Bell Bottom Review अच्छी फिटिंग की बनी है अक्षय कुमार की बेल बॉटम By Siddharth Arora 'Sahar' 17 Aug 2021 | एडिट 17 Aug 2021 22:00 IST in ताजा खबर New Update Follow Us शेयर 15 अगस्त और 26 जनवरी, ये दो ऐसी तारीखें हैं जो देशभक्ति से जुड़ी फिल्में रिलीज़ करने के लिए परफेक्ट मानी जाती हैं। फिर बात जब देशभक्ति पर फिल्म बनाने की हो तो भला अक्षय कुमार कैसे पीछे रह सकते हैं। पर अच्छी बात ये भी है कि जब सबको लगने लगा कि बॉलीवुड के पास कहानियों का टोटा हो गया है, तभी अक्षय कुमार ने रियल लाइफ इंसिडेंट्स और अननोन नैशनल हीरोज़ की कहानियाँ उठानी शुरु कर दीं। यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है। बात 1984 की है जहाँ पिछले 7 सालों में पाँच एयरप्लेन हाईजैक हो चुके हैं। वैसे फैक्ट्स की जानें तो टोटल 9 हाइजैक हुए थे। बहरहाल फिल्म पर आते हैं। एक बोइंग 737 फ्लाइट खालिस्तानी आतंकियों द्वारा हाईजैक कर ली जाती है। हालांकि फिल्म में खालिस्तानियों का नाम नहीं लिया गया है। इससे पहले 3 और फ्लाइट्स हाईजैक होकर लाहौर गई होती हैं और पाकिस्तानी प्राइम मिनिस्टर ज़िआ-उल-हक़ हर बार आतंकियों और भारत की तत्कालीन प्राइम मिनिस्टर इंदिरा गांधी के बीच निगोशीऐशन करवाते हैं। इस बार भी डिफेन्स और इक्स्टर्नल अफेयर्स की ओर से यही तय किया जाता है कि हम आतंकियों से समझौता कर लेते हैं। पर रॉ हेड (आदिल हुसैन) अपने एक सीक्रेट एजेंट को बुलाते हैं जिसका कोड नेम है - बेल बॉटम (अक्षय कुमार)। बेल बॉटम निगोशीऐशन छोड़ कोवर्ट ऑपरेशन प्लान करता है। यही फ्लाइट लाहौर से दुबई चली जाती है और अब रॉ के कुछ जाँबाज एजेंट 210 पेसेनजर्स को रेस्क्यू करने की तैयारी करते हैं। लेकिन फिल्म सिर्फ इतनी ही नहीं है, इसमें बैकस्टोरी, रीवेन्ज, इमोशन्स, ह्यूमर, ट्विस्ट एण्ड टर्नस् और फेमस हीरो की हीरोगिरी सबकुछ है। Ranjit M Tiwari डायरेक्टर रंजीत तिवारी की बात करें तो वह डी-डे जैसी हॉलिवुड स्टाइल ज़बरदस्त एक्शन थ्रिलर फिल्म में असिस्टन्ट डायरेक्टर रह चुके हैं। हालांकि एक डायरेक्टर के नाते ये उनकी दूसरी फिल्म है पर उनकी मेहनत साफ झलकती है। फिल्म शुरु होकर इंटरवल तक कब पहुँच जाती है पता ही नहीं चलता। क्लाइमैक्स में ज़रा बहुत अपच घटनाओं को छोड़कर पूरी फिल्म एक पेस पर चलती नज़र आती है। फिल्म में ईमोशनस् का बहुत सही हिसाब किताब है। वहीं लेखक असीम अरोड़ा और परवेज़ शेख ने फिल्म लॉजिकल रखी है। हालांकि यूपीएससी के आठ अटेम्पटस सुनकर ज़रा अजीब लगता है पर बाकी फिल्म का हर एक सीन आगे वाली घटना से कनेक्टेड निकलता है। साथ साथ ह्यूमर पंच भी फिल्म को बोझिल नहीं होने देते। इस फिल्म की कहानी का आइडिया प्रोड्यूसर वाशू भगनानी की देन है और लेखक जोड़ी ने इस हाइजैक पर अच्छी रिसर्च भी की है। Aseem Arora डाइलॉग्स आम इंसानों वाले हैं, क्लीशे