Advertisment

Pahalgam Terror Attack: पहलगाम का दर्द बयां करते ये 'ARZOO' के गीत

कश्मीर की वादियों को बॉलीवुड में अगर किसी निर्माता निर्देशक ने पूरे रोमांस और इंद्रधनुषी रंगो के साथ उकेरा है तो वह है डॉक्टर रामानंद सागर. खुद कश्मीर में जीवन का एक हिस्सा बिताने वाले...

author-image
By Sulena Majumdar Arora
New Update
Pahalgam Terror Attack पहलगाम का दर्द बयां करते ये 'ARZOO' के गीत
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

कश्मीर की वादियों को बॉलीवुड में अगर किसी निर्माता निर्देशक ने पूरे रोमांस और इंद्रधनुषी रंगो के साथ उकेरा है तो वह है डॉक्टर रामानंद सागर. खुद कश्मीर में जीवन का एक हिस्सा बिताने वाले (उन्हे रामानंद कश्मीरी भी पुकारा जाता था) होने की वजह से जाहिर तौर पर रामानंद सागर, कश्मीर की हवा, वहां के झीलों की खूबसूरती और घाटियों की अद्भुत अकल्‍पनीय सौंदर्य से वाकिफ थे. 1965 में रिलीज़ हुई फ़िल्म 'आरज़ू' भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक ख़ास जगह रखती है, ख़ास तौर पर कश्मीर के लुभावने चित्रण के लिए. अक्सर उस क्षेत्र में बनी सबसे खूबसूरत फ़िल्मों में से एक मानी जाने वाली 'आरज़ू' ने न सिर्फ़ अपनी रोमांटिक कहानी से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया, बल्कि कश्मीर के अद्भुत नज़ारों की वजह से भी अतुलनीय साबित हुई जो उस ज़माने में पहले कभी किसी ने ज्यादातर (कश्मीर की कली छोड़कर) फिल्मों में नहीं दिखाया. इस फ़िल्म की मेकिंग, इसके कलाकार और क्रू, यादगार संगीत और बॉक्स ऑफ़िस पर इसकी सफ़लता, सभी कुछ सागर फिल्म्स की लिगेसी में योगदान करके इसे अविस्मरणीय बनाते हैं.

जब 'आरज़ू' की योजना बनाई जा रही थी, तब निर्देशक और निर्माता रामानंद सागर एक ऐसी फ़िल्म बनाना चाहते थे जो न सिर्फ़ एक प्रेम कहानी हो बल्कि एक दृश्य मास्टरपीस भी हो. उस समय तक रामानंद सागर भारतीय फ़िल्म उद्योग में एक सुप्रसिध्द तथा सम्मानित निर्माता निर्देशक के रूप में स्थापित हो चुके थे, जो अपनी कहानी कहने के कौशल और भावनाओं को स्क्रीन पर जीवंत करने की अद्भुत क्षमता के लिए जाने जाते थे. 'आरज़ू' के लिए उन्होंने कश्मीर को ही मुख्य लोकेशन के तौर पर चुना, वो इसलिए क्योंकि यहाँ की प्राकृतिक खूबसूरती फ़िल्म के रोमांटिक और नाटकीय मूड के लिए बिल्कुल उपयुक्त थी. उस समय कश्मीर लोकेशन को फ़िल्मों में उतना इस्तेमाल नहीं किया जाता था जितना कि 'आरज़ू' के बाद में किया जाने लगा. इस तरह से आरज़ू ने इस खूबसूरत क्षेत्र में शूटिंग के लिए एक ट्रेंड सेट करने में मदद की. आरज़ू की कहानी सरल लेकिन बेहद भावनात्मक है. यह गोपाल (राजेंद्र कुमार) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक डॉक्टर होने के साथ साथ प्रतिभाशाली स्कीइंग चैंपियन भी है. उसका एक जिगरी दोस्त रमेश (फिरोज़ खान) भी है. गोपाल कश्मीर में छुट्टियां बिताने के दौरान एक सुंदर लड़की उषा (साधना) से मिलता है. उनकी प्रेम कहानी बर्फ से ढके पहाड़ों और शांत झीलों के बीच शुरू होती है. फ़िल्म उनके रोमांस को खूबसूरती से दिखाती है कि कैसे सबसे खूबसूरत जगहों पर प्यार पनप सकता है. कश्मीर के डल झील में दोनों शिकारे पर घूमते हुए शिकारे वाले (महमूद) से दोनों की दोस्ती हो जाती है. बातों बातो में एक दिन उषा गोपाम से कहती हैं कि उसे अपाहिज होने से बहुत डर लगता है और उसे अपाहिज लोगों के साथ रहना बिल्कुल गवारा नहीं.

