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संगीत जगत में बहुत ही कम समय में किसी नए संगीतकार को बड़ा काम करने का अवसर मिल जाए,ऐसा कम देखा गया है. मगर ऐसा राहुल नायर ने संभव कर दिखाया है. दिल्ली में गैर फिल्मी परिवार में पले बढ़े राहुल नायर ने दिल्ली में रहते हुए कुछ नाटकों को संगीत से संवारा. कुछ रैपर गायकों के लिए संगीत की धुनें बनायी. फिर मुंबई पहुंचकर अनुपम खेर अभिनीत फिल्म "एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' और टीसीरीज की फिल्म "यारियां 2" के लिए बैकग्राउंड म्यूजिक दिया. इसी बीच फिल्म 'बेखुदी' के गीत 'मेहरवान' को अपने संगीत निर्देशन में जुबिन नौटियाल से गवाया था. इन दिनों राहुल नायर निर्माताद्वय धर्मेश संगानी व हरीश संगानी की अमित कसारिया निर्देशित फिल्म "लव स्टोरी ऑफ़ नाइनटीज" के सभी आठ गीतों को अपने संगीत से संवार रहे हैं. इस फिल्म के लिए राहुल नायर अब तक पाकिस्तानी गायक आतिफ असलम के अलावा उदित नारायण, रेखा भारद्वाज व अमित मिश्रा सहित कई दूसरे गायको को गवाया है.
प्रस्तुत है मायापुरी के लिए संगीतकार राहुल नायर से हुई बातचीत के अंष...
आपको संगीत का चस्का कैसे लगा?
मेरी जड़ें तो केरला में हैं. मगर मेरा जन्म व परवरिश दिल्ली में एक गैर फिल्मी परिवार में हुई है. लेकिन मेरे माता पिता ने मुझे हमेशा संगीत, डांस आदि सीखने के लिए प्रेरित करते रहे हैं. मुझे याद है कि जब मैं सातवीं या आठवीं कक्षा में पढ़ रहा था, तभी मेरे दिमाग में आ गया था कि मुझे संगीत के क्षेत्र में ही कुछ करना है. जब मैं नौवीं कक्षा में पहुंचा, तो तय किया कि मुझे संगीत को ही करियर बनाना है. पुराने गाने सुनने का शौक रहा. संगीत व डांस की ट्रेनिंग चल रही थी. सब कुछ अपनी रफ्तार में चलता रहा और मैं यहां तक पहुंच गया.
संगीत को करियर बनाना तय करने के बाद किस तरह की ट्रेनिंग ली?
मैने श्री आनंद सेन गुप्ता जी से हिंदुस्तानी क्लासिक सीखा. टेलीस्कोप म्यूजिक से मैने पियानो बजाना सीखा. और कर्नाटक संगीत सीखा है. उसके बाद संगीत निर्देशन के लिए मैने साउंड इंजीनियरिंग का कोर्स किया.
बॉलीवुड में संगीतकार बनने के लिए दिल्ली से मुंबई आना कब हुआ और किस तरह का संघर्ष करना पड़ा?
मेरा स्ट्गल तो काफी खूबसूरत रहा. जब मैं मुंबई आया तो मेरा यहां पर कोई नही था. मुंबई में मैं अपने एक मित्र योगेष जी से मिला, उन्होने मुझे बताया कि मुझे किस तरह लोगो से मिलना जुलना होगा. एक संघर्श्ता संगीतकार की तरह मैने भी कई निर्माता निर्देषक व संगीतकारों के भी दरवाजे खटखटाए. लोगो ने काम नही दिया और कहा कि मेरे अंदर कमी है. पर अफसोस किसी ने यह नही बताया कि मेरे अंदर क्या कमी है? पर मैने खुद अपने हिसाब से अपनी कैमिया को तलाश और उन कमियों को दूर किया. इसी के साथ मेरी समझ में आया कि मुझे चाहे जितनी सफलता मिल जाए, पर सीखना बंद नहीं करना है. मैने तय कर लिया है कि मैं हर दिन कुछ नया सीखता रहूँगा. यदि सीखना बंद किया, तो तनाव बढ़ेगा और काम नही होगा.
