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क्या से क्या हो गया? कश्मीर का वो खूबसूरत शहर पहलगाम, जिसे धरती का स्वर्ग, और भारत का छोटा स्विटजरलैंड नाम दिया जाता रहा है, आज उस स्वर्ग का नाम खौफ और आंसुओं के साथ लिया जाने लगा?
कश्मीर हमेशा से पर्यटकों और फिल्म निर्माताओं के लिए पसंदीदा जगह रहा है, वहां आज वीरानी छाई हुई है. हालांकि खौफ के मंजर में अब भी चंद पर्यटक अपने डर को काबू में रखे हुए वहां घूम फिर रहे हैं लेकिन अंदरूनी माहौल तो थार्राया हुआ और स्तब्ध शांत है ही. होटलों में जहां एक कमरा मिलना मुहाल था, शिकारे वाले, घोड़े वाले जो पर्यटकों को घुमाते फिराते थक कर चूर थे, आज खाली और सन्नाटे में हाथ मल रहे हैं. अपने शांत वातावरण और शानदार नज़ारों के लिए मशहूर यह खूबसूरत शहर इस क्षेत्र की सबसे सुरक्षित जगहों में से एक मानी जाती थी. यह सबको पता है कि बॉलीवुड फ़िल्मों को शुरू से ही कश्मीर की प्राकृतिक सुंदरता पसंद रही है.
खासकर पहलगाम, जिसे 1960 के दशक में कश्मीर की कली जैसी कई क्लासिक फ़िल्मों में दिखाया गया था. इन फ़िल्मों में इस घाटी की झीलें, पहाड़ और हरे भरे घास के मैदान दिखाए गए थे. इस कारण यह दशकों तक एक लोकप्रिय शूटिंग स्थान बना रहा. आज जब यह जगह फिल्मों के शूटिंग के बदले गोलियों की शूटिंग से गूंज कर ना सिर्फ पर्यटकों और वहां के मासूम रहवासियों को थर्रा गया है बल्कि वहां की सुरम्य घाटियों, खूबसूरत नज़ारों, स्थिर पहाड़ों और शांत झीलों को भी स्तब्ध कर गया, तो भला यहां फिल्मों जैसे सपनों की दुनिया कैसे बसाई जा सकती है?
1960 से 1980 के दशक तक, कश्मीर बॉलीवुड के लिए एक टॉप का शूटिंग लोकेशन रही थी. यादगार गोल्डन इरा की फिल्में जैसे आरज़ू, जब जब फूल खिले, कभी-कभी, सिलसिला और सत्ते पे सत्ता ने इस घाटी के आकर्षण को दर्शाया था. इस लोकेशन ने बॉलीवुड और कश्मीर के बीच एक मज़बूत संबंध बनाया था.
1950 से 2025 तक, कई बॉलीवुड फ़िल्मों की शूटिंग कश्मीर के पहलगाम में हुई है, जो अपनी शानदार प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है. पहलगाम अपनी हरी-भरी घाटियों, नदियों और बर्फ से ढके पहाड़ों के लिए दशकों से फिल्म निर्माताओं को आकर्षित करता रहा है. यह रोमांस से लेकर ड्रामा तक की कहानियों के लिए एक आदर्श पृष्ठभूमि प्रदान करता रहा है.
पहलगाम में शूट की गई मशहूर फिल्मों में से एक है "बेताब" (1983), जिसमें सनी देओल और अमृता सिंह ने काम किया था. यह फिल्म इतनी लोकप्रिय हुई थी कि पहलगाम की एक घाटी को अब इस फ़िल्म के नाम पर, बेताब घाटी कहा जाता है. यह फिल्म कश्मीर के खूबसूरत नज़ारों के बीच एक प्रेम कहानी को उजागर करते हुए दर्शकों को इस क्षेत्र के आकर्षण को दिखाती है.
2014 में, विशाल भारद्वाज द्वारा निर्देशित फिल्म "हैदर" की भी आंशिक शूटिंग पहलगाम में हुई थी. "हैदर" शेक्सपियर के हेमलेट से प्रेरित एक सीरियस ड्रामा है. इसमें शाहिद कपूर मुख्य भूमिका में हैं और यह कश्मीर में संघर्ष और परिवारिक कहानी पर आधारित है जिसमें भावनात्मक और राजनीतिक तनाव को दर्शाने के लिए पहलगाम के बर्फीले मैदानों और पुरानी गलियों का उपयोग किया गया है.
