Advertisment

Brij Mohan Pandey: मुझे गर्व है कि मैंने दो ऐसे शो लिखे हैं जिन्होंने बदलाव की लहर ला दी, शक्तिमान और देवों के देव महादेव

ब्रज मोहन पांडे ने गर्व व्यक्त किया कि उन्होंने दो ऐसे टीवी शो, शक्तिमान और देवों के देव महादेव, लिखे हैं जिन्होंने दर्शकों और टीवी इंडस्ट्री में बदलाव की लहर ला दी।

New Update
Braj Mohan Pandey TV writer
Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

‘शक्तिमान’, ‘देवों के देव महादेव’, ‘अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो’, ‘मितवा’, ‘शाकालाका बूम बूम’, ‘इतिहास’, ‘आर्यमान’, ‘फिलिप्स टॉप टेन’, ‘दुर्गेश नंदिनी’, ‘राखी’, ‘राजा की आएगी बारात’, ‘रहना है तेरी पलकों की छाँव में’, ‘अग्नि परीक्षा’, ‘माता की चौकी’, ‘भाग्यवाली’, ‘बालवीर’, ‘संकट मोचन महाबली हनुमान’, ‘विघ्नहर्ता श्री गणेश’, ‘तेनालीराम’, ‘बालशिव’, ‘बृज के गोपाल’, ‘धर्मयोद्धा गरुड़’ इन सभी सफलतम टीवी सीरियलों में समानता यह है कि इनके लेखन से ब्रज मोहन पांडे जुड़े रहे हैं। मूलतः जमशेदपुर निवासी ब्रज मोहन पांडे 1994 से मुंबई में काम कर रहे हैं। टीवी इंडस्ट्री में उनका अपना एक मुकाम है।

Advertisment

ब्रज मोहन पांडे संग ‘‘मायापुरी’’ के लिए हुई खास बातचीत इस प्रकार रही:

आपके लेखन की तरफ मुड़ने की बात कब सोची?

देखिए, मैं मूलतः जमशेदपुर का रहने वाला हूँ। मेरे घर में साहित्य का माहौल रहा है। मेरे पिताजी बहुत विद्वान कथा वाचक थे। वह लेखक भी थे। मेरी माताजी भी स्कूल में प्रिंसिपल थीं। रांची में मेरी नानी के परिवार का अखबार निकलता था। जैसा कि आप जानते हैं, मछली को तैरना सिखाने की जरूरत नहीं होती। तो पारिवारिक माहौल के चलते मेरे अंदर भी कुछ बीज आए। स्कूल के दिनों से ही मैं पढ़ाई की बजाय नाटक में अभिनय करने लगा था। कॉलेज पहुँचते ही मैं खुद नाटक लिखने भी लगा था। लेकिन पढ़ाई तो घरवालों के दबाव में करता रहा। धीरे-धीरे मेरे दिमाग में यह बात बैठ गई थी कि मैं नाटक करूँ, लेखन करूँ, अभिनय करूँ या निर्देशन करूँ, पर इसी क्षेत्र में कुछ करना है। यही वजह है कि कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं दिल्ली चला गया। क्योंकि उन दिनों जमशेदपुर में मुंबई को हौव्वा समझा जा रहा था। जमशेदपुर के लोग बड़ी नौकरी की तलाश या नाटक आदि करने के लिए दिल्ली ही जा रहे थे। जमशेदपुर में हम नाटक ही कर रहे थे। इसलिए दिल्ली पहुँच गया। वहाँ नाटक के लिए एनएसडी, श्रीराम सेंटर सहित कई जगहें हैं। पर दिल्ली में रहते हुए अहसास हुआ कि दिल्ली में कोई अच्छा स्कोप नहीं है। दिल्ली में प्रोफेशनलिज्म का अभाव है। दिल्ली करियर बनाने की बजाय कुछ सीखने की जगह है। मैंने दिल्ली में रहकर बहुत कुछ सीखा। सही हिंदी बोलना सीखा। नाटक किए। मेरा उच्चारण दोष दिल्ली में ही दूर हुआ। दिल्ली में ही मेरी मुलाकात प्रसिद्ध रंगकर्मी दीपक ठाकुर से भी हुई। उनसे बहुत कुछ सीखा। मैं अभिनय, लेखन व निर्देशन के साथ-साथ अभिनय भी कर रहा था। ‘हमीदाबाई की कोई’, ‘लंगड़ी टांग’ सहित कुछ मेरे नाटक उस वक्त काफी चर्चित हुए थे। दीपक ठाकुर ने ही मुझे अहसास कराया कि मुझे अभिनय की बजाय लेखन पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसलिए बहुत जल्दी मैं दिल्ली से मुंबई आ गया। मुंबई पहुँचने के बाद दो साल तक थिएटर करता रहा। मैंने कुछ गुजराती नाटक भी किए, जिनमें मेरा किरदार हिंदी बोलता है। बाकी के सभी किरदार गुजराती बोलते हैं। मैं मुंबई आकर भारतीय विद्या भवन से ट्रेनिंग लेने के साथ-साथ हर माह एक नाटक कर रहा था। किस्मत की बात थी कि मुझे यहाँ पर भी अच्छे लोग, अच्छे गुरु मिले।