ramanad sagar

fg

एक दिन गोपाल को काम के क्षेत्र से अर्जेंट कॉल आता है तो वो उषा से यह कहकर दिल्ली चला जाता है कि वो जल्द वापस आकर उसके पिता से उसका हाथ मांगेगा. लेकिन दिल्ली जाते समय एक भयानक दुर्घटना के चलते गोपाल अपना एक पैर खो देता है. अस्पताल में काफी समय रहने के बाद वो बैसाखियों के सहारे चलने लगता है. वो दिल्ली नहीं जाता और कश्मीर लौट आता है लेकिन वो उषा से छिपता रहता है. एक दिन उसकी मुलाकात शिकारे वाले दोस्त से होती है तो शिकारे वाले को सब जानकारी मिलती है. उधर गोपाल के दोस्त रमेश का पिता, रमेश के लिए कश्मीर में रहने वाले अपने दोस्त की बेटी ऊषा (साधना) को पसंद करता है और रमेश से कहता है कि वो उसे देख आए. रमेश कश्मीर आकर उषा के पिता से मिलता है. पिता तो राजी है लेकिन उषा कहती हैं कि वो किसी और से प्यार करती है और उसका इंतज़ार कर रही है. लेकिन बहुत इंतज़ार करने के बाद भी जब गोपाल नहीं आता तो उषा अपने पिता को मनाकर खुद उसे ढूंढने दिल्ली चली जाती है. उधर गोपाल उससे इसलिए छुपता फिर रहा है क्योकि उसे लगता है उषा उसे अपाहिज के रूप में देखकर उससे नफरत करेगी. आखिर निराश होकर उषा समझती है कि गोपाल उसे हमेशा के लिए छोड़कर चला गया है और तब वो अपने पिता की बात मानकर रमेश से शादी के लिए राज़ी हो जाती है. लेकिन तभी उसे शिकारे वाला मिल जाता है जो उषा से सारी सच्चाई बता देता है और उसे गोपाल का पता भी देता है. उषा गोपाल से मिलकर उसे बताती हैं कि वो उससे इतना प्यार करती है कि उसके बराबरी करने के लिए वो भी अपना पैर काटने को राज़ी है. तब जाकर गोपाल उसे अपना लेता है. हैप्पी एन्डिंग हो जाती है.

arzoo 1965 film

arzoo 1965 film

इस फिल्म के कैमरा मैन जी. सिंह की सिनेमैटोग्राफी ने कश्मीर के आश्चर्यजनक परिदृश्यों को बड़ी कुशलता से कैद किया. बर्फीली चोटियों से लेकर हरी-भरी घाटियों तक, फिल्म का हर फ्रेम एक पेंटिंग जैसा दिखता है. प्राकृतिक प्रकाश के उपयोग के साथ शॉट्स की बड़ी खूबी के साथ पूर्ण फ़्रेमिंग ने एक स्वप्निल और रोमांटिक माहौल बनाने में मदद की जो आज भी दर्शकों को आकर्षित करता है.

'आरज़ू' के सबसे अविस्मरणीय पहलुओं में से एक इसका संगीत है. इस फ़िल्म में दिग्गज संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन ने साउंडट्रैक तैयार किया, जो रिलीज़ होते ही तुरंत हिट हो गई और दशकों बाद भी वो गाने लोकप्रिय बना हुआ है. मशहूर गीतकार हसरत जयपुरी और शैलेंद्र द्वारा लिखे गए गीत है, वो गाने अजी रूठ कर अब कहाँ जाएगा, छलके तेरी आँखों से, ऐ फूलों की रानी बहारों की मलका, अजी हमसे बचके कहाँ जाइएगा, जब इश्क कहीं हो जाता है, बेदर्दी बालमा तुझको मेरा मन याद करता है, ऐ नरगिसे मस्ताना जैसे गाने कालजयी क्लासिक बन गए. कश्मीर में आरज़ू बनाना चुनौतियों से खाली नहीं था.

