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तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे, जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे, संग संग तुम भी गुनगुनाओगे (मुहम्मद रफी साहब पर विशेष)

तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे, जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे, संग संग तुम भी गुनगुनाओगे (मुहम्मद रफी साहब पर विशेष)
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-सुलेना मजुमदार अरोरा

मुहब्बत की सरगोशियों में जिन्होंने जान फूँक दी, जिनकी रेशमी  आवाज़ की जादूगरी ने इश्क में वो नशा भर दिया कि प्यार करने वाले उनके गीत गुनगुना कर दिल की तड़प से लेकर, प्यार का इकरार भी बयाँ कर देते थे , वो महान हस्ती अगर आज जीवित होते तो 97 वर्ष के हो जाते। मैं बात कर रही हूँ मुहम्मद रफी साहब की , जिनकी याद सिर्फ उनके जन्मदिन या उनकी पुण्यतिथि पर ही नहीं बल्कि संगीत प्रेमियों को हर पल, हर घड़ी  आती रहती है।

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यह मेरी बदकिस्मती है कि मोहम्मद रफी साहब के करियर जीवन को मैं नहीं देख पाई। लेकिन फिर भी मैं कहूंगी कि उन्हें करीब से देखने की खुशकिस्मती मैंने भी पाई थी जब एक बार कानपुर में मेरे कॉन्वेंट स्कूल की गर्मियों की छुट्टियां चल रही थी तब मेरे पापा श्री एच पी मजुमदार के क्लासमेट दोस्त, प्रसिद्ध फ़िल्म डाइरेक्टर मुकुल दत्त ('आन मिलो सजना' फेम) ने हम सबको मुंबई घूमने के लिए निमंत्रित किया था। जब हम मुंबई आए तो उन्होंने हमारी मुलाकात संगीतकार एस एन त्रिपाठी जी से करवाई थी और मेरी मम्मी संजुक्ता, जो कि मुहम्मद रफी की बहुत बड़ी फैन थी ने उनसे मोहम्मद रफी से मिलवाने की गुज़ारिश की थी। मेरी उम्र कोई आठ साल की थी जब किसी रिकॉर्डिंग स्टूडियो में हम रफी साहब से मिलने गए थे।

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इतने सादे , गंभीर और भद्र इंसान थे रफी साहब कि अपनी व्यस्तता के बीच भी उन्होंने हमारी खूब आवभगत की थी। हमने देखा था कि ब्रेक के दौरान वे सिर्फ कुछ बिस्किट खाते रहे जबकि टीम के अन्य लोग भारी भरकम नाश्ता कर रहे थे। जब वे रेकॉर्डिंग कर रहे थे तो मैं और मेरी बहन अपनी कुर्सी से उठकर उचक उचक के कांच के रिकॉर्डिंग केबिन में झांक रहे थे तो रफी साहब गाते हुए डिस्टर्बड हो गए  और बाहर आकर हम दोनों को बड़े प्यार से एक जगह बैठे रहने को कहा था और अपनी बिस्किट हमें पकड़ा दी थी। उस वक्त हमें इतना क्या पता था कि यह वो महान गायक हैं जिन्हें दुनिया बतौर गायक पूजती है। वर्षों बाद हम मुंबई शिफ्ट हुए, तब तक मोहम्मद रफी साहब इस दुनिया को अलविदा कह चुके थे। फिर जब मैं मायापुरी के साथ जुड़ी तो मेरी मुलाकात अक्सर एस एन त्रिपाठी दादू से हो जाती थी।

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उन्ही के मुख से मैंने सुनी मुहम्मद रफी साहब की बातें। उन्होंने बताया था कि मुहम्मद रफी कभी शराब सिगरेट नहीं पीते थे और इस वजह से ही उन्हें बॉलीवुड में नौशाद जैसे महान संगीत निर्देशक का भरपूर प्यार मिला था क्योंकि नौशाद को भी शराब सिगरेट पीने वाले पसन्द नहीं थे। दरअसल नौशाद को तलत महमूद की आवाज़ बहुत पसंद थी लेकिन एक बार रेकॉर्डिंग के दौरान, नौशाद के मना करने पर भी तलद जी सिगरेट की तलब छुपा नहीं पाए जिसपर नाराज़ होकर नौशाद ने मोहम्मद रफी को अपने गीत के लिए साइन कर लिया और तब से रफी साहब नौशाद साहब के फेवरेट बन गए।

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त्रिपाठी दादू ने बताया था कि मोहम्मद रफी जैसे सिंपल, ठंडे मिजाज के इंसान बॉलीवुड में कोई और थे ही नहीं लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं था कि उनमें आग नहीं थी। जो बात रफी साहब को बुरी लगती थी उसपर वे खुलकर बोलने में दो बार नहीं सोचते थे। रफी साहब ने लता मंगेशकर द्वारा छेड़ी गयी उस मुहिम को नकार दिया था जिसमें लता जी ने प्रत्येक गीत के लिए रॉयल्टी की मांग की थी और रफी साहब से भी उन्हें सपोर्ट करने के लिए कहा था। बाकी गायक, गायिकाएं  लता जी की बात पर चुप थे पर रफी साहब ने ही यह कहकर फ़ुट डाउन किया था कि 'जब उन्हें गाने के  लिए मुहमांगी कीमत मिल रही है तो रॉयल्टी पर नज़र क्यों मारना? किसी फिल्म के फ्लॉप होने पर जब हम फ़िल्म बनाने वाले को होने वाले नुकसान के हिस्सेदार नहीं बनते तो फायदे में हिस्सेदार क्यों बने?'

