Leena Chandavarkar Birthday Special: जब बाबुल का घर छोड़ पिया के घर चली थी लीना चन्दावरकर By Mayapuri Desk 29 Aug 2023 | एडिट 29 Aug 2023 08:30 IST in ताजा खबर New Update लीना चन्दावरकर की शादी हो गयी. वह बाबुल का घर छोड़ पिया के घर चली. पिछले कुछ ही दिनों पहले उसने जब अपनी सगाई की साल गिरह मनाई तो लोगों ने पूछा- ‘‘अब शादी कब होगी ?’’ लीना ने मुस्कुरा कर बस उतना ही कहा - ‘‘समय आने पर.’’ शायद मुहूर्त की प्रतीक्षा थी. वह शुभ मुहूर्त की घड़ी आयी सोमवार 8 दिसम्बर को पौने छः बजे. शहनाई की रसभरी स्वर लहरी के बीच ऋग्वेदी पंडित दिनकर भट्ट के ‘आश्वालायन गृहहय सूत्रों’ के मांगलिक उच्चारण्र के साथ लीना चन्दावरकर और सिद्धार्थ ने एक दूसरे के गले में माला डाल दी. वे सदा के लिए जीवन साथी बन गये. यह शादी तेजपाल हाल में वैद्धिक पद्धति से विधिवत हुई. कई तरह के संस्करण पूर्ण किये गए जिनका शुभारंभ सुबह 9 बजे से ही हो गया था. मैं ‘मायापुरी’ के फोटोग्राफर सुरेश जेठवा को लेकर केले के पत्तों और फूलों से सुसज्जित हाॅल पर ठीक नौ बजे पहुंच गया था. शहनाई बज रही थी. धूप गंध से हाल महक उठा था. लीना के वर सिद्धार्थ को लाने की पूरी तैयारियां हो चुकी थी. एक थाली में नारियल, ताम्बूल, अक्षत, कुंकम केशर आदि थे. एक बड़ी थाली में बेसन, काजू और मंूग के लड्डू थे. एक और थाली में वेणियां सजी हुई थीं. लीना के मामा, मामी, उसके भाई अनिल, उसकी भाभी और निर्माता गुलूकोचर उन थालियों को लेकर नीचे उतरकर फूलों से सजी बड़ी शानदार मोटर में बैठ गयें हमारे साथ और भी कई फोटोग्राफर थे. शादी मंडप के हाॅल से कुछ ही दूरी पर नारायणा दाभोलकर रोड पर ‘अकबर’ में सिद्धार्थ और उनके परिवार वाले ठहरे थे. सबसे पहले लीना की भाभी ने वर को तिलक किया और उनके हाथ में नारियल देकर शकुन किया. मामा ने उनका मुंह मीठा कियां भाभी ने इत्र लगाया और तभी महिलाओं को वेणियां दीं. भाई ने वर को इत्र लगा कर गले लगाया. यह ‘शकुन संस्कार’ पूर्ण होते ही सब लोग नीचे उतर आये और फूलों से सजी मोटरों में बैठकर हाल की ओर चल दिये. मोटरों के पीछे एक पुलिस जीप भी थी. मोटरों का काफिला धीरे-धीरे उसे देखने के लिए फूलों की महक उड़ता हुआ शानशौकत से आगे बढ़ा तो उसे देखने के लिए सड़कों के आस-पास काफी लोग एकत्र हो गये थे. हाल पर पहुंचते ही बारातियों का स्नेहपूर्ण स्वागत किया गया. लीना के पिता ने वर को ताम्बूल से जल के छींटे दिये. तिलक किया, उन्हें गांधी टोपी पहनाई और गले लगाया. भाभी ने वर के पैर धोये और हाथ में नारियल दिया लीना की मां ने वर की स्नेहशक्ति पूजा कीं पूजा हो जाने के बाद लीना की भाभी ने वर की आरती उतारी. इस मांगलिक पूजा के बाद सब लोग हाल की ओर बढ़ गये. लीना के वर ज्योंही हाॅल में अपनी बड़ी बहन (गोवर की मुख्यमंत्री) शशिकला बांदोडकर तथा अन्य दो बहनें ऊषा बांदोडकर और ज्योति बांदोडकर के साथ प्रवेश किया शहनायी गूंज उठी. हाल के प्रवेश द्वार के पास ही विवाह मंडप हरी-हरी पत्तियों से सजा था. वनश्री से शोभित मंडप धूप से महक रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे