बहुमुखी प्रतिभा के धनी फ़िल्म डाइरेक्टर, प्रोड्यूसर, गीतकार, लेखक सावन कुमार टाक से एक्सक्लूसिव मुलाकात

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By Mayapuri Desk
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बहुमुखी प्रतिभा के धनी फ़िल्म डाइरेक्टर, प्रोड्यूसर, गीतकार, लेखक सावन कुमार टाक से एक्सक्लूसिव मुलाकात

मायापुरी के जरिए मेरी ये बात लाखों लोगों तक पहुंचा दीजिये कि मुझे जेनुइन फाइनेन्सर की तलाश है।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी सावन कुमार टाक बॉलीवुड के उन चंद निर्माता निर्देशक लेखक गीतकार में से एक हैं जिनकी फिल्मों में एक अजब सी सुगंध और धड़कन है और जो रुपहले पर्दे के हर मानक और जरूरत को पूरा करते हुए कमर्शियल फिल्मों की सारी खूबियों के बावजूद शिक्षा मूलक और भावना प्रधान और कलात्मक होती है। और हो भी क्यों नहीं, वे एक कवि शायर और गीतकार हैं जो पैसे कमाने के उद्देश्य से कभी फिल्में नहीं बनाते थे। जब जब उन्हें भावना प्रधान शिक्षा मूलक कहानी मिलती थी वे उसे सेल्यूलाइट के कैनवास पर सात रंगों के साथ उतार दिया करते थे, जब नहीं मिलती तो फिल्में नहीं बनाते। पिछले दिनों हमारे मायापुरी के संपादक श्री प्रमोद कुमार बजाज जी से सावन कुमार का पर्सनल नम्बर मिल गया तो बरसों बाद मैं उनसे संपर्क कर पाई।

ढेर सारी भूली बिसरी यादें उभर कर सामने खड़ी थी। मेरी उनसे पहचान उस जमाने के व्यस्त पीआरओ दीपसागर अंकल ने करवाई थी। उसके बाद कई बार इंटरव्यू लेना हुआ। वे मुझे अक्सर 'मिनी टीना मुनीम' कहकर पुकारते थे। वे 65 के दशक से बतौर डायरेक्टर, प्रोड्यूसर, गीतकार और लेखक बेहद चर्चित थे। उनकी ढेर सारी हिट फिल्में , जैसे 'नौनिहाल' 'गोमती के किनारे'  'हवस', 'द लव', 'सनम बेवफा', ' सौतन', 'दिल परदेसी हो गया', 'बेवफा से वफा', 'सौतन की बेटी', 'चांद का टुकड़ा', 'साजन बिना सुहागन' 'सलमा पे दिल आ गया',  'साजन की सहेली' 'प्यार की जीत', 'सनम हरजाई', 'अब क्या होगा', 'लैला', 'मदर', 'ओ बेवफा', 'मदर 98',  'प्रीति' 'डाकू रामकली', 'प्रेम दान, 'लेडी विलन' ने उन्हें टॉप पोजीशन पर ला खड़ा कर दिया था।  एक डाइरेक्टर के रूप में मैंने उन्हें हमेशा काफी ठसकदार और नो नॉनसेंस मूड में देखा।

वे बड़े बड़े स्टार्स के भी नखरे कभी नहीं उठाते थे और जरूरत पड़ी तो सरेआम डाँट भी देते थे, चाहे वो राजेश खन्ना हो, टीना मुनीम हो या कोई भी हो। सावन कुमार, कभी भी पोल खोल इंटरव्यू देने में पीछे नहीं हटते थे,  लल्लो चप्पो करना तो उन्हें आता ही नहीं था। अब कई बरसों बाद एक बार फिर मैं उनसे मुखातिब थी जिनके व्हाट्सएप्प स्टेटस अबाउट में लिखा था, 'बॉर्न टू विन'।  मैनें इसी मेसेज से बात शुरू की,

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'बॉर्न टू विन' यानी आपने जीवन में जीत हासिल कर ली है?'

किसी हद तक। यह मन की बात है और  मैं उन लोगों में से नहीं हूँ जो लालच और चाहतों के घोड़े पर हमेशा जीन कसे हुए रहते हैं। मैंने हमेशा अपने मन कि करी है, बॉलीवुड में कदम रखने के दिन से लेकर आज तक, कुछ भी मजबूरी में नहीं की, जो भी किया हमने किया शान से। वो कहावत है न, मन के हारे हार है, मन के जीते जीत'।

आप एक बेहतरीन डायरेक्टर प्रोड्यूसर गीतकार है लेकिन आप तो एक्टर बनने आए थे। क्या आपको एक्टर न बन पाने का अफसोस है?

