Shankar–Jaikishan: जयकिशन दयाभाई पांचाल के जन्मदिन पर विशेष लेख दो युवा पुरुषों (Shankar–Jaikishan) के जीवन के स्थिति की कल्पना करने की कोशिश करें. एक हैदराबाद से है और दूसरा गुजरात से है. वे दोनों संगीतकार हैं जो हिंदी फिल्मों... By Ali Peter John 04 Nov 2024 in गपशप New Update Follow Us शेयर दो युवा पुरुषों (Shankar–Jaikishan) के जीवन के स्थिति की कल्पना करने की कोशिश करें. एक हैदराबाद से है और दूसरा गुजरात से है. वे दोनों संगीतकार हैं जो हिंदी फिल्मों में संगीतकार के रूप में अपना करियर बनाने के लिए मुंबई आए थे. वे एक प्रमुख फिल्म निर्माता के कार्यालय के बाहर बैठे थे और फिल्म निर्माता द्वारा बुलाए जाने के मौके का इंतजार कर रहे थे. समय बीत जा रहा था और उन्हें अभी भी अंदर नहीं बुलाया गया था. जिस समय वह इंतजार कर रहे थे, उस दौरान दोनों ने एक दुसरे से बातचीत की थी और महसूस किया था कि वे दोनों एक ही सपने का पीछा कर रहे थे. जो उनमे से वरिष्ठ था उनका नाम शंकर सिंह रघुवंशी और दुसरे आदमी का नाम जयकिशन पांचाल था. Shankar–Jaikishan वे आपस में बात करते रहे थे और अंदर से कॉल अभी तक नहीं आई थी. और वरिष्ठ व्यक्ति शंकर के दिमाग में एक आईडिया आता है. वह जयकिशन से कहते है कि उन्हें अपने व्यक्तिगत सपनों को पूरा करने में काफी समय लगेगा और जयकिशन से पूछा कि वे दोनों आपस में एक टीम क्यों नहीं बना लेते और संगीत की रचना कर सकते है. विचार जयकिशन के दिमाग में घूमता रहा और वे दोनों ऑफिस को एक संकल्प के साथ छोड़ देते हैं कि वे इसे एक दिन संगीत निर्देशक के रूप में बनाएंगे. अपने दौर के दौरान एक साथ दोनों (Shankar–Jaikishan) व्यक्तियों को पृथ्वीराज कपूर से मुलाकात का मौका मिलता है जो उन्हें अपने पृथ्वी थिएटर के नाटकों के लिए संगीत रचना करने के लिए कहते हैं. दोनों पार्टनर्स पृथ्वीराज को प्रभावित करते हैं. उनके बेटे, राज कपूर अपनी खुद की फिल्म "बरसात" का निर्माण और निर्देशन करने की योजना बना रहे हैं और राज कपूर जिनके पास संगीत और कविता के लिए एक स्वभाव है, दो अन्य युवकों शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी से मिलते हैं जो अच्छे कवि हैं. राज, जो जोखिम लेने से डरते नहीं हैं, अपनी फिल्मों के संगीत का प्रभार लेने के लिए अपनी टीम बनाते हैं. और इसलिए, "बरसात" के संगीत के पीछे शंकर-जयकिशन, शैलेंद्र और हसरत की टीम थी. राज "बरसात" से रामानंद सागर नामक एक युवा लेखक का भी परिचय कराते हैं. और इसका नतीजा यह है कि बरसात का संगीत न केवल देश में बल्कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में एक क्रेज बन गया था. और शकर-जयकिशन की टीम आरके बैनर की महिमा का एक हिस्सा थी जिसके तहत उन्होंने "आवारा", "श्री 420", "जिस देश में गंगा बहती है", "संगम" और "मेरा नाम जोकर" जैसी फिल्मों का संगीत स्कोर किया था. शंकर-जयकिशन का संगीत हिंदी फिल्म संगीत में एक नया चलन स्थापित करता है और उनका संगीत जीवन भर चलता रहता है और राज कपूर उन्हें अपने जीवन और उनकी फिल्मों का "सुर" कहते हैं. और इस बात की चर्चा गर्म है कि शंकर ने राज कपूर के गाने को कैसे संगीतबद्ध किया और जयकिशन कैसे धुन बनाई. उन्होंने अनगिनत अन्य फिल्मों के लिए भी संगीत दिया, जो फिल्मे मुख्य रूप से उनके संगीत की वजह से सफल रहीं. "संगम" बनाने के दौरान दोनों दोस्तों के बीच अनबन की पहली झलक दिखाई दी और इस निराशाजनक झलक में और अधिक वृद्धि हुई, इससे पहले कि राज कपूर अपने मैग्नम ऑपस "मेरा नाम जोकर" को शुरू कर सकें. शंकर-जयकिशन के बीच दरार का एक कारण उनकी खोज को प्रोत्साहित करने के लिए शंकर