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देश की राजधानी दिल्ली की कुंडली मे अनेकानेक सितारों के जन्म का योग बनना एक व्यापक सत्य है। 2 नवम्बर 1965 को दिल्ली की उसी कुंडली मे एक और ओजस्वी बच्चे के आविर्भाव का योग था, तब भले उस सितारे के जन्म की चर्चा उतनी व्यापक रूप से खबर नही बन पाई हो, पर आज 60 साल बाद उसी बालक के 60 वें वर्ष में पहुचने की खबर किसी अंतरराष्ट्रीय खबर से कम नहीं है। 2 नवम्बर 2025 को दुनिया भर में फैले उस सितारे के करोड़ो चाहने वालों के लिए यह एक उत्साह वर्धक खबर है कि इसदिन किंग खान 60 वर्ष के हो रहे हैं !! (Shahrukh Khan 60th birthday celebration 2025)
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कहते हैं साठा तब पाठा ! शाहरुख खान पर यह कहावत पूर्णतः सच लग रही है। तभी तो उनके फैन्स कह रहे हैं- "अभी पिक्चर बाकी है दोस्त।" सिनेमा, व्यवसाय और राष्ट्रीयता से शाहरुख के जन्म का रिश्ता बहुत गहरा है। जन्म के समय घर का माहौल देश भक्ति और व्यापार की सोच से लवरेज था। तब कोई सोच नहीं सकता था कि ये बालक भविष्य में फिल्मों के कैनवास पर जगमगाने वाला स्टार होगा। उस समय ब्रिटिश इंडियन फौज के सिपाही (बादमें नेताजी सुभषचंद्र बोस की हिन्द- सेना के जनरल) शाहनवाज खान एक स्वतंत्रता सेनानी थे।उनकी दत्तक पुत्री फातिमा लतीफ और व्यवसायी मीर ताज का बेटा "अबुर रहमान" एक दिन हिंदी सिनेमा के पर्दे पर "शाहरुख खान" बनकर चमकेगा, इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल था।
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शाहनवाज साहब वो स्वतंत्रता सेनानी थे- जो जब अंग्रेजों ने भारत से जाने फैसला किया तब वह पहले आदमी थे जो दिल्ली के लालकिले से ब्रिटिश हुकूमत का झंडा उतारे थे और वहां भारत का झंडा लहरा दिए थे। बादमें वह आज़ाद भारत की संसद में तीन बार सांसद और मंत्री रहे। उनकी परवरिश में पली- बढ़ी पाकिस्तान के हैदराबाद से भारत आई, उनकी गोंदली बेटी फातिमा लतीफ (शाहरुख की मां) किसी स्टार को ही जन्म दे सकती थी, ऐसा उनका मानना था। बाद के वर्षों में शाहरुख खान ने अपनी परवरिश के बारे में स्वयं कहा- "हम सच्चे राष्ट्रवादी हैं।" (Shahrukh Khan birth story in Delhi\)
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और, इस राष्ट्रवादी स्टार केअंदर राष्ट्रीयता और व्यावसायिकता दोनो कूट कूट कर भरी हुई हैं, जो शायद उनको अपने नाना और बिजनेसमैन बाप से मिली हुई हैं। जब वह देश सेवा के मुद्दे पर होते हैं निःस्वार्थ जुड़ते हैं। अपना नाम सामने नही लाते, मगर अपनी NGO ( मीर फाउंडेशन, द अर्थ फाउंडेशन, रोटी फाउंडेशन ) के द्वारा देश की हर आपात स्थिति में सहायता के लिए खड़े होते हैं। और, जब व्यवसाय की बात आती है तो फिल्म इंडस्ट्री में उनसे बड़ा बाज़ीगर कोई नही जिसने उन्हें बॉलीवुड का बादशाह नाम दिया है। वह एक बेजोड़ निर्माता हैं, अभिनेता हैं, एंकर हैं और कला के खेत्र में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर राष्ट्र का प्रतीक हैं। सन 1992 में अपनी डेब्यू फिल्म 'दीवाना' से जो उन्होंने कामयाबी की ट्रॉफियां लेना शुरू किया तो वह बदस्तूर जारी है। पिछले 33 साल से हर साल शाहरुख के नाम की एक बेस्ट एक्टर की ट्रॉफी ज़रूर कहीं न कहीं होती है। टेलीविजन के वह चर्चित चेहरा रहे हैं। शोज को वह बेहतरीन होस्ट करते हैं।विज्ञापन जगत के वह सबसे बड़े इंडोर्जमेंट पर्सनालिटी हैं। 'दीवाना', 'बाज़ीगर', 'कभी हां कभी ना', 'अंजाम', 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे', 'दिल तो पागल है', 'कुछ कुछ होता है', 'मोहब्बतें', 'देवदास', 'स्वदेश', 'चक दे', 'माई नेम इज खान' से 'पठान' और 'जवान' तक के 200 फिल्मों के सफर में अब उनकी नई उपाधि "किंग" होने जा रही है। (History of Shahrukh Khan family background)
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वर्ड इकोनॉमिक फोरम ने उनको वुमन एन्ड चिल्ड्रन राइट्स के लिए सम्मानित किया है।यूनेस्को ने उनको चिल्ड्रेन सपोर्ट के लिए पुरस्कृत किया है। स्कॉट लैंड यूनिवर्सिटी (एडिनवर्ग) ने उनको डॉक्टरेट की ऑनरेरी उपाधि दी है तथा भारत सरकार ने पद्मश्री और फाल्के से सम्मानित किया है। ऐसे स्टार के लिए जितना लिखा जाए कम है।सहनशीलता के मामले में जितना धैर्य शाहरुख खान ने पुत्र आर्यन के केस में दिखाए हैंऔर ओर फिर एकबार बेटे को स्टैंड करने में दिखाए हैं, सचमुच किसी बाप के लिए और भारतीयता के लिए एक श्रेष्ठ उदाहरण है। ऐसे राष्ट्रप्रेम और व्यापारिक सोच की परवरिश से तैयार हुए स्टारडम के बादशाह को उनके 60 वें जन्मदिन पर बहुत बहुत बधाई !! (Shahrukh Khan connection with freedom fighter Shah Nawaz Khan)
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