यह लेख दिनांक 6-2-1977 मायापुरी के पुराने अंक 125 यादों के दायरे से लिया गया है
आज कभी-कभार एक ही फिल्म में नायक रूप के गाने एक समय में आप तीन-चार आवाजों में सुनते हैं, यह सब इस लिए होता है, कि आज प्ले बेक सिस्टम प्रचलित है, अन्यथा एक जमाना था, कि हीरो और अन्य पात्र अपने गाने अपने आप ही गाते थे, उस समय यह नहीं देखा जाता था, कि गाने वाले की आवाज सुरीली है, या बेसुरी इसके कारण काफी परेशानी भी होती थी, किन्तु इसका समाधान 1935 में कोलकाता की न्यू थियेटर्स कम्पनी ने ढूंढ निकाला जिसका श्रेय रिकार्डिस्ट मुकुल बोस (जो निर्देशक नितिन बोस के भाई हैं, बी.आर. साउंड एण्ड म्यूजिक के इंचार्ज हैं) को जाता है!
उन दिनों जबकि प्ले बैक सिस्टम चालू नहीं था., कमरामैन को काम करने में काफी परेशानी होती थी, बार-बार डिस्टर्ब होता था, शूटिंग के समय कोई कलाकार पूरी लाइन नहीं गा पाता था, जिसके लिए गीत को टुकड़ों-टुकड़ों में फिल्म बन्द करके जोड़ना पड़ता था, किंतु मुकुल बोस ने पूरा गीत पहले रिकार्ड करके गाने वाले कलाकार को केवल होंठ हिलाने का अवसर दिया और इस प्रकार पूरा गीत फिल्म बन्द होने लगा और उनका यह प्रयोग सफल रहा, इस प्रकार न्यूथियेटर्स की फिल्म ‘धूप छांव’ जिसकी कहानी सुप्र सिद्ध कहानीकार स्व.पडित सुदर्शन ने लिखी थी. (जिनके सुपुत्र पंडित गिरीश आज भी फिल्मी लेखक के रूप में फिल्म लाइन में हैं) से हुआ. जिसमें हीरो शायद सहगल थे, जिनका गीत तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग, बड़ा प्रसिद्ध हुआ था गाना पहले रिकार्ड करके पिक्चराइज करने से निर्देशकों को काफी सहायता मिलती है इसका एक किस्सा फिल्म ‘अमर’ की शूटिंग के जमाना का है, स्व.महबूब खान अपनी फिल्म ‘अमर’ की शूटिंग कर रहे थे जिसमें मधुबाला पर वह एक गाना फिल्मा रहे थे. उसकी सिचुएशन कुछ इस तरह थी, कि दिलीप कुमार, मधुबाला के घर में रहने के लिए तैयार नहीं होता और वह उसे गुस्से में छोड़कर चला जाता है, मधुबाला उसे जाता हुआ देखकर गाती है,
“जाने वाले से मुलाकात न होने पाई,
दिल की दिल में ही रही बात न
होने पाई!
सब लोग यह देखकर कि गाना गातेे-गाते मधुबाला बुरी तरह से रो रही है, आश्चर्य में पड़ गए. माहौल बड़ा गंभीर हो गया, मधुबाला को रोना तो था, किन्तु इसकी आशा न थी, कि वह गाने में डूब कर इस प्रकार रोयेगी की असलियत महसूस होने लगेगी, महबूब ने यह देखा तो मन ही मन मुस्करा उठे. क्योंकि इससे उनका सीन बड़ा प्रभावशाली बन रहा था, किन्तु इसका गीत खत्म होने के बाद वह यह देखकर और भी हैरान रह गए कि मधुबाला का दर्द फैलकर सेट पर मौजूद तमाम लोगों में बंट गया है, क्योंकि दिलीप कुमार जो कि संगीत का बड़ा शौकीन है, हाथ से ताल दे रहे थे, और उनका सहायक महरीश का मुंह नौशाद की प्रशंसा करते नहीं थक रहा था नौशाद ने कमाल कर दिया.
“अंग्रेजी संवाद लेखक जुल्फिकार वेलानी कह रहा था-मैं बाजार में आने पर यह रिकार्ड जरूर खरीदूंगा, शकील बदायूंनी जिन्होंने यह गीत कुछ मिनटों में लिखा था और रिकार्ड होने के पश्चात सुन न सके थे. गीत सुनकर इस कदर आत्म विभोर हो गए कि उनकी आंखों में आंसू आ गए और सेट पर रुकने की बजाय वह सीधे घर चले गए!
यह तो याद होगा ही कि ‘अमर’ का यह अमर गीत लता मंगेशकर ने गाया था, और इसमें दिलीप कुमार, मधुबाला के अलावा निम्मी और जयंत ने भी लाजवाब अभिनय किया था. फिल्म बॉक्स आफिस पर सुपर हिट तो नहीं हुई थी, किन्तु वह एक शानदार फिल्म थी, हो सकता है हिट इस लिए न हुई हो कि पहले इसमें मीना कुमारी हीरोइन थी किन्तु कुछ गलत-फहमियों के कारण महबूब खान ने उसे फिल्म से अलग कर दिया था इस लिए शायद उसकी हाय लग गई थी.