क्रू को अप्रत्याशित मौसम से निपटना पड़ता था, जिसमें अचानक बर्फ़बारी और ठंड का मौसम शामिल था. अभिनेताओं, विशेष रूप से राजेंद्र कुमार को स्कीइंग जैसे शारीरिक रूप से कठिन दृश्य करने थे, जो उस समय भारतीय फ़िल्मों में बहुत आम नहीं था. इन कठिनाइयों के बावजूद, पूरी टीम ने उत्साह के साथ काम किया . जब आरज़ू रिलीज़ हुई, तो इसे आलोचकों और दर्शकों दोनों से बहुत सकारात्मक रिव्यूज़ मिले. यह 1965 की सबसे ज़्यादा कलेक्शन करने वाली हिंदी फ़िल्म बन गई और कई सिनेमाघरों में 25 हफ़्तों से ज़्यादा चली, जिसे सिल्वर जुबली रन के तौर पर जाना जाता है. यहीं से राजेंद्र कुमार को जुबली कुमार नाम पड़ा था. फ़िल्म की सफ़लता ने बॉलीवुड फ़िल्म निर्माताओं के लिए कश्मीर की पसंदीदा जगह के तौर पर लोकप्रियता को बढ़ाया.

अपनी व्यावसायिक सफ़लता के अलावा, 'आरज़ू' ने कई पुरस्कार और सम्मान जीते. इसे ताशकंद फ़िल्म फ़ेस्टिवल सहित कई फ़िल्म फ़ेस्टिवल में मान्यता मिली. फ़िल्म के संगीत को भी कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया और इसके गाने अब तक के सबसे बेहतरीन बॉलीवुड संगीत की सूची में शामिल हैं.

f

j

आरज़ू के निर्माण के बारे में कई रोचक और कम ज्ञात तथ्य हैं जो फ़िल्म के आकर्षण को बढ़ाते हैं. उदाहरण के लिए, फ़िल्म में साधना के फ़ैशन ने भारत में युवा महिलाओं को प्रेरित किया था. राजेंद्र कुमार का अपने किरदार के प्रति समर्पण इस बात से स्पष्ट था कि उन्होंने स्कीइंग कैसे सीखी और अपने कई स्टंट खुद किए, जो उस समय दुर्लभ था. आरज़ू में फिरोज खान की भूमिका ने उन्हें पहचान दिलाई और बाद में वे बॉलीवुड के सबसे सफल अभिनेताओं और निर्देशकों में से एक बन गए. पर्दे के पीछे की एक कहानी बताती है कि कैसे क्रू को एक विशेष दृश्य को शूट करने के लिए कई दिनों तक इंतज़ार करना पड़ा क्योंकि भारी बर्फबारी के कारण कश्मीर के शूटिंग स्थानों तक जाने वाली सड़कें दुर्गम हो गई थीं.

बताया जाता है कि फ़िल्म में साधना और राजेंद्र कुमार के प्रेम की गहराई में इतना दम था कि एक दिन जब वे दोनों डल झील में शूटिंग कर रहे थे तो साधना के पिता उनके प्रेम दृश्यों में इतने डूब गए कि देखते देखते वे झील में गिर गए थे और शूटिंग रोकनी पड़ गई थी.

j

'आरज़ू' (1965) न केवल अपनी रोमांटिक कहानी और कश्मीर के आश्चर्यजनक स्थानों के लिए बल्कि कुछ दिलचस्प तकनीकी पहलुओं के लिए भी उल्लेखनीय थी. फिल्म को रंगीन तरीके से शूट किया गया था, जो 1960 के दशक के मध्य में भारतीय सिनेमा में नया नया लोकप्रिय हो रहा था, तकनीकी चुनौतियों में से एक बर्फ के दृश्यों को फिर से बनाना था. चूंकि मौसम और लॉजिस्टिक्स के कारण कश्मीर की असली बर्फ में शूटिंग करना मुश्किल था, इसलिए कला निर्देशक सुधेंदु रॉय ने शुरुआत में मुंबई के स्टूडियो में कपास का उपयोग करके कृत्रिम बर्फ बनाने की कोशिश की, लेकिन फिर महसूस किया कि उसमें फुट प्रिंटस नहीं दिखाए जा सकते. बाद में, रामानंद सागर के बेटे, गोल्ड मेडलिस्ट सिनेमाटॉग्राफर प्रेम सागर ने कुछ दृश्यों के लिए बर्फ दिखाने के लिए नमक के 100 ट्रक लोड की व्यवस्था की थी जो उस जमाने में दस हजार रुपये में उन्होने खरीदा था, बाद में उसे उन्होने पांच हजार रुपये में बेच भी दिया.

k

k

तब के समय में ध्वनि डिजाइन मोनो था, जो उस युग की खासियत थी, लेकिन शंकर-जयकिशन द्वारा फिल्म का संगीत एक बड़े ऑर्केस्ट्रा के साथ रिकॉर्ड किया गया था, जिसमें कभी-कभी 100 से अधिक संगीतकार शामिल होते थे, जो एक तकनीकी उपलब्धि थी. दृश्यों के मूड से मेल खाने के लिए ऑन द स्पॉट गाने तैयार किए गए थे, जैसे कि प्रसिद्ध “अजी रूठ कर” जिसे फिल्मांकन के दौरान मौके पर ही बनाया गया था.