BRIJ MOHAN PANDEY

मुंबई पहुँचने के बाद किस तरह का संघर्ष करना पड़ा?

मुंबई पहुँचने के बाद मेरी पहली प्राथमिकता तो अभिनेता बनना ही था। सबसे पहले भारतीय विद्या भवन के ‘भारतीय नाट्य अकादमी’ से नौ माह का कोर्स किया। वहाँ पर नाटक भी करता रहा। गुजराती नाटक भी किए। मगर नाटकों से जिंदगी की गाड़ी नहीं चल सकती। अभिनेता के तौर पर सीरियलों में कुछ छोटे किरदार भी निभा रहा था। फिर मेरे मित्र ने मुझे अशोक पटोले से मिलवाया। उस वक्त अशोक पटोले टीवी सीरियलों के बहुत बड़े लेखक थे। वह अजय सिन्हा का सीरियल ‘हसरतें’ लिख रहे थे। उनकी मातृभाषा मराठी थी, इसलिए उनके साथ बतौर सहायक काम करने लगा। अजय सिन्हा के कहने पर उनका सहायक निर्देशक बनकर कलाकारों का उच्चारण दोष भी ठीक करवाने लगा। तभी विजय भोपे के लिए स्वतंत्र लेखक की हैसियत से सुपर हीरो वाला एक सीरियल लिखा, जिसके सोलह-सत्रह एपिसोड फिल्माए गए थे, पर वह टेलिकास्ट नहीं हुए।

BRIJ MOHAN PANDEY

विजय भोपे का सीरियल बंद होने के बाद आपका करियर किस तरह आगे बढ़ा?

संयोग से उसी वक्त हर्ष कोहली ने मुझे बुलाकर सीरियल ‘न्याय धीश’ लिखने का अवसर दिया। इसके भी सात एपिसोड लिखे, पर यह भी आज तक टेलिकास्ट नहीं हुआ। फिर दिनकर जानी ने मुझे ‘शक्तिमान’ के लेखन से जोड़ लिया। दिनकर जानी सर थिएटर में भी मेरे गुरु रहे हैं। ‘शक्तिमान’ ने सफलता के रिकॉर्ड बनाए और मेरी यात्रा पूरी तरह से बदल गई। बहुत बड़ी पहचान मिली।

‘शक्तिमान’ की सफलता ने दिमाग खराब किया होगा?

उस वक्त मेरी उम्र बहुत कम थी, इसलिए समझ कम थी। शक्तिमान की कामयाबी थी। मुकेश खन्ना व दिनकर जानी सर का मार्गदर्शन भी था। इसके बावजूद सफलता का नशा सिर चढ़कर बोलने लगा था। फिर भी मुझे लग रहा था कि अभी बहुत कुछ होने वाला है। तो मेरे अंदर एक तलाश थी, वह तलाश मुझे फैंटसी, सामाजिक सीरियलों से होते हुए माइथोलॉजिकल सीरियलों तक ले गई।
शक्तिमान की लोकप्रियता के ही साथ बच्चों द्वारा आत्महत्या करने की खबरें व कई दूसरे विवाद भी उठे थे?

