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Kalyanji–Anandji were an Indian composer duo: Kalyanji Virji Shah and his brother Anandji Virji Shah:ये साल 1968 की बात है. वो दोनों भाई अपने कैरियर के क़रीब 14 साल बाद तक किसी मेजर अवार्ड का इंतज़ार कर रहे थे. लेकिन अवार्ड था कि इंतज़ार पर इंतज़ार करवा रहा था. हालाँकि ये दोनों भाई, कल्याणजी वीरजी शाह और आनंदजी विरजी शाह एक से बढ़कर एक हिट्स दे रहे थे. (Kalyanji–Anandji songs) बेहतरीन संगीतकार और हेमंत कुमार उर्फ़ हेमंत दा एक साथ काम शुरु करने वाले कल्याणजी फिल्म इंडस्ट्री में एक नया म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट लाये थे – क्लावियोलाइन (Kalyanji-Anandji: The Famous Siblings of the Bollywood). यह वाद्य यंत्र देखने में कुछ कुछ पोर्टेबल प्यानों जैसा लगता है पर इस सिंथसाइज़र की आवाज़ बीन जैसी निकलती है. इसी को बजाते हुए कल्याणजी ने 1954 की फिल्म नागिन में वो मशहूर बीन की आवाज़ दी जो बाद में दर्जनों फिल्मों में कॉपी हुई (Kalyanji Virji Shah life story) और हाल ही में, डायरेक्टर प्रोड्यूसर इम्तियाज़ अली ने 2009 में लव आज कल में अपने आइटम नंबर सोंग ‘वी ट्विस्ट’ में भी इस धुन को कॉपी किया था (Kalyanji Virji Shah death).
Kalyanji–Anandji Super Hit Songs:
सोचिये, 1954 से 2009, 55 साल बाद भी उनकी नागिन धुन का क्रेज़ ऐसा था कि फिल्मकार को धुन उठानी पड़ी. बहरहाल, इस फिल्म – नागिन – के गाने ‘तन डोले मेरा मन डोले’ बहुत बड़ा हिट हुआ. (Kalyanji Anandji net worth) कल्याणजी आनंद जी को पहले ब्रेक का मौका मशहूर फिल्म प्रोड्यूसर सुभाष देसाई ने दिया था. एक रोज़ उन्होंने कल्याणजी को कोई वाद्य यंत्र बजाते सुना और हक़ से बोले, चलो, अब तुम ख़ुद का म्यूजिक बनाओ. पर कल्याणजी आनंद जी ने इससे पहले म्यूजिक तो बनाया नहीं था. वो दोनों असमंजस में पड़ गये (Kalyanji Anandji Family). फिर उन्होंने अपने पिता से मदद ली. उन्होंने सीधी बात बोली “देख अगर सामने से काम आ रहा है तो छोड़ने का नहीं”
बस यहीं से (Kalyanji Anandji first brek) कल्याणजी को साहस मिला और सुभाष देसाई ने उन्हें एक-दो नहीं बल्कि 6 फिल्मों में काम करने का ऑफर दिया. कल्याणजी ने अपने भाई आनंद को अपना एसिस्टेंट बना साल 1956 में फिल्म बजरंगबली से उन्होंने शुरुआत की. इसके बाद सम्राट चंद्रगुप्त में भारत भूषण और निरूपा रॉय के साथ बनी ये फिल्म बम्पर हिट भी हुई और कल्याणजी आनंदजी का संगीत भी ख़ूब पसंद किया गया. इसका एक गाना “चाहें न पास हो चाहें दूर हो, मेरे सपनों की तुम तस्वीर हो” काफी पॉपुलर हुआ था.
फिर इसके ठीक बाद फिल्म सट्टा बाज़ार और मदारी एक ही साल 1959 में रिलीज़ हुई और इसके गाने भी लोगों को बहुत पसंद आए. यहाँ से उन्होंने अपने भाई आनंदजी वीरजी शाह को भी अपने साथ ही जोड़ लिया और अब ये जोड़ी कल्याणजी आनंद जी के नाम से मशहूर हो गयी. इसके बाद सुभाष देसाई अपने भाई मनमोहन देसाई को फिल्मों में लाने के लिए तैयार थे. उन्होंने कहा कि भई संगीत तो कल्याणजी आनंद जी का ही होगा. लेकिन राज कपूर की अपनी टीम थी, वह शंकर जयकिशन, मुकेश और शैलेन्द्र के साथ ही गाने बनाते थे.