संगीत जगत में करियर कैसे शुरू हुआ था?
मैंने दिल्ली में रहते हुए ही संगीत देने का काम शुरू कर दिया था. दिल्ली में रहते हुए मैं नाटकों में संगीत दिया करता था. रैपरों के गीतो के लिए संगीत दिया करता था. मुंबई पहुंचने के बाद भी मैंने रैपरों के लिए पांच पांच सौ रूपए में सगीत बनाया है. मुझे यह काम बड़ा फैशीनेटिंग लगता था. इस जोनर के लिए संगीत देते हुए मैने बहुत कुछ सीखा था. फिर मैने 'होंडा','कैफ' जैसी काफी एड फिल्में की हैं. एड फिल्मों के लिए संगीत रचना करते हुए मैने 'क्विक म्यूजिक' बनाना सीखा. हर एड फिल्म में अलग तरह का संगीत होता है. मैने 'द मालाबार गोल्ड' का एड किया. तो इसमें हमें जेवर के अहसास को पिरोना था. यह सब करते हुए मैं अपना मौलिक संगीत, अपने संगीत की युनिकनेस ढूढ़ता रहा, जो कि समझ में आया. अब मैं कुछ ऐसा 'साउंड' बनाता हूँ,जो कि लोगों को पसंद आता है.
फीचर फिल्मों में कब शुरूआत हुई?
मैने सबसे पहले अनुपम खेर व अक्षय खन्ना के अभिनय से सजी फिल्म "एक्सीडैंटल प्राइम मिनिस्टर' फिल्म के लिए बैकग्राउंड म्यूजिक किया. इस फिल्म के संगीतकार सुमित सेठी थे, मैने उन्ही के अंडर में इसके बैकग्राउंड संगीत का निर्माण किया था. यह मेरे लिए काफी रोचक यात्रा थी. क्योंकि यह पूरा संगीत लाइव रिकार्ड हुआ था. इसमें मुझे काफी कुछ सीखने को मिला. फिर कुछ एड फिल्में की. मैने कुछ अन्य फिल्मों के लिए गाने बनाए, मुझे पैसे भी मिल गए,मगर मेरा काफी काम बाजार में नही आया, जिसके चलते मेरे करियर में जो प्रगति होनी चाहिए थी,वह नही हुई. मैने काफी समय पहले एक फिल्म "बेखूदी" किया था,जिसमें मैने एक गाने 'मेहरवां' को संगीत से संवारा था,जिसे मैने जुबिन नौटियाल से गवाया था. यह गाना काफी लोकप्रिय हुआ था. हाल ही मैंने टीसीरीज की फिल्म "यारियां 2" की थी. इसका भी बैकग्राउंड म्यूजिक मैने 'जाम 8' के साथ मिलकर किया था. उसके बाद मुझे निर्माता धर्मेश सिंघानी व हरीश सिंघानी की फिल्म "लव स्टोरीज आफ नाइनटीज" के सभी गानों को संगीत से संवारने का मौका मिला, जिसका काम अभी जारी है. इसके अलावा मेरी सात अन्य फिल्में भी आने वाली हैं.
फिल्म "बेखुदी" के गाने 'मेहरवान' को जुबिन नौटियाल से गंवाने के क्या अनुभव हुए थे?
मैने यह फिल्म चार वर्ष पहले की थी. उन दिनों जुबिन नौटियाल का भी करियर शुरूआती दौर में ही था. तो हम लोगों ने दोस्त की तरह इस गाने को बनाया था. जब यह गाना बाजार में आया, तो जुबिन नौटियाल स्टार बन गए. जुबिन नौटियाल के साथ काम करते हुए मैंने एन्जॉय किया था. जुबिन ने मुझे गीत की लाइन को ठीक करने में मदद की थी. उसके बाद जुबिन के साथ दूसरा गाना करने का अवसर नहीं मिला, पर मैं उनके साथ संगीत बनाना चाहॅूंगा.
फिल्म 'लव स्टोरी ऑफ़ नाइनटीज' से जुड़ना कैसे संभव हुआ?