वो गीत 'बेदर्दी बालमा' लिखने के लिए रामानंद सागर ने गीतकार हसरत जयपुरी को दो बार कश्मीर भेजा, एक बार वसंत महीने में जब चारों ओर हरियाली और फूल खिले होते हैं और एक बार पतझड़ के मौसम में, ताकि वे इस गीत के बोल में छुपे दर्द को उभार सके.

फ़िल्म की कहानी में विकलांगता और भावनात्मक संघर्ष का विषय भी अपने समय से आगे था, जिसने बाद की फिल्मों जैसे 'एक बार कहो' (1970) को प्रभावित किया, जिसमें विकलांग पात्रों के प्रेम और स्वीकृति को दर्शाया गया.

इसमें कश्मीर के शानदार दृश्यों के लिए कलर ग्रेडिंग जैसी विशेष तकनीकों का इस्तेमाल किया गया. बताया जाता है कि फिल्म का नाम पहले 'मंज़िल एक मुसाफ़िर दो' था.

'एक बार कहो' (1970)

एक दिन रामानंद सागर ने राजेंद्र कुमार को अपने दफ़्तर बुलाया. वहाँ पहुँचने पर उन्होंने कोलकाता से आए, बैसाखी के सहारे एक आदमी को देखा. उन्होंने देखा कि उस आदमी का एक पैर नहीं था. उस आदमी ने राजेंद्र कुमार से कहा कि वह अपनी विकलांगता के कारण हमेशा आत्महत्या करना चाहता था. लेकिन आरज़ू देखने के बाद उसने मज़बूत बनना सीखा और जीवन में अपनी समस्या का सामना करना सीखा. उसने राजेंद्र कुमार को गले लगाया और फ़िल्म में अभिनय करने और उसकी ज़िंदगी बदलने के लिए उनका शुक्रिया अदा किया.

यह पहली ए ग्रेड फ़िल्म थी जिसे फ़िरोज़ खान ने सेकेंड लीड के तौर पर साइन किया था. उनकी पिछली फ़िल्म 'छोटी बहू' में वे विलेन थे और 'सुहागन' में उनका रोल बहुत छोटा था.

रामानंद सागर कश्मीर की घाटियों में आउटडोर लोकेशन पर एक गाना फ़िल्मा रहे थे, जिसमें उन्हे टूलिप फूल से भरी घाटी दिखाना था लेकिन उस मौसम में वहां वो फूल नहीं खिले थे तब उन्होंने मुंबई से करोड़ो नकली टुलिप फूल मंगवाए थे, तो उसे देखकर कश्मीर के तत्कालीन चीफ मिनिस्टर गुलाम मोहम्मद सादिक हैरान रह गए.

रामानंद सागर सटीक शूटिंग के इतने कायल थे कि पतझड़ का मौसम उन्होने तब तक नहीं फिल्माया जब तक सचमुच कश्मीर में चिनार के पत्ते सूख कर ज़मीन में बिछ नहीं गए थे. चिनार के पत्ते रंग बदल कर कब और कितने गिरे यह देखने के लिए सागर जी अपने कर्मचारियों को कश्मीर भेजते रहते थे.

