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Birth Anniversary Saroj Khan: लड़की 6 गज की साड़ी में भी सेक्सी लग सकती है, उसके लिए कपड़े उतारकर नचाने की जरुरत नहीं है

यूँ तो नाम उनका ‘निर्मला नागपाल’ था पर दुनिया ने उन्हें हमेशा सरोज खान के नाम से जाना और फिल्म इंडस्ट्री ने उन्हें हमेशा ‘मास्टर जी’ के नाम से पुकारा. सरोज मास्टर जी...

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सरोज खान: लड़की 6 गज की साड़ी में भी सेक्सी लग सकती है, उसके लिए कपड़े उतारकर नचाने की जरुरत नहीं है

Saroj Khan Birthday: यूँ तो नाम उनका ‘निर्मला नागपाल’ था पर दुनिया ने उन्हें हमेशा सरोज खान के नाम से जाना और फिल्म इंडस्ट्री ने उन्हें हमेशा ‘मास्टर जी’ के नाम से पुकारा. सरोज मास्टर जी, जो बहुत दिलदार और बहुत गुस्से वाली एक साथ थीं. 1948 में जन्मी सरोज के माता पिता बटवारे का दर्द झेलकर बोम्बे आए थे. जब वो आए तो उनके पास सिवाए जिम्मेदारियों और मजबूरियों के कुछ नहीं था. एक साल बाद सरोज हुईं तो इन्हें भी वही मुफलिसी झेलनी पड़ी. किशनचंद साधू सिंह नागपाल, यानी सरोज जी के पिता के घर में दूर-दूर तक किसी का डांस से वास्ता नहीं था. डांस तो छोड़िए, उन्हें राइटिंग, पेंटिंग, म्यूजिक आदि किसी भी कला की कोई जानकारी नहीं थी. पीढ़ियों से कोई कलाकार पैदा हुआ ही नहीं था. पर सरोज में कुछ और बात थी. कुछ अलग था उनमें और इसीलिए वह 3 साल की उम्र में ही अपनी ही परछाई को देख नाचा करती थीं. एक रोज उनकी माँ नोनी सिंह ने उन्हें ऐसा करते हुए देख लिया और डर गयीं. उन्हें लगा कि निर्मला शायद किसी मानसिक रोग से ग्रसित है जो ऐसी पागलों वाली हरकतें कर रही है. उन्होंने सरोज जी के पिता से सलाह की उनको डॉक्टर के पास ले गए. डॉक्टर को जब पता चला तो पहले वो खूब हँसा, फिर बोला “अरे भई डांस करना चाहती है तो करने दो, रोकते क्यों हो? फिर तुम्हारे घर में तो पहले ही रुपए पैसे की बहुत तंगी है. इसी के बहाने क्या पता कुछ तंगी दूर हो जाए. भई बम्बई में बैठे हो, यहाँ फिल्में भी तो बनती हैं” पर माता-पिता निरीह नजर से एक दूसरे की तरफ देखते हुए बोले “पर डॉक्टर साहब, हम तो किसी को जानते नहीं यहाँ” लेकिन डॉक्टर सबको जानते थे. उन्होंने हौसला दिया “फिक्र न करो, मैं जानता हूँ कुछ को. देखते है क्या हो सकता है”

