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राजेश तैलंग (Rajesh Tailang), शीबा चड्ढा (Sheeba Chaddha), तान्या शर्मा (Tanya Sharma) और आदित्य शुक्ला (Aditya Shukla) जैसे शानदार कलाकारों से सजी फैमिली ड्रामा सीरीज ‘बकैती’ (Bakaiti) ZEE5 पर रिलीज हो चुकी है. सादगी से बुनी यह कहानी कटारिया फैमिली के इर्द-गिर्द घूमती है, जो जीवन के तमाम उतार-चढ़ाव के बीच एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ती. आज के दौर में जब दर्शक दिल को छू जाने वाली, जमीन से जुड़ी कहानियों को ज़्यादा पसंद कर रहे हैं, ‘बकैती’ उसी भावनात्मक जुड़ाव को बखूबी पेश करती है. अमित गुप्ता द्वारा निर्देशित इस सीरीज को लेकर दर्शकों की प्रतिक्रिया बेहद सकारात्मक रही है.
‘बकैती’ के प्रमुख कलाकारों राजेश तैलंग, शीबा चड्ढा और आदित्य शुक्ला ने हाल ही में एक इंटरव्यू में हिस्सा लिया. इस बातचीत में उन्होंने अपने किरदारों, शूटिंग अनुभव और इस कहानी से जुड़े अपने व्यक्तिगत जुड़ाव के बारे में खुलकर बात की. पेश हैं उस इंटरव्यू के कुछ खास अंश...
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वेब सीरीज 'बकैती' में आपने जो किरदार निभाए हैं, उनके बारे में कुछ बताइए — जैसे उनका स्वभाव, सोच और आपके लिए वह किरदार क्यों खास रहा?
राजेश तैलंग- मैं ‘बकैती’ सीरीज में एक एडवोकेट का किरदार निभा रहा हूँ जिसका नाम है संजय कटारिया. वैसे तो मुझे अक्सर गंभीर किरदार मिलते हैं. लेकिन कटारिया एक अलग दुनिया का कैरेक्टर है सीमित सोच वाला, खुद को ही सही मानने वाला. वो चीज मुझे दिलचस्प लगी.
शीबा चड्ढा- इस शो में मेरे किरदार का नाम है सुषमा, जो एक हाउसवाइफ है. मुझे यह किरदार इसलिए पसंद आया क्योंकि वो घर-गृहस्थी से आगे सोचती है और फाइनेंशियली इंडिपेंडेंट बनना चाहती है, जिसके लिए उसके बच्चे उसे प्रोत्साहित करते हैं.
आदित्य शुक्ला- मेरे किरदार का नाम भरत है पर उसे सब ‘बंटी’ बुलाते हैं. बंटी बहुत फनी है, मुंहफट है, और अपनी बहन को खूब परेशान करता है. मुझे यह किरदार बहुत रिलेटेबल लगता है.
जब आपने एक्टिंग को करियर बनाने का फैसला किया, तो परिवार की प्रतिक्रिया कैसी रही? क्या उन्होंने शुरू से समर्थन किया या कोई हिचकिचाहट थी?
राजेश तैलंग- मुझे घर में एक्टिंग को लेकर शुरू से ही बहुत समर्थन मिला. जैसे किसी घर में कोई बच्चा इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा हो और अगर वह मेहनत न करे तो उसे डांट पड़ती है, वैसे ही मेरे साथ भी हुआ. मेरे परिवार ने एक्टिंग को मेरे करियर के रूप में पूरी तरह स्वीकार किया और मुझसे यही उम्मीद की कि मैं इसमें पूरी मेहनत और लगन दिखाऊं. उनका यह सकारात्मक रवैया ही मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा देता रहा.
क्या कभी ऐसा हुआ है कि लोग आपको एक खास नजरिए से देखते हों, लेकिन आपसे मिलने या बात करने के बाद उनकी धारणा पूरी तरह बदल गई हो?
शीबा चड्ढा- लोग सोचते हैं कि मैं बहुत सख्त और स्ट्रिक्ट हूँ. लेकिन मिलकर कहते हैं कि “अरे, ऐसा तो नहीं था.” वहीं अगर मैं आपको राजेश जी के बारे में बताऊं तो लोग इनको बहुत ही सीरियस टाइप का समझते हैं लेकिन असल में बिल्कुल उल्टा हैं.
