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Indian television history: टीवी की दुनिया की बादशाहत

भारतीय घरों में टीवी हर सदस्य की पसंद का केंद्र है—बच्चे कार्टून, पिताजी न्यूज़ या क्रिकेट, माताएं सास-बहू सीरियल्स और दादा-दादी धार्मिक चैनल पसंद करते हैं। हालिया BARc रिपोर्ट 2025 के अनुसार, टीवी पर सबसे ज्यादा लोकप्रिय कंटेंट स्त्रियों के नेतृत्व वाली

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Indian television history
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भारतीय घरों में शाम होते ही टीवी का रिमोट सबसे ज्यादा अहमियत वाला हथियार बन जाता है। बच्चे मोटू पतलू जैसे कार्टून एनिमेशन सीरीज देखने की जिद करते है, पापा न्यूज़ या क्रिकेट पर टिके रहते हैं और मां को चाहिए उनका फेवरेट सास बहु सीरियल या  मायापुरी जैसी चटपटी रियल फिल्मी खबरों पर आधारित सीरीज, उधर दादा दादी को चाहिए कोई धार्मिक चैनल। यही तो है हमारी टेलीविजन की असली ताकत, जो हर उम्र, हर दिल और हर वर्ग से जुड़ा है। लेकिन इस हफ्ते बार्क की जो रिपोर्ट आई है, उसने एक बार फिर साबित कर दिया कि टीवी पर अब भी स्त्रियों के आधिपत्य वाली घर गृहस्थी जनित परिवार की कहानियां और सास-बहू की दुनिया सबसे ज्यादा राज करती है। (Popular Indian TV family dramas 2025)

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यह आज की बात नहीं, अस्सी के दशक से,आम जनता पर टेलीविजन का जादू चला आ रहा है, जब जुलाई 1984 में भारत का प्रथम मेगा फैमिली सीरियल ‘हम लोग’ का दूरदर्शन में शानदार प्रीमियर हुआ था और भारत ने पहली बार धारावाहिकों की शक्ति  को महसूस किया था जो मेक्सिकन टेलीविज़न सीरीज वेन कॉन्मिगो (1975) के एजुकेशनल एंटरटेनमेंट पर आधारित थी। (Saas-bahu serials dominance in Indian television)

Hum Log" एपिसोड #1.57 (टीवी एपिसोड 1985) - Tony के रूप में Manoj Pahwa -  IMDb

वो दिन और आज का दिन। ना जाने कितने सीरीज और मेगा सीरीज बने और अपने अपने टीआरपी के आधार पर भारतीय टेलीविजन के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गए। ‘हम लोग’ के बाद ‘बुनियाद, नुक्कड़, रामायण, महाभारत, वागले की दुनिया, देख भई देख, हम पांच, तारा, श्रीमान श्रीमती, तू तू मैं मैं, अमानत, हिप हिप हुर्रे, क्योंकि सास भी कभी बहु थी, कहानी घर घर की,खिचड़ी, बा बहु और बेबी, तारक मेहता का उल्टा चश्मा, ये रिश्ता क्या कहलाता है, कुमकुम भाग्य,पवित्र रिश्ता, बड़े अच्छे लगते है, दिया और बाती हम, ससुराल सिमर का, ये है मोहब्बतें, भाभी जी घर पर है,  कुंडली भाग्य, अनुपमा, गुम है किसी के प्यार में, फालतू वगैरा।  इन धारावाहिकों में से कई तो आज भी बदस्तूर चल रहे हैं। ये वो शोज है जिसके चलते कुछ समय के लिए सिनेमाघरों में भी असर पड़ने लगा था, खासकर कोरोना काल में दुनिया ने देख ली थी टीवी दुनिया की बादशाहत और ताकत। यह ताकत और बादशाहत दिन पर दिन अपनी सल्तनत की जड़ें फैलाती जा रही है। आज की तारीख में, ढेर सारे पुराने और नए टीवी सीरीज, मनोरंजन की दुनिया में अपनी दबदबा कायम रखे हुए है।

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इन धारावाहिकों में ऐसे कई सीरीज है जो आज भी चल रहे है उनमें सबसे ऊपर है अनुपमा।