सभी जानते हैं कि सब झूठ था। बाद में असलियत सामने आई थी कि एक कंपनी बच्चों की आत्महत्या की झूठी कहानियाँ फैलवा रही थी। पीटीआई ने बाकायदा माफी माँगी थी। हम शक्तिमान में शस्त्र, धनुष-बाण या हिंसा आदि का उपयोग कर ही नहीं रहे थे। शक्तिमान ऐसा सुपर हीरो था, जो किसी को मारता नहीं था। बाद में पता चला कि एक गुटखा कंपनी शक्तिमान के नाम से गुटखा बेच रही थी। तब मुकेश खन्ना ने शक्तिमान का एक स्पेशल एपिसोड बनाकर बताया कि गुटखा खाने के नुकसान क्या हैं? गुटखा का विरोध करने के ही कारण बच्चों की आत्महत्या की झूठी खबरें फैलाकर उस कंपनी ने इस सीरियल को बंद कराने का असफल प्रयास किया था। शक्तिमान पूरे आठ साल तक प्रसारित हुआ। फिर ‘आर्यमान’ भी आया। मैंने ‘शक्तिमान’ का लेखन करने के साथ ही इसमें एक किरदार भी निभाया था।

DINKAR JANI

सीरियल ‘शक्तिमान’ के लेखन के दौरान किस तरह के उतार-चढ़ाव आए थे और आपने क्या सीखा था?

सुपर हीरो शक्तिमान लिखते समय मैंने सीखा कि सुपर हीरो के बड़े-बड़े कारनामे होते हैं, पर उसके पीछे उसके छोटे-छोटे दुख-दर्द होते हैं। हमने शक्तिमान को योग, कुंडलिनी आदि की मदद से भारतीय जमीन से जोड़ा था। शक्तिमान में उसके अंदर से जागृति आ रही थी, उसकी कुंडलिनी चक्र जागृत हो रहे थे। और वह सुपर हीरो बन रहा था। इसी वजह से इसे लोगों ने सबसे अधिक अपनाया।

योग, कुंडलिनी आदि पर आपका अपना क्या शोध था?

कुछ शोध कार्य किया था। कुछ बातें बचपन से सुनता आया था। पिताजी कथा वाचक ही थे। मेरी नानी भी पारंगत थीं। मैंने गीता भी पढ़ी थी। इस तरह की कहानियों में पढ़ा हुआ था। बचपन से पढ़ने की आदत के चलते काफी कुछ पढ़ा हुआ था। इसके अलावा मेरे फूफा प्रकांड पंडित थे, उनसे भी कई किताबें मिलीं।

Indian Television: टीवी की दुनिया की ये रानियाँ

शक्तिमान के बाद तो आपके पास सीरियल लिखने के ऑफरों की बाढ़ आ गई होगी?

मुझे पर हमेशा ईश्वर मेहरबान रहा है। ‘शक्तिमान’ लिखते हुए एकता कपूर के सीरियल ‘इतिहास’ के संवाद लिखने का काम मिल चुका था। बीच में फैंटसी सीरियल ‘शाकालाका बूम बूम’ भी लिखा था। तो यह सब मेरे भविष्य को निर्धारित कर रहा था। शुरूआत में कमलेश जी ‘आर्यमान’ लिख रहे थे, पर बाद में मैंने लिखा था। इंडोनेशिया टीवी के लिए 2001 में लिखना शुरू कर चुका था। शक्तिमान के बाद बीएजी टेली फिल्म्स और रश्मि शर्मा टेलीफिल्म्स के सीरियलों का लेखन किया। फिल्म एंड फार्म के सीरियल लिख रहा था। तो काम मिलता रहा। फिर मैंने ‘माता की चौकी’ सहित कई माइथोलॉजिकल सीरियल लिखे। ‘देवों के देव महादेव’ सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ। मेरे जीवन की गाड़ी बिना प्रयास के अपने आप घूमते हुए यहाँ तक पहुँच गई है।

Shaktimaan

आप धार्मिक सीरियलों पर आकर अटक गए हैं?