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यहाँ से, 3 साल की उम्र से सरोज खान ने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा और फिल्म नजराना में बेबी साध्या के नाम से काम किया. इसके साथ ही धीरे-धीरे बड़े होते-होते सरोज बेकग्राउंड डांसर बन गयीं. उन दिनों आज जैसे गाने तो होते नहीं थे, अमूमन पेड़ को पकड़कर, एक जगह बैठकर या प्यानों बजाते हुए ही पूरा गाना क्लोजअप शॉट में पूरा हो जाता था. लेकिन, उन्हीं दिनों गानों में क्रांति लाते हुए कथक मास्टर बी सोहनलाल और उनके भाई हीरालाल ने दिलीप कुमार और मीना कुमारी की फिल्म आजाद के लिए एक गाना कोरोग्राफ किया ‘अपलम चपलम’ और इस गाने ने रेडियो पर तहलका मचा दिया. हर जुबान पर यही गाना था और बी सोहनलाल रातों रात फेमस हो गए. उन्होंने फेमस होते ही अपने नीचे कई असिस्टेंट रखने का फैसला किया, जिनमें एक सरोज भी रहीं. सरोज तब 12 साल की थीं. इन दोनों की ट्यूनिंग इतनी बढ़िया बनी की कुछ ही समय में बी सोहनलाल ने सरोज पर पूरी फिल्म छोड़ने का फैसला कर लिया. सरोज खान ने अपना पहला गाना 12 साल की उम्र में कोरोग्राफ किया था. वह पीएल संतोषी की फिल्म थी ‘दिल ही तो है’, उन्होंने सरोज को बुलाया और बताया कि तुम्हें ये गाना कम्पोज करना है. सरोज ने मासूमियत से कहा कि मुझे तो पता ही नहीं कि कम्पोज करना क्या होता है. तब पीएल बोले “कोई बात नहीं, ये बताओ कि निगाहें कैसे दिखाओगी गाने में? मास्टर जी ने क्या सिखाया है?” सरोज ने तीन अलग अलग स्टेप में बताया कि ये, ऐसे करेंगे. फिर उन्होंने पूछा “अच्छा मिलाने को कैसे दर्शाओगी?” सरोज ने दोनों हाथों को जोड़ वो भी कर के दिखाया. तब वो बोले “बस, इन्हीं दोनों स्टेप को जोड़ दो और सोचो निगाहें मिलाने को जी चाहता है” बज रहा है तुम्हें इसपर डांस करना है. ये पहला गाना रहा और इसी समय सरोज ने अपने गुरु बी-सोहनलाल से शादी कर ली. मात्र 13 साल की उम्र में सरोज खान बीवी बन चुकी थीं और 14 साल की उम्र में उन्होंने एक बच्चे (मास्टर राजू) को जन्म भी दे दिया था. ये दौर सरोज के लिए बहुत मुश्किलों भरा दौर था. उन्होंने असिस्टंट के रूप में कई फिल्में कीं जिनमें- आस का पंछी, आवारा बादल, आई मिलन की बेला, फर्ज, रेशमा और शेरा, अन्नदाता आदि रहीं. इस बीच एक हादसा हुआ. सोहनलाल को खबर मिली कि उनके पिता नहीं रहे. उन्हें घर लौटना होगा. चिता को अग्नि देनी होगी. वह चेन्नई के रहने वाले थे. जिस वक्त ये पैगाम मिला उस वक्त वो किसी फिल्म के डांस की रिहर्सल कर रहे थे. उन्होंने उसी वक्त एक जवाब भेजा “मैं यहाँ अपनी जिम्मेदारी निभा रहा हूँ, आप वहाँ अपनी निभाइए”  

शायद अपने उस्ताद की ही बातों का असर सरोज पर भी पड़ा क्योंकि और साल भर बाद 1964 में उन्हें एक लड़की हुई लेकिन अगले दस महीने बाद ही वो गुजर गई. सरोज ने भीगी आँखों से उसका अंतिम संस्कार किया और उसी शाम की ट्रेन से वापस लौट गईं और अगले दिन से काम स्टार्ट कर दिया. अपने पहले बच्चे के वक्त ही सरोज के पाँव तले जमीन निकल गयी थी जब उन्हें पता चला कि उनके गुरु और पति बी सोहनलाल, पहले से शादीशुदा हैं और उनके एक दो नहीं बल्कि चार बच्चे भी हैं. बेटी की मौत के बाद दोनों के रिश्तों में बहुत कड़वाहट आ गयी, दूसरी ओर सोहनलाल ने राजू को अपना नाम देने से भी मना कर दिया. हताश सरोज मात्र 17 साल की उम्र में अपने पति से अलग हो गयीं और अपने बच्चे को खुद पालने लगी थीं. उन्होंने सिर्फ पाला ही नहीं बल्कि अपने लड़के, राजू को डांस ट्रेनिंग भी दी. जबकि बी सोहनलाल का मानना था कि बच्चों को फिल्म इंडस्ट्री की गन्दगी से दूर रखा जाए. भला कोई पूछे उनसे की आखिर गन्दगी है कौन? बहरहाल ये समय बच्चे को पलने में और छोटे मोटे काम करने में बीता. हालाँकि वो टैलेंटेड इतनी थीं कि शम्मी कपूर और वैजन्तीमाला की फिल्म ‘प्रिंस’ (1969) में उन्हें असिस्टेंट के नाम पर सारा काम दिया  गया. इसी समय सोहनलाल फिर सरोज की जिन्दगी में आए. आखिर एक मास्टर की हैसियत से तो सरोज उन्हें बहुत मानती थीं. सन 1969 में ही बी सोहनलाल ने सरोज को फिर अपने साथ डांस टीम में जुड़ने का प्रलोभन दिया पर गुस्से वाली सरोज ने साफ मना कर दिया. पर सोहनलाल ने उनकी शिकायत सिने डांस असोसिएशन में कर दी और मजबूरन सरोज को उनके साथ फिर जुड़ना पड़ा. इसी साल सोहनलाल को हार्टअटैक पड़ गया और अपने नेचर से मजबूर सरोज उनका ध्यान रखने पहुँच गयीं. एक रात दोनों साथ रुके, बस वो एक रात और उसके कुछ ही समय बाद सरोज को पता चला कि वह प्रेग्नेंट हैं. इसके बाद सोहनलाल बिल्कुल गायब हो गए. सन 70 में सरोज ने अपनी बेटी कुकू को जन्म दिया और इस तरह वो दो बच्चों की माँ बनीं. लेकिन इन दोनों बच्चों को बाप का नाम नहीं मिला था. दूसरी ओर फिल्म इंडस्ट्री में उनके पास काम तो बहुत था लेकिन पहचान नहीं थी.

