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भारतीय संगीत की दुनिया में वायलिन के सुरों से अपनी अनोखी पहचान बनाने वाले डॉ. एल सुब्रमण्यम एक प्रसिद्ध संगीतकार हैं. उन्होंने न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अपनी कला का प्रदर्शन किया है. कुछ दिनों पहले उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण, प्रदान किया गया. हाल ही में एक संगीत समारोह के दौरान भारतीय शास्त्रीय संगीत की 'पगानिनी' कहे जाने वाले डॉ. एल सुब्रमण्यम से मायापुरी मैगजीन की पत्रकार छवि शर्मा ने बातचीत की. पेश है उनसे बातचीत के कुछ मुख्य अंश.
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कृपया, आप आप हमें अपने बचपन की संगीत यात्रा के बारे में कुछ बताएं.
धन्यवाद! मेरी संगीत यात्रा तब शुरू हुई जब मैं केवल छह वर्ष का था. मेरे पिता स्वयं एक वायलिन वादक थे, और मैंने उन्हीं से प्रेरणा लेकर वायलिन बजाना शुरू किया. इसी कारण हाल ही में मुझे मिला पद्म विभूषण मैं अपने पिता और गुरु लक्ष्मी नारायण को समर्पित करता हूं.
आपने अपनी संगीत यात्रा के लिए वायलिन को ही क्यों चुना?
जैसा कि मैंने बताया, मेरे पिता वायलिन बजाते थे. मैं उनसे ही सीखना चाहता था, इसलिए मैंने वायलिन को चुना.
आप और आपकी पत्नी कविता कृष्णमूर्ति जी दोनों को पद्म विभूषण और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है. आप इस बारे में क्या कहना चाहेंगे?
हाँ, यह हमारे लिए बहुत बड़ा सम्मान और सौभाग्य की बात है. मेरी पत्नी कविता को पद्म भूषण कुछ समय पहले मिला था और मुझे हाल ही में यह सम्मान मिला. हम दोनों ही संगीत के क्षेत्र में सक्रिय हैं.
आपकी संगीत यात्रा के कुछ प्रमुख पड़ाव कौन से रहे हैं?
मैंने 1980 के दशक से विभिन्न तरह की संगीत विधाओं में काम किया है—जैसे कि क्लासिकल, क्रॉसओवर और ग्लोबल म्यूज़िक. मैंने चेम्बर म्यूज़िक भी की है और कई तरह के प्रयोग किए हैं.
आपका पसंदीदा संगीत प्रोजेक्ट कौन-सा रहा है?
हर प्रोजेक्ट मेरे लिए खास है. लेकिन एक खास प्रोजेक्ट था जो न्यूयॉर्क में "इंडियाना के 40वें वर्ष" के उपलक्ष्य में किया गया. इसके अलावा मैंने फ्रांस के प्रसिद्ध जैज़ वायलिनिस्ट स्टीफन ग्रेपेली के साथ भी प्रस्तुति दी थी, जिसे काफी सराहना मिली. साथ ही मेरी पत्नी कविता के साथ भी कई खास प्रोजेक्ट्स किए हैं.
आप पहलगाम आतंकी हमले के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
यह बहुत ही दुखद और चौंकाने वाली घटना थी. ऐसा नहीं होना चाहिए था, लेकिन हो गया. जो लोग खुद को संवेदनशील और जागरूक मानते हैं, उन्हें ऐसी घटनाओं की कड़ी निंदा करनी चाहिए. साथ ही मैं सरकार से यह विनती करूंगा कि इस पर कड़ी कार्रवाई की जाए.
डॉ. एल सुब्रमण्यम के साथ यह बातचीत न केवल संगीत प्रेमियों के लिए प्रेरणास्पद है बल्कि यह भी सिद्ध करता है कि समर्पण, अनुशासन और परिवार से मिली प्रेरणा कैसे किसी कलाकार को ऊँचाइयों तक पहुंचा सकती है. उनकी बातें युवा संगीतकारों के लिए एक मार्गदर्शन के रूप में कार्य करेंगी. 'मायापुरी मैगजीन' उनके उज्जवल भविष्य और संगीत सेवा के लिए उन्हें शुभकामनाएँ देती है.
written by Priyanka Yadav
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