बिल्कुल नहीं, (हँसकर) भला मुझे अफसोस क्यों रहेगा, एक्टर नहीं एक्टर का बॉस बन गया। हाँ यह सही है कि मैं बॉलीवुड में एक्टर ही बने आया था जयपुर से। जब मैं उन्नीस बीस वर्ष का था तब किशोरावस्था का जोश था और हीरो जैसा दिखता था। इसके चलते मैं चाहता था बॉलीवुड में कुछ बन जाऊं। मैं कई स्टूडियोज में गया काम की तलाश में और वहां जो नजारा देखा तो दंग रह गया। दिलीप कुमार और मीना कुमारी को मैं टॉप मोस्ट स्टार मानता था। आज भी मानता हूं, लेकिन वहां जब मैं एक शूटिंग देख रहा था तो देखा कि एक सादा सा दिखने वाला आदमी, बड़े रूआब से दिलीप कुमार और मीना कुमारी को बता रहा था कि फलां सीन ऐसा करना चाहिए, वैसा करना चाहिए। कई बार तो उनकी आवाज में झिड़क भी होती थी, 'ऐसा नहीं वैसा करो, उधर से चलकर आओ, यह मत करो', मैं हैरान रह गया,  जिन एक्टर्स को मैं सुप्रीम समझता था, उन्हें डांट कर सिखाने वाला यह कौन आदमी है? मैंने वॉचमैन से पूछा तो उसने बताया कि वे बिमल राय है फिल्म का डायरेक्टर। मैंने पूछा कि वो इस तरह एक्टर को डांट क्यों रहा है? तो वह बोला, 'डायरेक्शन ऐसे ही दिया जाता है।' ,बस फिर क्या था, मैंने उसी वक्त फैसला कर लिया कि मुझे एक्टर नहीं एक्टर का बाप बनना है,यानी मुझे डाइरेक्टर बनना है और मैंने फैसला कर लिया कि पहले बतौर प्रोड्यूसर  एक अपनी फिल्म बनाऊंगा और उसके बाद डाइरेक्टर भी बनूँगा। मैंने किसी तरह पच्चीस हजार रुपये का बंदोबस्त किया । मेरे मन में एक अनाथ बच्चे की कहानी थी , मैनें उसपर फ़िल्म बनाने का फ़ैसला किया। वहां से मेरी यात्रा शुरू हुई फिल्म बनाने की। उसके बाद मैं डाइरेक्टर भी बना। बाद में दिलीप कुमार से जब मेरी अच्छी दोस्ती हो गई तो मैने उन्हें भी वो घटना सुनाई थी कि मेरे डाइरेक्टर बनने के पीछे एक तरह से उनका हाथ है, जब तक दिलीप जी स्वस्थ थे, मेरे निमन्त्रण पर मेरे फिल्मों के मुहूर्त पर, क्लैप देने या किसी भी स्पेशल ओकेशन पर ज़रूर आते थे।

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आप चाहते तो अपनी पहली पिक्चर 'नौनिहाल' में प्रड्यूसर होने के साथ-साथ हीरो बनकर अपनी एक्टर बनने की इच्छा भी पूरी कर सकते थे?

एक बार जब  मैंने बॉलीवुड निर्माता निर्देशक का रुतबा और पावर देख लिया तो उसके बाद मुझे एक्टर बनना ही नहीं था। जब मैं जयपुर से नया नया बॉलीवुड में आया था तब मैं हीरो को ही सर्वे सर्वा मानता था लेकिन उस दिन बिमल रॉय का जो जलवा देखा तो सोचा, एक्टर तो बनना ही नहीं है। एक्टर तो निर्देशक के हाथों की कठपुतली होते है। मैंने मास्टर बनने का फैसला किया कठपुतली नहीं । उन्ही दिनों मैंने हरि जरीवाला नामक एक एक्टर को किसी थिएटर में परफॉर्म करते देखा तो मैंने उसे ही अपनी पहली फिल्म 'नौनिहाल' में ब्रेक देने का फैसला किया और उसका नाम बदलकर संजीव कुमार रख दिया। मुझे आज भी याद है कि उस फिल्म को टैक्स माफ कराना था, किसी ने बताया कि हरिवंश राय बच्चन जी के साथ उस वक्त की प्राइम मिनिस्टर श्रीमती इंदिरा गांधी की अच्छी दोस्ती है, वे चाहे तो टैक्स माफ हो सकता है। मैंने हरिवंश जी के साथ मुलाकात की और उनसे कहा 'अंकल, मेरी फिल्म को टैक्स फ्री कराना है, कुछ कीजिए।' उन्होंने कहा, 'ठीक है बेटा।' और उन्होंने इंदिरा जी के साथ अपॉइंटमेंट फिक्स कर दिया। जब मैं इंदिरा जी से मिलने गया तो मैं उनके सामने के सोफे पर बैठ गया और फ़िल्म के पोस्टर्स वगैरह दिखाने लगा। उन्होंने बहुत प्यार से पेश आते हुए कहा, 'आओ मेरे बगल में बैठकर दिखाओ।'  और उन्होंने ध्यान से मेरे फ़िल्म की कहानी सुनी थी। उन्होंने देश भर में फ़िल्म को टैक्स फ्री कर दिया था। मेरी उस फिल्म को नैशनल अवार्ड्स में प्रेसिडेंशियाल सराहना मिली थी।