जी नहीं। मैंने हमेशा विविधतापूर्ण काम करना चाहा और कर रहा हूँ। माइथोलॉजिकल सीरियल लिखते हुए मैंने ‘तेनालीराम’ भी लिखा। सच कहूँ तो बाहरवालों को माइथोलॉजी, फैंटसी, सामाजिक सीरियलों में फर्क लगता है। पर लेखक के तौर पर हमें कोई फर्क नहीं लगता। क्योंकि हर सीरियल में बात इंसान की, इंसानी भावनाओं की, जरूरत, पीड़ा, ऊँच-नीच, भेदभाव की, इंसानी संवेदनाओं की ही होती है। शक्तिमान में गंगाधर एक दबा-कुचला इंसान, जो कहीं बड़ा होकर कुछ पा रहा है। तो यहाँ भी सामाजिकता नहीं छूट रही है। फैंटसी तो आसमान में हो रही थी, पर वह पकड़ता तो किसी न किसी शोषक को था। सामाजिक सीरियलों का लेखन करने में भी यही बात थी। हर सीरियल किसी न किसी मुद्दे या भावना से जुड़ा हुआ रहा। माइथोलॉजी को लीजिए, किरदार व समय बदलता है, पर कहानी तो वही चल रही थी। धार्मिक सीरियल ‘गणेश’ को लीजिए। गणेश एक बालक है, जो अपनी माँ के कहने पर अपने पिता को घर के अंदर घुसने से रोक रहा है। सामाजिक सीरियल में यही कहानी दीवार या यूँ कहें कि बाप-बेटे की बन जाएगी। तो सीरियलों के आवरण में बदलाव दिखता है, पर कहानी वही हैं। मेरी समझ में तो यही आया कि हर सीरियल में ड्रामा व इमोशन वही होता है। इसलिए मैं सहजता से सब कुछ लिख पाया, लिख पा रहा हूँ।

आपने सफलतम व अति लोकप्रिय सीरियल ‘देवों के देव महादेव’ का लेखन किया। पर यह सीरियल भी कम विवादों में नहीं रहा। इस सीरियल में भगवान शंकर व पार्वती के मिलन के दृश्यों पर लोगों ने काफी आपत्ति दर्ज कराई थी?

देखिए, सच तो यह है कि ‘शक्तिमान’ और ‘देवों के देव महादेव’ यह दोनों सीरियल विवादों में रहे और दोनों ही सीरियल परिवर्तन के सीरियल थे। सीरियल ‘शक्तिमान’ से विजुअल्स व अन्य चीजों को लेकर परिदृश्य बदला। ‘देवों के देव महादेव’ से धार्मिक सीरियलों की थीमिंग बदल गई। उससे पहले सभी धार्मिक सीरियल में वही टिपिकल साधु, वही पोशाक यानी कि सब कुछ मोनोटोनस हो गया था। ‘देवों के देव महादेव’ के कर्ताधर्ता अनिरुद्ध पाठक भगवानों के मानवीकरण करने में यकीन करते थे। उनका तर्क था कि हम भगवान तक जाएँ या भगवान हम तक आएँ। इस सीरियल से पहले धार्मिक सीरियल अपनी जगह थे, इंसान अपनी जगह थे। भगवान और इंसान के बीच कोई संबंध नहीं था। उस संबंध के लिए शोध कार्य हुआ, तो लोगों ने शोर मचाया, विवाद खड़ा करने के प्रयास किए। विवाद हुआ, पर फिर लोग अपने आप शांत भी हो गए। लोगों ने सबसे अधिक ‘देवों के देव महादेव’ को पसंद किया। देखिए, जब तुलसीदास ने रामचरित मानस को अवधी में लिख दिया, तो उनका भी विरोध हुआ था। सच कहूँ तो मैं विरोध को जीवंत मानव समाज का प्रतीक मानता हूँ। इसलिए विरोध के स्वर उठते रहने चाहिए। मेरा मानना है कि आपका काम ऐसा होना चाहिए कि थोड़ी-सी खलबली होनी चाहिए। शांत पानी में कंकड़ बनकर गिरो, जिससे तरंगें तो हों और लोगों को पता चलता रहे कि पानी में तरंगें हैं।

Devon Ke Dev... Mahadev (टीवी सीरीज़ 2011–2014) - IMDb

जीटीवी पर प्रसारित सीरियल ‘अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो’ के साथ आप भी जुड़े थे। पर यह सीरियल किसके दिमाग की उपज था?

