोपड़ा इतनी आसानी से कहाँ मानने वाले थे। वह दो महीने गुज़ारा हो सके इतने पैसे लेकर चल दिए मुम्बई। पर दो महीने से भी पहले वापस आ गये क्योंकि वो कितनी ही कोशिश करते, स्टूडियोज़ में नहीं घुस पाते थे। फिर धीरे-धीरे पैसे भी ख़त्म होने लगे तो घबराहट हो गयी। लेकिन अबकी जो लौटे तो पिता को भी तरस आ गया और वह ये बात समझ गए कि इसका मन किसी और काम में नहीं लगेगा। तब उन्होंने पास बुलाया और समझाया “देख बेटा, फिल्मों में अगर काम करना ही है तो पहले बोम्बे में कोई नौकरी पकड़ ले ताकि आर्थिक दिक्कतें न आएं, वहीं रह के साथ-साथ काम की तलाश कर”

जब महबूब खान ने प्रेम चोपड़ा से कहा “तुझसे कहा था न कोई गड़बड़ मत करियो, पर तू माना नहीं, अब भुगत”

ये बात प्रेम चोपड़ा को जच गयी और कुदरत से उनकी नौकरी टाइम्स ऑफ इंडिया में एक सर्कुलेशन ऑफिसर की पोस्ट पर लग गयी। पर इस नौकरी में भी एक समस्या थी, कायदे से सर्कुलेशन ऑफिसर को महीने में बीस दिन देश के विभिन्न राज्यों में भटकना पड़ता था। लेकिन प्रेम चोपड़ा ने यहाँ भी करतब कर दिखाया, वह ट्रेन से अगर असम पहुँचते तो अपने एजेंट को वहीं स्टेशन पर बुला लेते और वेटिंग रूम में मीटिंग कर लेते। वो कलकत्ता जाते तो वहाँ भी इसी तरह टाइम बचाते हुए अगली गाड़ी से ही लौट आते। यूँ बीस दिन में होने वाला टूर वो 12 दिन में ख़त्म कर, बचे आठ दिन में से सात दिन फिल्मी स्टूडियोज़ के धक्के खा लेते। इत्तेफ़ाक से उनपर महबूब खान की नज़र पड़ गयी। वो उस वक़्त के जाने-माने फिल्ममेकर थे, लेकिन क्योंकि डेडिकेटेड थे इसलिए कम फिल्में बनाते थे पर अच्छी फिल्में बनाते थे। उन्होंने प्रेम चोपड़ा से कहा “तू लड़का बढ़िया है, तुझमें पोटेंशियल है, तू थोड़ा सब्र कर, मैं तुझे लीड रोल दूंगा, लेकिन कोई ऐसा-वैसा काम मत पकड़ लियो”

जब महबूब खान ने प्रेम चोपड़ा से कहा “तुझसे कहा था न कोई गड़बड़ मत करियो, पर तू माना नहीं, अब भुगत”

पर प्रेम चोपड़ा तो बस फिल्मों में कैसे भी करके एंट्री चाहते थे। एक रोज़ वो ट्रेन में सफ़र कर रहे थे कि एक अंजान आदमी ने उन्हें टोका “तुम फिल्मों में काम करना चाहते हो न? मेरे साथ चलोगे?

शिद्दत से काम ढूँढने आए लड़के के पास अगर चल के काम आए तो भला वह कैसे मना कर सकता है? वह अजनबी उन्हें रंजित स्टूडियो ले गया और पंजाबी फिल्ममेकर जगजीत सेठी से मिलाया, जिन्होंने तुरंत उन्हें चौधरी करनैल सिंह नाम की पंजाबी फिल्म में लीड रोल दे दिया। पर भला नौकरी के बीच शूटिंग कैसे करें?

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तब प्रेम चोपड़ा ने बहाने बनाकर कुछ छुट्टियाँ लीं और शूटिंग पूरी की। फिल्म को बनने में तीन साल लग गये लेकिन फिल्म सुपर-डुपर हिट हो गयी। ये सन 1960 की बात है, फिर उन्हें एक और पंजाबी फिल्म मिली, सपनी; ये भी सुपरहिट हुई लेकिन वह अभी भी नौकरी करते-करते ही शूटिंग कर रहे थे। फिर उन्हें राज खोसला की बहुचर्चित फिल्म ‘वो कौन थी?’ में कैमियो रोल ऑफर हुआ और वो छोटा सा रोल, पूरी फिल्म का मुख्य सस्पेंस था। इसमें वह विलन बने थे। फिल्म सुपर-डुपर हिट हो गयी और प्रेम चोपड़ा के पास कई फिल्मों के ऑफर आने लगे लेकिन अभी भी उन्होंने जॉब नहीं छोड़ी।

वो कौन थी? के प्रीमियर पर महबूब खान भी शामिल थे, उन्होंने फिल्म देखी और फिर प्रेम चोपड़ा का मुँह देखा, वो मुस्कुराते हुए बोले “तुझसे कहा था न सब्र कर, कोई ग़लत काम मत कर, अब ले, अब तेरे ऊपर ठप्पा लग गया कि तू विलन ही है”