हाल यूँ था कि बहुत से एक्टर्स सिर्फ इसलिए सरोज की बात नहीं मानते थे कि वो अभी बहुत छोटी है. पर फिल्म प्रिंस और इसके गाने बहुत चले लेकिन तब डांस मास्टर को कोई नाम नहीं मिलता था और वो भी अगर कोई लड़की हो, तब तो बिल्कुल नहीं. तब जैसे तैसे हीरो नाचने के लिए तैयार होते थे तो डायरेक्टर उसे ही बड़ी बात मानते थे. इसके विपरीत साधना उन्हें बहुत सम्मान देती थीं. साधना जब फिल्म निर्माण में आईं तो उन्होंने अपनी फिल्म गीता मेरा नाम में सरोज को ही लिया. साधना का मानना था कि जो डांस डायरेक्ट कर रहा है वो मास्टर है. अब इसमें उसकी उम्र देखने का कोई तुक नहीं बनता है. साथ ही अब सरोज बड़ी भी हो गयी थीं. फिर जिम्मेदारियों ने उन्हें वक्त से कहीं पहले मच्योर बना दिया था. इसी समय वह सरदार रोशन खान से मिलीं. रोशन एक अच्छे बड़े व्यापारी थे. यह भी पहले से शादीशुदा थे और इनके अपने भी दो बच्चे थे. फिर भी रोशन खान ने सरोज के दोनों बच्चों की जिम्मेदारी ले ली और उन्हें अपना नाम दिया. इस बीच उन्होंने कई फिल्में कोरिओग्राफ कीं जिनमें नया दिन नई रात, दोस्त, जमीर, प्रतिज्ञा, मौसम, आदि सुपर डुपर हिट रहीं. 1975 में रिलीज हुई शोले के ‘महबूबा-महबूबा’ गाने को भी सरोज जी ने डायरेक्ट किया था. इस गाने में उनकी ट्यूनिंग हेलेन से ऐसी बैठी की फिर आखिरी साँस तक न टूटी. इसी साल सरोज को अपना जीवनसाथी और अपने बच्चों के बाप सरदार रोशन खान से शादी करने के लिए इस्लाम कबूल कर लिया. अब सरदार रोशन खान से उन्हें एक बेटी हुई, सुकयना खान. यहीं से सरोज खान के कैरियर में भी चढ़ाव आने लगा. सरदार रोशन खान की पहली पत्नी से सरोज की ऐसी दोस्ती बैठी कि दोनों बहनें बनकर रहने लगीं. सन 80 की शुरुआत थी. सब जानते थे कि बॉलीवुड की बेस्ट मास्टर कौन है, सब जानते थे सरोज कौन है लेकिन फिर भी, नाम कहीं नहीं आता था. तब दादा मुनि यानी अशोक कुमर ने सरोज को बुलाया और पूछा “इतना अच्छा काम करती हो तुम, पर तुम्हें नाम क्यों नहीं मिलता?”    

“मुझे क्या पता” सरोज ने अपने बेबाक अंदाज में जवाब दिया दादा मुनि बोले “सुनों, अपना नाम सरोज लिखती हो न, इसमें एक. और लगा दो, सरोजा कर दो” सरोज तेज आवाज में बोलीं “दादा, अगर मैंने एक ए और लगा दिया तो मुझे एक एक स्टूडियो जाकर बताना पड़ेगा कि सरोजा ही सरोज है. वर्ना वो कोई साउथ की डांस मास्टर समझेंगे और मुझे अपना कैरियर फिर शुरू करना पड़ेगा” तब दादा मुनि बोले “अच्छा अच्छा ठीक है, सरनेम क्या लगाती हो?” “सरनेम तो खान लगाती हूँ” “तो बस ठीक है, सरोज खान हो गया अबसे नाम” और यहीं से मास्टर सरोज बन गयीं सरोज खान मास्टर जी. दादा मुनि तब विनोद मेहरा और जरीना वहाब के साथ इंतकाम की आग कर रहे थे, क्रू में अब सरोज खान भी जुड़ गयीं. अगले ही दिन द शो मैन-सुभाष घई का फोन आ गया. बोले मैं विधाता बना रहा हूँ, इस हफ्ते गाना शूट होना है, आ जाओ. लेकिन सरोज खान के पास डेट्स ही नहीं थीं. वो बिंदिया और विनोद नामक किसी फिल्म में व्यस्त थीं. तब सुभाष घई ने कहा “कोई बात नहीं, लेकिन नेक्स्ट वीक की डेट्स फ्री रखना, एक और गाना शूट होना है” लेकिन अगले हफ्ते सरोज खान की माँ का एक्सीडेंट हो गया और उन्हें दुबई जाना पड़ा. एक बार फिर सुभाष घई का फोन आया और एक बार फिर सरोज खान ने ये कहते हुए मना कर दिया कि “माँ तो अभी ठीक हैं लेकिन मैं आ भी जाऊं तो मुझे, बिंदिया और...”