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आपने इतनी सारी फिल्में प्रोड्यूस और डाइरेक्ट की है लेकिन किस फिल्म ने आपकी जिंदगी बदल डाली?

वैसे तो सभी फिल्मों ने कुछ न कुछ सीख दी है लेकिन मीना कुमारी अभिनीत मेरी फिल्म 'गोमती के किनारे' ने मेरा जीवन बदल दिया। मेरी पहली फ़िल्म 'नौनिहाल' की भूरी भूरी प्रशंसा के बाद मैं अपनी अगली फिल्म 'गोमती के किनारे के लिए उस वक्त की चोटी की नायिका मीना कुमारी को साइन करना चाहता था। मैं जब उनसे मिला और फ़िल्म की कहानी सुनाई तो वे बहुत इमोशनल हो गई। मैंने पूछा कि इस फ़िल्म के लिए वे किसे निर्देशक के रूप में लेना पसंद करेंगी। मीना जी ने कहा, 'जिसने मुझे इतनी भावनात्मक कहानी सुनाई वही डाइरेक्ट करे तो ही मैं फ़िल्म में काम करूँगी। मैं चौंक गया। मैंने उन्हें बताया कि मूझे डायरेक्शन देना नहीं आता है, मैंने तो आज तक किसी को असिस्ट भी नहीं किया, मुझे तो क्लैप देना भी नहीं आता है, मैं तो अभी सिर्फ प्रोड्यूसर हूँ। लेकिन मीना जी नहीं मानी, उनके जोर देने पर मैं उस फिल्म को डायरेक्ट करने को राजी हो गया , उन्होंने कहा, 'फिक्र मत करो, मैं तो हूँ न।' जैसे ही घोषणा हुई कि सावन कुमार निर्देशित फिल्म में मीना कुमारी नायिका है तथा और भी बड़े बड़े कलाकार है तो बॉलीवुड में मेरे नाम का डंका बजने लगा। रातों रात मैं स्थापित निर्देशक निर्माता की श्रेणी में आ गया।

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मीना जी को डायरेक्ट करने का अनुभव कैसा रहा?

अतुलनीय। वे तो थीं ही कमाल की अभिनेत्री। उनसे बेहतर एक्ट्रेस आज तक कोई है ही नहीं। कुछ दिनों के शूटिंग के बाद मीना जी बहुत बीमार हो गई, मुझे शूटिंग रोकनी पड़ी लेकिन वे चाहती थी कि शूटिंग ना रोकी जाए। पर मैं उन्हें आराम देना चाहता था। तब उन्होंने मुझे समझाने के लिए नर्गिस जी को भेजा।  आखिर उनकी बात माननी पड़ी। जैसे तैसे शूटिंग शुरू की गई, वे इतनी कमजोर हो गई थी कि ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी, रिहर्सल के दौरान मुझे उन्हें पीछे से होल्ड करना पड़ता था। और शॉट के दौरान मैं हट जाता था, फिर भी ऐसे अरेजमेंट करके रखा था कि वे गिर ना पड़े , उन्हें चोट न लगे। फ़िल्म अच्छी बनी लेकिन उनकी बीमारी के कारण बात बन नहीं पाई।

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क्या ये सही है कि मीना कुमारी चाहती थी कि आपकी  फ़िल्म 'गोमती के किनारे' उनकी आखरी फ़िल्म बने?

ऐसा वे कैसे कह सकती थी? उन्हें थोड़े ही मालूम था कि उनकी डेथ होने वाली है। ये गलत अफवाह है। लेकिन हाँ, यह सही बात है कि मेरी यह फ़िल्म उनकी जिन्दगी की आखरी फ़िल्म बन गई।

मैंने कहीं पढा था कि आप कहते थे कि मीना कुमारी जी को गुलाब के फूल बहुत पसंद थे, वे अपने बिस्तर पर गुलाब की पंखुड़ियाँ बिछा कर सोती थी और आप उनके लिए रोज़ गुलाब के फूल ले आते थे?