यहाँ कल्याणजी आनंदजी गायकी में मोहम्मद रफ़ी को पसंद करते थे लेकिन गीतकारों में उन्हें मल्टीपल चॉइस पसंद थी. इस चक्कर में फिल्म डिले होती गयी और आख़िरकार राज कपूर को सुभाष देसाई की बात माननी पड़ी, लेकिन कल्याणजी आनंदजी ख़ुद भी मुकेश की आवाज़ लेने की ही फ़िराक में थे, तो तय हुआ कि संगीत कल्याणजी आनंद जी का ही होगा और गाने क़मर जलालाबादी लिखेंगे, मगर आवाज़ मुकेश की ही देंगे. इस फिल्म ने मनमोहन देसाई और कल्याणजी आनंदजी, दोनों को बुलंदियों पर पहुँचा दिया. गीत ‘छलिया मेरा नाम’, हो या ‘तेरी राहों में खड़े हैं’ हो, हर गीत सुपरहिट हुआ.
डम-डम डीगा-डीगा गाना रिकॉर्ड होने से पहले मुकेश ने टोका भी कि “कल्याणजी, ये गाना मेरी श्रेणी का नहीं, मैं कहाँ ऐसे गाने गा सकता हूँ” तो कल्याणजी बोले “मुकेश जी आप क्या गा सकते हैं क्या नहीं ये हम बेहतर जानते हैं, आप बिंदास गाइए, देखियेगा ये गाना कितना पॉपुलर होगा”
और हुआ भी वही, डम-डम डीगा-डीगा, मौसम भीगा-भीगा, बिन पिए मैं तो गिरा मैं तो गिरा सुपरहिट हुआ और रेडियो में अक्सर सुनाया जाने लगा. इसी के बाद उन्होंने शम्मी कपूर के साथ फिल्म ब्लफ-मास्टर भी की. यहाँ फिर एक एक्सपेरिमेंट हुआ. शम्मी कपूर हमेशा मोहम्मद रफी की ही आवाज़ अपने लिए पसंद करते थे लेकिन कल्याणजी आनंद जी ने गानों के हिसाब से, एक ही फिल्म में एक या दो नहीं, चार-चार सिंगर्स से शम्मी कपूर के लिए गाने गंवाए. (पढ़ें इन गानों से जुड़ा विस्तृत आर्टिकल पेज नंबर ___ पर) इन चार गानों में मुहम्मद रफ़ी, हेमंत कुमार और मुकेश तो थे ही, साथ साथ शमशाद बेगम भी शामिल थीं जिन्होंने शम्मी कपूर को आवाज़ दी थी.
अब दौर रंगीन फिल्मों का आ रहा था और शशि कपूर हिट होने के बावजूद सिल्वर जुबली फिल्म के लिए तरस रहे थे. या यूँ कहें कि इंतज़ार कर रहे थे. यही इंतज़ार कल्याणजी को भी था. तब टीआर सेठिया की फिल्म जब-जब फूल खिलें अनाउंस हुई जिसे कश्मीर की वादियों में शूट करना था. कल्याणजी-आनंदजी ने उसी हिसाब से संगीत सजाने की ठानी. उन्होंने सोचा वादियों में तो ईको भी होगा, अब भला ईको कैसे लायें, क्योंकि तब आज जैसी टेक्नोलॉजी तो थी नहीं.
तब कल्याणजी ने एक और एक्सपेरिमेंट करने की ठानी, उन्होंने रफ़ी साहब से कहा कि जहाँ ईको इफेक्ट देना हो वहाँ आप माइक से दूर हो जाया कीजिये. यूँ किया तो बात बन भी गयी ओफ्फू ख़ुदाया फिल्म का सबसे पॉपुलर गाना बना. लेकिन फिल्म के 7 गानों में से 6 गाने सुपर डुपर हिट हुए.
ओफ्फू ख़ुदाया के बाद ‘एक था गुल और एक थी बुलबुल’ भी बहुत पसंद किया गया तो ‘ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे’ भी ज़बरदस्त हिट रहा. फिर परदेसियों से न अँखियाँ मिलाना’ भला कैसे छूट सकता है. आख़िर में ‘ये समां, समां है ये प्यार का’ आज भी बहुत सुना-गाया जाता है. यह फिल्म सिल्वर नहीं गोल्डन जुबली हुई और कल्याणीजी आनंदजी के म्यूजिक की डिमांड सिर चढ़कर बोलने लगी.