रुपाली गांगुली का शो ‘अनुपमा’ आज भी दर्शकों की धड़कन बना हुआ है। 2.3 TVR के साथ उसने फिर साबित किया कि असली बादशाहत वही करती है जिसमें लोगों के दिल हों। अनुपमा की कहानी हर औरत के दिल को छूती है। एक ऐसी औरत जो ज़िंदगी में सब कुछ झेलकर भी परिवार के लिए लड़ती है और नए सिरे से खुद को फिर से पहचानती है। शायद इसी इमोशन ने अनुपमा को नंबर वन बनाया हुआ है। स्टार प्लस पर आने वाला ये शो जुलाई 2020 से अब तक टेलीविजन की पहचान बन चुका है। राजन शाही का यह शो रोज़मर्रा की ज़िंदगी से इतना जुड़ा है कि दर्शक खुद को इस कहानी में देख पाते हैं। हर एपिसोड इतना रिलेटेबल है कि लोगों को अपने जीवन की झलक दिख जाती है। रुपाली खुद कहती हैं, “लोग मुझसे कहते हैं कि हम में अपनी मां, बहन, पत्नी की झलक देखते हैं — यही इस किरदार की सबसे बड़ी जीत है।” (BARC report on Indian TV viewership 2025)

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शो के प्रोड्यूसर राजन शाही कहते हैं, “अनुपमा कोई फैंटसी नहीं, बल्कि हर उस औरत की कहानी है जो अपने परिवार को थामे रखती है। शायद इसलिए ये शो हर घर का हिस्सा बन गया है।”

क्योंकि सास भी कभी बहू थी 2 – (यादों का जादू  रिटर्न्स)

जब स्मृति ईरानी ने फिर से तुलसी के किरदार में वापसी की, तो 2000 के दशक की यादें ताज़ा हो गईं। हर घर की मांग ‘तुलसी जैसी बहू’, ये स्लोगन फिर एक बार दर्शकों की आंखों में आंसू और मुस्कान दोनों लेकर लौटी। ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी 2’ ने केवल उस इमोशन को ही नहीं दोहराई, बल्कि टीवी के सुनहरे दौर की भावना भी वापस लाई है। 2.2 की रेटिंग के साथ यह शो अनुपमा के पीछे पीछे बहुत करीब है। अमर उपाध्याय फिर से मिहिर बने और साथ में जुड़ गए कई नए चेहरे, जिसने शो को आज की पीढ़ी से भी जोड़ दिया। पुराने दर्शकों के लिए ये शो यादों की किताब खोल देता है , जैसे पुरानी डायरी के पन्ने में सिमटा कोई गुलाब का फूल, वही तुलसी, वही मिट्टी की खुशबू और वही गहरे पारिवारिक रिश्ते। पिछले शो के दौराम स्मृति से मेरी फोन पर लंबी बातचीत हुई थी, अब दोबारा वही स्मृतियां फिर से अंगड़ाई ले रही हैं। यह प्यारी बहु जरा भी नहीं बदली। उतनी ही खूबसूरत, उतनी ही भद्र, स्मृति मुस्कुराकर कहती हैं, “तुलसी मेरे लिए सिर्फ किरदार नहीं है, ये जिम्मेदारी है। हर उस औरत के लिए जो सही के लिए खड़ी होती है।”  

Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi 2 - Wikipedia

अमर उपाध्याय, जो फिर मिहिर के रोल में लौटे हैं, कहते हैं, “जब मैंने पहले दिन सेट पर स्मृति को तुलसी के रूप में देखा तो लगा जैसे टाइम वहीं रुक गया हो।” (Classic Hindi TV series from 1980s to 2025)

तीसरे नंबर पर अपनी पांव जमा चुका है ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है।   

टीवी की दुनिया में ऐसा कहा जाता है, जो शो 16 साल तक चल जाए और अब भी लोग उसे देखना चाहें, तो समझिए उसमें कुछ तो खास है। राजन शाही का जादू सेकंड टाइम, ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के साथ दर्शकों को बांध चुकी है। इस शो ने अपनी कहानी को  आज के दौर में , फिर से नया रूप दिया। एक वक्त में हिना खान और करण मेहरा थे, फिर शिवांगी जोशी और मोहसिन खान आए, अब समृद्धि शुक्ला और रोहित पुरोहित नई पीढ़ी की कहानियां सुना रहे हैं। 1.9 की रेटिंग के साथ यह शो अब भी हर घर में अपनी पकड़ बनाए हुए है। बदलते समय के साथ इसमें रिश्तों का नज़रिया भी बदला, पर इमोशन वही रहा — घर, प्यार, लड़ाई,  दया,क्षमा और एक नई शुरुआत।वर्तमान लीड समृद्धि शुक्ला ने अपने अनुभव को कुछ यूं बताया — “मुझे अक्सर लोग बोलते हैं कि हमारे घर में जब से यह शो शुरू हुआ, तब से ये रिश्तों का हिस्सा बन गया। यह सुनकर लगता है कि हम कुछ सही कर रहे हैं।”  

