Death Anniversary Hasrat Jaipuri: धुन अच्छी हो तो दिल में उतर जाती है

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By Mayapuri
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Death Anniversary Hasrat Jaipuri: धुन अच्छी हो तो दिल में उतर जाती है

मायापुरी अंक 53,1975

-जैड.ए जौहर

हसरत जयपुरी फिल्म इंडस्ट्री के गिने चुने गीतकारों में से एक हैं. उन्होंने लगभग सभी टॉप के संगीतकारों के साथ काम किया है. और उनके गाने सदा ही हिट रहे हैं. उनके घर पर हुई मुलाकात में मैंने उनके कुछ ऐसे गीतों के बारे में जानने की कोशिश की जो हिट होने के पश्चात अपने में एक छोटी मोटी कहानी रखते हैं.

हसरत साहब, फिल्मों के लिए गीत किस तरह लिखते हैं? मेरा पहला प्रश्न था.

फिल्मों में आमतौर पर धुनों पर गीत लिखे जाते हैं. मैं भी धुनों पर गीत लिखता हूं. लेकिन स्व. जयकिशन प्राय: पहले गीत लिखवाते थे फिर उसकी धुन बनाते थे. धुन पर लिखने में फायदा यह है कि अगर धुन अच्छी हो तो दिल में उतर जाती है दिमाग किसी मशीन की तरह बोल उगलने लगता है. अन्यथा गीत कितना ही अच्छा हो और उसे सही धुन से संवारा न जाए तो मेहनत बेकार चली जाती है. जैसे ‘दाग’ में (दिलीप कुमार निम्मी) में एक मेरी कविता थी चांद इक बेवफा की तरह टूटा हुआ अच्छी धुन न होने के कारण अधिक लोकप्रिय न हो सकी. और उसी फिल्म में शैलेन्द्र का गीत ‘ऐ मेरे दिल’ कहीं और चल गम की दुनियां से दिल भर गया अच्छी धुन की वजह से खूब लोकप्रिय हुआ. मुझे गीत लिखने के लिए मूड नहीं बनाना पड़ता और न ही आज तक मुझे अन्य लोगों की तरह धुन टेप करके लिखने की तरह नौबत आई है. मैंनें आजतक गीत लिखने के लिए कभी होटल बुक नहीं किया और न ही घर छोड़कर खंडाला आदि स्थानों को आबाद किया. मैंने अक्सर गीत संगीतकारों के म्यूजिक रूम में बैठे-बैठे ही लिख दिये हैं वरना इसी कमरे में अपने बच्चों के बीच बैठकर अधिक गीत लिखे हैं. दरअसल गीत लिखने के लिए प्रेरणा धुन देती है वह कोई नहीं दे सकता. ‘आखरी दांव’ की धुनें इतनी अच्छी थी कि मैंने उनके सारे गीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के म्यूजिक हाल में ही लिख कर दे दिये थे हसरत जयपुरी ने कहा.

हसरत साहब, कभी ऐसा भी हुआ है कि संगीतकार ने आपको सिच्युएशन समझाकर गीत का मैटर दे दिया हो. और संगीतकार या निर्देशक की पसंद अनुसार गीत बनाने में काफी समय लग गया हो जैसे कहते हैं कि ‘मुगले आज़म’ में एक गीत शकील बदायूंनी ने 105 बार लिखा तब जाकर वह गीत निर्देशक के कंसेप्शन पर पूरा उतरा. मैंने हसरत जयपुरी से पूछा.

मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ. गीत लिखने के मामले में मेरी स्पीड बहुत तेज है. अलबत्ता फिल्म ‘शिकार’ के एक गीत पर झगड़े में जरूर पड़ गया था. उसकी सिच्युएशन ऐसी थी कि एक कत्ल हो जाता है. उसके सामने कानून के रखवाले हैं. वह अपने आपको छुपाने के लिए गाना गाती हैं. अंतरे का मैटर जयकिशन जी ने समझा दिया था. उसी शब्दों के साथ जयकिशन जी ने नोटेशन भी करा दिया था. अगले दिन उसकी रिकॉर्डिंग और फिल्म बन्द होने वाली थी. मैंने गाना लिख दिया. रिकार्ड होने के बाद पिक्चराइज होने लगा किंतु निर्देशक ने कहा कि गाने कि धुन ठीक नहीं है. आशा पारेख ने भी आपत्ति उठाई, और धुन बदलने के लिए कहा. बहुत बहस हुई तब जयकिशन जी ने कहा कि वे दूसरा गीत भी तैयार कर देते हैं. तुम अपने डांस डायरेक्टर को दोनों गाने सुना दो उसका जो फैसला होगा हमें मंजूर होगा. दूसरा गाना तैयार किया और रिकॉर्ड करने से पहले फिर सब मिलकर बैठे. और दोनों गाने सुनने के पश्चात सबने हमारी बात मान ली और पहले जो गाना रिकॉर्ड किया था. वही फिल्म में रखने के लिए कहा. और आपको जान कर हैरत होगी कि वह गाना न सिर्फ सुपर हिट गाना सिद्ध हुआ बल्कि उस गाने ने फिल्म को बड़ा पुशअप दिया. गाना था पर्दे में रहने दो, पर्दा न उठाओ.

आपने जयकिशन जी के बारे में बताया था कि वे प्राय: गीत लिखवाते थे क्या आप ऐसे कुछ गीतों के बारे में बताएंगे? मैंने पूछा.
लेखक-निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर बड़े जिंदा दिल, अदबनवाज, और दोस्तनवाज इंसान है. उनकी मेरी मुलाकात ‘बरसात’ के जमाने में हुई थी. वह फिल्म सागर साहब ने ही लिखी थी जब ‘आरजू’ बना रहे थे ‘आरजू’ का मुहूर्त कश्मीर में हुआ था. और यहां से काफी आदमियों को साथ ले गए थे. काम का रश था. इसलिए मुझे भी साथ ले गए और वहीं कश्मीर में मुझे गानों की सिच्युएन दे दी वहा ग्यारह दिन में फिल्म के सातों गीत मैंने लिख कर दे दिये हर रोज एक गीत लिखता था शाम को बैठकर उस पर डिस्कशन कर लिया करता था. फिल्म में एक गीत की सिच्युएशन ऐसी थी कि हीरो-हीरोइन एक खास स्थान पर मिला करते थे. एक दिन हीरो बिछड़ जाता है. हीरोइन उसे ढूंढती फिर रही है. उसके लिए मैंने जो गीत लिखा है. वह छायावादी गीत है. उसमें कश्मीर का वातावरण झलकता हुआ नज़र आता है.

बेदर्दी बाल्मा तुझको, मेरा मन याद करता है.
बरसता है जो आंखो से,
वह सावन याद करता है..
वही है झील के मंजर,
वही किरणों की बरसातें.
जहां हम तुम किया करते थे,
पहरों प्यार की बातें.
तुझे उस झील का खामोश,
मंजर याद करता है..
खिंजा के भेस में गिरते हैं,
पत्ते अब चिनारों से.
इसके आगे की लाइन याद नहीं
लेकिन सब में छायावाद था.

ऐसा ही एक गीत फिल्म ‘प्रिंस’ में था. ‘आरजू’ के लंदन के प्रीमियर पर मैं भी जयकिशन के साथ गया था. जयकिशन जी ऐसे मौकों पर मुझे साथ ही रखते थे. लंदन से हम लोग पैरिस, स्विटजरलैंड आदि जगह गए थे. पैरिस में लीडो नाम से एक स्टेज शो हुआ करता था. जिसमें लड़कियां सितारों का लिबास पहने हुए आती थी और जब नाचती थी तो तारे गिरते थे. देखने से ऐसा लगता था कि जैसे हम आकाश पर कहकशां से खेल रहे हैं जयकिशन जी ने यह देखा और बोले हसरत जी इस पर कुछ सिचुऐशन पर कुछ कह दीजिए मैंने तुरंत मुखड़ा बना दिया. 