किसी ऋषि के पूजा की सामग्री सजी थी और वह बैठे थे मंत्रोच्चरण करने वाले पंडित जी. कुछ ही देर बाद...! मंडप में पहले सिद्धार्थ विराजमान हुए. लीना के माता-पिता ने पंडित जी के मंत्रोच्चरण के साथ वर की पूजा की, उन पर पानी छिड़का, उनका तिलक किया पूजा के बाद लीना के पिता ने उन्हें जगमगाती हीरे की अंगूठी पहनायी. वर पूजा के बाद सम्पन्न हुई वधू की पूजा. लीना को उसके मामा हाथ पकड़कर मंडप में लाये तो ऐसा लग रहा था जैसे किसी देव कन्या को मंडप में लाया जा रहा है. जगमगाते गहनों में लदी, लज्जा में सिमटी, भावों में डूबी, सपनों मैं खोयी छुईमुई-सी लीना की आज की यह खूबसूरती ऐसी खूबसूरती थी जो अब तक पर्दे पर नहीं आयी. गोवानी और महाराष्ट्रीयन वेशभूषा में वह लीना कोई दूसरी ही लीना लग रही थी. गले मैं बिजली की तरह चमचमाता जड़ाऊ हार, झूलते मोतियों की माला, माथे पर बोर, हाथों में कंगन, झुमके...और फिर हाथों में नारियल. लीना के इस रूप-सौन्दर्य में आज एक साथ कई देव कन्याओं का सौन्दर्य जगमगा रहा था. ज्योंही वह मंडप में बैठी, शहनाई की स्वर-लहरी कुछ और मीठी हो गयी. और फिर - नाक में नथ पहने, पूरी महाराष्ट्रीयन वेशभूषा में सजी-धजी सिद्धार्थ की बड़ी बहन शशिकला बांदोडकर की पूजा की थाली लेकर मंडप में आयी. उन्होंने गुलाबी मुस्कुराहट के साथ वधू लीना का तिलक किया, गजरा पहनाया, हरे कांच की चूड़ियां पहनाई, काजल का टीका लगाया, लाल साड़ी दी- और कुछ जेवर भेंट किए. इसी तरह सिद्धार्थ की अन्य दो बहनों ने भी लीना की विरर्धवत पूजा की. वर-वधू ने पूजा हो जाने के बाद कुछ विश्राम किया. मेहमानों को नाश्ता कराया गया. फिर एक नया दृश्य: लीना विवाह मंडप में सहबाला के साथ आयीं. सबसे पहले वर के परिवार वालों की ओर से उसका स्वागत किया गया. बाद में ‘गृहस्थ सूत्र’ में वर्णित संस्कार विधि के अनुसार सिद्धार्थ की बहनों ने लीना की पूजा की. उसके माथे पर अक्षत डाले, फिर तिलक किया उससे घरेलू चक्की से उरद पिसवाया. ताम्बूल से जल के बार-बार छींटे दिये. आरती उतारी. साड़ी और कंघा भेंट किया. मुंह में दही डाला. वधू का यह प्रारम्भिक संस्कार होने के बाद मंडप में धोती-कुर्ता और पगड़ी पहने सिद्धार्थ अपने सहबाल के साथ आये. पहले उन्होंने मां के पैर छुए, फिर बहनों के पैर छुए और अपने स्वर्गीय पिता के सामने नतमस्त होकर - मंडप में आ बैठे. शहनाई फिर एक बार गूंज उठी. इस बार वधूवालों की ओर से वर पूजा विधिवत की गई. आम के पत्तों से पानी के छींटे दिये. उनके मुंह में दही डाला- और उनकी आरती उतारी. इस आरती में लीना के माता-पिता, भाई बंधु, मामा-मामी और सगे संबंधी सभी उपस्थित थे. इस तरह वर-वधू के परस्पर संबंधों का विधिवत संस्कार सम्पन्न हुआ- और बाद में-मंडप में वर-वधू को लाया गया. एक कोने में लीना के साथ उसके घर वाले बैठे थे और दूसरी दिशा में सिद्धार्थ अपने परिवार वालों के साथ बैठे थे. मंडप में आते ही वर-वधू ने कनखियों से एक दूसरे की ओर देखा- जी भर कर देखा- और फिर दोनों अपने आप में सिमट गये. दोनों की भाव-भंगिमाओं से ऐसा लग रहा था कि जैसे मिलन की