इतना सुनते ही सुभाष घई भड़क गए “ये क्या बिंदिया विनोद लगा रखा है, सुभाष घई कुछ नहीं है? हमारे साथ काम नहीं करना?” इस पर सरोज खान तसल्ली से बोलीं “अरे नहीं नहीं सुभाष जी मैं आपके साथ काम करना चाहती हूँ, पर क्या करूँ डेट्स ही क्लैश हो रही हैं” सुभाष घई भी जरा ठन्डे होकर बोले “कोई बात नहीं, दो महीने बाद क्लाइमेक्स शूट होगा, एक गाना उसी वक्त शूट करना है. तबकी डेट्स फ्री रखना. सरोज खान ने वो गाना डायरेक्ट किया. उस गाने का नाम था “प्यार का इम्तेहान हम देंगे...” इस फिल्म में दिलीप कुमार, संजीव कुमार, संजय दत्त, शम्मी कपूर और पद्मिनी कोल्हापुरी मुख्य भूमिकाओं में थे. यहाँ से सुभाष घई और सरोज खान का ऐसा साथ जुड़ा कि लम्बे समय तक सुभाष घई की फिल्म का कोई भी गाना बिना सरोज खान के पूरा ही नहीं हुआ. विधाता 1982 में रिलीज हुई. इसके ठीक बाद जैकी श्रॉफ संग सुभाष घई की अपनी फिल्म हीरो रिलीज हुई, इसमें भी डांस कोरियोग्राफर सरोज खान का नाम बड़े बड़े अक्षरों में लिखा गया. यहाँ फिल्म इंडस्ट्री में श्रीदेवी का आगमन भी हो चुका था और सरोज खान जानू, राम तेरे कितने नाम, आवारा बाप सरीखी फिल्में देती जा रही थीं वहीँ श्रीदेवी के साथ संगम बना 1986 में फिल्म नगीना रिलीज हुई और इसके गाने और डांस की बहुत तारीफ हुई. अपने कैरियर की शुरुआत के करीब 30 साल बाद सरोज खान अब पूरी तरह से छा गयी थीं. अब कैरियर में भी फिल्मों की लाइन लग गयी. एक के बाद एक बड़ी फिल्में मिलने लगीं. इनमें स्वर्ग से सुन्दर, जांबाज, सुभाष घई की ही कर्मा, राम लखन, नाम, जीवा आदि एक से बढ़कर एक फिल्में सुपरहिट होने लगीं.

सुभाष घई के साथ साथ शेखर कपूर ने भी मिस्टर इंडिया के गानों के लिए सरोज खान को ही चुना और गाने बम्पर हिट हुए. इसी साल, 1987 में हिफाजत नामक फिल्म से सरोज खान को माधुरी मिली और खुद मास्टर सरोज खान के शब्दों में “माधुरी को डांस बताना ऐसे है जैसे पानी को आकार देना. मैं जो बता दूंगी वो कर लेगी. जितनी रिहर्सल के लिए कहूँगी कर लेगी” दयावान में भी माधुरी के साथ विनोद खन्ना को सरोज खान ने ही डायरेक्ट किया. उन दिनों संगीत में लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल छाए हुए थे. हीरो, निगाहें, मिस्टर इंडिया, नगीना, तेजाब, कर्ज आदि हर बड़ी फिल्म में संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का ही मिलता था. सरोज खान से उनकी इतनी अच्छी बनती थी कि वो कभी उनके गानों में वायलिन का प्रयोग नहीं करते थे. वजह? सरोज खान की मजाहिया लहजे में खुली धमकी थी कि अगर आपने वायलिन बजाया तो मैं सारे डांसर्स को बाहर भगा दूंगी या घुमा के खड़ा कर दूंगी क्योंकि ये इंडिया है, यहाँ वो वायलिन पर डांस नहीं होता. 1988 में एन चंद्रा ने माधुरी और अनिल कपूर की जोड़ी को लेकर तेजाब बनाई और डांस की जिम्मेदारी मास्टर सरोज खान को दी. फिल्म के गाने जावेद अख्तर ने लिखे. गाना ‘एक दो तीन..’ पहली मर्तबा सुनने में सबको लगा कि ये क्या अजीब गाना है. खुद अल्का याग्निक ने, जिन्होंने ये गाना गाया था. गाने से पहले कन्फ्यूज थीं कि ये गाना किसी को समझ भी आयेगा कि नहीं! फिर जब अल्का जी को पता चला कि ये लड़की, माधुरी इसपर डांस करेगीय तब वो और परेशान हो गईं कि ये क्या ही डांस कर पायेगी? पर सरोज खान उर्फ मास्टर जी का जादू ऐसा चला कि ट्रेड पंडितों ने फिल्म हिट होने की सबसे बड़ी वजह वही गाना बताई. ये फिल्म 11 नवम्बर को रिलीज हुई थी और 22 नवंबर तक, यानी मात्र 11 दिन में ये ब्लॉक बस्टर घोषित की जा चुकी थी. माधुरी दीक्षित की फैन फॉलोइंग रातों रात करोड़ों में पहुँच चुकी थी और माधुरी खुद अपनी यूनिवर्सल पहचान का सारा श्रेय अपनी उस्ताद, मास्टर जी को देती नजर आती थीं 22 नवंबर का जिक्र इसलिए किया क्योंकि इसी रोज सरोज खान का जन्मदिन भी होता है. फिल्म की सक्सेस और उनका जन्मदिन एक साथ मनाया गया. इसके बाद हर बड़ी फिल्म में कोरियोग्राफी सिर्फ और सिर्फ सरोज खान से कराई जाने लगी. उस दौर की ये फिल्में बहुत बड़ी हिट हुईं.

