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Manoj Kumar Unheard Facts: साल 1970 में हिंदी सिनेमा जगत में एक फिल्म आई थी, पूरब और पश्चिम (Purab Aur Paschim) इस फिल्म ने देशवाशियों के अन्दर एक अलग तरह का देशप्रेम जगा दिया था. फिल्म का गीत ‘जब जीरो दिया मेरे भारत ने’ आज भी लोगों के जहन में अमित छाप रखता है. इस फिल्म में हिंदी सिनेमा जगत के दिग्गज एक्टर मनोज कुमार (Manoj Kumar) ने अभिनय किया था. फिल्म में उनकी बेहतरीन अदायगी देखने के बाद यह साफ़ कहा जा सकता है कि इस फिल्म में उनसे बेहतर और कोई नहीं हो सकता था. इतना ही नहीं, उन्होंने अपने फ़िल्मी करियर में एक से बढ़कर एक बेहतरीन फ़िल्में की, जिसमें उन्होंने द्रेशप्रेम, समाजिक मुद्ददे और राजनीति सहित कई महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर किया. आज यह दिग्गज अभिनेता हमें नम आँखों के साथ अकेला छोड़ गया है. लेकिन उनके द्वारा परदे पर निभाए गए किरदार हमेशा जीवित रहेंगे.
बात करे अगर उनके सफ़र की तो उनका जन्म 24 जुलाई, 1937 को पाकिस्तान के के एबटाबाद में एक पंजाबी हिंदू ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनका असली नाम हरिकिशन गिरी गोस्वामी था. 1947 में जब भारत- पाक विभाजन हुआ तो 10 साल की उम्र में वे परिवार संग दिल्ली आ गए. इस दौरान उन्हें शरणार्थी शिविर में रहना पड़ा. बाद में गोस्वामी परिवार राजधानी के पटेल नगर इलाके में बस गया. उन्होंने यहां रहते हुए अपनी स्कूली शिक्षा हासिल की और दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की. कॉलेज पूरा होने के बाद मनोज कुमार ने एक्टिंग की दुनिया में अपना हाथ आजमाने का फैसला किया. उस समय किसी ने नहीं सोचा था कि एक दिन वे इतने बड़े स्टार बन जायेंगे.
19 साल में निभाया बुजुर्ग का किरदार
मनोज कुमार ने साल 1957 में निर्देशक लेखराज भकरी की फिल्म ‘फैशन’ से अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत की. इस फिल्म में उनके साथ माला सिन्हा, चंद्रशेखर, प्रदीप कुमार, सुन्दर, जगदीश सेठी, लीला मिश्रा और कम्मो थी. इस फिल्म में उन्होंने 80-90 साल के एक बुजुर्ग भिखारी का किरदार निभाया था. लेकिन हैरान करने वाली बात यह थी कि उस समय वे केवल 19 साल के थे.
एक इंटरव्यू में मनोज कुमार ने अपने फ़िल्मी करियर और इस फिल्म के बारे में बात करते हुए बताया था कि वे हिंदी फिल्मों में हीरो बनने के लिए आए थे. लेकिन फिल्ममेकर लेखराज भाकड़ी, कुलदीप सहगल जिन्हें वह भाई साहब कहा करते थे, उन्होंने फिल्म ‘फैशन(1957)’ में 90 साल के भिखारी का रोल दिया, उस समय उनकी उम्र महज 19 साल थी. ऐसे में मनोज ने कुलदीप और लेखराज जी से पूछा कि आपने मेरे बारे में क्या सोचा है? इस पर उन्हें जवाब मिला कि ‘अभी तो तुम्हारा एक जूता भी नहीं घिसा है. यहां लोगों की उम्र निकल जाती है. 'इसके बाद उन्होंने ठान लिया कि अब हिंदी फिल्मों में नाम बनाना है, यही उम्र भर काम करना है.
इस फिल्म के बाद उन्होंने सहारा पंचायत, हनीमून, रेशमी रूमाल, काँच की गुड़िया (लीड किरदार), सुहाग सिन्दूर, , शादी, बनारसी ठग, डॉक्टर विद्या और नकली नवाब सहित कई फ़िल्में की. लेकिन साल 1962 में आई उनकी फिल्म ‘हरियाली और रास्ता’ से उन्हें खास पहचान मिली. इस फिल्म के बाद से मनोज कुमार ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. इस फिल्म ने उनकी किस्मत चमका दी थी. उसके बाद से मनोज कुमार की हिट फिल्मों की लाइन लग गई थी. जिसमें ‘वो कौन थी’, ‘गुमनाम’, ‘हिमालय की गोद’ में जैसी कई फिल्में शामिल हैं. ये सारी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई थीं.