मैं इस सीरियल के साथ तब जुड़ा, जब कमलेश कुंती ने इसे छोड़ दिया था। और मैंने चालीस-पैंतालीस एपिसोड ही लिखे थे। यह विषय पूरी तरह से कमलेश कुंती का था। उनके साथ इसके लेखन से शांतिभूषण भी जुड़े हुए थे। तो शांतिभूषण भी इस पर अधिकार जता रहे थे। जबकि यह सीरियल मूलतः बिहार के मूर्धन्य साहित्यकार भिखारी ठाकुर की रचना ‘बिदेसिया’ पर आधारित है। भिखारी ठाकुर तो भोजपुरी के रवींद्रनाथ टैगोर हैं। वह समय से बहुत आगे की सोच रखते थे। झारखंड में यह प्रथा छिटपुट आज भी चलती होगी। इस सीरियल के साथ मेरा जुड़ना तब हुआ, जब लड़की बेच दी गई थी और उसे नए घर में आना था। पर मैं ज्यादा समय तक नहीं लिख पाया था।

Agle Janam Mohe Bitiya Hi Kijo

1994 में जब आपने टीवी सीरियल लिखना शुरू किया, तब केवल लेखक हुआ करता था। पर अब लेखक में कहानी, संवाद, पटकथा, सहित कई लेखक हो गए हैं। ऐसा क्यों?

पहले हर सीरियल साप्ताहिक प्रसारित होता था और उसके तेरह एपिसोड हुआ करते थे। तब एक लेखक सारी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभा लेता था। जब डेली सोप शुरू हुए तो हर माह अट्ठाईस से तीस एपिसोड प्रसारित होते हैं। तो एक दिन में एक एपिसोड तैयार करना है। ऐसे में एक लेखक स्टोरी की प्लॉटिंग से लेकर स्क्रिप्ट व संवाद आदि सब लिखने की सारी जिम्मेदारी को नहीं निभा सकता। फिर चैनल के इनपुट सहित कई तकनीकी पहलू भी जोड़ने होते हैं। अचानक लोकेशन का बदलना या अचानक किसी कलाकार की अनुपस्थिति सहित हर समस्या के बावजूद प्रसारण नियत समय पर होगा, तो उसे पकड़ने के लिए कई लेखकों की टीम की जरूरत होती है। एक कहानी, एक स्क्रिप्ट, एक संवाद लिखेगा। फिर एक सुपरवाइजर होता है। इसकी मूल वजह सीरियल और उनके एपिसोड की बढ़ती संख्या है। मेरी राय में पाँच लोग मिलकर अच्छा काम कर सकते हैं। सब कुछ अप्रोच पर निर्भर करता है। इस बात पर भी निर्भर करता है कि टीम में जितने लेखक हैं, उनकी सोच एक समान हो। टीवी सीरियल में सबसे ज्यादा त्रासदी संवाद लेखक और पृष्ठभूमि संगीतकार झेल रहा है। इन दोनों को अच्छा काम करने का समय ही नहीं मिलता। सुबह शूटिंग है और रात में दो बजे स्क्रीनप्ले फाइनल होगा, उसके बाद संवाद लेखक कब संवाद लिखेगा? ऐसे में संवाद लेखक क्या कर लेगा? पृष्ठभूमि संगीतकार को भी एक-डेढ़ घंटे का ही समय मिलता है। इस वजह से गुणवत्ता में अंतर हो जाता है।

आप 1994 से टीवी इंडस्ट्री में काम कर रहे हैं। इन 31 वर्षों में आपने टीवी इंडस्ट्री में क्या बदलाव पाया?

शुरूआती दौर में फिल्म वाले फिल्मकार ही टीवी पर काम कर रहे थे। फिर चाहे वह रामानंद सागर हों अथवा बलदेव राज चोपड़ा हों। उस वक्त टीवी काफी कलात्मक होता था। अब टीवी पर फिल्म वाले नहीं हैं। गुणवत्ता और संख्या का खेल मुझे दिख रहा है। पहले साप्ताहिक सीरियल प्रसारित होते थे। तब सप्ताह में एक आने वाले एपिसोड के लिए हम पूरे सप्ताह परेशान रहते थे। अब डेली सोप प्रसारित हो रहे हैं। अब सप्ताह में पाँच से सात एपिसोड आ रहे हैं, यानी कि क्वांटिटी बढ़ गई। तो स्वाभाविक तौर पर उसका असर गुणवत्ता पर पड़ेगा। दूसरी बात टीवी चैनलों की संख्या बढ़ गई है। पहले सीमित चीजें थीं। धीरे-धीरे ऑप्शन बढ़ते गए। अब यूनिकनेस खत्म हो गई। अब उस तरह से प्रभाव डालने वाला सीरियल नहीं बन रहा। पहले एक शक्तिमान या एक बुनियाद, एक महाभारत या एक रामायण बनता था। अब तो ऐसा नहीं है। अब क्वालिटी व क्वांटिटी बढ़ी है, जिसके चलते क्रिएटिविटी मार खा गई है। क्वालिटी बढ़ी है, से मतलब यह है कि सेट महँगे बनने लगे हैं, कॉस्ट्यूम बेहतर हो गए हैं, मेकअप व स्पेशल इफेक्ट अच्छा हो रहा है। पर लेखन कठिन होता जा रहा है। अब तो पढ़ने-लिखने का चलन कम हो गया है, जिसका असर लेखन पर पड़ना स्वाभाविक है।