यतीम, रखवाला, जंगबाज, सोने पे सुहागा, राम लखन, त्रिदेव, निगाहें (नगीना का दूसरा पार्ट), चालबाज आदि तेजाब के लिए उन्हें पहली बार बेस्ट कोरियोग्राफर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला. उनकी मुरीद फराह खान का कहना है कि मास्टर जी (सरोज खान) ने फीमेल डांस डायरेक्टर्स के लिए रास्ता भी खोल दिया. वर्ना उनसे पहले  कोई सोच भी नहीं सकता था कि इस मेल डोमीनेटिंग इंडस्ट्री में कोई औरत भी एक्टर्स को नचा सकती है. सरोज खान की मानें तो संजय दत्त को नचाना सबसे टेढ़ी खीर था पर उन्हें मजा भी ऐसे ही डांसर्स को नचाने में आता था जो डांसर नहीं हैं. फिल्म थानेदार की शूटिंग से पहले सरोज खान को बुलाया गया और पूछा गया कि क्या आप संजय दत्त को डायरेक्ट करेंगी? सरोज खान बोलीं कि मेरी बस एक शर्त है. पहले रिहर्सल करनी पड़ेगी और जबतक मैं ओके न कह दूँ तबतक शॉट रेडी नहीं होगा. उन्होंने संजय दत्त को रिहर्सल के लिए एक महीने का टाइम दिया. साथ उनके कुछ असिस्टंेट्स भी संजय दत्त को सिखाने में जुट गए. लेकिन जब एक महीने बाद सरोज खान ने पूछा कि रिहर्सल कितनी सफल हुई तो उनके असिस्टेंट्स ने बताया कि संजू ने कोई रिहर्सल की ही नहीं है. सुबह अपनी बॉडी बनाने में लग जाता था. फिर शूटिंग में और शाम को तो आप जानती ही हैं. सब जानते थे सरोज खान गुस्सा बहुत करती हैं. उन्हें उस वक्त भी बहुत गुस्सा आया पर संजू का मासूम सा लटका मुँह देख वो कुछ बोली नहीं. बस इतना पूछा “कुछ तो आता होगा? जरा बहुत तो याद होगा? जो आता है वो तो कर के दिखा सकता है?” संजय ने हाँ में सिर हिलाया और म्यूजिक शुरु हुआ. संजय दत्त ने डांस शुरु किया. स्टार्ट टू एंड तक बिना कहीं रुके गाना स्टेप बाई स्टेप खत्म हो गया तो सरोज खान की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. असल में उनके शागिर्द संजय दत्त के साथ मिलकर मजाक कर रहे थे. ‘तम्मा-तम्मा लोगे’ गाना चार्टबस्टर हिट भी हुआ. सरोज खान ने जता दिया कि अगर ढंग से समझाओ सिखाओ तो पत्थर भी नाच सकता है. उन्हें ऐसी ही दिक्कतें सैफ अली खान, सनी देओल, संजय कपूर आदि के साथ भी आती थीं. वहाँ अनिल कपूर और शाहरुख खान डांसर अवेरेज थे पर परफॉर्मर बहुत जबरदस्त थे. साथ ही आमिर खान भी, अपने डांस की कमी वो अपनी एक्टिंग स्किल से पूरी कर लेते थे. शाहरुख के साथ उन्होंने, डर, किंग अंकल, राजू बन गया जेंटलमैन, बाजीगर, डुप्लीकेट आदि में काम किया.