आज लता मंगेशकर का नाम स्वर कोकिला के तौर पर विश्व-विख्यात है, किन्तु वह पहले गायिका नहीं बल्कि अभिनेत्री के रूप में आई थी, और राज कपूर को फिल्म ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ में किसी जमाने में-वही हीरोइन का रोल करने वाली थी, क्योंकि कहते हैं कि उसकी कहानी लता के जीवन से मिलती-जुलती है (हालांकि राजकपूर ने इस बात का खन्डन किया है) बात चाहे जो हो किन्तु यह तो सिद्ध हुआ न कि लता में नायिका बनने की क्षमता भी है. और वास्तव में उसने प्रभात
फिल्म कम्पनी को हिन्दीं और मराठी फिल्मों में बतौर अभिनेत्री हो अपना करियर शुरू किया था.
किन्तु गाने का शौक उसे बचपन से था. इसलिए वह प्रायः सेट पर आते-जाते गीत गुन-गुनाया करती थी, एक दिन वहां नौशाद ने लता को गुन-गुनाते हुए सुन लिया, उसकी मधुर आवाज ने नौशाद को बड़ा प्रभावित किया. नौशाद ने तुरंत लता से कहा. तुम फिल्मों में गाना शुरू कर दो. तुम्हारा भविष्य उज्जवल है, और इस प्रकार लता को पाश्र्व गायिका बनने की प्रेरणा मिली. अगर उस दिन नौशाद से लता को प्रेरणा न मिलती तो आज कोकिला कंठी लता शायद अभिनय ही कर रही होती!
लता जी को लेकर एक किस्सा बहुत ही मशहूर है, जिसे आप सब पाठक जरूर जानना चाहिए, जिसे जानकर आप खुद कहेंगे कि लता जी जैसी हस्ती दुनिया में विरले (सबसे अलग) ही होती हैं।
ये है इनसे जुड़ी एक और कहानी
यूं तो लता जी को सुर सम्राज्ञगी कहा जाता है। लेकिन इसके पीछे भी एक कहानी है, तो हुआ यूं उन दिनों जब फिल्में बनना शुरू हो रही थी, और सिनेमा जगत बाॅलीवुड की ओर अपनी गति तेज कर रहा था, तब एक नाम था सेठ चन्दू लाल शाह जोकि फिल्मी दुनिया के बहुत बड़े प्रोड्यूसर हुआ करते है। फिल्मों में उनका सिक्का चलता था।
खेम चंद प्रकाश जोकि उन दिनों के जाने माने म्यूजिक कंपोजर हुआ करते थे। वो सेठ चन्दू लाल शाह के पास एक लड़की की आडियो लेकर उनके पास आए और लड़की की आवाज उन्हें सुनाई। शाह साहब ने जब वो आवाज सुनी तो उन्हें वो आवाज कुछ रास नहीं आई और उन्होंने तुरंत बोल दिया ‘ये आवाज तो बहुत पतली है, कौन सुनेगा इसे’। इस बात से खेम चन्द प्रकाश मायूस हो गए, लेकिन उन्हें इस बात का यकीन था, कि ये आवाज जब तक रेडियो रहेगा और ये फिल्मी दुनिया रहेगी ये आवाज हमेशा सुनी जायेगी। और वो निराश होकर वहां से लौट आये।
कुछ महीने बीते 1949 में फिल्म ‘महल’ रिलीज हुई, जिसके म्यूजिक डायरेक्टर खुद खेम चन्द प्रकाश थे, और इस फिल्म के सभी गीत सुपरहिट हुए लेकिन उनमें सभी गीतों में एक गाना ‘आयेगा...आयेगा आने वाला’ सबसे ज्यादा पसंद किया गया।
रेडियो में ये गीत तहलका मचाने लगा, रेडियो कंपनी के पास उस आवाज के लिए फोन आने लगे! ऐसे रेडियो कंपनी खुद परेशान हो गई कि आखिर किया क्या जाये, बाद में उन्होंने लोगो की रिक्वेट पर म्यूजिक रिकाॅर्ड कंपनी से सिंगर का नाम पूछा, आप यकीन नहीं करेंगे वो नाम था ‘लता मंगेशकर’ जी हां लता मंगेशकर!
वैसे इस दुनिया में कुछ भी हो सकता है। कोई डाॅक्टर बनना चाहता है और बन जाता है इंजीनियर ऐसा ही कुछ लता जी और टुनटुन के साथ भी हुआ था। लता जी फिल्मों में एक्टिंग करना चाहती थी, और टुनटुन सिंगर, वक्त ने ऐसा पासा पलटा कि लता जी बन गई गायिका और टुनटुन बन गई अभिनेत्री।
ऐसी अनेकों बातें हैं लता जी के बारे में बात करने के लिए उसके लिए पन्ने कम पड़ जायेंगे। लता जी की जन्मदिन पर मायापुरी परिवार की ओर से आपको ढेरों बधाई।