मीना जी को हर तरह के फूलों से प्यार था, चाहे गुलाब  हो, गुलछड़ी हो, जूही हो, मोगरा हो, चमेली हो। मैं देखता था कि वे गुलाब , गुलछड़ी के फूलों को कितने प्यार से, अपने हाथों से अपने गुलदस्ते में और अपने बिस्तर पर सजाती थी, वे बालों में मोगरा लगाती थी, उनका पूरा शरीर हर वक्त फूलों की खुशबू से महकता था।  इसलिए मैं अक्सर उन्हें गुलाब और तरह तरह के फूल लाकर देता था। वे बहुत खुश होती थी, कौन इंसान फूलों से प्यार नहीं करेगा। और मीना कुमारी जैसी कोमल मन की शायरा, भावुक अभिनेत्री को तो फूलों से प्यार होना ही था।

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सुना है आपने कभी ये भी कहा था कि मीना जी को खूबसूरत फूल भी रास नहीं आए और हैंडसम मर्द भी किसी काम नहीं आए?

ये मैंने कब कहा था पता नहीं।  यह सही बात है की उन्हें कई लोगों से मोहब्बत हो गई थी, मैं नाम नहीं लूंगा क्योकि आज भी उनमें से कई जिंदा है, भरे पूरे परिवार वालें  है, क्या करना है नाम लेकर, जबकि ये सबको पता है। मैं कह नहीं सकता कि उनके और मीना जी के बीच क्या प्रॉब्लम हो गई थी, किसने किसको धोखा दिया, किसने किससे बेवफाई की। लेकिन ये सच है कि मीना जी ने उन सबको हर मामले में हेल्प किया था, उन्हें आगे बढ़ाया, आसमान  की बुलन्दी तक पहुंचाया और वे लोग फिर धीरे धीरे अपने रास्ते चले गए और मीना जी तन्हा रह गई। इसमें किसका कितना दोष था पता नहीं क्योंकि मीना जी ने कभी किसी की शिकायत नहीं की , किसी पर इल्ज़ाम नही लगाया इसलिए समझ नहीं आया कि किसने क्या किया। लेकिन जबसे मैं उनके साथ जुड़ा, मैनें उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ा था। मैं ये कभी नहीं भूल सकता कि उन्हीने मुझे निर्देशक बनने की हिम्मत दी, मुझे आगे बढ़ाया। मुझे क्या से क्या बना दिया। आज मैं जो कुछ भी हूं मीना कुमारी के कारण ही हूं। मैंने इतने कलाकारों के साथ काम किया है लेकिन अपने घर में किसी की भी तस्वीर नहीं लगाई। मेरे घर में सिर्फ मेरी मां और मीना कुमारी की तस्वीर लगी है। मीना जी के प्यार और आशीर्वाद के कारण ही मैं सावन कुमार टाक बन पाया। मैं उन्हें कभी भूल नहीं पाउँगा।

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मैंने ये भी सुना है कि जब वे बीमार थी तो आप रात रात भर उनके सिरहाने जगे बैठे रहते और उन्हें बिस्तर पर सुला देते थे, कई बार बैठे बैठे ही दीवार से सर टेककर आप सो जाते थे और जब उनके मुँह से खून निकलता था तो खून को अपनी हथेलियों में समेट लेते थे?

अरे, इतना सब आपको कैसे पता चला, सही होमवर्क करके आयीं हैं। हां,  यह सच है, उन दिनों मीना जी बहुत बीमार थी। उन्हें लिवर सिरोसिस का प्रॉब्लम था तो कई बार खांसते हुए उनके मुंह से खून निकल आता था और मैं उस खून को अपनी हथेली में जल्दी से समेट लेता था ताकि बिस्तर की चादर पर खून ना गिरे और रात को उन्हें उठना ना पड़े।

सच सच ,बताइए प्लीज़, कि क्या आपको मीना कुमारी जी से मोहब्बत हो गई थी, या आपको उनकी गिरती तबियत पर और उनकी हालत पर तरस आ गया था, क्या आपको उनके प्रति फिज़िकल अट्रैक्शन था, या महज़ एहसान तले थे इसलिए ये सब कर रहे थे? सच ही बताऊंगा, इसमें छुपाना क्या है, क्या प्यार करना गुनाह है?

