Advertisment

Nanda (Nandini Karnataki): नारी शक्ति, संघर्ष और सशक्तिकरण की प्रतीक

Nanda (Nandini Karnataki): सुंदर शांत चेहरा, कोमल काया, मीठी वाणी और आंखों में छलकता समुन्दर, भारतीय नारी की प्रतिमूर्ति थी नंदा (Nanda) कर्नाटकी, जिन्हें भारतीय सिनेमा की सबसे वर्सेटाइल...

New Update
Nanda (Nandini Karnataki) नारी शक्ति, संघर्ष और सशक्तिकरण की प्रतीक

Nanda (Nandini Karnataki)

Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

Nanda (Nandini Karnataki): सुंदर शांत चेहरा, कोमल काया, मीठी वाणी और आंखों में छलकता समुन्दर, भारतीय नारी की प्रतिमूर्ति थी नंदा (Nanda) कर्नाटकी, जिन्हें भारतीय सिनेमा की सबसे वर्सेटाइल और प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों में से एक के रूप में याद किया जाता है. नारी प्रधान फिल्मों में नन्दा एक ऐसी पथ-प्रदर्शक थीं जिन्होंने स्क्रीन पर महिलाओं के चित्रण को फिर से परिभाषित किया. तीन दशकों से अधिक समय तक के करियर में उन्होंने ऐसे ऐसे यादगार प्रदर्शन किए, जिसमें उनकी भूमिकाओं में पारंपरिक स्त्री और आधुनिक महिलाओं की संवेदनाओं को संतुलित करने की, उनकी की क्षमता का खूब प्रदर्शन किया गया. 

Nanda aka Nandini Karnataki A symbol of women power struggle and empowerment

नंदा (Nanda) का करियर 1940 से 1980 के दशक तक फैला था, जिसमें 'छोटी बहन' (1959) जैसी सुपरहिट फिल्में शामिल थीं, जिसमें उन्होंने एक अंधी बहन की भूमिका निभाई थी, और 'जब जब फूल खिले' (1965), जिसमें उन्होंने एक कश्मीरी गरीब गाइड से प्यार करने वाली एक अमीर महिला की भूमिका निभाई थी. फ़िल्म 'इत्तेफ़ाक' (1969) में वो एक व्यभिचारिणी और 'नया नशा' (1974) में ड्रग एडिक्ट, 'आहिस्ता आहिस्ता' में मिस्ट्रैस जैसी भूमिकाओं के उनके साहसी चयन ने हिंदी सिनेमा में महिला के मानदंडों को चुनौती दी और एकदम अलग अलग नेचर की स्त्री को चित्रित करने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया. साठ के दशक में जब बॉलीवुड में ज्यादातर फिल्मों में नायिकाएँ खूबसूरती, सजावट की वस्तु और नायकों से दोयम दर्जे की मानी जाती थी तब नन्दा को महिला-केंद्रित कथाओं में गहराई लाने की उनकी क्षमता के लिए सराहा जाता था. उन्होंने कई फ़िल्मफ़ेयर नामांकन अर्जित किए और 'आँचल' (1960) जैसी फिल्मों में अपने स्ट्रॉंग भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का पुरस्कार जीता.

Nanda aka Nandini Karnataki A symbol of women power struggle and empowerment

Nanda aka Nandini Karnataki A symbol of women power struggle and empowerment

नंदा (Nanda) के साथ बहुत साल पहले मेरी मुलाकात हुई थी, मायापुरी के वरिष्ठ पत्रकार पन्नालाल व्यास मुझे उनके पास ले गए थे. तब तक नंदा (Nanda) फिल्मों में काम करना छोड़ चुकी थी. उनके सबसे छोटे भाई जयप्रकाश ने वो इंटरव्यू उनके बांद्रा स्थित बंगले में रखवाई थी. हालांकि नंदा (Nanda) को पर्सनल प्रश्न बिल्कुल पसंद नहीं थे और उन्होने यह बात इंटरव्यू के शुरू में ही आगाह किया था फिर भी बहुत सारी बातें उनके मन की खिड़कियों के उस पार से विद्यमान थे. शुरू की बातें उनकी फिल्मों को लेकर हुई थी. फिर उनके बचपन, उनके परिवार और उनके जीवन के बारे में उन्होने बहुत सी सच्चाई उजागर की थी. लेकिन ना जाने कैसे बातों बातों में बात स्त्री शक्ति और समाज में स्त्रियों के स्थान पर आ कर ठहर गई. उन्होंने नारीत्व पर एक गहन विचारोत्तेजक विचार साझा किया था, जो आज भी मेरे मन में गूंजता है. उन्होंने महिलाओं के संघर्ष, आंतरिक शक्ति, और जीवन के हर स्तर पर अकेले जूझने की ताकत के बारे में बहुत ही शानदार ढंग से बात की थी.