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इस बात पर लता जी और रफी साहब में वर्षो ठनी रही पर रफी साहब ने रत्ती भर परवाह नहीं की, वर्षो तक दोनों ने साथ गाना नहीं गाया। लोगों ने समझाया कि इस तनातनी के कारण उनके करियर को नुकसान होगा तब रफी साहब ने कहा था ,'जितना मुझे नुकसान है, उतना लता जी को भी है।' गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में जब लता जी का नाम सबसे ज्यादा गाने रिकॉर्ड करने वाली सिंगर के रूप में दर्ज किया गया, उस वक्त भी रफी साहब ने इसे गलत आँकड़ा करार देकर चुनौती दी थी। त्रिपाठी दादू ने बताया था कि रफी साहब ने जीवन में पैसों को कभी महत्व नहीं दिया था और वे न जाने कितने नए और कमजोर फ़िल्म निर्माताओं के रिक्वेस्ट पर एक रुपया लिए बिना ही गाने गाए थे। सिर्फ यही नहीं, रफी साहब कई पुराने संगीतकारों के खस्ताहाल जीवन को संभालते हुए, हर महीने उन्हें रोजी रोटी के पैसे भिजवाते थे।

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जब किशोर कुमार ने अपनी नटखट आवाज से सत्तर के दशक में हलचल पैदा कर दी थी, उस वक्त ये कहा जाता था कि किशोर कुमार के दम खम के आगे मुहम्मद को काम मिलना बंद हो गया था, जबकि यह पूरी तरह से झूठी खबर थी। दरअसल मुहम्मद रफी की तबियत खराब हो गई थी और उनके गले में इंफेक्शन हो गया था तो डॉक्टर ने उन्हें कुछ समय गाना ना गाने की सलाह दी थी। ऐसे में किशोर कुमार को मौका मिल गया और जो गाने मोहम्मद रफी ने नहीं गाया वो किशोर कुमार को मिल गए। लेकिन कुछ समय बाद जब मुहम्मद रफी साहब  का थ्रोट इंफेक्शन ठीक हुआ तो वे फिर ऐसे धमाके के साथ लौटे की दुनिया देखती रह गई।

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उन्होंने सत्तर के ही दशक में फिर से सुपर हिट गीत दिए जैसे 'तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे', 'ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं', 'झिलमिल सितारों का आंगन होगा', 'कान में झुमका', 'यूँ ही तुम मुझसे बात करती हो या कोई प्यार का इरादा है', 'ये जो चिलमन है', 'इतना तो याद है मुझे', 'मेरा मन तेरा प्यासा', 'चढ़ती जवानी तेरी चाल मस्तानी', 'चलो दिलदार चलो',, 'चुरा लिया है तुमने जो दिल को', 'ना तू ज़मीन के लिए', 'तेरी बिंदिया रे', 'आज मौसम बड़ा बेईमान है', 'तुम जो मिल गए हो तो ये लगता है कि जहां मिल गया' 'तेरी गलियों में ना रखेंगे कदम' ,'क्या हुआ तेरा वादा'। कुछ इसी तरह की खबरें एक बार और उड़ी थी कि उन्हें काम मिलना बंद हो गया।

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जबकि वो भी सरासर झूठी खबर साबित हुई, दरअसल मोहम्मद रफी साहब जब हज करके लौटे तो किसी ने उन्हें कहा कि अब उन्हें फिल्मी गाना छोड़ देना चाहिए क्योंकि वे हाजी बन गए हैं। इस बात के असर से उन्होंने खुद गाना गाना छोड़ दिया था और उस वक्त भी उनकी अनुपस्थिति में कई नए गायकों की चाँदी हो गयी थी, लेकिन फिर बॉलीवुड के सारे महान संगीतकार और फ़िल्म निर्माता एकजुट होकर मोहम्मद रफी से मिले और उन्हें फिर से गाने के लिए जोर देकर मना लिया।  इस तरह से बॉलीवुड संगीत के आसमान में उनकी रोशनी कभी फीकी नहीं पड़ी। वे आखरी सांस तक गाते रहे। कोई कहता है कि उनकी आखरी गीत 'शाम फिर क्यों उदास है दोस्त' है, जिसके कुछ ही घन्टों के बाद वे विकट हार्ट अटैक से चल बसे, कोई कहता है उनकी आखरी नज़्म है 'शहर में चर्चा है'। गीत चाहे कोई भी आखरी रही हो लेकिन सच्चाई तो ये है कि मुहम्मद रफी को जन्म जन्मांतर तक कोई भुला नहीं पाएगा। उनकी आवाज अमर है अजर है और रहेगी।

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