अमूमन कल्याणजी आनंदजी इन्दीवर के साथ ही काम करना पसंद करते थे लेकिन उन्हें आनंद बक्शी का लिखा भी अच्छा लगता था. पर आनंद बक्शी के साथ समस्या ये होती थी कि वह एक ही गाने के 25-25 अंतरे लिख लाते थे और कहते थे अपने मतलब के 3 चूज़ कर लीजिये. साथ ही आनंद बक्शी का ज़ोर होता था कि एक फिल्म के सारे गाने उन्हें ही मिलें. जब जब फूल खिलें में उनकी ये बात मान भी ली गयी लेकिन फिल्म ‘हिमालय की गोद’ में ऐसा नहीं हुआ. यहाँ सात में से 4 गाने आनंद बक्शी ने लिखे और दो इन्दीवर ने जबकि एक गाना क़मर जलालाबादी ने लिखा. यूँ तो इस फिल्म के सारे ही गाने पसंद किए गये पर आनंद बक्शी का ही लिखा “चाँद सी महबूबा हो मेरी” बहुत पॉपुलर हुआ.
इस फिल्म से कल्याणजी मनोज कुमार के ज़रा और नज़दीक हो गये और जब मनोज कुमार ने फिल्म उपकार अनाउंस की तो संगीत के लिए कल्याणजी आनंदजी को ही चुना. इस फिल्म में भी कल्याणजी ने बॉलीवुड के ट्रेंड के विपरीत कई सिंगर्स और कई गीतकारों से काम करवाया. इस फिल्म में मोहम्मद रफ़ी और लता तो फिक्स थे ही, साथ ही मुकेश, मन्ना डे और महेंद्र कपूर से भी गाने गँवाए. साथ ही गाने लिखने में भी वैरायटी रखी. इन्दीवर और जलालाबादी तो थे ही, साथ प्रेम धवन और गुलशन बांवरा को भी मौका दिया. असल में इन तीनों को ही पहला मौका देने वाले भी कल्याणजी ही थे.
उपकार के गाने ‘मेरे देश की धरती सोना उगले’ ने देश भक्ति की ऐसी लहर चलाई कि हर गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस को ये गाना बजना ज़रूरी हो गया. ‘हिमालय की गोद में’ के बाद ये दूसरी फिल्म थी जिसके लिए कल्याणजी आनंदजी फिल्मफेयर में नोमिनेट तो हुए थे लेकिन अवार्ड नहीं मिला था.
“जब हम काम करने की शुरुआत करते हैं तो प्राथमिकता यही होती है कि कैसे भी करके काम मिलता रहे. फिर जब काम ख़ूब मिलने लगे तो दिमाग कहता है मनचाहा पैसा मिले. अब जब पैसा भी अथाह बहने लगता है तो दिल कहता है बस वो ही काम करना है जिसमें कुछ नया हो,कुछ क्रिएटिव हो और अच्छा महसूस कर सकें. फिर जब ऐसा करने लगो तो कहीं न कहीं आत्मसम्मान की आवाज़ आती है कि अब हमें इज्ज़त मिले, पुरस्कार मिले, स्टेज पर नाम हो.“
हालाँकि स्टेज पर सबसे पहले कॉन्सर्ट शुरु करने का श्रेय भी कल्याणजी को ही जाता है. वह सन 50 के दशक से ही कल्याणजी वीरजी एंड पार्टी के नाम से जगह-जगह कॉन्सर्ट करने लगे थे और चाहें मुहम्मद रफ़ी हों या किशोर कुमार, उन्हें पार्श्वगायन के पर्दे के पीछे से निकालकर दुनिया के सामने लाने वाले कल्याणजी ही थे. बहरहाल, बात पुरस्कार की हो रही थी. कल्याणजी-आनंदजी भी चाहते थे कि अब उन्हें फिल्मफेयर मिले. फिल्म उपकार को सात अवार्ड्स मिले थे जिसमें गीतकार गुलशन बांवरा भी शामिल थे. कल्याणजी आनंदजी नोमिनेट तो हुए थे पर अवार्ड न मिल सका था.
अब उनकी मुलाकात हुई डायरेक्टर गोविन्द सरैया से. यह एक गुजराती नॉवेल सरस्वतीचंद्र पर फिल्म बनाना चाहते थे. हालाँकि बजट बहुत कम था पर फिर भी कल्याणजी भाइयों ने काम करने के लिए हामी भर दी. आख़िर अपनी गुजराती मिट्टी से जुड़ी बात थी. यह फिल्म ब्लैक एंड वाइट थी. इस बार कल्याणजी ने सारे गाने अपने पसंदीदा इन्दीवर को लिखने के लिए दिए.