Nanda aka Nandini Karnataki A symbol of women power struggle and empowerment

उन्होंने कहा था, "क्या एक स्त्री का निजीस्व पुरुषों से अलग है. क्या स्त्री को उसके हक का अपना स्पेस दिया जाता है? और अगर हाँ तो किस स्तर पर? उनका ठिकाना क्या नितांत व्यक्तिग नहीं हो सकता? जो उनके पिता, पति या पुत्र के घर और जाति से अलग हो सके ? क्या कोई किसी बेचैन स्त्री को, जो सदियों से अपने आइडेंटिटी की जमीन तलाश कर रही हो , उसे उसकी वो जमीन का पता बता सकते हैं? क्या समाज ये जानता हैं कि एक स्त्री अपनी कल्पना में एक ही समय में खुद को कैसे अलग अलग पहचान और समरूपता के साथ स्थापित और निर्वासित करती है? स्त्री का बुद्धिमान होना भी अभिशाप क्यों माना जाता रहा है? क्यों किसी प्रतिभाशाली स्त्री को अपने सपनों से भागना पड़ता है और क्यों बार बार उसे रिश्तों की लड़ाई लड़नी पड़ती है?"

Nanda aka Nandini Karnataki A symbol of women power struggle and empowerment

उस वक्त मैं समझ नहीं पा रही थी कि वे किस भाषा में बात कर रही हैं. मैंने जब इन विचारोत्तेजक शब्दों के बारे में विस्तार से बताने के लिए कहा था , तो नंदा (Nanda) की आँखों में ज्ञान और दर्द दोनों झलक रहे थे. उन्होंने तब बताया, "महिलाएँ अक्सर अपने जीवन के हर पहलू को लेकर द्वंद्व में रहती हैं लेकिन फिर भी ताकत और कमज़ोरी, सपनों और वास्तविकता के बीच संतुलन बनाए रखती हैं." उनका तात्पर्य उन असंख्य भावनाओं और भूमिकाओं से था, जो महिलाएँ निभाती हैं - बेटी, बहन, पत्नी, माँ, प्रोफेशनल्स. ये सभी त्याग और समर्पण के रंगों से रंगी हुई हैं. फिर भी, यह श्रेणी अक्सर अनदेखा या कमतर समझा जाता है.

Nanda aka Nandini Karnataki A symbol of women power struggle and empowerment

नन्दा ने एकांत को महिला के जीवन का अभिन्न अंग बताया. उन्होंने कहा, "एक महिला का एकांतता, अकेलापन नहीं बल्कि एक ऐसा स्थान है जहाँ वह खुद से सामना करती है. यह पुरुषों से अलग है, क्योंकि यह सामाजिक अपेक्षाओं और व्यक्तिगत आकांक्षाओं से भरा हुआ है." नंदा (Nanda) का मानना था कि यह एकांत सशक्त बनाने वाला और अलग-थलग करने वाला दोनों है. एक विरोधाभास, जिसने कई महिलाओं की जीवन यात्रा को परिभाषित किया. "पिता का घर, पति का घर, या पुत्र के घर से अलग एक जमीन" के बारे में उनका सवाल पारिवारिक या सामाजिक भूमिकाओं से परे पहचान की सार्वभौमिक आकांक्षा को दर्शाता है. उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि कैसे महिलाओं को अक्सर प्यार, जाति या परंपरा जैसी संरचनाओं द्वारा सीमित कर दिया जाता है, जो उनकी पसंद को निर्धारित करती हैं. उन्होंने कहा, "एक महिला, हमेशा अपने सच्चे स्व की तलाश में रहती है, एक ठिकाना जो केवल उसका अपना है. लेकिन समाज शायद ही कभी उसे इस घर का पता देता है."

Nanda aka Nandini Karnataki A symbol of women power struggle and empowerment

अपने सपनों को भूलने की कोशिश में " छटपटाती महिला" की कल्पना और इच्छाओं को कर्तव्यों के बीच तिलांजलि देती स्त्री एक शाश्वत संघर्ष का प्रतीक है. नंदा (Nanda) ने इस संघर्ष की तुलना एक ऐसी युद्ध से की जहाँ नैतिक दुविधाएँ भावनात्मक सत्यों से टकराती हैं. उनका मानना था कि पुरुष प्रधान समाज का, नारीत्व की समझ में इन अनुभवों को अक्सर अनदेखा या सरलीकृत किया जाता है. उन्होंने कहा था, "हर रिश्ता एक युद्ध का मैदान है जहाँ एक महिला न केवल बाहरी अपेक्षाओं से बल्कि अपने आंतरिक विरोधाभासों से भी लड़ती है." नंदा (Nanda) का अपना जीवन भी इन प्रतिबिंबों को दर्शाता है. अपने पिता को खोने के बाद सात साल की छोटी उम्र में अभिनय शुरू करके पूरे परिवार के लिए रोटी कपड़ा कमाते हुए , वह परिवार को पालने वाली बन गईं. 'तूफान और दिया, काला बाज़ार, हम दोनों', ' तीन देवीयां', परिवार, बेटी, धरती कहे पुकार के, बड़ी दीदी, जब जब फूल खिले' 'इत्तेफ़ाक',' शोर' छलिया और ऐसे ढेर जैसी फ़िल्मों में स्टारडम हासिल करने के बावजूद, वह ज़मीन से जुड़ी और आत्मनिरीक्षण करने वाली बनी रहीं. अपने मंगेतर मनमोहन देसाई की दुखद मौत के बाद अविवाहित रहने का उनका फैसला जीवन की विसंगतियों को नेविगेट करने में उनकी ताकत का एक और प्रमाण था.