महकती आकांक्षाओं से भरपूर प्लावित हो चुके हैं. लीना की आंखों में जैसे सुहाग की लाली का समन्दर लहरा उठा था. इस बार वर पक्ष के पंडित और वधू पक्ष के पंडित दोनों ने जोर-जोर से मंत्रों का उच्चारण हो रहा था. दोनों पक्षों की ओर से विधिवत संकल्प किए गए- और साथ ही साथ जीवन सूत्र में बंध जाने के लिए संकल्प किए वर-वधू ने. शास्त्रोक्त विधि से यह विवाह का पहला अध्याय था. उसके बाद लंच हुआ- और लंच के बाद विश्राम. पर ठीक पांच बजे शाम को शहनाई के साथ-साथ पुलिस बैंड भी गूंज उठा तो हाॅल में कुछ ताजगी आ गयी. इस बीच मंडप का रंग-रूप ही बदल गया था. पहले जो मंडप हरी-हरी पत्तियों से सजा था वह अब फूलों से महक उठा. रंग-बिरंगे फल-फूलों के झालर और झालर के बीच जगमगाती लाल-पीली बिजली की छोटी-छोटी बत्तियां कुछ नया ही समां बंध गया था. पृष्ठ भूमि में फूलों के गणेशजी प्रतिष्ठित किए गए जिनकी शोभा कुछ और ही थी. मंडप में फिर एक बार वर-वधू लाये गये. इस समय उनकी वेशभूषा भी बदली हुई थी. दोनों पक्षों के पंडितों ने मंत्रोच्चारण किया और इसी मंत्रोच्चारण के बीच उन दोनों के चारों ओर सूत के धागे लपेट दिये गये. यह तो दोनों के पवित्रबंधन का प्रतीक था. इस पवित्र बंधन के बाद दोनों खड़े हुए. एक ओर सिद्धार्थ फूलों की महक से गमकता हार लिए खड़े थे, और दूसरी ओर स्वयंवर के लिए, अपने प्यार से महकता फूलों का बड़ा हाल लिये खड़ी थीं लीना चन्दावरकर. दोनों के बीच एक झीना सफेद पर्दा था. सब लोग खड़े थे. शहनाई बज रही थीं बैंड की स्वर लहरी और अधिक तेज हो उठी थी. पंडितो के मंत्रोच्चारण में भी गति आ गयी थी. हाॅल में सारे मेहमान हाथों में अक्षत लिए खड़े थे, इसी बीच पंडित ने घड़ी की ओर देखा. पौने छः बज चुके थे- बस -पंडित ने अंतिम श्लोक के उच्चारण के साथ परदा दूर कर दिया- और पलक झपकते, वर-वधू ने एक दूसर के गले में वर मालाएं डाल दीं. हाल तालियों से गूंज उठा लोगों ने अक्षत बरसाये- और खुशी के वातावरण के बीच लीना और सिद्धार्थ विवाह सूत्र में बंध गये-सदा के लिए... पर लीना के पिता-माता-भाई-सब बंधु-बांधव सजल थे. लीना की आंखों में बाबुल के प्यार की गंगा छलछला आयी थी. लीना के पिता से नहीं रहा गया दौड़कर उन्होंने लीना की छाती से लगा लिया.... लीना बाबुल का घर छोड़ चली... और इस शादी के बाद - दूसरे दिन शाम को ओबराॅय होटल में वर-वधू का स्वागत समारोह हुआ जो रात के बारह बजे तक चलता रहा. फिल्म की अनेक हस्तियां वर-वधू को बधाई देने पहुंचीं जिनमें उल्लेखनीय हैं दिलीप कुमार, सायरा, हेमा, आत्मा राम, रवि टण्डन, सुनीलदत्त, नरगिस, सुल्तान अहमद, मुशीर-रिआज, मुकरी, फरीदा जलाल, बिन्दु आदि. उनके पहले अनेक कलाकार लीना के घर जाकर उसे बधाई दे आये थे. इसी सप्ताह वर-वधू गोवा मधुरात्रि मनाने गए. लीना शादी के बाद फिल्मों में काम करेगी या नहीं, इसका निर्णय अभी उसने नहीं लिया है. #leena chandavarkar #leena chandavarkar birthday #leena chandavarkar story #leena chandavarkar wedding हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Latest Stories Read the Next Article