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राजन शाही का कहना है, “अगर कहानी में दिल है, तो दर्शक हमेशा साथ रहते हैं। यही ‘ये रिश्ता...’ की असली ताकत है।” (Impact of TV serials on Indian households)

'उड़ने की आशा' – सपनों का उड़ान  

नई पीढ़ी की कहानी कहते हुए ‘उड़ने की आशा: सपनों का सफर’ धीरे-धीरे सबका ध्यान खींच रहा है। नेहा हरसोरा और कंवर ढिल्लन की जोड़ी ने इस साधारण सी कहानी को बहुत ही जीवंत और धड़कता हुआ बना दिया है। 1.9 टीआरपी के साथ ये शो ‘ये रिश्ता...’ से ज्यादा पीछे नहीं। जो बात इसे खास बनाती है, वो है इसकी जमीनी स्तर पर जुड़ी हुई सच्चाई, एक ऐसी लड़की की कहानी जो समाज की बेड़ियों में फंसी होने के बावजूद अपने सपनों को उड़ान देना चाहती है। स्टार प्लस और डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर इसे हर दिन देखा जा रहा है। ये भारतीय टीवी पर महिला सशक्तिकरण की एक नई मिसाल बन चुका है।नेहा कहती हैं, “आशा आज की हर लड़की की आवाज़ है। उसे सपने देखने और उन्हें पूरा करने का हक़ है।”  

Udne Ki Aasha: शो 'उड़ने की आशा' का दिलचस्प प्रोमो जारी, कंवर ढिल्लों और  नेहा हरसोरा की जोड़ी मचाएगी धमाल

कंवर ढिल्लन का मानना है, “टीवी पर अब भी अगर कोई चीज़ लोगों का कनेक्शन बनाती है, तो वो इमोशन है। ‘उड़ने की आशा’ वही इमोशनल जर्नी है जो हर युवती को प्रेरित करती है।”
नेहा कहती हैं, “आशा आज की हर लड़की की आवाज़ है। उसे सपने देखने और उन्हें पूरा करने का हक़ है।”  
उड़ने की आशा’ वाकई सपनों को पंख  है। 

नेहा हरसोरा और कंवर ढिल्लन के शो ‘उड़ने की आशा’ ने नई सोच को जन्म दिया है। यह सीरियल महिलाओं की महत्वाकांक्षा और संघर्ष की कहानी है।

'तुम से तुम तक' – नई जोड़ी, नई कहानी  

इस वक्त पांचवें नंबर पर है ‘तुम से तुम तक’। 1.7 की रेटिंग के साथ इस शो ने धीरे-धीरे लेकिन सधे कदमों से दर्शकों का प्यार जीता है। इसके किरदार सच्चे लगते हैं, कहानी में दर्द है, प्यार है और नाउम्मीदी के गर्त से निकलकर उम्मीद की भावनाओं से भरी झिलमिलाहट है। यह शो आधुनिक रिश्तों की पेचीदगियों पर बना है, जिसमें रिश्ते आज के समय के अनुरूप कई किस्म के सोशल मीडिया तामझाम, शक़ और अपनेपन के बीच झूलते हैं। तुम से तुम तक’ की राइटर रिया कपूर कहती हैं, “हम हर रात सोचते हैं कि आज का एपिसोड किसे कितना छू जाएगा। यही हमारी सबसे बड़ी सफलता होती है।”

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‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ – ये है ऑल टाइम हिट हंसी की दुनिया का बादशाह  

इसमें कोई शक नहीं कि जब बात कॉमेडी की आती है, तो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ आज पचासों चैनल्स और पचासों सीरियल्स या फिर कई ओटीटी प्लेटफार्मों के होने के बावजूद आज भी सबसे ऊपर है। असित मोदी का यह शो वर्षों से भारत की सबसे लंबी चली और आज भी चल रही कॉमेडी है। 1.7 टीआरपी के साथ   इन दिनों यह छठे नंबर पर है, लेकिन दर्शकों के दिल में अब भी ये टॉप पर है। जेठालाल, दया, भिड़े, पोपटलाल – ये सारे किरदार अपने घर के या पड़ोस के अपनो जैसे हो गए हैं। हर एपिसोड में , कहानी में बेहद हलके-फुलके अंदाज़ के साथ एक सामाजिक संदेश छिपा होता दिखाई देता है।  यही इसकी सबसे बड़ी खूबी है।

Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah - Wikipedia

असित मोदी कहते हैं, “हमने हंसी के साथ हमेशा एक संदेश दिया, " हंसी में भी ज़िंदगी का सबक होना चाहिए।”  
दिलीप जोशी (जेठालाल) अपने अंदाज़ में कहते हैं, “गोकुलधाम सिर्फ सोसाइटी नहीं, ये भारत का छोटा सा मॉडल है — जहां हर धर्म, हर इंसान एक परिवार है।” (Educational and family entertainment in Indian TV history)

कॉमेडी शो ‘भाबीजी घर पर हैं’ आज (अक्टूबर 2025 तक) अब भी चल रहा है और नए एपिसोड लगातार प्रसारित हो रहे हैं। 
यह सीरीज़ 2015 से प्रसारित हो रही है और हाल ही में इसने 2,500 से ज़्यादा एपिसोड पूरे किए हैं, जिसके बाद पूरी टीम ने इसका शानदार सेलिब्रेशन किया। यह भारत के सबसे लंबा चलने वाले और लोकप्रिय सिटकॉम में से एक है, जिसकी कहानी दो पड़ोसी जोड़ों। मिश्रा परिवार और तिवारी परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है।  शो का सितंबर 2025 तक का ताज़ा एपिसोड (नंबर 2685) “डांडिया सीज़न” थीम पर टेलीकास्ट हुआ था, और अक्टूबर 2025 में भी इसके नए एपिसोड &TV और ZEE5 OTT प्लेटफॉर्म पर नियमित रूप से स्ट्रीम हो रहे हैं । 

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मुख्य किरदार अब भी वही हैं— 
-आसिफ़ शेख़ (विभूति नारायण मिश्रा) रोहिताश्व गौड़ (मनमोहन तिवारी)  शुभांगी अत्रे (अंगूरी भाभी) 
विदिशा श्रीवास्तव (अनिता भाभी) 
हालिया अक्टूबर 2025 की TV TRP रिपोर्ट के मुताबिक़, शो  ‘भाभीजी घर पर हैं’ की TRP करीब 0.1 से 0.2के बीच है।

अपनी पुरानी बड़ी लोकप्रियता के बावजूद आज के सभी नए फैमिली ड्रामा और रोमांटिक शो के मुकाबले कम टीआरपी पर है और मुख्यधारा की टॉप लिस्ट में नहीं है। इसका कारण दर्शकों की बदलती पसंद और नए शोज़ की मजबूत पकड़ माना जा सकता है।  

लोकप्रिय टीवी सीरियल 'कुमकुम भाग्य' अब नहीं चल रहा है। यह धारावाहिक 2014 में शुरू हुआ था और 11 साल बाद बंद हो गया।
इस सीरियल की निर्माता एकता कपूर हैं।

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कुमकुम भाग्य का आखिरी एपिसोड 21 सितंबर, 2025 को प्रसारित हुआ। शो के बंद होने का मुख्य कारण टीआरपी रेटिंग में गिरावट थी।
इसकी जगह पर 'गंगा माई की बेटियां' नामक  नया सीरियल आएगा।

टीवी पर नयी पीढ़ी की कहानियां  

टीवी सिर्फ पुरानी कहानियों तक सीमित नहीं रहा। अब दर्शक बदल चुके हैं, एक नई पीढ़ी zen Z का आगमन हो चुका है और उनके साथ बदल रहे हैं शोज़ भी। जैसे ‘वसुधा’, ‘गंगा मां की बेटियां’ या ‘धमाल विद पति पत्नी और पंगा’। इन शोज़ ने यह साबित कर दिया है कि लोग अब सिर्फ सास-बहू के झगड़े नहीं, बल्कि भावनाओं के अलग अलग रंग देखना भी पसंद करते हैं और मॉडर्न थीम के प्रत्याशी भी हैं।

ड्रीमियाता ड्रामा का नया शो "Ganga Mai Ki Betiyan" जल्द ही ज़ी टीवी पर, लीड  रोल में नज़र आएंगी शुभांगी लाटकर