एक रोज़ फैन मेल्स देखते हुए आनंदजी थम गये. अमूमन वो इस काम के लिए अपने असिस्टंट को लगा देते थे. लेकिन उस रोज़ उन्होंने देखा कि एक ख़त में सिर्फ होठों पर लिपस्टिक लगाकर चूमा हुआ कागज़ और एक गुलाब का फूल खत में आया है, इसके सिवा न कुछ लिखा है न ये दर्ज़ है कि भेजने वाले का पता क्या है. वो दौर आज जैसा तो था नहीं, बड़े भाई कल्याणजी को आता देख आनंदजी झेंप गये, बोले “देखिए क्या भेजा है किसी ने”
कल्याणजी ने देखा तो उनका चेहरा भी लाल हो गया. फिर भी बोले “क्या तुम ये सब लिए बैठे हो, छोड़ो इसे” तभी गीतकार इन्दीवर आ गये. कल्याणजी ने उन्हें भी दिखाया कि “देखो भई अब तो संगीतकारों को भी ऐसे ख़त मिलने लग गये, बताइए इसका क्या करूँ मैं?” तो इन्दीवर बोले, “अरे धत्त, इसे तो आप हमें दीजिए, इसपर तो गाना बन सकता है” और इन्दीवर तभी गुनगुनाते हुए बोले “फूल तुम्हें भेजा है खत में, फूल नहीं मेरा दिल है”
यही गाना सरस्वतीचंद्र में रखा गया और ये गाना ऐसा बम्पर हिट हुआ कि आशिकों का एंथम बन गया. इसी फिल्म का गाना चन्दन सा बदन, चंचल चितवन भी पॉपुलैरिटी में झंडे गाड़ गया. और यही वो फिल्म रही जहाँ कल्याणजी डुओ का इंतज़ार खत्म हुआ और उन्हें फिल्मफेयर तो नहीं, लेकिन उससे भी बड़े, उससे कहीं ज़्यादा सम्मानजनक नेशनल अवार्ड से नवाज़ा गया और दोनों भाइयों को ऐसा लगा कि आज, 14 साल बाद ही सही, फिल्म इंडस्ट्री में आना सफल हुआ.
नेशनल अवार्ड के बाद कल्याणजी आनंदजी के पास फिल्मों की बाढ़ आ गयी. इस बाढ़ में असित सेन की फिल्म सफ़र का ज़िक्र बहुत ज़रूरी है. असित सेन बहुत सनकी और टेक्निकल आदमी थे. उन्होंने कहा कि एक ही गाने में एक सीन से दूसरे सीन के बीच ट्रांजीशन में मुझे स्क्रीन ब्लर नहीं करनी है. अब बताइए कैसे करेंगे? हालाँकि ये काम संगीतकारों का नहीं था फिर भी कल्याणजी तो कल्याणजी थे. उन्होंने कहा आप फ़िक्र न करें, गाने में जहाँ कोई एक अंतरा ख़त्म होता वहाँ वह कहीं गाड़ी के हॉर्न का साउंड बजा देते तो कहीं पर चिड़िया की चहक दिखा देते और उसी चिड़िया के उड़ते-उड़ते कैमरा फॉलो करता और सीन चेंज हो जाता.
इस फिल्म के गानों पर मुलाहजा फरमाइए – ‘जीवन से भरी, तेरी आँखें’ किशोर कुमार ने अपनी मस्त मौला शैली के विपरीत जाकर गाया और गाना सुपर डुपर हिट हुआ. साथ ही मुकेश की आवाज़ में ‘जो तुमको हो पसंद’ भी बम्पर हिट हुआ.
इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक सुपरहिट फ़िल्में दीं जिनमें – पूरब और पश्चिम, मेरे हमसफर, सच्चा झूठा, विक्टोरिया नंबर २०३, ज़ंजीर, और कोरा कागज़ की. 1975 में कोरा कागज़ के लिए उन्हें पहली बार फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाज़ा गया.
कल्याणजी आनंदजी हमेशा नये कलाकारों को चांस देने में यकीन रखते थे. उन्होंने मनहर उधास, कुमार सानु, अनुराधा पोंडवाल, अल्का याग्निक, साधना सरगम, सपना मुखर्जी और यहाँ तक की उदित नारायण और सुनिधि चौहान को भी पहला चांस कल्याणजी आनंदजी ने ही दिया था.