मुझे उनसे मुहब्बत हो गई थी, रूहानी मुहब्बत, दिल से दिल का रिश्ता जुड़ा था। ना तो वो मुहब्बत किसी तरस के कारण पैदा हुआ ना एहसान उतारने  के लिए पैदा हुआ क्योंकि उन्होंने मेरे लिए जो किया वो कभी किसी तरह चुकाया नहीं जा सकता। मुझे उनके स्वभाव से, उनके दिल से, उनके जज्बात से, उनकी शायरी से, उनकी आंखों से, उनकी हंसी से और उनके आंसुओं से प्यार हो गया था। वरना ऐसा कोई नहीं करता जो मैं कर रहा था। हाँ, उनके प्रति मेरा फिज़िकल अट्रैक्शन भी था, वे बेहद खूबसूरत थी, हसीन थी, जवान थी, मैं भी जवान, हैंडसम और जज्बाती था। हम दोनों के दिल एक हो गए थे। मीना जी मेरे लिए सब कुछ थी, मेरी  फ्रेंड , फिलॉसफर, गाइड, मेरी गर्लफ्रैंड, मेरी इंस्पिरेशन, मेरी महबूबा, मेरी हमराज़, मेरी हंसी मेरी खुशी, सबकुछ वो थी। सच कहूँ तो प्यार मुहब्बत से भी ऊँचा कुछ और अलग सा एहसास था जिसे उन्स कहते हैं। प्यार मुहब्बत शब्द इस फीलिंग के सामने छोटा पड़ता है। उन्होंने मुझे ग्रो करना सिखाया। वो मेरी पहली मुहब्बत थी, आई वाज़ क्रेज़ी फ़ॉर हर। दीवाना था। वो मेरे लिए खुदा थी, मैं  रेस्पेक्ट करता था उन्हें। उन दिनों सबको ये पता था, कुछ लोग मेरे प्यार को समझते थे कुछ जलते थे।

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लेकिन आप तो उनसे उम्र में कम से कम दस वर्ष छोटे थे?

तो क्या हुआ, जज़्बात उम्र नहीं देखती है, प्यार, इश्क, मुहब्बत, दिवानगी कभी उम्र नहीं देखती। वो दिल का मिलान होता है और फिर वो इतनी बड़ी भी नहीं थी, जब मैं मिला तो वे फ्रेश और सुंदर थी, वे बहुत कम उम्र में गुज़र गई।

तो आपने उनसे शादी क्यों नहीं की?

(शायद सावन जी को मेरा ये प्रश्न बचकाना लगा, वे  एम्यूज्ड होकर हंस पड़े) नहीं, शादी की हमने कभी नहीं सोची, वे एकबार शादी करके परेशान हो चुकी थी, दोबारा नहीं करना चाहती थी। और  फिर मुहब्बत, प्यार इश्क, उन्स, ये ज़ज़्बात, भगवान की बनाई होती है। शादी वादी तो इंसान की बनाई रीत रिवाज़ है जिसकी हम दोनों परवाह नहीं करते थे।

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आप काफी रोमांटिक नेचर और दिल के है, लेकिन आपके रोमांस के किस्से ज्यादा नहीं सुनाई दिए, आपने शादी भी एक बार की और वो टूटने के बाद दोबारा नहीं की?

जो असली रोमांटिक होते हैं वो बार बार शादी नहीं करते, एक बार तो चलो हो जाती है लेकिन फिर दोबारा वे नहीं करते। इश्क बार बार हो सकता है क्योंकि वो दिल का मामला होता है। इश्क रूहानी मसला है और शादी दुनियादारी का मामला है। शादी से इंसान का दिल, दिमाग, हाथ, पैर सबमें बेड़ियां डल जाती है। (हँस पड़ते हैं सावन) एक एक बात का जवाब देना पड़ता है, रातों की नींद उड़ जाती है। मैंने एक बार उषा जी (उषा खन्ना)  से शादी की थी, वो टूट गईं, मैंने अलग होते होते उन्हें कहा था कि मैं उनके संगीत को हमेशा पसन्द करता था, करता हूँ करता रहूंगा और मेरी आगे की भी फिल्मों में वे ही म्यूजिक डायरेक्टर होंगी और मैंने अपना कमिटनेन्ट रखा। अलग होने के बावजूद मेरी अगली बीस फिल्मों में मैंने उषा जी को ही म्यूज़िक डाइरेक्टर लिया। आज भी वो मेरी अच्छी फ्रेंड है और जब भी जरूरत होती है, किसी संगीत कंपोज़िशन के लिए तो हम मिलकर काम  करते हैं। रोमांस मैं आज भी कर सकता हूँ अगर किसी से दिल मिल जाए लेकिन शादी नहीं।

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आपने अपनी कई फिल्मों में शादीशुदा नायक की अवैध रिश्तों को जायज़ ठहराया है जबकि अक्सर फिल्मों में पत्नी यानी घरवाली को देवी दिखाया जाता है औऱ बाहरवाली को विलन के रूप में, लेकिन आपने शादीशुदा मर्द की प्रेमिका को महिमामण्डित किया?