‘वसुधा’ ने औरत की पहचान के नए अर्थ गढ़े हैं। यह शो एक ऐसी औरत की कहानी है जो अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है। वसुधा’ की लीड एक्ट्रेस प्रिया कहती हैं, “मुझे पहली बार लगा कि मेरा किरदार सिर्फ किसी का साथ निभाने वाला नहीं, बल्कि खुद अपनी दुनिया बनाने वाला है।” 
 Vasudha (टीवी सीरीज़ 2024– )
‘गंगा मां की बेटियां’ में आत्मिक और सांस्कृतिक कहानी बुनी गई है, जिसमें मां और बेटी के रिश्ते के साथ धर्म और समाज की सीमाओं को दिखाया गया है। इसके  डायरेक्टर जया सिंह के अनुसार, “हमने मां-बेटी के रिश्ते में धर्म, समाज और संस्कार के बीच की खींचतान को महसूस कराया, जहां हर बेटी अपनी मां की ताकत बन जाती है।”

गंगा माई की बेटियां: एक मां और उसकी तीन बेटियों की संघर्ष भरी कहानी -  upcoming show of zee tv ganga mai ki betiyan-mobile

वहीं ‘पति पत्नी और पंगा’ रियलिटी शो ने TV को एक हलकी-फुल्की रिलेशनशिप कॉमेडी का नया स्वाद दिया है। इसमें परिवार की नोंक-झोंक को मज़ेदार ढंग से दिखाया गया है।वसुधा’, ‘गंगा मां की बेटियां’ और ‘पति पत्नी और पंगा’ – बदलते भारत की नई आवाज़  है। पति पत्नी सीरियल के लेखक कहते हैं, “हमने बस ये दिखाया कि शादी के बाद भी जीवन में मज़ा आ सकता है, बस नज़रिया थोड़ा हंसी-मज़ाक वाला होना चाहिए।”
इन शोज़ ने साबित किया है कि टीवी अब सिर्फ़ परंपरा नहीं, बल्कि नया दृष्टिकोण भी दिखा रहा है।

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‘बिग बॉस 19’ – रियलिटी की रेस में  

टीवी के ड्रामा से हटकर अगर रियलिटी की बात करें तो ‘बिग बॉस 19’ हमेशा चर्चाओं में रहता है। 1.3 की रेटिंग के साथ भले टॉप 10 से नीचे रहा, पर उसकी गर्मी सोशल मीडिया पर बनी रहती है। हर हफ्ते के टास्क, भयंकर झगड़े , तू तू मैं मैं और जोड़ीदारों की डाइनामिक्स दर्शकों को खींचती है। जहां हालांकि ड्रामा लिखित होता है, वहां बिग बॉस में यह रियल लगता है। दर्शक इसे कहते हैं — “टीवी का सबसे ईमानदार शो है, क्योंकि यहां कुछ भी स्क्रिप्टेड नहीं।”

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टीवी क्यों अब भी सबसे आगे है  

लोग कहते हैं कि अब तो ओटीटी का जमाना है। पर सच्चाई यह है कि टीवी की अपनी एक अलग आत्मा है, एक सच्ची फैन फॉलोइंग है। टीवी वो जगह है जहां परिवार एक साथ बैठकर मनोरंजन के पारिवारिक पल गुजारते है, साथ हंसते है, साथ रोते है। ओटीटी पर अक्सर इंसान एकांत झेलता है, उसे अकेले देखता है, लेकिन टीवी पर हर कहानी साझा होती है। यही कारण है कि टीवी अब भी हर घर में उतनी ही इज़्ज़त और प्यार पाता है।

टेलीविजन की इस बादशाहत के पीछे सिर्फ कहानियां नहीं, बल्कि पूरी एक संस्कृति जुड़ी है। हर शो समाज की किसी सच्चाई को छूता है,कर्ज़ में डूबे पिता की पीड़ा, आत्मनिर्भर महिला की जद्दोजहद, प्यार और रिलेशनशिप का बदलता रूप, या आज की युवा पीढ़ी का संघर्ष। यही सब मिलकर हमारे टीवी को इतना ज़िंदा और प्रासंगिक बनाते हैं कि छोटे पर्दे पर इसका वर्चस्व और बादशाहत बदस्तूर बनी हुई है।