नहीं है। रॉ कौन है, क्या है, आदिल हुसैन के मुँह से निकला ये डाइलॉग कम किस्सा मज़ेदार है पर बता दूंगा तो देखते वक़्त मज़ा खराब हो जायेगा। ऐक्टिंग की बात करूँ तो ऐसा लगता है जैसे ये रोल बना ही अक्षय कुमार के लिए था। असल लाइफ के बेलबॉटम को तो कोई नहीं जानता, पर इस कैरिक्टर को खास अक्षय के कम्फर्ट के दायरे में लिखा गया है। आदिल हुसैन यूं तो बेहतरीन ऐक्टर हैं ही, पर उस एक डाइलॉग में वो पूरा सीन ले गए हैं। हुमा कुरेशी का रोल छोटा है पर अच्छा है। लारा दत्ता को इतना मेकअप करवाने की क्या ज़रूरत थी ये समझना मुश्किल था, कुछ ऐसा एक्स्ट्राऑर्डनेरी स्क्रीन टाइम उनके पास नहीं है कि जिसके लिए वह 4-4 घंटे मेकअप करतीं। हाँ, उन्हें पहचानना ज़रूर मुश्किल हुआ है। पूरी फिल्म में वाणी कपूर के हिस्से में बड़ी बड़ी स्माइल्स और अच्छी अच्छी बातें आईं हैं। आतंकी बने नकुल भल्ला की एक्टिंग नेचुरल है, बढ़िया है। तिवारी यदीप, अनिरुद्ध दवे, हुसम चड़त, अजय छबड़ा, रेश लांबा सहित सारी सपोर्टिंग कास्ट का काम बहुत अच्छा है। डॉली आहलूवालिया का ज़िक्र मैं अलग से करना चाहूँगा। अक्षय के रहते एक इन्हें ही स्क्रीनस्पेस मिला है। अगर डॉली जी बेल बॉटम में न होतीं तो ये फिल्म ठीक वैसी ही होती जैसी कोई उम्दा मिठाई बिना शक्कर की बनी हो। इनकी कॉमिक टाइमिंग, डाइलॉग डेलीवेरी और अक्षय के साथ केमेस्ट्री इतनी ज़बरदस्त है कि स्क्रीन से निगाह और चेहरे से स्माइल नहीं हटती। इन्हें बेस्ट ऑन स्क्रीन पंजाबी मदर का अवॉर्ड मिलना चाहिए। फिल्म का म्यूजिक तो ठीक ठाक है ही पर डेनियल जॉर्ज का बैकग्राउन्ड स्कोर ज़बरदस्त है। फिल्म के पेस के साथ-साथ 80 के दशक को भी सूट करता है। राजीव रवि ने सिनिमटाग्रफी भी अक्षय कुमार को ध्यान में रखकर की है। कुछ शॉट्स बहुत अच्छे बने हैं। एडिटर चंदन अरोड़ा का काम बढ़िया है। दो घंटे की फिल्म न छोटी लगती है न बोझिल होती है। कुलमिलाकर इतने ज़माने बाद थिएटर खुलने पर एक कायदे की फिल्म आई है। पिछली बार रूही के वक़्त दर्शक बहुत निराश हुए थे, इसबार आशा है कि ऐसा नहीं होगा। प्लस, हमारी रॉ अजेंसी के एक बेहतरीन ऑपरेशन के बारे 37 साल बाद ही सही जानकारी मिलेगी। फिल्म में 80% तक सही कहानी दिखाई गई है। यहाँ तक की UAE के डिफेंस मिनिस्टर की गाड़ी भी व्हाइट ही रखी गई है क्योंकि असल में वह व्हाइट मर्सडीज़ से आए थे। कहीं-कहीं फिल्म 'बेबी' जैसी भी नज़र आयेगी. यूँ लगेगा जैसे बेबी बड़ी हो गयी है. बाकी मैं जल्द ही आपको उस असल कहानी से भी रूबरू करवाता हूँ, जिसपर ये फिल्म बेस्ड है। रेटिंग – 7.5/10* रिव्यू पसंद आए तो शेयर ज़रूर करें। सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’ #akshay kumar #Huma Qureshi #VASHU BHAGNANI #Lara Dutta #Bell Bottom हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article