अगर किसी मर्द को पत्नी से नहीं बल्कि किसी दूसरी स्त्री से सच्चा प्रेम हासिल हो तो वो उधर ही जाएगा जिधर सच्चा प्रेम मिलता है। सच्चा प्रेम रूहानी होती है, दिल की पुकार होती है, प्रेरणा होती है, वो देवी होती है, जैसे श्रीकृष्ण का राधा से प्रेम था। इस तरह के पवित्र प्रेम को उंसियत कहते है। मैंने अपनी फिल्मों में दिखाया कि जरूरी नहीं कि प्यार सिर्फ किसी बंधन के कारण होता है, प्यार बिना किसी बन्धन, बिना कारण, बिना स्वार्थ के भी होता है। मेरी फिल्म 'सौतन' में पदमिनी कोल्हापुरे का प्यार ऐसा ही निस्वार्थ प्रेम था।

आपने इतने सारे बड़े बड़े स्टार्स जैसे राजेन्द्र कुमार, सुनील दत्त,  नूतन, संजीव कुमार, राजेश खन्ना, जितेंद्र, सलमान खान,  रेखा, श्रीदेवी, नीतू सिंह, विनोद मेहरा, महमूद, टीना मुनीम, जया प्रदा, पद्मिनी कोल्हापुरे, पूनम ढिल्लों, जूही चावला,को डायरेक्ट किया

आपको सबसे अच्छी या अच्छा कौन लगा और सबसे ज्यादा टेंशन आपको किसने दिया?

वैसे तो सभी एक्टर और ऐक्ट्रेस अच्छे थे लेकिन सबसे अच्छी कलाकार मीना कुमारी ही थी, इससे मैं क्या, कोई भी इंकार नहीं कर सकता है, उनका क्लास ही अलग था, उनके जैसा कोई हो ही नहीं सकता, आज भी नहीं। जहां तक टेंशन देने वाली बात है तो क्या बताऊँ, कोई क्या टेंशन देगा मुझे, ज्यादातर मैं ही सबको टेंशन देता था। हाँ, राजेश खन्ना अपनी लेट लतीफी की वजह से बहुत टेंशन देता था , मुझे गुस्सा भी बहुत आता था लेकिन जैसे ही वो कैमरे के सामने परफेक्ट शॉट देता तो मेरी तबियत खुश हो जाती और मेरा गुस्सा उतर जाता। राजेश खन्ना के साथ तो मेरी बहुत अच्छी दोस्ती भी हो गई थी, एक साथ खाना पीना होने लगा था। कभी गुस्सा आता तो उसके कान में पूछता था कि 'सबके सामने डाँटूँ क्या?' वो हँस कर कहता था, 'नहीं नहीं प्लीज़ प्लीज़'

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सावन जी क्या आपकी उम्र वाकई उतनी है जितनी गूगल सर्च में दिखाई देता है, मुझे आपकी आवाज और बोलने के अंदाज़ से  नहीं लगता है आप 1936 में पैदा हुए?

(सावन जी हँस पड़ते हैं) मैं तो अभी सोलह साल का हूं। चेहरे से भी लड़का ही दिखता हूँ, आप ऐसा करो 1936 को पलट कर 1963 कर दो। खैर, सच बताऊँ तो मैं समझता हूँ कि हर इंसान को अपनी हेल्थ ठीक रखना चाहिए, हेल्थ से बढ़कर कुछ नहीं। कम खाओ, कम पीयो और एक्सरसाइज करो तो कुछ हद तक लोग अपनी उम्र को मात दे सकता है। मैं भी ऐसा ही करता हूं। मैं कम खाता हूं, सिर्फ एक पैग पीता हूँ, कभी पार्टी में या किसी खास मौके पर एक का दो बना लेता हूँ। बचपन से एक्सरसाइज़ करता रहा हूँ, आज भी करता हूँ, किस्मत से मेरे दोस्त भी कम पीने वाले हैं, जितेंद्र, राकेश रोशन। इसलिए इनकी कम्पनी में ज्यादा पीने की आदत नहीं पड़ी। थैंक गॉड, वर्ना न जाने क्या होता।