बदन पे सितारे लपेटे हुए, 

ऐ जाने तमन्ना किधर जा रही हो.

जरा पास आओ तो चैन आजाए..

यह गीत जयकिशन जी ने फिल्म ‘प्रिंस’ में इस्तेमाल किया और वह फिल्म में उसी तरह पिक्चराइज़ भी हुआ.

‘आरजू’  के ही जमाने में हम स्विटजरलैंड भी गए थे. वहां भी मैंने राजेन्द्र कुमार की फरमाइश पर उसके वातावरण के हिसाब से एक गीत लिखा था जो जयकिशन जी ने फिल्म ‘जंगली’ में इस्तेमाल किया था.

तुम मेरे प्यार की दुनिया में,
          बसी हो जब से.
जर्रे-जर्रे में मुझे,
        प्यार नज़र आता है..
मेरे हर सांस में आती है,
         तुम्हारी खुश्बू.
सारा आलम मुझे,
      गुलजार नजर आता है..
ऐसा लगता है,
       हरियाले घने पेड़ो में.
तुम भी मौजूद हो,
     पत्तो में छुपी बैठी हो.
शाख हिलती है किसी,
    नाज़नी बाहों की तरह.
और गुमां होता है,
    तुम जैसे यही रहती हो.
तुम मेरे प्यार की दुनिया में,
   बसी हो जब से..
जब गुजरता है मेरे,
     जिस्म को छूकर बादल.
फिर तेरे रेशमी बालों,
   का ख्याल आता है.
बर्फ के शीशे में पाता हूं,
    तुम्हारा चेहरा.
इश्क क्या – क्या मुझे,
   परछाईया दिखाता है..
तुम मेरे प्यार की दुनिया,
   में बसी हो जब से.
जर्रे – जर्रे में मुझे प्यार,
  प्यार नज़र आता है..

हम तीनों में, जय साहब और राजेन्द्र जी ट्रेन में बैठे इन दृश्यों को देखते हुए गुज़र रहे थे. गीत लिखकर मैंने सिच्युएशन बनाई और राजेन्द्र जी की फिल्म दुनिया में यह गीत रखा किंतु निर्देशन टी. प्रकाश राव ने बाद में यह गीत फिल्म में नहीं रखा बहुत बाद में निर्माता इस्माइल मर्चेंट ने अपनी अंग्रेजी फिल्म ‘बॉम्बे टॉकीज’ में रखा जो बड़ा हिट गीत सिद्ध हुआ.

फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’  में एक एक गीत ऐसा था जो ‘बरसात’ की बैकग्राउंड म्यूजिक के एक पीस पर तैयार करने के लिए कहा. राज साहब को वह पीस बहुत पसंद था. उन्होंने मुझसे उस पर गीत तैयार करने के लिए कहा. राज साहब ने वह पीस सुनाया और मुकेश हारमोनियम लेकर बैठ गए. वह बजाते रहे और में गीत के बोल लिखता रहा बोल तैयार होने पर जयकिशन जी को सुनाया उन्होंने उसे संवारा और वह भी फिल्म का एक हिट गाना सिद्ध हुआ. उसकी सिच्युएशन ही ऐसी लड़की जो बिल्कुल सड़क छाप थी. जोकर सड़क से उठाकर टॉप की हीरोइन बना देता है. लेकिन जोकर की जिंदगी में आई लड़कियों की तरह यह भी धोखा दे जाती है. आज वह उस से पीछा छुड़ाकर जा रही है.

जाने कहां गए वह दिन,
     कहते थे तेरी राह मे
  नजरों की हम बिछाएंगे.
चाहें कही भी तुम रहो,
  चाहेंगे तुमको उम्र भर
  तुम को न भूल पायेंगे..
हसरत जयपुरी ने सविस्तार बताते हुए कहा.    

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