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फिल्मों में महिलाओं से भेद भाव होता है, बॉलीवुड का यह एक सच है। हीरो के पेमेंट का 25 प्रतिशत पेमेंट भी हीरोइन नहीं पाती ! इंडस्ट्री की कोई कोई हीरोइन ही हैं जो हीरो के मुकाबले 50 प्रतिशत तक पेमेंट ले पाती हैं, वो भी तब जब फिल्म 'हीरोइन ओरिएंटेड' बन रही होती है जिनके सामने कोई बड़ा हीरो नहीं होता। यह सच सामने आता है जब किसी फिल्म की शुरुआत के समय बजट बनता है, फिल्म इंडस्ट्री का कोई भी निर्माता इसबात की पुष्टि कर सकता है।
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फिल्म 'जवान' शाह रुख खान की घर की फिल्म थी। इस फिल्म के लिए शाह रुख को दिया जाने वाला उनका खुद का पारिश्रमिक पेमेंट तय किया गया था 100 करोड़। जबकि फिल्म की चार हीरोइनें मिलाकर सभी, महज 25 करोड़ के बजट में फाइनल हुई थी। ऐसा ही अक्षय कुमार , सलमान खान और दूसरे सितारों की फिल्मों के साथ होता है। अगर अक्षय कुमार एक फ़िल्म के लिए 300 करोड़ मांगते हैं तो उसी फिल्म में अक्षय के साथ काम करनेवाली ए ग्रेड स्टारर फिल्म की हीरोइन 75 लाख से एक करोड़ तक के पेमेंट रेंज में ही रह जाती है। (Bollywood gender pay gap between actors and actresses)
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बॉलीवुड में लैंगिक वेतन अंतर: अभिनेत्रियों को पुरुष अभिनेताओं से कम वेतन क्यों मिलता है?
पहला सवाल यह है कि बॉलीवुड में पुरुष स्टार और महिला स्टार के पेमेंट में यह भेद भाव क्यों? और दूसरा सवाल है जब बॉलीवुड जैसे लिबरल जगह में महिला दोयम दर्जे पर काउंट होती है तो इसकी काउंटेबिलिटी (जिम्मेदारी) किसकी होती है? अब जब भारतीय महिलाएं वर्ल्डकप जीतकर लाती हैं और प्रधाम मंत्री मोदी जी उन्हें 'क्वीन्स' कहते हैं, यह सवाल और गौड़ हो जाता है कि आखिर महिलाओं का वजूद कम करके क्यों आंका जाता है ?खासकर बॉलीवुड में जहां की फिल्में देश की जनरेशनज़ेड की दशा और दिशा तय करती हैं। (Why Bollywood actresses are paid less than male actors)
प्रसंगबस काउंटटेबिलिटी याद दिलाती है चाणक्यनीति में वर्णित एक प्रसंग की, चाणक्य ने महाराज चन्द्रगुप्त मौर्य से पूछा था- 'राजन, सत्ता में भागीदारी महिलाओं की भी होनी चाहिए या नहीं? फिर उनके हक में कटौती क्यों ?'। सम्राट हैरान- 'राज काज में उनकी क्या जरूरत?' इस सोच के साथ चाणक्य के इशारे पर सम्राट ने इस गंभीर मुद्दे पर अपनी मां और पत्नी से उनका विचार पूछा। माताजी और पत्नी दोनों का मशवरा बड़ा विवेक पूर्ण था, इतना कि उनके मंत्रियों का भी नहीं था। चंद्रगुप्त ने चाणक्य की बात को गम्भीरता से लिया और राज- काज में महिलाओं का सहयोग लेना शुरू किया। यह सिलसिला कमोवेश आज की लोक तांत्रिक पद्धति में भी है। डॉ. आंबेडकर ने ऐसा ही विधान बनाया हुआ है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस दिशा में पहल किया हुआ है। जिसके परिणामस्वरूप 2025 में हरलीन कौर की महिला क्रिकेटरों की टीम ने वर्ल्डकप में 1983 के कपिलदेव की टीम की याद दिला दिया है। 'नारीशक्ति' की चर्चा के बीच दीपिका पादुकोण के 8 घंटे काम करने की शर्तों को मान्यता दिए जाने का मामला भी एक मुद्दा है जिसपर बॉलीवुड संगठनों को फैसला लेना चाहिए। (Shah Rukh Khan Jawan salary comparison with actresses)
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जहां तक पेमेंट की बात है , 'एनिमल' में रणबीर कपूर ने जितना पेमेंट लिया था उसका 20 प्रतिशत भी फिल्म की दोनो हीरोइनों को मिलाकर नहीं दिया गया था, एक हीरोइन तृप्ति डिमरी ने खुद यह बात कहा था।बड़ी से बड़ी सिनेमा की हीरोइनें भी - जो अपने कंधे पर कामयाब फिल्में चलाती हैं, उन्हें लेकर भी बॉलीवुड की अवधारणा बन गयी है कि 'औरतें असल मे छोटे कद की पुरुष हैं।' शायद इसीलिए कामयाबी के वावजूद पेमेंट लेने के मामले में वह पुरुष नायकों से बहुत पीछे रह जाती हैं। माना जाता है कि हिंदी फिल्मों में हीरोइनें, हीरो के मुकाबले 25% ही पारिश्रमिक पाती हैं।