आप  एक बेहतरीन डाइरेक्टर प्रोड्यूसर के अलावा एक बेहतरीन कहानीकार और गीतकार भी हैं, आपने कितने सारे गीत अपनी और बाहर की फिल्मों के लिए   लिखे हैं, जैसे, 'बरखा रानी जरा जम के बरसो, शायद मेरी शादी का ख्याल दिल में आया है इसलिए मम्मी ने मेरी तुम्हे चाय पे बुलाया है, ये जो हल्का हल्का सुरूर है, भरी बरसात में दिल जलाया, चूड़ी मजा ना देगी कंगन मजा ना देगा, हो गए दीवाने तुमको देख कर,  हम भूल गए रे हर बात मगर तेरा प्यार नहीं भूले, चाँद सितारे फूल और खुशबू ये तो सारे पुराने है ताज़ा ताज़ा कली खिली है, हम उसके दीवाने है (कहो न प्यार है), जानेमन जानेमन पलट तेरी नजर (कहो ना प्यार है), प्यार की कश्ती में (कहो न प्यार है) कौन सुनेगा किसको सुनाए, अल्लाह करम करना लिल्लाह करम करना, ओ हरे दुपट्टे वाली ,  रंग दिनी रंग दिनी, तूने दिल मेरा तोड़ा,  जिनके आगे जी जिनके पीछे जी, कहां थे आप जमाने में,  कमरे में बंद सोनिए, वगैरह लेकिन आम पब्लिक को ये बात ज्यादा पता नहीं है

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आप अपने गीतकार होने की चर्चा क्यों नही  करते?

मुझे किसी बात की पब्लिसिटी करना अच्छा नहीं लगता, मैंने कभी किसी मामले में अपना प्रचार नहीं किया। लेकिन इंडस्ट्री में सबको पता है, आम पब्लिक को क्या लेना देना कि गीत के बोल किसने लिखे, उन्हें सिर्फ गाने से मतलब होता है, जब मेरी कोई गीत हिट हो जाती है तो सभी इसे गाते हैं, पसन्द करते हैं, स्टेज पर गाकर खूब पैसा कमा लेते हैं। मेरी ज्यादातर गाने बहुत हिट हुए, एक बार अमीन सयानी जी कह रहे थे कि आपके गाने सालभर टॉप पर बने रहें पब्लिक डिमांड पर और अब नए गाने को सामने ला ही नहीं पा रहा हूँ, इन्हें उतारूँ कैसे? (सावन जी  दो तीन गाने गुनगुनाने लगे। उनकी आवाज़ किसी प्रोफेशनल गायक की तरह सुनकर मैंने पूछ लिया)

आपकी आवाज इतनी अच्छी है, आप अपनी आवाज़ में क्यों नहीं गाते?

नहीं भई, गायकों को ही गाने दीजिये, मैं जब गाने लिखता हूँ तो खुद ट्यून बनाते हुए गा गा कर लिखता हूँ। उषा जी (संगीतकार उषा खन्ना)  और मैं जब गीत की धुन बनाने बैठते हैं तो क्या समा बंध जाता है।

आपके बारे में ये कहा जाता है कि आप बहुत सख्त डायरेक्टर हैं, किसी भी एक्टर के नखरे नहीं सहतेसाफ साफ बोल देते हैं, किसी की धौंस नहीं सहते, नकचढ़े और जरा प्राउड हैं, आखिर 'लियो' राशि के जो हैं?

नहीं नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है, यूँ ही बदनाम ना करो भई, मैं भला क्यों करूँ घमंड?  बड़े बड़े दिग्गज आए और चले गए, उनके आगे मैं कौन हूँ, मैं किसी से ना सख्ती करता हूँ ना जबरदस्ती। पर ये सही बात है कि मैं ना किसी के नखरे सहता हूँ ना धौंस। जो मेरा रेस्पेक्ट करते हैं, मैं उनका तहे दिल से रेस्पेक्ट करता हूँ। मैं आज भी अपने को एक स्टूडेंट मानता हूँ और रोज़ कुछ ना कुछ सीखता हूँ।

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आपने अक्सर उन स्टार्स को अपनी फिल्मों में लेकर फिल्में बनाई जो या तो नए थे या जिनके सितारे गर्दिश में चल रहे थे और आपकी फ़िल्म में काम करके उन्हें दोबारा नई जिंदगी मिली जैसे, राजेश खन्ना, राजेन्द्र कुमार, नूतन, सलमान, ये रिस्क आप क्यों लेते थे?

