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हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध पटकथा लेखक हुमायूँ मिर्ज़ा का कल रात मुंबई के होली फ़ैमिली अस्पताल में निधन हो गया. वह 84 वर्ष के थे और लंबे समय से रक्त कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे.
उनके छोटे भाई माहरुख मिर्ज़ा ने कहा, "उनका कल रात 11:30 बजे होली फैमिली अस्पताल में निधन हो गया. उन्हें आज सुबह 7:30 बजे बांद्रा कब्रिस्तान में दफनाया गया." हुमायूं मिर्ज़ा का परिवार वर्तमान में बांद्रा, मुंबई में रहता है.
मिर्ज़ा ब्रदर्स: तीन कलम, एक आवाज़
लखनऊ में जन्मे हुमायूँ मिर्ज़ा ने फ़िल्म जगत में अपनी लेखनी की अमिट छाप छोड़ी, जिसे भुला पाना नामुमकिन है. उन्होंने लगभग 44 फ़िल्मों की पटकथाएँ लिखीं और कई दशकों तक हिंदी सिनेमा की कहानियों को गहराई, संवेदनशीलता और सामाजिक सरोकारों से जोड़ा.
फ़िल्म जगत में उनका नाम अक्सर 'मिर्ज़ा ब्रदर्स' के नाम से लिया जाता था, जिसमें हुमायूँ, माहरुख मिर्ज़ा और शाहरुख़ मिर्ज़ा ने मिलकर रचनाएँ की थीं. यह तिकड़ी 1970 और 80 के दशक की कई यादगार फ़िल्मों के पीछे की रचनात्मक शक्ति थी.
लेखन में संवेदनशीलता और चिंता
हुमायूँ मिर्ज़ा के लेखन में एक ख़ास तरह की भावनात्मक गहराई थी. उनके संवाद सिर्फ़ शब्द नहीं थे, वे रिश्तों, दर्द, प्रेम और समाज की परछाइयों को छूते थे. वे सिनेमा को सिर्फ़ मनोरंजन नहीं, बल्कि सोचने और महसूस करने का माध्यम मानते थे.
'ढोंगी', 'धनवान', 'सजा', 'आग का दरिया' जैसी फिल्मों में उन्होंने नायक-नायिका के संघर्ष के माध्यम से सामाजिक यथार्थ को पर्दे पर उतारा. उनकी कुछ प्रमुख फिल्मों में शामिल हैं: जख्मी (1975), कसमे वादे (1978), धनवान (1981), राही बदल गए (1985), सितमगर (1985), मिशाल (1985), रामा ओ रामा (1988), माशूक (1992), कोई मेरे दिल में है (2005), नाम (2008), मुस्कुराने की वजह तुम हो (2022)
एक युग का अंत
हुमायूँ मिर्ज़ा अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कहानियाँ और किरदार भारतीय सिनेमा के इतिहास में हमेशा अमर रहेंगे. जिस शांति, गरिमा और गंभीरता के साथ उन्होंने अपने किरदारों को गढ़ा, वह आज के तेज़ी से बदलते सिनेमा के लिए एक मिसाल है.
जो कलम खामोश हो गई है, उसके शब्द सदैव अमर रहेंगे. हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उनकी आत्मा को शांति मिले.