इसके बाद संजय दत्त के साथ ही सुभाष घई की फिल्म आई खलनायक और इस फिल्म का एक गाना, सुभाष घई और सरोज खान, दोनों के लिए जिन्दगी भर का सबसे आपतिजनक गाना बन गया. हुआ यूँ कि जब लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के म्यूजिक पर आनंद बक्षी ने ‘चोली के पीछे क्या है’ लिखा तो तभी बहुतों की निगाह टेढ़ी हो गयी पर आनंद बक्षी और सुभाष घई इस मामलें में श्योर थे कि वो कोई वल्गर मैसेज नहीं दे रहे हैं. फिल्म का गानकोरियोग्राफ हुआ डांस नंबर सबको बहुत पसंद आया. माधुरी को एक एक स्टेप बताने में सरोज खान ने अपनी जान लगा दी. सुभाष घई खुद भी अपनी फिल्मों के हर शॉट से पूरी तरह जुड़े रहते हैं. उन्होंने भी एक एक स्टेप पर बहुत ध्यान दिया. वहीं इस गाने में माधुरी के साथ नाचने वाली नीना गुप्ता कोई बहुत अच्छी डांसर नहीं थीं इसलिए सरोज खान ने उनको ऐसे स्टेप्स बताये कि जिसमें पता ही नहीं चला कि वो डांस नहीं कर सकतीं. जब गाना रिलीज हुआ तो तहलका मच गया. एक तरफ गाना हर नुक्कड़-ठेले पर बजता मिल रहा था, इतनी लोकप्रियता मिल रही थी लेकिन दूसरी ओर समीक्षक इसे फूहड़ और अश्लील गाना करार दे रहे थे. जबकी सरोज खान का कहना था कि उन्होंने न छोटे कपड़े पहनाए है और न ही कैमरा एंगल कोई ऐसा रखा है जो आपत्तिजनक हो. इस गाने को भी फिल्मफेयर अवाॅर्ड से नवाजा गया और सारी बेतुकी बातें सिरे से खारिज हो गयीं. अगले ही साल अंदाज अपना-अपना के सेट पर एक अनोखा ही वाक्या हुआ. जैसा पहले भी बताया, सरोज खान फिल्म शूट से पहले रिहर्सल में विश्वास रखती थीं और सलमान खान के पास रिहर्सल का समय नहीं था. उन्होंने सलमान को एक स्टेप बताया और कई कोशिशों के बाद भी सलमान जब वो स्टेप नहीं कर पाए तो वो झल्ला गए  और स्टेप छोड़ देने या चेंज करने के लये कहा. पर सरोज खान कहाँ किसी कि सुनती थीं. वो वैसे भी 40़ हो गयी थीं. नतीजा ये हुआ कि सलमान को भड़कता देख सरोज खान भी भड़क गयीं और सेट छोड़कर खड़े पैर चली गयीं. उस दिन से लेकर बीते 2018 तक सलमान और सरोज खान ने कभी बात न की. वहीं अक्षय कुमार के साथ सरोज खान को काम करना बहुत अच्छा लगता था क्योंकि वो डांस करने में उस्ताद थे.    

वहीं आमिर के साथ रंगीला करते वक्त उनके साथ बहुत चीटिंग हुई. राम गोपाल वर्मा रंगीला बना रहे थे. उन्हें भी सरोज खान की सेवाओं की जरुरत थी. सरोज खान ने उनके लिए ‘हाय रामा ये क्या हुआ’, ‘क्या करें कि न करें..’ तन्हा-तन्हा यहाँ पे जीना...’ और रंगीला टाइटल ट्रैक को  डायरेक्ट किया मगर फिर उनकी डेट्स माधुरी दीक्षित और संजय कपूर की फिल्म ‘राजा’ से क्लैश होने लगीं. सरोज ने कुछ समय का ब्रेक लेना चाहा पर राम गोपाल वर्मा ने सरोज खान के ही असिस्टंट अहमद खान को तोड़ लिया और कहा कि तुम बचे हुए तीन गाने डायरेक्ट करो, पूरी एल्बम का क्रेडिट तुम्हें ही मिलेगा. इसलिए, इस फिल्म में सिर्फ तन्हा-तन्हा गाना ही सरोज खान द्वारा कोरियोग्राफ दिखाया जाता है, बाकी गाने अहमद खान द्वारा डायरेक्ट बताते हैं और मजे की बात, इसी फिल्म के डांस डायरेक्शन के चलते अहमद खान को फिल्मफेयर अवार्ड भी मिल गया और वह रातों रात अपना मुकाम बनाने में सफल हो गया. सरोज खान कहती थीं कि धरम फैमिली को देखते हुए बॉबी देओल बहुत अच्छे डांसर हैं. उन्होंने इस दौरान अजय देवगन से भी डांस करवाया. पर ढलते नब्बे के दशक में सरोज खान की डिमांड कुछ घटने लगी और नये कोरियोग्राफर अपनी पहचान बनाने लगे. हालाँकि इसी दौरान उन्होंने यश राज बैनर की दिल वाले दुल्हनिया भी की. पर दिल तो पागल है दृ में श्यामक डावर की कोरियोग्राफी को बहुत पसंद किया गया. इस फिल्म के गानों के लिए श्यामक को नेशनल अवार्ड भी मिला जिसपर आपत्ति जताने हुए सरोज जी ने स्टेटमेंट दी कि अब स्टेज पर भी हीरोइन को चड्डी पहना के नाचने का रिवाज आ गया है. मजे की बात है कि नेशनल अवार्ड भी ऐसी परफॉरमेंस को ही मिला है. दूसरी ओर, संजय लीला भंसाली नामक नये फिल्ममेकर का आगमन भी हुआ और उन्होंने भी डांस डायरेक्शन के लिए खामोशी से लेकर गुजारिश तक सरोज खान को ही याद किया. 1999 में फिल्म हम दिल दे चुके सनम आई और गाना निम्बूड़ा-निम्बूड़ा इतना बड़ा हिट हुआ कि सरोज जी सारे अवार्ड्स ले गयीं. जिन्हें लग रहा था कि वो अब ढल रही हैं, उनके मुँह पर करारा जवाब मिल गया.  

