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गुलज़ार... ये नाम सुनते ही दिल में एक अलग सी नरमी आ जाती है। कहानियों, शेरों और गानों की वो खुशबू याद आती है जो ज़ुबान से नहीं, दिल से निकलती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिन गुलज़ार साहब की कलम ने इतनी फिल्में और नग़मे लिखे, वो दरअसल *सिनेमा में आना ही नहीं चाहते थे*? जी हां, उनका पहला प्यार फिल्मों से नहीं, किताबों से था। (91-year-old Gulzar active lifestyle)
व्हिस्लिंग वुड्स में ‘Celebrate Cinema 2025’ के मौके पर 91 साल के गुलज़ार साहब ने खुद ये बात बताई कि उन्हें तो बस किताबों से मोहब्बत थी। वे कहते हैं, "मैं कभी सिनेमा में नहीं आना चाहता था और न ही सिनेमा के लिए लिखना चाहता था। मुझे कोई कहता भी तो मैं इसके लिए अक्सर मना कर देता था। मुझे किताबों से प्यार था और मैं साहित्य पढ़ता था।" उन्होने कहा, "मुझे साहित्यिक लघु कथाओं की किताबों पर अपना नाम देखना ज्यादा पसंद था। हाँ, मैं सुंदर फ़िल्में देखता था, लेकिन मुझे सिनेमा से उतना लगाव नहीं था और ना ही मैं निर्देशक बनना चाहता। लेकिन फिर सिनेमा के लिए लिखने की रुझान तब शुरू हुआ जब मैं सिनेमा में आया। " (Gulzar Sahab interview 2025)
बता दें कि गुलज़ार ने "रावी पार", "त्रिवेणी", "बोस्की का पंचतंत्र", "एक्चुअली... आई मेट देम: अ मेमॉयर" जैसी बहुचर्चित किताबें लिखी हैं।
गुलज़ार साहब का असली नाम संपूरण सिंह कालरा है। उनका जन्म हुआ था विभाजन से पहले के पंजाब में। बचपन से ही पढ़ने-लिखने का शौक था, लेकिन ज़िंदगी ने उन्हें फिल्मी रास्ते पर ला दिया। ये सफर भी बहुत फिल्मों जैसा ही था। कहा जाता है कि गुलज़ार साहब को फिल्मों से जोड़ने वाले उनके दोस्त देबू सेन और गीतकार शैलेन्द्र थे। शैलेन्द्र ने ही उन्हें बिमल राय से मिलवाया था – वही बिमल राय जिन्होंने ‘बंदिनी’ बनाई थी।
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‘बंदिनी’ फिल्म के गाने “मोरा गोरा अंग लै ले” ने गुलज़ार को फिल्मी दुनिया में पहचान दिलवाई। वो भी तब जब उस दौर में सचिन देव बर्मन और शैलेन्द्र जैसे दिग्गज मौजूद थे। कहते हैं, किसी कारण वश उस वक्त शैलेन्द्र, बर्मन दा के साथ काम नहीं कर रहे थे और ऐसे में गुलज़ार को गीत लिखने का ऑफर मिला । खुद शैलेन्द्र ने बिमल राय को सलाह दी कि “इस नौजवान को मौका दीजिए।” और बाकी तो इतिहास है।
गुलज़ार साहब और बिमल रॉय की यादगार मुलाकात: वैष्णव गीत की कहानी
गुलज़ार साहब ने महान फ़िल्म मेकर बिमल रॉय से अपनी मुलाक़ात को याद करते हुए कहा कि वे अपने एक जिगरी दोस्त देबू सेन, (जो इस महान फ़िल्म निर्माता निर्देशक के सहायक थे) और साथ ही प्रसिद्ध गीतकार शैलेंद्र के कहने पर बिमल रॉय से मिले थे। (Gulzar and AR Rahman collaboration)