पहलगाम में शूट की गई अन्य उल्लेखनीय फिल्मों में "हाईवे" (2014), "जब तक है जान" (2012), "राज़ी" (2018), और "बजरंगी भाईजान" (2015) शामिल हैं. उदाहरण के लिए, "बजरंगी भाईजान" में मशहूर कव्वाली को अश्मुकाम की ज़ियारत में फ़िल्माया गया था, और फिल्म के भावनात्मक एंड को पहलगाम के पास बैसरन घाटी में फ़िल्माया गया था. इन फ़िल्मों ने इस घाटी की प्राकृतिक सुंदरता का उपयोग अपनी कहानियों में गहराई और भावनात्मक रूप जोड़ने के लिए किया था.
1970 और 1980 के दशक के दौरान, पहलगाम, गुलमर्ग और श्रीनगर जैसे अन्य कश्मीरी लोकेशंस , बॉलीवुड के फ़िल्म निर्माताओं के लिए एक पसंदीदा जगह बन गई थी. उस दौर की कई फ़िल्मों में इस क्षेत्र के सुंदर दृश्य दिखाए गए. उदाहरण के लिए, राज कपूर की "बॉबी" (1973) के दृश्य गुलमर्ग में फ़िल्माए गए थे, और फ़िल्म में इस्तेमाल की गई झोपड़ी को आज भी बॉबी हट के नाम से जाना जाता है. जिस तरह, निर्देशक राहुल रवैल की फ़िल्म "बेताब" ने पहलगाम की एक घाटी को अपना नाम दिया था.
हाल के वर्षों में, भारतीय सिनेमा ने वर्षों की अशांति के बाद वापस कश्मीर में शूटिंग शुरू करने का साहस जुटाया था. 2021 और 2023 के बीच इस क्षेत्र में 300 से अधिक फिल्मों की शूटिंग की गई है, जिसमें बॉलीवुड प्रोडक्शन की बहुत सारी फिल्में भी शामिल हैं. सिनेमा की शूटिंग के कारण हुए इस घाटी के पुनरुद्धार ने रातोंरात स्थानीय अर्थव्यवस्था में खूब बढ़ोतरी की थी और धीरे धीरे 1980 के दशक के फिल्म युग को वापस ला रही थी, जब कश्मीर एक लोकप्रिय शूटिंग स्थल था. पहलगाम के अलावा, श्रीनगर, डल झील, सोनमर्ग और गुलमर्ग जैसे अन्य कश्मीर लोकेशंस का उपयोग भी कई फिल्मों में किया गया है. श्रीनगर के मुगल गार्डन और डल झील को "आराधना" (1969) और "कभी कभी" (1976) जैसी फिल्मों के क्लासिक गानों में दिखाया गया है. स्वर्ण मैदान (सोने के मैदान) के रूप में जाना जाने वाला सोनमर्ग "फना" (2005) और "ये जवानी है दीवानी" (2013) जैसी फिल्मों में दिखाई दिया है. कुछ फिल्में कश्मीर के राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित करती रही हैं. ऋतिक रोशन और संजय दत्त अभिनीत "मिशन कश्मीर" (2000) की शूटिंग श्रीनगर और पहलगाम के आसपास की जगहों पर की गई थी. यह घाटी में आतंकवाद और पर्सनल बदला लेने की कहानी है. बहुचर्चित फ़िल्म "द कश्मीर फाइल्स" (2022) कश्मीरी पंडितों के दुखद पलायन को उजागर करती है और इसे पहलगाम सहित कश्मीर भर में वास्तविक लोकेशंस पर फिल्माया गया था. यामी गौतम अभिनीत एक अन्य फिल्म "आर्टिकल 370" (2023) जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने को लेकर एक राजनीतिक थ्रिलर फ़िल्म के रूप में हिट रही है, जिसके दृश्य श्रीनगर और आस-पास के इलाकों में फिल्माए गए हैं.
लब्बो लुआब यह है कि पहलगाम 1950 के दशक से लेकर 2025 तक कई बॉलीवुड फिल्मों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान बना रहा है. इसने "बेताब" जैसी रोमांटिक फिल्मों, "हैदर" जैसी डीप ड्रामा और "द कश्मीर फाइल्स" जैसी सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण फिल्मों की मेजबानी की है. इस अद्भुत घाटी की लुभावनी सुंदरता और सांस्कृतिक समृद्धि भारतीय फिल्म निर्माताओं को प्रेरित करती रही है और दुनिया भर के दर्शकों को आकर्षित करती है.