आज की नई पीढ़ी के लेखक और निर्देशक अब टीवी को और स्मार्ट बना रहे हैं।  टीवी लेखकों की दुनिया भी अब बड़ी हो गई है। अबहर शो का राइटर सिर्फ कहानी नहीं लिखता, वो दर्शक की सोच समझने की कोशिश करता है।  अब सीरियल्स में केवल "सास-बहू" नहीं, बल्कि "ड्रीम्स और डिज़ायर" भी हैं। जैसे ‘उड़ने की आशा’ इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। एक तरफ आधुनिकता है, दूसरी तरफ परंपरा — दोनों मिलकर आज के भारतीय समाज की सच्ची तस्वीर दिखा रहे हैं।

Udne Ki Aasha - Wikipedia

अगर आप किसी भी मिडल-क्लास घर में जाकर पूछ लें कि “शाम को क्या देखते हैं?”, तो ज्यादातर जवाब मिलेगा “अनुपमा” या “तारक मेहता” या फिर ‘सास भी कभी बहु थी’। यह बताने के लिए काफी है कि टीवी न सिर्फ एंटरटेनमेंट है, बल्कि भारत के दिल की धड़कन है।

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चैनल सर्फिंग के इस दौर में टीवी सीरीज की सफलता सिर्फ एक बॉक्स नोट नहीं, बल्कि यादों का एलबम बन चुका है। हर कहानी, हर किरदार हमारे अपने जैसे लगते हैं। जब अनुपमा रोती है, तो लाखों औरतें उसके साथ रोती हैं। जब जेठालाल फंसता है, तो पूरा मुहल्ला हंसता है। यही है भारतीय टीवी की असली बादशाहत — लोगों के दिल में जीना। 
भारतीय टीवी का भविष्य अब तकनीक और विषयवस्तु दोनों में आगे बढ़ चुका है। अब शोज़ 4K क्वालिटी में शूट होते हैं, म्यूज़िक पूरी फिल्म जैसी क्वालिटी का होता है, और कहानी में सिनेमाई गहराई नज़र आती है।  फिर भी, दर्शक का रिश्ता टीवी से भावनात्मक ही रहता है।  

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एक दिलचस्प बात यह है कि अब रियलिटी और फिक्शन की सीमाएं भी धुंधली हो रही हैं। ‘बिग बॉस’ जैसे शोज़ एक तरफ असल ज़िंदगी के झगड़े और इमोशन दिखाते हैं, वहीं दूसरी तरफ सिनेमा के ग्लैमरस चेहरे उनमें नया रंग भरते हैं। दर्शक अब सब कुछ साथ में चाहता है — हंसी, ड्रामा, सस्पेंस, और थोड़ा सा सच भी।

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लब्बोलुआब यह है कि भारतीय टीवी सिर्फ कहानी सुनाने का ज़रिया नहीं रहा, बल्कि समाज के आईने की तरह है – जिसमें समय के साथ-साथ भावनाएँ बदलती रहती हैं और हर किरदार उस बदलाव का हिस्सा बन जाता है।  
यही वजह है कि चाहे ओटीटी कितना भी आगे बढ़ जाए, टीवी की बादशाहत को कोई नहीं छीन सकता।

FAQ

Q1. भारतीय घरों में टीवी का महत्व क्या है?

A1. टीवी भारतीय घरों में शाम के समय हर उम्र और रुचि से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मनोरंजन माध्यम है। बच्चे, माता-पिता और बुजुर्ग अपने पसंदीदा चैनल और शो देखते हैं।

Q2. BARC रिपोर्ट 2025 के अनुसार कौन से शो सबसे लोकप्रिय हैं?

A2. रिपोर्ट के अनुसार, सास-बहू और परिवार की कहानियां महिलाओं में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं, जबकि बच्चे कार्टून और पुरुष न्यूज़ या क्रिकेट पसंद करते हैं।

Q3. भारत में पहला मेगा फेमिली सीरियल कौन सा था?

A3. भारत का पहला मेगा फेमिली सीरियल हम लोग था, जो जुलाई 1984 में दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ।

Q4. पुराने लोकप्रिय टीवी शो कौन-कौन से हैं?

A4. बुनियाद, रामायण, महाभारत, तारक मेहता का उल्टा चश्मा, ये रिश्ता क्या कहलाता है, अनुपमा, कुंडली भाग्य जैसी कई सीरीज आज भी दर्शकों में लोकप्रिय हैं।

Q5. टीवी सीरियल्स का भारतीय समाज और सिनेमा पर क्या प्रभाव पड़ा?

A5. टीवी सीरियल्स ने परिवारिक कहानियों और सास-बहू के विषयों के माध्यम से दर्शकों को जोड़ने के साथ-साथ सिनेमाघरों और संस्कृति पर भी असर डाला।

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