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गुलज़ार साहब बताते हैं कि जब बिमल राय से पहली बार मिले थे, तो बिमल दा ने कहा कि ये नौजवान कैसे वैष्णव काव्य, (ईश्वर के प्रति प्रेम पर केंद्रित एक भक्ति रूप है) गाने लिख पाएगा? इसे शुध्द हिंदी नहीं आएगी, जिसका नाम ही गुलज़ार है, उसे वैष्णव गीत लिखना कैसे आएगा। लेकिन जब बिमल दा को बताया गया कि उनका असली नाम संपुरण है और उन्हे शुद्ध हिंदी के साथ साथ बंगाली भी आती है तो बिमल दा ने पूछा, “तुम लिखेगा?” बिमल रॉय जैसे दिग्गज के अचानक इस प्रश्न पर हड़बड़ा कर युवा गुलज़ार ने 'हां' तो कह दिया लेकिन फिर सोच में पड़ गए। गुलज़ार साहब ने कहा, – “मैंने हां कह तो दी, पर उस वक्त समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या कर बैठा हूं।” बाद में सचिन दा ने धुन बनाई और उस पर गुलज़ार साहब ने लिख दिया वो गीत 'मोरा गोरा अंग लई ले, मोहे शाम रंग दई दे " और उस गीत ने एक इतिहास रच दिया जो आज भी लोगों के दिल में बसा है। (Legendary Bollywood lyricist insights)
समय गुज़रता गया और गुलज़ार का नाम हिंदी फिल्मों की शायरी और सादगी का दूसरा नाम बन गया। “कोशिश”, “आंधी”, “परिचय”, “माचिस”, “हु तू तू” जैसी फिल्मों ने एक अलग दौर बनाया। उन्होंने सिनेमा को सिर्फ पर्दे की कहानी नहीं बनाया बल्कि उसे एक अहसास में बदला।
सेशन के दौरान जब उनसे पूछा गया कि 91 वर्षीय उम्र में भी वे इतने एक्टिव कैसे हैं, तो उन्होंने बड़े सादगी से जवाब दिया – “मैं बस वक्त के साथ चल रहा हूं। मैं जो अपने गुरुओं से सीखा वो ही जी रहा हूं, किसी को सिखाने नहीं आया हूं। नई पीढ़ी से सीखना मुझे अच्छा लगता है।” उन्होंने ये भी कहा कि “मैं कोशिश करता हूं कि वक्त के कदम से कदम मिलाकर चलूं।” (Indian music global recognition)
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गुलज़ार साहब ने बातों ही बातों में बताया कि आज इंडियन म्यूज़िक की पहचान दुनिया में बढ़ी है और इसका बड़ा श्रेय है ए.आर. रहमान को। “पहले हमारी फिल्में जब दूसरे मुल्कों में जाती थीं, तो उनके गाने हटा दिए जाते थे। अब लोग कहते हैं कि गाने भी डालो। रहमान ने म्यूज़िक को नया चेहरा दिया, नई पहचान दी।”
रहमान और गुलज़ार की जोड़ी ने “जय हो”, “छैंया छैंया” और “तेरे बिना” जैसे गाने दिए हैं जो आज भी भारतीय म्यूज़िक की शान हैं। (Jai Ho Chaiyya Chaiyya Tere Bina songs)
कार्यक्रम में फिल्ममेकर सुभाष घई, गीतकार कौसर मुनीर और निर्देशक सलीम आरिफ भी मौजूद थे। उन्होंने गुलज़ार के साथ “Poetry and Music” पर खुलकर बातचीत की। घई ने इस मौके पर व्हिस्लिंग वुड्स में नया कोर्स शुरू होने की घोषणा की — “Poetry और Literature” का — जिसे गुलज़ार, कौसर मुनीर और सलीम आरिफ ने मिलकर लॉन्च किया।
गुलज़ार साहब की जुबान में जब आप सुनते हैं “मैं आज भी सीख रहा हूं,” तो यकीन नहीं होता कि ये वही आदमी है जिसने भारत के हर दौर की सिनेमा को अपनी कलम से रौशन किया। लेकिन यही तो उनकी खूबी है — सीखने का जज़्बा, वक्त के साथ कदम मिलाने की कोशिश और ज़िंदगी को एक कविता की तरह जीने की कला। (Bollywood music evolution Gulzar)
आज जब बहुत से लोग शॉर्टकट में सपने पूरे करना चाहते हैं, गुलज़ार हमें याद दिलाते हैं कि मोहब्बत चाहे किताबों से हो या सिनेमा से, अगर सच्ची हो — तो मंज़िल खुद चलकर आती है। उनका जीवन यही सबक देता है कि कलाकार कभी खत्म नहीं होता, वो हर दौर के साथ एक नई कहानी में ढल जाता है।
#RanbirKapoor was seen arriving at the Celebrate Cinema 2025 event at Whistling Woods where he'll be giving a tribute to #RajKapoor and #GuruDutt.#FilmfareLens#Celebspic.twitter.com/h8q33xUXmz
— Filmfare (@filmfare) October 9, 2025