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‘नागिन’ (Naagin) और ब्रह्मास्त्र:भाग 1 (Brahmāstra: Part One) के बाद मौनी राय ‘द भूतनी’ (The Bhootni) के साथ एक बार फिर लोगों को डराने वाली है. लेकिन सोचने की बात यह है कि लोगों को नागिन, डायन, भूतनी आउटडेटेड क्यों नहीं लगती. अब भी क्यों इसमें मनोरंजन ढूँढा जाता है, जबकि मनोरंजन के लिए कई और बेहतरीन विषय है, फिर यहीं क्यों?
इस सवाल का सीधा जवाब यह है कि छोटे पर्दे से बड़े पर्दे तक भारतीय दर्शकों के दिलों पर राज करने वाले किरदारों की एक लंबी कतार रही है—लेकिन उनमें से कुछ किरदार ऐसे हैं जो डराने के साथ-साथ मोह भी लेते हैं. जिनमें शामिल हैं- टीवी शो- श्श्श्श कोई है, आहत, नागिन, आप बीती, फियर फाइल्स, फिल्में - स्त्री, बुलबुल, 1920, 13 बी, कृष्णा कॉटेज रूही और परी. बीते समय में ‘नागिन’ ‘डायन’, ‘भूतनी’ जैसे सुपरनैचरल किरदारों ने एक अलग ही फैंटेसी वर्ल्ड खड़ा कर दिया है.
क्या दर्शक अब भी इन कहानियों से जुड़ाव महसूस करते हैं?
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इसके जवाब में ‘द भूतनी’ की एक्ट्रेस मौनी राय कहती है, “करियर के शुरुआती दिनों में मैं अधिकतर कृष्णा और देवी स्वरूप वाली भूमिकाएं करती थी. लेकिन अब, 'ब्रह्मास्त्र' और 'भूतनी' जैसे रोल करते हुए कहीं ना कहीं लगता है कि कोई ऊपरी कनेक्शन तो ज़रूर है.”
मौनी आगे कहती हैं, “हमारा देश लोक कथाओं का देश है. उत्तर से दक्षिण तक, हम सबने बचपन से भूत-प्रेत, पिशाच, नागिन की कहानियां सुनी हैं. इसलिए जब हम स्क्रीन पर वो देखते हैं, तो एक नॉस्टैल्जिया, एक कनेक्शन बन जाता है.”
क्या ये कहानियां अंधविश्वास और पिछड़ेपन को बढ़ावा देती हैं?
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इसके जवाब में ‘नागिन 3’ की नायिका सुरभि ज्योति (Surbhi Jyoti) कहती हैं, “अगर लोग ऐसे शोज़ को पसंद नहीं करते, तो मेकर्स बार-बार इन्हें क्यों बनाते? अगर 'नागिन' को प्यार नहीं मिला होता, तो उसके छह सीज़न नहीं आते.”
सुरभि यह भी कहती हैं, “ये शोज़ सिर्फ मनोरंजन के लिए हैं जैसे कोई बच्चा सुपरमैन को पसंद करता है, वैसे ही लोग नागिन या डायन की फैंटेसी से जुड़ते हैं. इसका मतलब ये नहीं कि लोग उसे सच मानते हैं.”
"हम विच, वैम्पायर को देखते हैं, वाह-वाह करते हैं" – जै़न इबाद खान
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शो 'जादू तेरी नजरः डायन का मौसम' में डायन के बेटे का किरदार निभा रहे एक्टर जै़न इबाद खान (Zayn Ibad Khan) कहते हैं , “जब हम डायन या चुड़ैल जैसे देसी किरदार दिखाते हैं, तो लोग सवाल उठाते हैं. लेकिन वही लोग हॉलीवुड की 'Avengers' में Scarlet Witch या 'Twilight' में वैम्पायर्स और वेरवोल्फ्स को देखकर तारीफों के पुल बांधते हैं. क्या सिर्फ इसलिए क्योंकि हमारे किरदार देसी हैं?”
ज़ैन आगे कहते हैं, “अगर हम अपने किरदारों को 'Witcher' या 'Demon Slayer' जैसे नाम देने लगें, तो शायद सोच बदल जाए.”
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‘नज़र’ और ‘शमशान चंपा’ में डायन के किरदार निभा चुकीं एक्ट्रेस मोनालिसा (Monalisa) का मानना है कि ये शोज़ पूरी तरह काल्पनिक हैं और इनका मकसद सिर्फ और सिर्फ एंटरटेनमेंट है. वे कहती हैं “हम ये नहीं कह रहे कि ऐसा सच में होता है, पर कहानियां दिलचस्प हों, यही तो ज़रूरी है.”
आलोचना के बाद भी क्यों छाए रहते हैं ये किरदार?
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बीते कुछ सालों में 'स्त्री', ‘परी’, 'मुंज्या', 'शैतान' , ‘भूल भुलैया’ और छोरी 1 और 2 जैसी हॉरर-कॉमेडी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर खूब धमाल मचाया. वहीं टीवी पर 'नागिन' का सातवां सीज़न आने को तैयार है, और ‘जादू तेरी नजरः डायन का मौसम’ जैसे शोज़ पहले से ही दर्शकों की दिलचस्पी बटोर रहे हैं.
क्या सुपरनैचरल शोज़ कभी आउटडेटेड होंगे?
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जवाब है—नहीं, कम से कम अभी तो नहीं! क्योंकि इन कहानियों में न सिर्फ डर है, बल्कि रोमांच, ड्रामा, पौराणिकता और कभी-कभी कॉमेडी का तड़का भी है और यही मिक्सचर भारतीय दर्शकों को रास आता है.
जहां एक तरफ हॉलीवुड के वैम्पायर्स और विचेज़ का जादू बरकरार है, वहीं देसी डायन, नागिन और भूतनी भी पीछे नहीं हैं और शायद यही देसी ‘डार्क फैंटेसी’ आज के दौर का नया मीडियम बन चुकी है—जो जितना डराती है, उतना ही बांध भी लेती है.
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by PRIYANKA YADAV
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