यहाँ गिद्ध इस इंतज़ार में हैं कि कोई मरे तो उनकी लाशें नोचने को मिलें By Siddharth Arora 'Sahar' 13 May 2021 | एडिट 13 May 2021 22:00 IST in ताजा खबर फोटोज़ New Update Follow Us शेयर हम उस दौर से गुज़र रहे हैं जहाँ इंसान कौन है और हैवान कौन, ये पहचानना मुश्किल हो रहा है। आज भारत में मात्र दो जगह ही लोग ही देखे जा रहे हैं। एक वो जो अस्पताल के अन्दर हैं, कोरोना से जूझ रहे हैं, ज़िन्दगी के लिए संघर्ष कर रहे हैं और दूसरे हॉस्पिटल के बाहर, अपने परिवार के सदस्य के लिए दवा-ऑक्सीजन और प्लाज़्मा जुटाते मिल रहे हैं। अब मैं तीसरी किस्म की बात करता हूँ, वो दिखते तो इंसान जैसे ही हैं, पर हैं कुछ और ही। खड़े तो वो भी अस्पताल के बाहर ही हैं, बस फ़र्क इतना है कि उन्हें दवा का इंतज़ार नहीं है, उन्हें अस्पताल से लाश निकलने का इंतज़ार है। ये इंसान रूपी गिद्ध हैं। KEVIN CARTER - File Photo आज से करीब 28 साल पहले 1993 में, अफ्रीका के बहुत बुरे हाल थे। सुडान में भुखमरी छाई हुई थी। रोज़ आठ से दस लोग सिर्फ भूख से मरते थे। यूनाइटेड नेशन ने यहाँ हस्तक्षेप करते हुए पूरे सुडान में खाना पहुँचाने की ज़िम्मेदारी ली। अब क्योंकि फंड्स की दिक्कत पहले ही थी, इसलिए कोई नामी मैगज़ीन या अख़बार वालों को बुलाने की बजाए, फ्रीलांसर फोटाग्रफर बुलाए गए। इनमें हुआओ सिल्वा और केविन कार्टर मुख्य थे। केविन इससे पहले वॉर फोटाग्रफी करते थे। उनके लिए ये एक नई चुनौती थी। वो जैसे-तैसे पैसे उधार करके अफ्रीका आए थे। साउथ सुडान पहुँचने से पहले ही अयोड नामक छोटे से गाँव में उनको रुकना पड़ा। वहाँ उन्हें एक बच्चा दिखा जो भूख से निढाल होकर रेत में गिरा पड़ा था। उसके ठीक पीछे एक गिद्ध बैठा था। कार्टर ने दनादन दर्जनों फोटो उस बच्चे और उसके पीछे बैठे गिद्ध की ले लीं। उसके बाद उन्होंने बहुत उत्साहित होकर अपने साथी सिल्वा को बताया कि वह किस तरह की फोटो लेकर आए हैं। Award winning picture of girl and a vulture - click by Kevin carter वह फोटो द न्यू यॉर्क टाइम्स में पब्लिश हुई। उस फोटो को देख जितने भी अख़बार थे सबने उसे फ्रंट पेज पर जगह दी। सैकड़ों एनजीओ ने उस फोटो की बदौलत अपनी फंडरेजिंग कर ली। उसी फोटो के लिए फोटाग्रफी का सबसे बड़ा पुरस्कार, द पुलित्ज़र प्राइस भी केविन कार्टर को मिला। ये एक साल बाद सन 1994 की बात है। ज़ाहिर है कार्टर अवार्ड मिलने से बहुत ख़ुश थे। लेकिन तभी वहाँ बैठे किसी जर्नलिस्ट ने उनसे सवाल पूछ लिया “मिस्टर कार्टर आप बता सकते हैं कि वहाँ कितने गिद्ध थे?” कार्टर के माथे पर बल पड़े और बोले “वहाँ एक गिद्ध था, एक बच्ची थी” लेकिन तभी उस जर्नलिस्ट ने टोककर कहा “नहीं मिस्टर कार्टर, वहाँ दो गिद्ध थे, दूसरे के हाथ में कैमरा था” ऐसे ही अस्पताल के बाहर खड़े वो फोटाग्रफर भी किसी गिद्ध से कम नहीं हैं जो अस्पताल से निकली लाश का पीछाकर, उनके शमशान पहुँचते ही दनादन फ़ोटोज़ खींचने में लग जाते हैं। ये फ़ोटोज़, सुनने में आया है कि दस हज़ार से लेकर पांच लाख रुपए तक बिक रही हैं। ऐसी ही फ़ोटोज़ कुछ विदेशी मैगज़ीन्स के कवर