Indian television history: टीवी की दुनिया की बादशाहत

नब्बे के दशक में सीरियल की टीआरपी 22 से 32 हुआ करती थी, अब तो हर सीरियल को एक की टीआरपी मिलना मुश्किल हो गया?

क्योंकि अब टीवी चैनलों की संख्या बढ़ गई है। अब दर्शकों के सामने मनोरंजन के साधन बढ़ गए हैं। दूसरी बात पहले एक नियत समय पर ही आप उस सीरियल को देख सकते थे, पर अब तो जरूरी नहीं। उसे बाद में चैनल के यूट्यूब पर जाकर या अन्य तरह से देख सकते हैं, जिसकी गिनती टीआरपी की मशीन नहीं कर पाती। अब सभी के हाथ में मोबाइल है। सभी के घर में वाई-फाई है।

आप इमानदारी से बताएँ कि किस सीरियल के लिए आपको सबसे कम और किस सीरियल के लिए सबसे ज्यादा पैसे मिले?

मेरे साथ यह हुआ कि स्वतंत्र लेखक की हैसियत से मेरा पहला सीरियल ‘शक्तिमान’ प्रसारित हुआ, जिसने जबरदस्त शोहरत बटोरी। तो मेरी कीमत वहीं से तय हो गई। यदि मैं पचास हजार ले रहा हूँ, तो अड़तालीस हजार में काम नहीं कर सकता। जहाँ कम मिल रहा था, वहाँ काम नहीं किया।

FAQ

प्रश्न 1. ब्रज मोहन पांडे कौन हैं?

उत्तर 1. ब्रज मोहन पांडे एक प्रसिद्ध भारतीय टीवी लेखक हैं, जिन्होंने 1994 से कई सफल टीवी सीरियलों में योगदान दिया है।

प्रश्न 2. ब्रज मोहन पांडे किन लोकप्रिय टीवी शो के लिए लिख चुके हैं?

उत्तर 2. उन्होंने शक्तिमान, देवों के देव महादेव, अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो, बालवीर, संकट मोचन महाबली हनुमान और कई अन्य शो के लिए लिखा है।

प्रश्न 3. ब्रज मोहन पांडे टीवी इंडस्ट्री में क्यों महत्वपूर्ण हैं?

उत्तर 3. उनकी कहानी कहने की शैली ने पौराणिक, ऐतिहासिक और पारिवारिक ड्रामा सीरियलों को जीवंत बनाया और भारतीय टीवी पर स्थायी प्रभाव डाला।

प्रश्न 4. ब्रज मोहन पांडे मूलतः कहां के हैं?

उत्तर 4. वे मूलतः जमशेदपुर, भारत के निवासी हैं।

प्रश्न 5. ब्रज मोहन पांडे टीवी लेखन में कब से सक्रिय हैं?

उत्तर 5. वे 1994 से मुंबई और भारतीय टीवी इंडस्ट्री में सक्रिय हैं।

 Braj Mohan Pandey TV writer | TV shows written by Braj Mohan Pandey | Shaktimaan TV show writer | Shaktimaan | Mukesh Khanna Compared To Jaya Bachchan People Say Kilvish Save Us From Shaktimaan | Shaktimaan | Mukesh Khanna on bringing Shaktimaan back | Shaktimaan Movie | shaktimaan sequal | Mukesh Khanna Compared To Jaya Bachchan People Say Kilvish Save Us From Shaktimaan not present in content

Advertisment
Latest Stories