का दृढ़ संकल्प था, शारदा जो एक आवाज थी न जयकिशन, न ही राज कपूर के पक्ष में थी. "मेरा नाम जोकर" के निर्माण में लगभग शंकर-जयकिशन के बीच एक विभाजन देखा गया, लेकिन यह राज कपूर का जादू था जिसने उन्हें बनाये रखा. लेकिन नियति ने गंदा खेल खेलना तय किया और जयकिशन की मृत्यु हो गई वो भी तब जब वह केवल अपने चालीसवें वर्ष में थे. यह भी एक समय था जब शैलेंद्र और मुकेश जैसे आरके बैनर के स्तंभों की मृत्यु हो गई थी और राज कपूर के अलावा, अगर कोई एक व्यक्ति था जो बुरी तरह से इससे प्रभावित हुआ था और अकेला पड़ गया था, तो यह शंकर ही थे. सबसे बड़ा झटका शंकर को तब लगा जब राज कपूर ने खुद अपनी किसी भी अन्य फिल्म के लिए उस तरहविचार नहीं किया, जो उन्होंने वर्षों के दौरान की थी और इसके बाद उनकी आखिरी फिल्म "राम तेरी गंगा मैली" आई. जिसमें राज कपूर रवींद्र जैन को लेना पसंद करते थे, लेकिन शंकर को नहीं, जो अब पूरी तरह से बिना किसी काम के थे. शंकर अपने स्टार-गायक के रूप में शारदा के साथ कुछ तुच्छ फिल्मों के लिए संगीत की धुन बनाते रहे, लेकिन वही दर्शक जिन्होंने कभी उन्हें अपने कंधों पर ले लिया था, उन्होंने ही उन्हें बेरहमी से नीचे फेंक दिया था और शंकर-जयकिशन टीम का हिस्सा होने पर उन्हें जो दर्जा मिली थी, उसे वापस पाना बेहद मुश्किल था. शंकर के बारे में कहा जाता है कि वह ऐसे स्वभाव के थे जो उद्योग के तरीकों के अनुरूप नहीं था और उन्हें अहंकारी भी कहा जाता था. लेकिन उनका अपना बेहतर और मानवीय पक्ष भी था. सुप्रसिद्ध अभिनेता और उद्योग के नेता चंद्रशेखर "स्ट्रीट सिंगर" का निर्माण, निर्देशन के साथ मुख्य भूमिका निभा रहे थे. शंकर और चंद्रशेखर हैदराबाद के एक ही शहर और गांव से थे. चंद्रशेखर ने अपनी फिल्म के लिए शंकर से संगीत देने का अनुरोध किया. शंकर तुरंत सहमत हो गए, लेकिन एक शर्त पर, वह अपना नाम शंकर के रूप में नहीं बल्कि सूरज के रूप में देंगे. हालाँकि, शंकर ने चंद्रशेखर की फ़िल्म में ऐसे संगीत को पेश किया जो आज भी लोगों के ज़हन में ताज़ा है. मैं महान शंकर को नरीमन पॉइंट पर घूमते हुए देखता था जहाँ कई वर्षों तक उनका घर था और किसी के द्वारा पहचाने न जाने पर वे बहुत दुखी रहते थे. ऐसा कई बार था जब मैंने उन्हें शंकर-जयकिशन के सम्मान में बनी एलआईसी बिल्डिंग के पास पट्टिका पर चलते हुए देखा था और उन्हें उस पट्टिका के बारे में पता भी नहीं था जो फिल्म हस्तियों के लिए किया गया पहला सम्मान था. आखिरी बार मैंने उसे माहिम चर्च के सामने "शेनाज़" नामक एक छोटे से होटल में देखा था और जहा वह कुछ अज्ञात लोगों के साथ दोपहर का भोजन कर रहे थे. यह वही शंकर थे जिनके लिए अतीत के उन शानदार दिनों में पूरे रेस्तरां को रिजर्व्ड रखा जाता था. और 25 अप्रैल को, वह मंत्रालय के पास अपने अपार्टमेंट में मृत पाए गए थे. जयकिशन के लिए राजाओं जैसा एक अंतिम संस्कार किया गया था, लेकिन शंकर के अंतिम संस्कार में मुश्किल से बीस लोग आए थे. कहते हैं, वह अपने जीवन के अंत दिनों में एक बहुत ही कड़वे आदमी थे. एक ऐसा व्यक्ति जो जीवन के राजाओं को देखते थे, उनसे ईर्ष्या करते थे और उन्हें विश्वासघात, अपमान और उन्ही लोगों की सरासर क्रूरता को देखना पड़ता था जो कभी उनकी पूजा करते थे और उनकी प्रशंसा किया करते थे जब तक कि वह कुछ वैल्यू रखते थे. ज़िन्दगी कभी कभी एक झूठा सपना लगती है, ज़िन्दगी में ऐसा कयों होता आया है की ज़िन्दगी जीने में अक्सर खौफ होता है, शंकर तो अपने संगीत की वजह से ज़िंदा रहेंगे, लेकिन उनका क्या जिन्होंने ज़िन्दगी देखि भी नहीं और जानी भी नहीं हैं? 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