मनोज कुमार और शशि गोस्वामी की लव स्टोरी
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मनोज कुमार ने अपनी लव स्टोरी के बारे में एक इंटरव्यू में बताया था कि जब वे दिल्ली विश्वविद्यालय में ग्रेजुएशन कर रहे थे, तब पढ़ाई के लिए अपने दोस्त के घर जाया करते थे. वहीं उन्होंने पहली बार शशि गोस्वामी को देखा था. उन्होंने बताया कि शशि के चेहरे से नजरें हटाना मुश्किल था और एक-डेढ़ साल तक दोनों बस एक-दूसरे को दूर से देखा करते थे. इसके बाद मनोज ने अपने दोस्तों की मदद से शशि को फिल्म दिखाने के लिए ओडियन सिनेमा बुलाया. वहां उन्होंने 'उड़नखटोला' फिल्म देखी. इसके बाद वे दोनों मिलने लगे. मनोज के परिवार को इस रिश्ते से कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन शशि के भाई और मां को आपत्ति थी. वे दोनों अपनी-अपनी छत पर जाकर एक-दूसरे को देखा करते थे ताकि कोई उन्हें पकड़ न सके. धीरे-धीरे उनका रिश्ता और गहरा होता गया और आखिरकार 1961 में उन्होंने शशि से प्रेम विवाह कर लिया. जिसने उन्हें 2 बेटे विशाल और कुणाल गोस्वामी हुए.
मनोज कुमार लोकप्रिय फ़िल्में
मनोज कुमार की प्रमुख फिल्मों में फैशन, पंचायत, सहारा, शहीद, उपकार, पूरब और पश्चिम, क्रांति, रोटी कपड़ा और मकान, शोर, क्लर्क और जय हिंद, डॉ. विद्या, शादी, बनारसी ठग, डॉक्टर विद्या और नकली नवाब, हनीमून, गृहस्थी, रेशमी रूमाल, पिया मिलन की आस, सुहाग सिंदूर, शोर, गुमनाम, शहीद सहित कई फ़िल्में शामिल हैं. मनोज कुमार ने लेखन और निर्देशन के अलावा निर्माता के रूप में भी कार्य किया. उनके निर्देशन और निर्माण में जय हिंद, क्लर्क, पेंटर बाबू, क्रांति , शोर और रोटी कपड़ा और मकान जैसी फिल्में आईं. वे अपनी देशभक्ति की फिल्मों और समाजिक मुद्दों पर आधारित फिल्मों के लिए प्रसिद्ध रहे.
अनसुने किस्से
पहली सिल्वर जुबली फिल्म
फिल्म ‘हरियाली और रास्ता (1962)’ के लिए मनोज कुमार को 11 हजार रुपये साइनिंग अमाउंट मिला था. यह मनोज कुमार की पहली फिल्म थी, जो सिल्वर जुबली रही. साथ ही यह शादी के बाद की उनकी पहली फिल्म थी. ऐसे में मनोज कुमार की पत्नी अकसर कहा करती थीं कि उनके गुड लक के कारण ऐसा हुआ. मनोज कुमार भी मजाक में कहा कहते थे, “हाँ, मैं तो मजदूर आदमी हूँ.”
जब 11 रुपये में लिखा फिल्म का एक सीन
मनोज कुमार जब हीरो बनने के लिए संघर्ष कर रहे थे उसी दौरान उन्हें अशोक कुमार यानी दादा मुनि की फिल्म का एक सीन लिखने का मौका मिला. इस सीन के लिए उन्हें 11 रुपये मिले थे. इस बारे में मनोज कुमार बताते हैं, ‘प्रोड्यूसर रोशन लाल मल्होत्रा ‘जमीन और आसमान’ नाम की फिल्म बना रहे थे, एक दिन वह स्टूडियो में परेशान बैठे थे. मैंने पूछा क्या हुआ मल्होत्रा साहब? वे बोले कि फिल्म के हीरो अशोक कुमार की डेट्स बड़ी मुश्किल से मिली हैं, लेकिन अब उन्हें फिल्म का एक सीन पसंद नहीं आ रहा है. इस पर मैंने कहा कि लाइए मैं इस सीन को दोबारा लिख देता हूँ. मैंने सीन लिखा और ये अशोक कुमार जी को बहुत पसंद आया. प्रोड्यूसर रोशन लाल मल्होत्रा ने इसके लिए मुझे 11 रुपये दिए. इसके बाद मुझसे कई प्रोड्यूसर आकर फिल्मों के सीन लिखवाने लगे.’