फिर सुभाष घई की फिल्म ‘ताल’ आई और इसमें चार गाने सरोज खान ने डायरेक्ट  किये और बाकी श्यामकडावर ने कोरिओग्राफ किये. सरोज खान श्यामक से शायद इतनी खफा थीं कि जब उनसे पूछा गया कि आपको श्यामक संग काम करना कैसा लगा, तो उन्हें मुख्तसर सा जवाब दिया “मैंने अपने हिस्से के चार गाने किए, जिनमें करिए न कोई वादा किसी से, ताल से ताल मिला, इश्क बिना क्या जीना यारों और रमता जोगी शामिल थे. मुझे नहीं पता इसके बाद के गानों में किसने क्या किया. सरोज खान के साथ एक और मजेदार वाकया घटा. वह ऊटी में थी. शायद कोई पहली बड़ी शूटिंग ऊटी में प्लान की गयी थी. राकेश रोशन शाहरुख, माधुरी और अमरीश पुरी को लेकर ‘कोयला’ बना रहे थे. अब फिल्म में माधुरी है तो सरोज खान का होना भी जरूरी था. वहाँ शूटिंग के दौरान एक आदिवासी महिला आई, उनकी उम्र कोई 70 के आसपास होगी. पूरे शूटिंग क्रू को छोड़कर वो मास्टर जी के पास गयी और बोली ‘आप सरोज खान हैं न?’ सरोज खान इतनी खुश हुईं कि उन्हें लगा मेरी जिन्दगी का सबसे बड़ा अवार्ड यही मिल गया. सरोज खान को लम्बे समय तक एक मलाल रहा था कि उन्हें नेशनल अवार्ड कभी नहीं मिला. उन्हें कई गानों से बहुत उम्मीद थी लेकिन बात नहीं बनी. एक रोज तो उन्होंने निराश होकर यहाँ तक कह दिया कि निम्बूड़ा निम्बूड़ा को नेशनल अवार्ड इसलिए नहीं मिला क्योंकि हमने हीरोइन को कपड़े कुछ ज्यादा पहना दिए थे. उन्होंने एक बार भावनाओं में बहकर अपने कनवर्टेड मुस्लिम होने को भी अवार्ड न मिलने की वजह बता दी थी. लेकिन 2002 में आई देवदास ने उनके सारे गिले शिकवे दूर कर दिए. श्रीदेवी, माधुरी और ऐश्वर्या, ये तीन देवियाँ सरोज खान के डायरेक्शन की नींव मानी जाती थीं. इनमें से दो के संग डोला-रे-डोला गाना डायरेक्ट कर उन्होंने नेशनल अवार्ड समेत 17 अवार्ड्स जीते.

इसके बाद साथिया, फना, डॉन, सांवरियाँ, गुरु नमस्ते लंदन आदि फिल्मों में उनके डांस डायरेक्शन के जलवे  देखे जाने लगे लेकिन कुछ अपने मुँह-फट नेचर के कारण और कुछ डेट्स को लेकर कोई समझौता न करने के कारण, उन्हें धीरे-धीरे काम मिलना कम होने लगा. फिर वो बीच-बीच में साउथ इंडस्ट्री में भी काम करती रहती थीं. 2006  की फिल्म श्रीनगरम के लिए उन्हें दोबारा नेशनल अवार्ड मिला. फिर 2008 में आई इम्तियाज अली की सुपरहिट फिल्म जब वी मेट के गाने ‘ये इश्क हाय बैठे बिठाए जन्नत दिखाए..’ के लिए उन्हें तीसरी बार नेशनल अवार्ड मिला. फिर लव आजकल, लाइफ पार्टनर, भंसाली की ही रावडी राठोर में भी उनकी कोरियोग्राफी बहुत पसंद की गयी. एजेंट विनोद के एक मुजरा फॉर्म डांस ‘दिल मेरा मुफ्त का’ बहुत बड़ा हिट गाना बना. फिर भी उनको काम की दिक्कत पेश आने लगी. उन्होंने कास्टिंग काउच पर भी आपत्तिजनक बयान देते हुए कहा था कि “यहाँ कम से कम आप खुद तो तय कर सकते हो कि आप खुद को बेचना चाहते हो या नहीं, कम से कम यहाँ कोई रेप करके छोड़ तो नहीं देता” उनका ये बयान बहुत वायरल हुआ था और फिर सरोज खान ने माफी भी मांगी थी. एक वक्त माधुरी को उन्होंने स्टार बनाने में सबसे ज्यादा योगदान दिया था और बरसों बाद, माधुरी ने भी गुरु दक्षिणा की सूरत में फिल्म गुलाबी गैंग से वापसी करते हुए सरोज खान को ही डांस डायरेक्टर के रूप में रखा था. बॉलीवुड क्वीन कंगना रनौत भी सरोज जी की बहुत बड़ी फैन रह चुकी थीं. उन्होंने भी तनु वेड्स मनु के आखिरी गाने ‘जुगनी’ के लिए सरोज खान की सेवाएं ली और मजा देखिए, आधी शताब्दी बाद भी सरोज खान द्वारा कम्पोज किया वो गाना सबसे अलग नजर आया था.