फिल्म के निर्देषक अमित कसारिया और निर्माता धर्मेश संगानी और हरीश संगानी हैं. निर्माता को कहीं से मेरे बारे में पता चला था, उन्होंने मुझे बुलाया.हमारी मीटिंग हुई, जिसमें निर्देषक भी मौजूद थे. बातचीत लंबी चली और मेरा चयन हो गया. फिल्म बहुत अच्छी बनी है. फिल्म का सब्जेक्ट भी कमाल का है. मुझे संगीत की धुने बनाने के लिए पुरी छूट दी गयी.
फिल्म "लव स्टोरी ऑफ़ नाइनटीज" को लेकर क्या कहना चाहेंगें?
इस फिल्म में आठ गाने हैं. मैने इन आठों गानों की धुने बनाते हुए अपनी सारी ख्वाहिषें पूरी की है. जब मुझे फिल्म का नाम "लव स्टोरी ऑफ़ नाइनटीज" बताया गया,तो मुझे लगा कि इसके लिए तो मुझे नब्बे के दशक के गाने बनाने पड़ेंगें. पर आज की तारीख में मैं नब्बे के दशक के गाने बनाकर नहीं दे सकता. क्यांेकि मेरा मानना है कि हर गाना वीज्युअली मैच होना चाहिए. पर जब इस फिल्म को मैने समझा, तो पता चला कि यह फिल्म बताती है कि नब्बे के दशक का प्यार कैसा था. उस हिसाब से इस फिल्म में एक गाना मैने उदित नारायण जी से गवाया है,जो कि मेरा बहुत ही ज्यादा फेवरेट गाना है. मैं खुद को भाग्यषाली समझता हॅूं कि मुझे उदित नारायण जी के साथ गाना करने का अवसर मिला. उदित नारायण जी ने:नेक्स्ट लेवल' का गाया है. जब वह गाना रिकॉर्ड कर रहे थे, तब मैं उन्हें एकटक देख रहा था. उनकी गायकी में जो जादू है, जो खनक है, जिस अंदाज से खुषमिजाज होकर वह गाते हैं, वह कमाल का है. उदित जी ने अपने इस गाने में जो रंग दिए है,उसने मुझे उनके संगीत का कायल बना दिया. इस गाने को रिकॉर्ड करने के बाद उदित जी ने मुझे एक प्यारा सा कमेंट दिया. इस गाने को गाने के बाद उन्हे अतीत में स्वरबद्ध अपने एक गीत वाली फीलिंग आयी. उन्हे मेेरे काम करने की स्टाइल पसंद आयी. उदित नारायण जी का गायकी में कोई सानी नही है. इसके अलावा इसमें रेखा भारद्वाज से गवाया. उनकी गायकी में आत्मा है. उनकी गायकी में भी मैजिक है. एक गाना अमित मिश्रा ने गाया हैं. पाकिस्तानी गायक आतिफ असलम से भी एक गाना गवाया है. अमित बिस्वा ने एक काफी कठिन गीत को गाया है. अमित ने अपनी गायकी से इसे एक एनर्जी वाला गाना बना दिया. इस फिल्म में हर गायक के साथ मेरा रिष्ता प्रगाढ़ हुआ है. याषिका सिक्का,षिवम कटोच, अल्ताफ साजुद्दीन,दिया व कमल ने भी गाया है. तो इस फिल्म में मैंने स्थापित गायकों के साथ ही नए गायकों से भी गवाया है. मैंने हर गाने के लिए गायक चुनते समय इस बात पर गौर किया कि यह गाना किस कलाकार पर फिल्माया जाएगा,उस कलाकार को ध्यान में रखते हुए गायकों का चयन किया. हर गायक ने मुझे पूरा सहयोग दिया.
फिल्म के साथ पाकिस्तानी गायक आतिफ असलम को कैसे जोड़ा?
पहले हमने फिल्म के निर्माताओं से इस बारे में बात की. फिर मैंने आतिफ असलम के मैनेजर से संपर्क कर उसे फिल्म के बारे में विस्तार से बताया और उसे गाने के बारे में भी बताया. कुछ ही दिन में आतिफ की तरफ से जवाब आ गया कि वह इस गाने को अपनी आवाज देंगे. और उन्होने हमारी फिल्म के लिए गाना गाया. आतिफ असलम को गवाना सुखद अहसास रहा.
