Amar Prem: वो प्रेम कहानी जो कालचक्र को भी हरा देती है

28 जनवरी 1972 को भारतीय सिनेमा के पर्दे पर एक ऐसी प्रेम कहानी सजी थी, जिसकी धुन आज भी लोगों के दिलों में गूंजती है. वो फिल्म थी शक्ति सामंत निर्देशित "अमर प्रेम". ये सिर्फ एक फिल्म नहीं थी,

Amar prem
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28 जनवरी 1972 को भारतीय सिनेमा के पर्दे पर एक ऐसी प्रेम कहानी सजी थी, जिसकी धुन आज भी लोगों के दिलों में गूंजती है. वो फिल्म थी शक्ति सामंत निर्देशित "अमर प्रेम". ये सिर्फ एक फिल्म नहीं थी, बल्कि वो अमरता का गीत था, जो समाज के बनाए बंधनों को तोड़कर, निर्मल प्रेम के सार को दर्शाता था.

फिल्म की कहानी पुष्पा (शर्मिला टैगोर) नाम की एक तवायफ और आनंद (राजेश खन्ना) नाम के एक युवा वकील के इर्द-गिर्द घूमती है. जिंदगी के तूफानों से टूटी पुष्पा समाज की नजरों में गिर चुकी मानी जाती है, जबकि आनंद एक आदर्शवादी युवा है. परस्पर विपरीत इन दोनों जिंदगियों का टकराना ही असल कहानी का आगाज है.

Anand Babu (Rajesh Khanna)

आनंद पुष्पा की दयालु प्रकृति और संघर्षपूर्ण अतीत से प्रभावित होता है.

उनके बीच धीरे-धीरे एक अनोखा रिश्ता पनपता है, जहां प्रेम किसी शारीरिक आकर्षण से नहीं, बल्कि आत्मीय जुड़ाव से परिपूर्ण है. ये रिश्ता समाज के ठेकेदारों की आंखों में खटकता है. मगर आनंद और पुष्पा, अपने प्रेम की पवित्रता के बल पर हर तूफान का सामना करते हैं.

"अमर प्रेम" की खूबसूरती सिर्फ कहानी में ही नहीं, बल्कि उसके संगीत में भी है. आर.डी. बर्मन का संगीत फिल्म की शान है, "चलते-चलते" और "कुछ तो लोग कहेंगे" जैसे ट्रैक सदाबहार क्लासिक्स बने हुए हैं, जो फिल्म की भावनाओं को पूरी तरह से दर्शाते हैं. लता मंगेशकर और किशोर कुमार की सुरीली आवाज़ आज भी कानों में रस घोलते हैं.

Shakti Samanta

इस फिल्म से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी ये है कि रिलीज़ के पहले इसे काफी आशंकाओं से देखा जा रहा था. समाज में तवायफ के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण को लेकर फिल्म विवादों में घिर गई थी. लेकिन रिलीज़ के बाद फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तो धमाका किया ही, साथ ही समाज की सोच को भी बदलने का काम किया. लोगों ने पुष्पा के दर्द को समझा, उसके त्याग को सराहा और आनंद के साहस की प्रशंसा की.

R.D. Burman

आज 52 साल बाद भी "अमर प्रेम" उतनी ही ताज़ा और प्रासंगिक है. ये फिल्म हमें याद दिलाती है कि प्रेम किसी जाति, धर्म या सामाजिक बंधन का बंधक नहीं होता. वो निर्मल, पवित्र और कालातीत होता है. यही वजह है कि "अमर प्रेम" भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक सुनहरा अध्याय है, जो कभी भुलाया नहीं जा सकता.

तो दोस्तों, अगर आपने अभी तक "अमर प्रेम" नहीं देखी है, तो ये फिल्म देखने का ये पल है. अगर फिल्म को देखते हुए आँखे भर आएं तो याद रखना की आनंद बाबू ने क्या कहा था, "पुष्पा, आई हेट टीयर्स"

-आयुषी सिन्हा 

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