जिन जिनके आपने नाम लिए सभी बहुत ग्रेट एक्टर हैं, हाँ, कई बार समय उनका ठीक नहीं चल रहा होता है। मैं ऐसे सितारों को इसलिए लेता रहा हूँ क्योंकि वे पूरा समय देकर अच्छी तरह काम करते हैं और जो बहुत व्यस्त स्टार होते हैं उनके हज़ार नखरे होते हैं, वे डाइरेक्टर की बात ही नहीं मानते। कई बार तो नए नए आए हुए एक्टर, एक फ़िल्म में हिट होते ही ना जाने अपने को क्या समझने लगते है, डाइरेक्टर को तो बेवकूफ समझते हैं। खैर इन सबके बावजूद ऐसे कई नए पुराने स्टार्स भी हैं जो डाइरेक्टर को बहुत रेस्पेक्ट करतें हैं। जब भी मिलते हैं गले मिलतें हैं। सलमान खान मेरी बहुत रेस्पेक्ट करते हैं।

फ़िल्म इंडस्ट्री के बदलते रंग ढंग से आपको कोई नुकसान हुआ, आपको खामियाजा भुगतना पड़ा?

(हँसकर) मुझे क्या फर्क पड़ा, मुझे कौन सा बीवी के नखरे उठाने है। लेकिन हां, फ़िल्म इंडस्ट्री के बदलते स्वरूप के कारण दर्शकों को खामियाजा भुगतना पड़ा। आज के ज़माने में कोई ढंग की फ़िल्म बनती ही नहीं है, पिछले दस पन्द्रह सालों में आप कोई यादगार फ़िल्म का नाम बताइए। आज कोई भी उठकर डाइरेक्टर प्रोड्यूसर बन जाता है भले ही उसे फ़िल्म बनाने का शऊर ही नहीं। दिलीप कुमार, मीना कुमारी  वैजयंतीमाला, नरगिस, माला सिन्हा, राजेन्द्र कुमार, राजेश खन्ना की पुरानी फिल्मों को देख लीजिए, फ़िल्म 'सौतन', 'साजन बिना सुहागन' जैसी फिल्मों में दिल छूने वाली कहानी थी, दर्शकों को बांधे रखने के लिए उनके दिल दिमाग में तूफान पैदा करने वाली कथानक होनी चाहिए जो आज के फ़िल्म मेकर्स की बूते की बात नहीं है।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी फ़िल्म डाइरेक्टर, प्रोड्यूसर, गीतकार, लेखक सावन कुमार टाक से एक्सक्लूसिव मुलाकात

आप पिछले कुछ समय से फिल्में नहीं बना रहे हैं, क्यों?

मेरे समय के जो फाइनेन्सर थे, जो पैसे लेकर मेरे आगे पीछे दीवानों की तरह घूमते थे और मुझसे फ़िल्म शुरू करने की गुज़ारिश किया करते थे, उन सबकी डेथ हो गई। अब फ़िल्म बनाने के लिए फंड्स की ज़रूरत तो होती है। वैसे आज भी फाइनेन्सर लोग ऑफर लेकर आते तो हैं लेकिन मुझे समझ आ जाता है कि ये लोग सीरियस भी नहीं है और जेनुइन भी नहीं है, उन्हें बस हेरोइन से मतलब होता है। मैं ऐसे फाइनैंसर्स को मना कर देता हूँ। मुझे आज भी तलाश है किसी जेनुइन, सिरिअस फाइनेन्सर की। अगर मिल जाये तो मैं फिर से फिल्में बनाने लग जाऊँ। मायापुरी के जरिए मेरी ये बात लाखों लोगों तक पहुंचा दीजिये कि मुझे जेनुइन फाइनेन्सर की तलाश है।

आजकल ओटीटी यानी डिजिटल प्लैटफॉर्म्स की धूम मची है, आप इसमें कुछ करना चाहेंगे?

नहीं, फ़िल्म के प्लैटफॉर्म के आगे यह सब बच्चे प्लैटफॉर्म्स है। मुझे टीवी और ओटीटी से ऑफर आते हैं, लेकिन जिसने फ़िल्म मेकिंग की भव्यता चख ली हो उसे यह सब अच्छा नहीं लगता। जो एस्टैब्लिश्ड फिल्ममेकर, स्टार्स, एक्टर्स है वे कभी इसमें नहीं जाएंगे जैसे सलमान, शाहरुख, दीपिका, रणवीर- -।

मायापुरी के बारे में आप क्या कहेंगे?

ए पी बजाज जी, पी के बजाज जी और अमन बजाज जी के एफर्ट्स इस मैगज़ीन में साफ महसूस होता है। सबसे पुरानी, सबसे जेनुइन, सब से पॉपुलर हिंदी फिल्म पत्रिका के रूप में यह पिछले 45 वर्षों से, लाखों लोगों के दिलों में बसी है। यह वो पत्रिका है जो कॉमन से कॉमन और अमीर गरीब सब को मुहैया है। हैट्स ऑफ।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी फ़िल्म डाइरेक्टर, प्रोड्यूसर, गीतकार, लेखक सावन कुमार टाक से एक्सक्लूसिव मुलाकात

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