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मनोज कुमार जी ने उन्हें अपनी फिल्म शहीद में सुखदेव का रोल दिया जो शायद उस समय प्रेम चोपड़ा के लिए इकलौता पॉजिटिव रोल था। फिर फिल्म सिकंदरेआज़म और निशान जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्म्स तक भी प्रेम जॉब के साथ साथ ही एक्टिंग करते रहे।

फिर तो जनाब पूछिए मत कि प्रेम चोपड़ा के पास बड़ी-बड़ी फिल्मों की लाइन लग गयी। उन्होंने तीसरी मंज़िल, मेरा साया, सगाई, आदि हर बड़ी फिल्म में काम किया। उपकार के लिए उन्हें फिर मनोज कुमार ने अप्रोच किया और जब उपकार सुपर हिट हुई, तब जाकर प्रेम चोपड़ा ने फाइनली अपनी नौकरी से किनारा कर लिया।

मगर जिन दिनों वह कामयाबी का स्वाद चख ही रहे थे, उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। उनकी इकलौती बहन तब मात्र 10 साल की थी लेकिन प्रेम चोपड़ा ने उसे अपनी बेटी की तरह मान उसकी सारी ज़िम्मेदारी ले ली।

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अपने पीक टाइम में प्रेम जी एक साथ सात से आठ फिल्में करने लगे थे। उस दौर में बड़े हीरो को छोड़कर किसी को भी फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं पढ़ाई जाती थी (क्योंकि कम्पलीट स्क्रिप्ट होती ही नहीं थी), बस सेट पर आकर सीन समझा दिया जाता था। ऐसे ही एक फिल्म के प्रोपोज़ल पर वह शूटिंग के लिए पहुँचे तो उन्हें समझाया गया कि उन्हें पिटारी में से सांप निकालकर दुश्मन कबीले के ऊपर फेंक देना है। लेकिन प्रेम चोपड़ा जैसे ही पिटारी पर हाथ रखें, उनके हाथ कांपने लगें, हाल इतने बदहाल हो गए कि थोड़ी ही देर में उनका शरीर ठंडा पड़ गया और जब डायरेक्टर चिल्लाया ‘कट’ तो उन्हें पिटारा फेंक, साफ़ कह दिया कि “मैं ये फिल्म नहीं कर पाऊंगा, मुझे सांपों से बहुत डर लगता है”

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उन्हें समझाया गया कि इस सांप के दांत वगरह नहीं है, डरो मत! पर प्रेम चोपड़ा अड़ गए कि सांप के साथ तो काम नहीं कर पाउँगा। फिर नकली सांप का बंदोबस्त कर, अगले दस दिन की शूटिंग की गयी।

अच्छा प्रेम चोपड़ा फिल्मों में भले ही, नीच-गलीच विलन बनते थे पर असल ज़िन्दगी में बिल्कुल उल्टे, नेक शरीफ और दिलदार व्यक्ति हैं। दर्शक जहाँ उनका नाम सुनकर भी कांपने लगते थे वहीं इंडस्ट्री के लोग उन्हें बेपनाह प्यार करते थे।

इस प्यार का ही नतीजा था कि जाने-माने लेखक लेख टंडन जी ने द ग्रेट शोमैन राजकपूर जी की साली, उमा के लिए प्रेम चोपड़ा का रिश्ता सजेस्ट किया और इन दोनों ने 1969 में विधिवत शादी कर ली।

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अगले ही साल राज कपूर की ड्रीम प्रोजेक्ट फिल्म मेरा नाम जोकर रिलीज़ हुई और अपनी लम्बी लेंथ की वजह से सुपर फ्लॉप हो गयी। इसके ठीक बाद ही राज कपूर ने अपने बेटे ‘ऋषि कपूर’ को लीड में लेकर फिल्म बॉबी प्लान की और उसमें प्रेम चोपड़ा के लिए भी एक छोटा सा रोल एड किया। अब भला साढू साहब के साथ प्रेम चोपड़ा काम करने के लिए मना क्यों करते, पर उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें कोई बड़ा, प्रोमिनेंट रोल दिया जाएगा। उनके मन की बात राज कपूर साहब ने भांप ली और बोले “प्रेम, ये जो तुम्हें छोटा सा रोल लग रहा है न, ये तुम्हें सदा के लिए स्थापित कर देगा”

और हुआ भी वही, उनका डायलॉग “प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा” इतना पॉपुलर हुआ कि प्रेम चोपड़ा जब भी स्टेज पर जाते तो उनसे वही डायलॉग दोहराने के लिए कहा जाता था।

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यूँ तो प्रेम चोपड़ा ने अपनी 400 से ज़्यादा फिल्मों में हर बड़े-छोटे कलाकार के साथ काम किया है पर अमिताभ बच्चन के साथ उनकी हीरो विलन की ठनक ख़ूब जमी है। फिल्म दोस्ताना, त्रिशूल, नसीम, मर्द, दो अनजाने, आदि एक से बढ़कर एक सुपरहिट फिल्में की हैं। यह दोनों बहुत अच्छे दोस्त भी हैं।

फिल्म दोस्ताना की शूटिंग के दौरान, जब प्रेम चोपड़ा अमिताभ को बांधकर उनके हंटर बरसा रहे थे, तब हर एक ‘कट’ के बाद वह पूछते थे “आपको लगी तो नहीं? आपको लगी तो नहीं?”