कई बॉलीवुड फिल्मों ने कश्मीर के चित्रण के लिए खास पुरस्कार भी जीते हैं. फ़िल्म की कहानी और लोकेशन के इतिहास तथा सुंदरता, तीनों के चित्रण के लिए. विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित द कश्मीर फाइल्स (2022) ने 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में, राष्ट्रीय एकता पर सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के रूप में नरगिस दत्त पुरस्कार जीता. विशाल भारद्वाज द्वारा निर्देशित हैदर (2014) को खूब सारी आलोचनात्मक प्रशंसा मिली और इसने कई राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार जीते, जिसमें सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्वगायक, सर्वश्रेष्ठ कोरियोग्राफी, सर्वश्रेष्ठ पोशाक डिज़ाइन और सर्वश्रेष्ठ संवाद शामिल हैं. कश्मीर में संघर्ष की पृष्ठभूमि पर आधारित, यह फ़िल्म अपने शक्तिशाली कथानक और क्षेत्र के दृश्य चित्रण के लिए विख्यात थी.
विधु विनोद चोपड़ा द्वारा निर्देशित, कश्मीर की घाटियों पर शूट की गई, मिशन कश्मीर (2000) एक और पुरस्कार विजेता फ़िल्म थी. इसने सर्वश्रेष्ठ एक्शन के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीता और इसे अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोहों में दिखाया गया. यह फ़िल्म घाटी में आतंकवाद और व्यक्तिगत नुकसान से निपटने की कहानी कहती है. इसे इसकी गंभीर कहानी और कश्मीर के परिदृश्य के उपयोग के लिए पहचाना जाता है.
मेघना गुलज़ार द्वारा निर्देशित बहुचर्चित फ़िल्म राज़ी (2018) को भी कई पुरस्कार मिले, जिसमें सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (आलिया भट्ट) के लिए, फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार शामिल हैं. हालाँकि यह पूरी तरह से कश्मीर को लेकर कहानी नहीं है, लेकिन यह इसी कश्मीरी क्षेत्र में सेट की गई थी और इसमें एक कश्मीरी हीरो भी है, जो युद्ध के दौरान कश्मीरियों का बारीकी से चित्रण प्रस्तुत करता है.
ये सारी फ़िल्में कश्मीर के अपने पुरस्कार विजेता चित्रण के लिए जानी जाती हैं. इन फिल्मों में, इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता को इसके लोगों और इतिहास की कहानियों के साथ मिलाती हैं. लेकिन याद रहे, पहलगाम का आकर्षण सिर्फ़ एक सुंदर पृष्ठभूमि होने से कहीं बढ़कर है. यह अक्सर वहाँ शूट की गई फ़िल्मों की कहानी में एक महत्वपूर्ण आत्मा को निभाता है. उदाहरण के लिए, यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित "जब तक है जान" में, पहलगाम सहित कश्मीर के परिदृश्यों का उपयोग, चरित्रों के जीवन में शांति और उनके अंतर में छिपे तनाव दोनों को दर्शाने के लिए किया गया है. फ़िल्म इस क्षेत्र की सुंदरता को दर्शाती है, जो इसे लगभग अपने आप में एक चरित्र बनाती है.
आलिया भट्ट अभिनीत "राज़ी" भी अपनी कहानी को रेखांकित करने के लिए पहलगाम का उपयोग करती है. एक सच्ची कहानी पर आधारित यह फ़िल्म, पाकिस्तान में एक भारतीय जासूस की यात्रा को दर्शाती है. पहलगाम के शांत लेकिन अलग-थलग इलाके, मूक पहाड़, गहरी खाईयां, फ़िल्म के नायक के आंतरिक संघर्ष और उसके द्वारा किए जाने वाले खतरनाक मिशन को दर्शाते हैं.