Nanda aka Nandini Karnataki A symbol of women power struggle and empowerment

अपनी भूमिकाओं और व्यक्तिगत दर्शन के माध्यम से, नंदा (Nanda) सशक्त नारीत्व की प्रतीक बन गईं. चाहे 'छोटी बहन' में अंधी बहन का किरदार निभाना हो या 'इत्तेफाक' में सामाजिक मानदंडों को चुनौती देना हो, वे हर किरदार में सत्यता ले आई . उनका मानना था कि सिनेमा इन आंतरिक संघर्षों को तलाशने और महिलाओं को उनके अनुभवों को मान्य करने वाली कहानियाँ प्रदान करने का एक माध्यम हो सकता है. नंदा (Nanda) जी के शब्द महिलाओं के भावनात्मक परिदृश्य और सामाजिक चुनौतियों के बारे में उनकी "गंभीर सोच " को दर्शा रहे थे और मैं अपनी कमसिन उम्र के चलते उनकी बातों का थाह नहीं पा रही थी . मेरा भौंचक चेहरा देख वे एक गहरी साँस लेकर ठहर गई. फिर वे बोली, " खैर, सिनेमा की बातें हो रही है तो कहना ठीक रहेगा कि कलात्मक और रचनात्मक जगत महिलाओं की बहुमुखी पहचान को प्रदर्शित करके उन्हें सशक्त बनाने का एक माध्यम हो सकता है.

Nanda aka Nandini Karnataki A symbol of women power struggle and empowerment

नंदा (Nanda) की पहचान उनकी फ़िल्मों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वे शालीनता और आत्म शक्ति की प्रतीक के रूप में भी प्रभावशाली रही हैं. उस जमाने में जब बॉलीवुड की ज्यादातर नायिकाएँ अपनी साख और करियर को संभालने के लिए टॉप के हीरोज़ के साथ जुड़े रहना पसंद करती थीं और नवोदित नायकों को नकार देती थी, उस समय में भी नंदा (Nanda) उस तरह की कमजोर दिल स्त्री नहीं थी. उन्होंने शशि कपूर जैसे कई नए कलाकारों के साथ फ़िल्में साइन करके प्रोत्साहित किया था जो उन दिनों संघर्ष कर रहे थे. यह उनकी स्त्रीयोचित उदारता का प्रमाण था . जैसा कि हम इस महिला दिवस पर नंदा (Nanda) को याद करते हैं, उनके शब्द हमें उन मौन लड़ाइयों की याद दिलाते हैं जो महिलाएँ हर दिन लड़ती हैं - पहचान, सम्मान और आत्म-अभिव्यक्ति की लड़ाई.भावनात्मक गहराई से भरे उनके शब्द हर जगह महिलाओं के संघर्ष और जीत के साथ प्रतिध्वनित होते हैं. हमारे साक्षात्कार में, उन्होंने एक महिला के अस्तित्व की जटिलताओं पर अपने विचार व्यक्त किए, उनकी विरासत न केवल उनकी फिल्मों में बल्कि नारीत्व की अनकही सच्चाइयों को इतनी सटीकता के साथ व्यक्त करने की उनकी क्षमता में निहित है.

nanda friends

1982 के बाद फ़िल्मों से संन्यास लेने के बावजूद, उनका प्रभाव अमिट है. 25 मार्च, 2014 को उनका निधन हो गया, और वे अपने पीछे अभिनय का खजाना छोड़ गईं, जो आज भी प्रेरणा देता है.

Read More

India's Got Latent Controversy: 'इंडियाज गॉट लैटेंट' विवाद से डरे हुए हैं समय रैना, कॉमेडियन के दोस्त ने किया खुलासा

Adarsh Gourav News: आदर्श गौरव की होगी साउथ इंडस्ट्री में एंट्री, इस फिल्म में आएंगे नजर

War 2 Latest Update: 500 डांसर्स के साथ डांस करेंगे ऋतिक रोशन और जूनियर एनटीआर?

क्रिकेटर Mohammed Siraj को डेट करने की अफवाहों पर Mahira Sharmaने तोड़ी चुप्पी

Advertisment
Latest Stories