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तीसरी चौथी बार में अमितभ इरिटेट हो गए और पूछ बैठे “नहीं लगी प्रेम, पर हुआ क्यों आप क्यों बार बार पूछ रहे हो?” तब प्रेम चोपड़ा धीरे से बोले “वो क्या है न, इस सीन में तो आपके हाथ बंधे हैं और मैं हंटर मार रहा हूँ, अगले सीन में मेरे हाथ बंधे होंगे, तो ज़रा ध्यान से हंटर चलाना”

यह सुन अमिताभ और सेट पर मौजूद शंत्रुघन सिन्हा समेत सबकी बेसाख्ता हँसी निकल गयी।

फिल्म दो अंजाने के लिए उन्हें इकलौता फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला।

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जैसा मैंने पहले भी लिखा, प्रेम चोपड़ा अपने करैक्टर्स के विपरीत बहुत अच्छे, बहुत भले इंसान हैं। उनकी तीन बेटियां हैं। तीनों के साथ समय गुज़ारना, उन्हें हँसाना, उनका मनोरंजन करना उन्हें बहुत पसंद था। लेकिन जब वह थोड़ी बड़ी हुईं तो प्रेम उन्हें शूटिंग में भी ले जाने लगे। अब शूटिंग में अपने पिता का ये नया रूप देख बच्चियाँ घबरा गयीं, वो सोच में पड़ गयीं कि घर में तो ये शख्स इतना अच्छा है, हँसाता है, मनाता है, इतना ख़याल रखता है, यहाँ ये ऐसे गड़बड़ काम क्यों कर रहा है?

फिर एक रोज़ प्रेम चोपड़ा ने उन्हें बैठाकर समझाया कि देखो बेटा “जो तुम देख रहे हो वो एक्टिंग है, वो मैं नहीं हूँ। उस एक्टिंग की वजह से ही तुम्हारी अच्छी एजुकेशन हो रही है, ये घर है, ये सब लग्ज़री मुमकिन हुई है। तो ये देख घबराओ नहीं”

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जब समय बदला और उन्हें मौका मिला तो उन्होंने कुछ फिल्मों में पॉजिटिव रोल भी किए हैं, इनमें बंटी और बबली में किया छोटा सा रोल बहुत प्रसिद्ध हुआ है। फिर डेविड धवन के साथ कॉमेडी फिल्म्स में भी उन्होंने लोगों को बहुत एंटरटेन किया है। फिल्म दुल्हे राजा में उनका डायलॉग “नंगा नहायेगा क्या और धोएगा क्या” बहुत चला था।

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हमेशा से एक टैगलाइन डायलॉग देने वाले प्रेम चोपड़ा ने कुछ ज़बरदस्त दिए हैं -  “जिनके घर शीशे के होते हैं, वो दूसरों के घर पत्थर नहीं फेंका करते”
“मैं वो बला हूँ जो शीशे से पत्थर को तोड़ता हूँ” – सौतन

“बादशाहों का अंदाज़ा बहुत कम ग़लत होता है, और जब ग़लत होता है तब वह बादशाह नहीं रहते” – अली बाबा चालीस चोर

“कैलाश ख़ुद नहीं सोचता, दूसरों को सोचने के लिए मजबूर कर देता है” – कटी पतंग
थिएटर से निकलकर फिल्मों में आए प्रेम चोपड़ा फिर दोबारा थिएटर भी करने लगे हैं। वह पिछले 50 साल से पाली हिल के अपने उसी फ्लैट में रहते हैं।

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उस दौर में तो कहीं मौका नहीं मिला पर अब ज़रूर कुछ लिख लिया करते हैं। उन्हें पढ़ने और लिखने का बहुत शौक है। ख़ासकर नज़्म और शायरी तो वो एक से बढ़कर एक लिखते हैं। बदलते दौर और कम होती इंसानी कीमत पर वह लिखते हैं

“यहाँ आज कल हर शख्स हर पल हादसा होने से डरता है
खिलौना है जो मिटटी का वो फ़ना होने से डरता है
हम सबके दिलों में वो मासूम सा बच्चा जो हैं
हम बड़ों को देखकर बड़ा होने से डरता है – प्रेम चोपड़ा

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ऐसी अज़ीम शक्सियत को, ऐसे नेकदिल इंसान और बेहतरीन कलाकार को हम मायापुरी मैगज़ीन की ओर से जन्मदिन की अशेष शुभकामनाएं देते हैं।

सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'

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