लोग ऐसा क्यों कहते हैं कि कॉमेडी करना सबसे चुनौतीपूर्ण अभिनय शैली (genre) होती है?
राजेश तैलंग- जी हां, कॉमेडी सबसे मुश्किल जॉनर है क्योंकि मुझे लगता है कि कॉमेडी फेक नहीं की जा सकती और उसका रिजल्ट भी आपको तुरंत मिलेगा. आप सीरियस होना थोड़ा फेक कर सकते हो और उसे म्यूजिक से कवर भी किया जा सकता है. कॉमिक टाइमिंग आपकी अच्छी होनी चाहिए. मैंने एक चीज नोटिस की है कि जो भी अच्छे कॉमेडियन होते हैं, उनका म्यूजिक सेंस बहुत अच्छा होता है.
जब आप सेट पर इतने सीनियर एक्टर्स के बीच होते हैं, तो अपने काम को लेकर भरोसे और वैलिडेशन के लिए आप किस पर सबसे ज़्यादा ध्यान देते हैं—खुद की संतुष्टि, डायरेक्टर की प्रतिक्रिया, या साथ काम कर रहे कलाकारों की राय?
आदित्य शुक्ला- जी, इतने बड़े एक्टर्स के साथ काम करना मेरे लिए एक बहुत बड़ी बात है, और ये मेरा उनके साथ पहला बड़ा रोल है. अगर वैलिडेशन की बात करूं तो मैं अपने भैया से फीडबैक लेता था और सेट पर अमित सर बहुत गाइड करते थे. कई बार मुझे खुद को लेकर डाउट होता था, तो उनसे राय लेता था. मुझे मेरे एक्ट को लेकर फीडबैक मिले हैं, तो मैं कोशिश करूंगा कि मैं उन्हें भविष्य में अच्छे से करूं.
जब आप बड़े हो रहे थे, तो क्या आपके घर में यह सोच थी कि एक्टिंग एक ठीक करियर विकल्प नहीं है और आपको किसी दूसरे पेशे में जाना चाहिए?
शीबा चड्ढा- हम रेगुलर मिडल क्लास बिजनेस फैमिली से थे. एक्टिंग तो बहुत दूर की बात थी. लेकिन हमारी फैमिली में कभी शादी या लड़कियों को घर तक सीमित रखने की सोच नहीं थी. मेरी मां वर्किंग वुमन थीं और मुझे बहुत कम उम्र से ही पता था कि मुझे फाइनेंशियली इंडिपेंडेंट बनना है.
क्या आप अपने सीन की शूटिंग के बाद मॉनिटर पर देखकर यह परखते हैं कि आपने कैसा परफॉर्म किया?
राजेश तैलंग- मैं मॉनिटर बहुत कम देखता हूँ — सिर्फ टेक्निकल चीज़ें चेक करने के लिए देख लेता हूँ, वरना ज़रूरत महसूस नहीं होती. एक बार एक थिएटर एक्टर ने बड़ी अच्छी बात कही थी कि थिएटर में हम खुद को कभी नहीं देख पाते, फिर भी हमें अंदर से पता होता है कि हमने परफॉर्मेंस कैसी दी है. उसी तरह सेट पर भी एक एहसास होता है कि सीन कैसा गया है, इसलिए बार-बार देखने की ज़रूरत नहीं पड़ती.
आप इंस्टाग्राम पर रील्स भी बनाते हैं—क्या छोटे वीडियो कंटेंट का यह अनुभव लंबे फॉर्मेट के प्रोजेक्ट्स में आपकी परफॉर्मेंस या तैयारी में किसी तरह से मदद करता है?
आदित्य शुक्ला- हां, रील्स बनाने से मेरी शर्म कम हुई. पर शॉर्ट फॉर्म और लॉन्ग फॉर्म में बहुत फर्क होता है. शॉर्ट फॉर्म में सब आप खुद करते हो एक्टिंग से लेकर शूटिंग और लाइटिंग तक. लेकिन सेट पर सिर्फ एक्टिंग होती है. वहां डिपार्टमेंट्स बंटे होते हैं और मुझे एक्टिंग पर ही फोकस करना होता है.
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