बजरंगी भाईजान, एक ऐसी फिल्म जिसने कई दिलों को छुआ. यह फ़िल्म पहलगाम के आध्यात्मिक पक्ष को दर्शाती है. अश्मुकाम की ज़ियारत, जहाँ कव्वाली गीत फिल्माया गया था, फिल्म में भक्ति और सांस्कृतिक गहराई की भावना जोड़ती है. बैसरन घाटी, जहाँ इस फ़िल्म की भावनात्मक चरमोत्कर्ष फिल्माया गया था, क्या वो एक शानदार और भावनात्मक रूप से दिल झकझोरने वाला माहौल प्रदान नहीं किया था? हाल के वर्षों में, जैसे-जैसे कश्मीर अधिक सुलभ और शांतिपूर्ण होता जा रहा था, अधिक से अधिक फिल्म निर्माता वापस लौटना पसंद कर रहे थे. ऐसे में फिल्म शूटिंग में वृद्धि, न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे रही थी, बल्कि स्थानीय प्रतिभाओं को इन परियोजनाओं में भाग लेने के अवसर भी प्रदान कर रही थी. वहां रहने वाले कई स्थानीय निवासी क्रू मेंबर, एक्स्ट्रा और अन्य सहायक भूमिकाओं में शामिल हो कर पैसा कमा रहे थे. और उनका यह अर्थ उपार्जन उस क्षेत्र के फिल्म उद्योग को विकसित करने में मदद कर रहा था. फीचर फिल्मों के अलावा, कश्मीर, पहलगाम का उपयोग संगीत वीडियो, विज्ञापनों और टेलीविजन श्रृंखलाओं की शूटिंग के लिए भी किया जाता रहा है. बर्फ से ढकी चोटियों से लेकर हरे-भरे घास के मैदानों तक का विविध परिदृश्य इसे विभिन्न प्रकार के मनोरंजक निर्माणों के लिए एक उपयुक्त स्थान का दर्जा दिया जाने लगा था. पर्यटन पर इन फिल्म शूटिंग का प्रभाव भी उल्लेखनीय रहा है. जब कोई लोकप्रिय फिल्म किसी लोकेशन को दिखाती है, तो अक्सर पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होती है. पहलगाम में बेताब घाटी इसका एक प्रमुख उदाहरण है, जहाँ घाटी का नाम ही फिल्म से लिया गया है, जो प्रशंसकों और पर्यटकों को समान रूप से आकर्षित करता है. इसी तरह, "बजरंगी भाईजान" के स्थानों पर लोगों की संख्या में वृद्धि देखी गई है. यह पर्यटक स्क्रीन पर देखी गई जगहों का अनुभव करना चाहते हैं.
बस दो दिन पहले तक, ऐसा सोचा जा रहा था कि, पहलगाम बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं के लिए एक पसंदीदा गंतव्य बना रहेगा. प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक समृद्धि और बेहतर बुनियादी ढाँचे का संयोजन इसे एक आकर्षक शूटिंग के रूप में गन्तव्य माना जा रहा था. फ़िल्म निर्माताओं का मानना था कि जैसे-जैसे इस खूबसूरत घाटी की पृष्ठभूमि में और कहानियाँ बताई जाएँगी, पहलगाम दर्शकों को आकर्षित करना जारी रखेगा और भारतीय सिनेमा के जादू में योगदान देगा.
वहां के रहने वाले, दुकानदार, घोड़े वाले, कनात वाले, झील में तैरते शिकारे वाले, कश्मीर और विशेष रूप से पहलगाम में शूटिंग के चलन को इस क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव को दर्शाने वाले मानकर खुश थे कि शूटिंग और पर्यटन के चलते उनके रोजगार बढ़ेंगे, माली हालात सुधरेंगे. फिल्म निर्माताओं की वापसी, सामान्य स्थिति और शांति की ओर एक कदम भी माना जा रहा था, जो क्षेत्र के विकास और बदलाव के लिए आवश्यक है. यह पुनरुत्थान सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि दुनिया को कश्मीर की उन्नति और सुंदरता दिखाने की भी बात थी. लेकिन मंगलवार, बाइस अप्रैल 2025 को पहलगांव में हुए भीषण आतंकवादी हमले ने सब तहस नहस कर दिया. सारे सपने, सारी उन्नति को धता बता दी. लेकिन याद रहे निर्माण कभी नहीं रुकता, उन्नति और भाईचारे के अपने आसमान, अपने हिमालय होते हैं, जो अटल, विरल और अंतहीन होते हैं. हर भारतीय के जुबान पर एक ही गीत है, 'हम होंगे कामयाब एक दिन'.
कश्मीर, में शूटिंग कर चुके कई बॉलीवुड स्टार्स के अनुभव कुछ इस प्रकार है.