डॉक्यूमेंट्री में काम करने के मिले 1000 रुपये
मनोज कुमार ने अपने करियर में कई ऐसी फिल्में बनाई जिसमें देशप्रेम की भावना नजर आईं. दर्शक ये फिल्में देखकर भाव-विभाेर हो जाते थे. ये देशप्रेम की भावना मनोज कुमार के मन में शुरुआत से रही. उन्होंने शुरुआती करियर में ही एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘गंगू तेली’ की, यह फिल्म खादी का प्रचार करने के लिए बनाई गई थी. इस फिल्म में काम करने के लिए उन्हें 1000 रुपये मिले थे.
भक्ति में भी खूब लीन रहते थे मनोज
मनोज कुमार से जुड़ा एक पुराना किस्सा है जब उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार (2015) मिला था. मनोज कुमार व्हील चेयर की मदद से पुरस्कार लेने पहुंचे थे. उस समय राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी ने मनोज कुमार को दादा साहब पुरस्कार से नवाजा. जैसे ही राष्ट्रपति मनोज को शॉल ओढ़ाते हैं तो मनोज कुमार झुककर उनके पैर छू लेते हैं. इसके बाद मनोज कंपकपाते हुए हाथ से अपनी जेब से एक मूर्ति निकालते हैं. जिसे ध्यान से देखने पर यह समझ आया कि ये मूर्ति शिरडी बाबा की थी.
ऑनस्क्रीन शिरडी बने थे मनोज कुमार
मनोज कुमार पर्दे पर शिरडी साईं बाबा का रोल भी निभा चुके हैं. साल 1977 में आई फिल्म शिरडी के साईं बाबा में मनोज कुमार ने लीड रोल अदा किया था. इस फिल्म का निर्देशन अशोक वेंकट भूषण किया था. इस फिल्म में मनोज कुमार के अवाला सुधीर दलवी, हेमा मालिनी, शत्रुघन सिन्हा और राज मेहरा अहम रोल में थे.
छवि को नहीं होने दिया धूमिल
मनोज कुमार का पर्दे पर व्यक्तित्व बहुत खास था. उन्होंने अपने पात्रों में भारतीयता, देशप्रेम और सादगी को अहम जगह दी. उनके पात्र हमेशा ईमानदार, संघर्षशील और देश के लिए समर्पित होते थे. यही कारण था कि उन्होंने अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण फैसलों में अपनी भारत की छवि को सर्वोपरि रखा. मनोज कुमार ने किसी भी फिल्म में अपने किरदार में हीरोइनों के साथ एक दूरी बनाए रखते थे. इसका सबसे बड़ा उदाहरण तब देखने को मिला जब वह जीनत अमान के साथ फिल्म ‘रोटी कपड़ा और मकान’ (1974) की शूटिंग के दौरान एक महत्वपूर्ण सीन की शूटिंग कर रहे थे. इसमें दोनों के बीच रोमांटिक सीन फिल्माया जाना था, लेकिन मनोज कुमार ने इस सीन को करने से साफ मना कर दिया. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि उनकी भारत की छवि के मुताबिक यह सीन करना ठीक नहीं होगा. वह चाहते थे कि उनका अभिनय समाज और देश की उन आदर्शों का प्रतीक बने, जो उन्होंने पर्दे पर दिखाए थे.
बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री की दिग्गज अभिनेता मनोज कुमार (Manoj Kumar) ने 3 अप्रैल को दुनिया को अलविदा कह दिया है. सिनेमा जगत में उनके योगदान को कभी कोई भूल नहीं सकता. उनके सिग्नेचर स्टाइल ने सभी फैंस के दिलों पर राज किया है. उनके जैसा ना कोई था और ना कोई होगा.
सिनेमा जगत के महान अभिनेता- निर्देशक मनोज कुमार, जिनको 'भारत कुमार' के नाम से भी जाना जाता है, को ‘मायापुरी मैगजीन’ की तरफ से भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है. मनोज कुमार का योगदान भारतीय सिनेमा में अनमोल है. उन्होंने भारतीय सिनेमा को जो उपहार दिए हैं, वह सदैव याद रखे जाएंगे.
by PRIYANKA YADAV
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