गीतकारों में तो आप जानते ही हैं कि क़मर जलालाबादी, गुलशन बांवरा, अंजान और आनंद बक्शी को भी पहला ब्रेक देने वाले कल्याणजी ही थे. इन्होने ये चीज़ स्वर कोकिला लता मंगेश्कर से सीखी थी क्योंकि लता जी ने बिना किसी शक ओ शुबह के उनके साथ पहला गाना गाना कबूल किया था और वह रिकॉर्डिंग के बाद ये भी कह गयीं थी कि अगर कोई दिक्कत हो तो वो बेहिचक बताएं, मैं फिर आ रिकॉर्ड करने आ जाऊँगी. लेकिन कल्याणजी आनंदजी के संगीत में भला दिक्कत कैसे हो सकती थी. कल्याणजी आनंदजी को पद्माश्री अवार्ड से भी सम्मानित किया गया.
कल्याणजी अपने भाई को अकेला छोड़ 24 अगस्त 2000 में इस फ़ानी दुनिया से रुखसत कर गये मगर छोड़ गये एक से बढ़कर एक नगमें, एक से बढ़कर एक धुनें और आने वाले संगीतकारों के लिए कुछ न कुछ नया करने की ढेर सारी हिम्मत. सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’
FAQ about kalyanji and anandji
क्या कल्याणजी और आनंदजी संबंधित हैं? (Are kalyanji and anandji related?)
कल्याणजी-आनंदजी एक भारतीय संगीतकार जोड़ी थे: कल्याणजी विरजी शाह (30 जून 1928 - 24 अगस्त 2000) और उनके भाई आनंदजी विरजी शाह (जन्म 2 मार्च 1933). यह जोड़ी हिंदी फ़िल्मों के साउंडट्रैक पर अपने काम के लिए जानी जाती है, और उन्होंने कई सदाबहार गीतों की रचना की है.
कल्याणजी आनंदजी का धर्म क्या है? (What is the religion of Kalyanji Anandji?)
आनंदजी कल्याणजी पेढ़ी - गुजरात की श्वेतांबर जैन परंपरा. जैन धार्मिक परंपरा ने जैनियों में चार मुख्य संप्रदायों को मान्यता दी: श्वेतांबर जैन, दिगंबर जैन, तेरापंथी और स्थानकवासी. अंतिम दो संप्रदाय मूर्ति पूजा या मंदिरों में विश्वास नहीं करते, जबकि पहले दो संप्रदाय करते हैं.
आनंदजी कल्याणजी पेढ़ी का इतिहास क्या है? (What is the history of Anandji Kalyanji Pidhi?)
आनंदजी कल्याणजी पेढ़ी (जिसे आनंदजी कल्याणजी ट्रस्ट के नाम से भी जाना जाता है) श्वेतांबर जैन परंपरा का एक प्रमुख धार्मिक संगठन है, जो मुख्य रूप से भारत भर के जैन मंदिरों और तीर्थ स्थलों का प्रबंधन करता है. इसका मुख्यालय अहमदाबाद, गुजरात में है. ऐसा माना जाता है कि यह कम से कम 250 साल पुराना है, हालाँकि इसकी औपचारिक कानूनी स्थापना हाल ही में, लगभग 90 साल पहले हुई थी. ट्रस्ट का नाम, हालाँकि एक व्यक्तिगत जुड़ाव का संकेत देता है, वास्तव में जैन अनुयायियों के लिए "आनंद" (आनंद) और "कल्याण" (कल्याण) लाने में इसकी भूमिका का प्रतीक है.
कल्याणजी आनंदजी का असली नाम क्या है? (What is the real name of Kalyanji Anandji?)
कल्याणजी-आनंदजी एक भारतीय संगीतकार जोड़ी थे: कल्याणजी विरजी शाह (30 जून 1928 - 24 अगस्त 2000) और उनके भाई आनंदजी विरजी शाह (जन्म 2 मार्च 1933). यह जोड़ी हिंदी फिल्म साउंडट्रैक पर अपने काम के लिए जानी जाती है, और उन्होंने कई सदाबहार गीतों की रचना की है.
कल्याणजी आनंदजी की आखिरी फिल्म कौन सी है? (What is the last film of Kalyanji Anandji?)
उनकी आखिरी फिल्म 1991 में प्रतिज्ञाबंध थी. कल्याणजी का लंबी बीमारी के बाद 24 अगस्त 2000 को निधन हो गया.
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