सरोज खान के साथ प्रोड्यूसर यूँ भी काम करने से बचने लग गए थे कि वह बिना किसी रीजन हीरोइन के कपडे उतारने को, सीन को अतिसिड्यूसिंग बनाने के लिए राजी नहीं होती थीं. फिर जुबान की भी तेज थीं, जो दिल में होता था वही सामने रख दिया करती थीं. फराह खान की बहुत तारीफ करती थीं लेकिन साथ ये भी कहती थीं कि वो स्टेप्स रिपीट बहुत करती है. वेराइटी रखनी चाहिए, याद रखना चाहिए कि पहले क्या कर दिया था और अब क्या नहीं दोहराना है. 2018 की बात है, कई टीवी शोज जैसे - कर चुकी सरोज खान और सलमान खान आमने सामने पड़े तो बरसों पुराना मन मुटाव दूर हो गया. सलमान ने पूछा ‘मास्टर जी कैसी हो? क्या कर रहे हो आजकल?” तो सरोज खान ईमानदारी से बोलीं “सच कहूँ तो कुछ भी नही. अब काम ही नहीं मिलता. बच्चों को सुबह डांस सिखाती हूँ बस” इसपर सलमान खान ने जवाब दिया “आप फिक्र न करो मास्टर जी, मैं आपको अपनी फिल्म में डांस डायरेक्टर के नाते कास्ट करूंगा.” बीच में कुछ समय उनपर आर्थिक मुसीबतें भी आईं तब भी सिवाए माधुरी के कोई आगे न आया. माधुरी ने क्या दिया कितना दिया ये तो किसी को भी नहीं पता पर उन्होंने अपनी गुरु का हाथ न छोड़ा. सरोज खान ने अपने कैरियर में कई असिस्टंेट्स को डांस डायरेक्टर बनाया जिनमें उनका बेटा राजू, भूपेन्द्र, निमेश भट्ट, अहमद खान (जिन्होंने पहली ही फिल्म रंगीला के लिए फिल्मफेयर जीता और जो अब खुद बागी के डायरेक्टर हैं) और जो  मुख्य हैं. उनकी डांस के प्रति दीवानगी ऐसी थी कि किसी दिन अगर घर में रुक जाएँ तो इरिटेट होने लगती थीं.

उन्हें लगातार तीन साल बेस्ट कोरियोग्राफर का अवार्ड मिला था जो आज तक रिकॉर्ड है. सन 89 में तेजाब (एक दो तीन) के लिए, फिर 90 में चालबाज (न जाने कहाँ से आई है) के लिए और 91 में सैलाब (हमको आज का है इंतजार) के लिए उन्हें फिल्मफेयर से नवाजा गया. इसके बाद 92 में जुम्मा-चुम्मा को मिल गया लेकिन फिर 94 और 95 में उन्हें बेटा (धक-धक करने लगा) और खलनायक (चोली के पीछे क्या है) के लिए फिल्मफेयर अवार्ड मिला. मजे की बात है कि इन पांच में से चार गानों में माधुरी थी.  अगले तीन फिल्मफेयर उन्हें हम दिल दे चुके सनम (निम्बूड़ा-निम्बूड़ा), देवदास (डोला रे डोला) और गुरु (बरसो रे मेघा) के लिए मिले. जब मास्टर जी उर्फ सरोज खान रियलिटी शो में किसी के डांस से खुश होती थीं तो जेब से एक नोट निकालकर उसे गुड लक की तरह दे दिया करती थीं. शायद उन बच्चों की दुआओं का ही असर था कि वो जबतक जीं खुल के जीं, किसी से डर के, बच के, घबरा के नहीं जीं. उनकी बेटी सुकयना खान दुबई में उनके नाम से डांस इंस्टीटयूट चलाती है. उनपर दूरदर्शन की तरफ से एक डॉक्मेंट्री भी बन चुकी है. अब, उनके जीवन पर आधारित एक कमर्शियल फिल्म भी बनने वाली है. टी सीरीज के सर्वेसर्वा भूषण कुमार इस फिल्म को प्रोड्यूस करने वाले हैं. सरोज खान उर्फ मास्टर जी ने पिछले बरस 3 जुलाई को अपनी अंतिम साँस ली. दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गयी पर उनका डांस स्टाइल, उनसे प्रेरित दर्जनों कोरियोग्राफर्स और लाखों करोड़ों फैन्स के दिल में वह हमेशा जिन्दा रहेगीं.

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