गायकों के साथ काम करने के अनुभव?
रेखा मैम (रेखा भारद्वाज) ने कहा कि पहले तुम इसका टैक रिकॉर्ड करो, फिर मेरी आवाज में गाना रिकॉर्ड करो. मैं गाने का अरेंजमेंट कर रहा था, उससे पहले ही उन्होंने गाना रिकॉर्ड कर लिया.उन्होने गीत में जो ग्रामर की गलतियां थीं , उन्हें ठीक किया. आतिफ असलम के साथ भी अच्छे अनुभव रहे. हर गायक ने मुझे अपना इनपुट दिया.
किसी भी फिल्म के लिए संगीत देने से पहले स्क्रिप्ट पढ़ना कितना जरुरी समझते हैं?
देखिए, मैं तो स्क्रिप्ट की मांग करता हॅूं. वैसे भी मुझे बचपन से पढ़ने का शौक रहा है. स्क्रिप्ट पढ़ने से कहानी व किरदार किस बात को दर्षक तक ले जा रहे हैं, यह समझ में आता है, जो कि संगीत तैयार करते समय मददगार होता है. स्क्रिप्ट पढ़कर मैं एक ईमेज बनाता हॅूं. उसके बाद जब निर्देषक नरेषन देता है, वह अपना वीजन बताता है, तो संगीत की धुन बनाना हमारे लिए काफी आसान हो जाता है. लेकिन सत्तर प्रतिषत मामले में तो स्क्रिप्ट नही मिलती. सीधे गाने की लाइनें आ जाती हैं कि इस पर धुन बना दो. तो हम हर स्थिति में अपनी तरफ से बेहतर काम करने का प्रयास करते हैं.
इन दिनों ज्यादातर गानों में साउंड इतना तेज होता है कि उसके बोल साफ साफ सुनाई नही देते?
इन दिनों हर कोई कंटेंट को हिट कराने में लगा हुआ है, जिसके चलते 'एवरग्रीन' चीज मिस हो रही है. पहले के गाने की धुन लोगों को पसंद आ जाती थी और गाना हिट हो जाता था. आज भी कोई भी संगीतकार खराब गाना तो नही बनाना चाहता.
सोशल मीडिया अपने अंदाज में हर चीज को सफल बताती है,जो कि संगीत को नुकसान पहुंचा रहा है?
सोशल मीडिया के फायदे व नुकसान दोनों हैं. आज गाना रिलीज होते ही सोशल मीडिया के माध्यम से एक मिनट के अंदर करोड़ों लोगों तक पहुंचाया जा सकता है. नुकसान यह है कि सोशल मीडिया के चलते सब कुछ चल जाता है. अच्छी चीज न हो तो भी चल जाती है. पर सोशल मीडिया की सफलता से लंबी रेस का घोड़ा बनना मुष्किल है.
आप किनको सुनना पसंद करते हैं?
मुझे ए आर रहमान को सुनना पसंद है. पहले जब मैं काम मांगने जाया करता था, तो लेाग मुझसे कहते थे कि 'तुम दक्षिण वाले रहमान वाला फील दे रहे हो. उसी तरह का बनने की कोशिश कर रहे हो. 'इस वजह से मुझे कई बार रिजेक्ट होना पड़ा. इससे मुझे समझ में आया कि मुझे किस बात पर 'फोकस' करना है. फिर मैने साउंड को बदलना शुरू किया. इसके अलावा मुझे षास्त्रीय संगीत बहुत पसंद है. अमित त्रिवेदी के गाने बहुत पसंद है.
नया क्या कर रहे हैं?
वेब सीरीज आ रही है,जिसका नाम है- 'भयमकाल'. यह मर्डर मिश्त्री थ्रिलर है. इसका निर्माण एसबीआई इंटरटेनमेंट ने किया है. श्रिया वडानी निर्माता है. इसके नायक हितेन तेजवानी हैं. इसके अलावा भी पांच फिल्में कर रहा हॅूं. मगर इनकी घोष्णा पहले निर्माता कर दे, उसके बाद मैं बात करुं,तो बेहतर होगा.
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