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सिर्फ फिल्म ही नहीं, स्त्री के सामाजिक रुतबे में हर जगह यही हाल रहा है।चुनाव के समय हीरो को पहले टिकट ऑफर किया जाता है। लेकिन अब सिनेरियो बदल गया है। नारी के प्रगति की आहट गूँजनी शुरू हो गयी है। राजनीति, कम्प्यूटर इंजीनीयरिंग, मेडिकल, डिफेंस, न्यूज रीडिंग, आईएएस, पीसीएस,स्पोर्ट्स यहांतक की ट्रेन, बस और आउटो रिक्शा चालक की सीट पर लड़कियां बैठ गयी हैं। विकास का क्रम जोर पकड़ रहा है बेशक गति धीमी है। (Bollywood actresses salary range vs top male actors)
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बॉलीवुड की लड़कियां श्रम करने के मामले में भी पीछे नही होती। बड़ी हीरोइनों की बात ना करें तो चरित्र अभिनेत्रियां और जूनियर लड़कियां शूटिंग के सेट पर मेकअप पोतकर दस दस बारह बारह घण्टे अपनी बारी आने के इंतेजार में बैठी रहती हैं। निर्देशक भूल जाते हैं कि उनके बच्चे उनके घर पर इंतेजार कर रहे होते हैं। उन्हें खाना भी घर जाकर बनाना होता है। टीवी सीरियलों की लड़कियां तो बंधुवा मजदूर की तरह काम करती हैं और जब पेमेंट पाने का समय आता है उन्हें कहा जाता है 3 महीने बाद। प्रोडक्शन हाउसों की यह मनमानी भी टूटनी चाहिए। नारी अब पुरुष के बराबर हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है तो वह शोषिता बनकर क्यों रहे? इस बदलाव का श्रीगणेश भी बॉलीवुड से होना चाहिए। समय आगया है जब हीरो की तरह फिल्म की हीरोइन भी फिल्म में अपनी भागीदारी(पार्टनर शिप) की मांग शुरू करे। हक की लड़ाई ऊपर से शुरू होगी तभी निचले लेवल पर फिल्मों की नारी अपना अधिकार पा सकेगी। समय आगया है कि फिल्म की एसोसियन्स हक की लड़ाई में महिलाओं के साथ खड़ी दिखाई दें। तभी सार्थक होगा भारत की बेटियों का विश्व चैंपियन कहा जाना।
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FAQ
प्रश्न 1. बॉलीवुड में हीरो और हीरोइन के पेमेंट में इतना बड़ा अंतर क्यों होता है?
उत्तर: इसका मुख्य कारण फिल्म इंडस्ट्री की वर्षों पुरानी सोच और मार्केट वैल्यू का तर्क है, जहाँ माना जाता है कि पुरुष सितारे बॉक्स ऑफिस पर ज़्यादा भीड़ खींचते हैं। इसी वजह से हीरो को ज़्यादा और हीरोइन को कम भुगतान किया जाता है।
प्रश्न 2. क्या बॉलीवुड में महिलाओं के साथ पेमेंट भेदभाव एक वास्तविक समस्या है?
उत्तर: हाँ, यह एक वास्तविक और व्यापक समस्या है। कई शीर्ष अभिनेत्रियों ने खुले तौर पर स्वीकार किया है कि उन्हें पुरुष कलाकारों की तुलना में बहुत कम भुगतान मिलता है।
प्रश्न 3. क्या हीरोइन-ओरिएंटेड फिल्मों में भी अभिनेत्रियों को कम भुगतान मिलता है?
उत्तर: हाँ, अधिकतर मामलों में ऐसा होता है। सिर्फ कुछ ही अभिनेत्रियाँ अपने स्तर पर हीरो के मुकाबले 40–50% पेमेंट पा पाती हैं, वह भी तभी जब फिल्म पूरी तरह उनके इर्द-गिर्द हो और कोई बड़ा हीरो न हो।
प्रश्न 4. क्या बड़े सितारों की फिल्मों में फीमेल को-स्टार्स को बेहद कम पेमेंट मिलता है?
उत्तर: बिलकुल। उदाहरण के लिए, अगर कोई बड़ा स्टार 100–300 करोड़ तक फीस लेता है, तो उसी फिल्म में काम करने वाली A-ग्रेड हीरोइन अक्सर सिर्फ 75 लाख से 1 करोड़ की रेंज में रहती है।
प्रश्न 5. क्या फीस तय करते समय यह भेदभाव सामने आता है?
उत्तर: हाँ, फिल्मों का बजट बनाते समय ही यह अंतर साफ दिखाई देता है। निर्माता, निर्देशक और बजट टीम भी मानते हैं कि हीरोइन की फीस आमतौर पर हीरो की तुलना में बहुत कम रखी जाती है।
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