अभिषेक बच्चन कहते हैं,
मुझे हमेशा से लगता रहा है कि कश्मीर धरती पर स्वर्ग है. जब मैंने वहां अपनी फिल्म की शूटिंग की, तो पहाड़, नदियाँ और ताज़ी हवा ने सब कुछ जादुई बना दिया. लोग इतने गर्मजोशी से भरे और स्वागत करने वाले थे. इसने पूरे अनुभव को और भी बेहतर बना दिया. प्रकृति से घिरे पहलगाम में होने से मुझे एक शांतिपूर्ण एहसास हुआ जो शूटिंग खत्म होने के बाद भी मेरे साथ रहा.
आलिया भट्ट ने बताया था,
कश्मीर में शूटिंग करना मेरे जीवन के सबसे खूबसूरत अनुभवों में से एक रहा है. मुझे पहलगाम के हरे-भरे घास के मैदानों में खड़ा होना याद है, मेरे चारों ओर बर्फ से ढके पहाड़ थे, और मैं पूरी तरह से शांति महसूस कर रही थी. स्थानीय लोग दयालु और जीवन से भरपूर थे, और उनकी संस्कृति ने इस जगह को और भी समृद्ध बना दिया. मैं ऐसी सुंदरता को कैमरे में कैद करने के लिए खुद को भाग्यशाली महसूस करती हूँ.
रणबीर कपूर बताते थे,
मेरे लिए, कश्मीर एक ऐसी जगह है जो आपके दिल में बस जाती है. जब मैंने वहां अपनी फिल्मों पर काम किया, तो मैं वहां की शांति और लुभावने दृश्यों से चकित रह गया. यह सिर्फ और सिर्फ नज़ारा ही नहीं बल्कि लोगों का उत्साह भी है जो इसे खास बनाता है. हर बार जब मैं पहलगाम जाता हूं, तो मुझे ऐसा लगता है कि मैं एक अलग दुनिया में कदम रख रहा हूं, जो उम्मीद और खुशी से भरी हुई है.
सलमान खान ने कहा था,
मैं हमेशा से कश्मीर जाना चाहता था, और जब मुझे आखिरकार वहां शूटिंग करने का मौका मिला, तो यह मेरी कल्पना से परे था. पहाड़, नदियाँ और साफ आसमान ने हर पल को अविस्मरणीय बना दिया. पहलगाम की खूबसूरती और वहां के लोगों की सरलता ने मुझमें वहां और अधिक समय तक रहने की इच्छा जगाई. यह एक ऐसी जगह है जो हमेशा आपके साथ रहती है.
शाहिद कपूर ने कहा था,
जब मैं कश्मीर में शूटिंग कर रहा था, तो मुझे इस सुन्दर धरती और इसके लोगों के साथ गहरा अपनापन और जुड़ाव महसूस हुआ. पहलगाम से दिखने वाले नज़ारे किसी सपने के सच होने जैसे थे. इसने मुझे पुरानी बॉलीवुड फिल्मों की याद दिला दी, जिन्होंने इस जगह को मशहूर बनाया. वहां बैठकर, प्रकृति से घिरे हुए, मैं शांत और प्रेरित महसूस करता था. कश्मीर में एक जादू है जो आपकी आत्मा को छू लेता है.
शाहरुख खान ने साझा किया था,
कश्मीर हमेशा से मेरे लिए एक खास जगह रही है. पहलगाम में शूटिंग करने से क्लासिक फिल्मों की यादें ताजा हो गईं और मुझे इस धरती की असली खूबसूरती दिखाई दी. पहाड़, नदियाँ और लोगों की मुस्कुराहट ने शूटिंग के हर दिन को खुशनुमा बना दिया. मुझे उम्मीद है कि एक दिन हर कोई उस शांति और सुंदरता का अनुभव कर सकेगा जो मैंने वहां पाई. पहलगाम में हाल ही में आए मुश्किल समय के बाद ये यादें और भी कीमती हो गई हैं. हम सभी शांति और सुरक्षा की उम्मीद करते हैं ताकि यह खूबसूरत जगह आगंतुकों का स्वागत करती रहे और दुनिया के साथ अपना जादू साझा करती रहे. कश्मीर एक खजाना है जो हर किसी का है, और मैं इसके आश्चर्य को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करने के लिए आभारी हूं.