पेज पर छप रही हैं। भारत फेल्ड स्टेट करार दिया जा रहा है। ऐसा जताया जा रहा है कि भारत में सिवाए मौत के और कुछ नहीं हो रहा है। TIME magazine cover image क्या यही पत्रकारिता है? क्या यही जर्नालिस्म में सिखाया जाता है कि लोगों को नाउम्मीद करो? केविन कार्टर से उस इंसिडेंट के बाद सैकड़ों लोगों ने पूछा कि जब वो उस बच्ची की फोटो खींच सकते थे, तो उसे यूएन के कैंप तक पहुँचा भी तो सकते थे, जो मात्र आधा किलोमीटर दूर था। वो क्यों उसे लेकर नहीं गए? केविन ने कई बार कहा कि उन्होंने उस गिद्ध को भगा दिया था। उस बच्ची से दूर कर दिया था पर सवालों की बौछार कम नहीं होती थी। एक ने तो यहाँ तक पूछ लिया था कि “और केविन, किसी बच्चे की लाश के ऊपर चढ़कर ये पुरस्कार पाकर कैसा लग रहा है?” इन सवालों का नतीजा जानते हैं क्या हुआ? केविन कार्टर ने आत्महत्या कर ली। जी हाँ, केविन ये सब सह नहीं पाए लेकिन आज के गिद्ध इतने बेशर्म हो गए हैं कि उन्हें अब किसी के सवालों का, किसी के तानों का कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। सिर्फ फोटाग्रफी वाले ही क्यों, वो गिद्ध भी क्या कम हैं जो आज ऑक्सीजन सिलिंडर स्टॉक किए बैठे हैं और मनमाने दाम में, मनचाहे शख्स को ही दे रहे हैं। इंजेक्शन, मेडिसिन्स, एम्बुलेंस और यहाँ तक की ग्लव्स तक में धांधली करने वाले समाज के वो गिद्ध हैं जिन्हें लाशें नोचने में मज़ा आ रहा है। पर मायापुरी ग्रुप इतना ग़ैरज़िम्मेदार नहीं है कि आपको सिर्फ बुरी ख़बरें ही सुनाए, जी हाँ। समाज ऐसे भले लोगों से अटा पड़ा है जिनकी तस्वीरें ये विदेशी मैगज़ीन वाले रोज़ लगानी शुरु करें तो भी दो साल तक तस्वीरों की कमी नहीं पड़ेगी। रोज़ तीन लाख से ज़्यादा लोग भारत में कोरोना को मात दे रहे हैं। लाखों वालंटियर ऐसे हैं जो अपनी रात की नींद दिन का चैन सब कोरोना पीड़ितों के लिए समर्पित कर चुके हैं। कवि कुमार विश्वास, हीरो सोनू सूद, एक्टर सुनील शेट्टी, एक्ट्रेस सारा अली खान, सीनियर जर्नलिस्ट ज्योति वेंकटेश, राइटर अंकिता जैन, सोशल वर्कर सरगम, सॉफ्टवेयर इंजीनियर संजना (जम्मू कश्मीर से) आदि ऐसे लाखों लोग हैं जो आपका इंसानियत पर से भरोसा नहीं उठने देंगे। कल सौरभ नामक एक लड़के से बात हुई, वह दोपहर 2 बजे से लेकर रात आठ बजे तक मेरे एक रिश्तेदार को प्लाज्मा देने के लिए रुके रहे, इस बीच उनके पिता, जो बाहर गाड़ी में बैठे थे, उन्होंने एक बार भी टोका नहीं, हड़बड़ी नहीं दिखाई। दोनों बाप बेटे करीब 6 घंटे निःस्वार्थ मदद के लिए हाज़िर रहे। शाम को जब प्लाज्मा डोनेट हो गया तो सौरभ के चेहरे पर एक मुस्कराहट थी, एक सुकून था कि कम से कम एक जान बचाने के काम तो वह आ सका। Plasma donor and volunteer Saurabh, Delhi भारत देश ऐसे ही सौरभ से मिलकर बना है, यहाँ गिद्धों की संख्या ज़रूर बढ़ी है पर गिद्ध अभी इतने भी नहीं हुए कि भारत की पहचान इनसे हो सके -सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’ #Sara Ali Khan #covid 19 #JYOTHI VENKATESH #kevin carter हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article