f

रामानंद सागर फ़िल्म में सेकंड लीड हीरो के रोल के लिए धर्मेंद्र को चाहते थे. राजेंद्र कुमार ने सागर से कहा कि वे चिंता न करें. वे धरम के साथ उन दिनो फ़िल्म 'आई मिलन की बेला' की शूटिंग कर रहे थे और उनसे बात करेंगे. धर्मेंद्र ने प्रस्ताव सुना और विनम्रता से मना कर दिया. उन्होंने तर्क दिया कि उन्होंने अभी-अभी मुख्य भूमिकाएँ साइन करना शुरू किया है. वे सहायक अभिनेता के रूप में नहीं चुने जाना चाहते थे. राजेंद्र वापस गए और रामानंद सागर को यह बात बताई. सागर बहुत निराश हुए क्योंकि उन्हें केवल धर्मेंद्र चाहिए थे. सागर ने तब मनोज कुमार के बारे में सोचा. मनोज एक उभरते हुए सितारे थे और इस भूमिका के लिए एकदम सही थे. राजेंद्र ने सागर से कहा कि उन्होंने मनोज को उनकी पहली हिट, "हरियाली और रास्ता" साइन करने में मदद की थी. मनोज उनका एहसान मानते थे इसलिए वे निश्चित रूप से साइन करेंगे. जब राजेंद्र कुमार ने मनोज से फिल्म साइन करने के लिए कहा, तो मनोज बहुत हिचकिचा रहे थे. उन्होंने बहुत लंबे समय तक सीधा जवाब नहीं दिया. आखिर मनोज कुमार ने भूमिका अस्वीकार कर दी. उनका कारण धर्मेंद्र जैसा ही था. वे अब मुख्य भूमिकाएँ साइन कर रहे थे और साइड रोल उनकी छवि को खराब कर सकता था. उसी समय राजेंद्र कुमार मद्रास जा रहे थे और उन्होंने फ़िल्म "बहुरानी" देखी. वे फ़िरोज़ खान से बहुत प्रभावित हुए. साथ ही राजेंद्र के भाई नरेश पहले से ही उनके साथ फ़िल्म "एक सपेरा एक लुटेरा" में काम कर रहे थे. राजेंद्र ने नरेश कुमार से फ़िरोज़ खान को अपने बंगले, डिंपल पर भेजने के लिए कहा. फ़िरोज़ सुबह पहुंचे और राजेंद्र कुमार ने उन्हें फ़िल्म का प्रस्ताव दिया. फ़िरोज़ को यह जानकर बहुत खुशी हुई कि उन्होंने उनके बारे में भी सोचा. उन्होंने फ़िरोज़ से पूछा कि वे साइनिंग अमाउंट के तौर पर कितनी राशि चाहेंगे. वे अंततः 45,000 रुपये पर राज़ी हुए. जब ​​राजेंद्र कुमार ने रामानंद सागर को फ़ोन करके बताया कि उन्हें दूसरा हीरो मिल गया है और उन्होंने उसे साइन कर लिया है. रामानंद ने पूछा कि वह कौन है, राजेंद्र कुमार ने उन्हें "फ़िरोज़ खान" कहा. रामानंद सागर की ओर से चुप्पी थी. सागर राजेंद्र की पसंद से खुश नहीं थे और उन्होंने राजेंद्र से कहा कि फ़िरोज़ खान बहुत नए और कच्चे हैं. रामानंद सागर ने फ़िरोज़ को फ़िल्म में लेने का विरोध किया. साथ ही रामानंद सागर ने फिरोज खान की कोई भी फिल्म नहीं देखी थी और उन्हें नहीं पता था कि वह किरदार के लिए उपयुक्त होंगे या नहीं. फिरोज पर "बी" ग्रेड अभिनेता का टैग लगा हुआ था. राजेंद्र कुमार ने रामानंद सागर से कहा कि वे चिंता न करें. फिरोज इस किरदार में पूरी तरह से फिट होंगे. फिल्म रिलीज होने के बाद, फिरोज खान को आखिरकार नोटिस किया गया. फिल्म एक बड़ी हिट साबित हुई.

jh

h

l

g

इस फिल्म में राजेंद्र कुमार के अपंग प्रेम दृश्य को बाद में फ़िल्म 'मन' में मनीषा के साथ रीमेक किया गया. के.राजदान ने फिल्म "आरज़ू" में प्रचारक के रूप में काम किया था. 50 साल से अधिक समय बाद, उनकी पोती रीवा राजदान ने "आरज़ू" नामक एक उपन्यास लिखा. फ़िल्म का एक गीत "ऐ फूलों की रानी " का सिंहल संस्करण - "ओबे पेम वदन ना" था - एच आर जोतिपाला (60 के दशक).

film 1965 arzoo

Read More

Who is Sri Sri Ravi Shankar: Siddharth Anand की अपकमिंग थ्रिलर में श्री श्री रविशंकर बनेंगे Vikrant Massey, फिल्म की डिटेल्स आई सामने

Hina Khan on Kashmir Terror Attack: Hina Khan ने इस वजह से देश से मांगी माफी, बोली- ‘एक मुस्लिम होने के नाते…’

Riteish Deshmukh Film Dancer Death: Riteish Deshmukh की फिल्म 'Raja Shivaji' के डांसर की नदी में डूबने से हुई मौत, 2 दिन बाद मिला शव

Kesari Chapter 2 में डांस नंबर Khumaari से Masaba Gupta ने दर्शकों को बनाया अपना दीवाना, बोली- ‘हमेशा कुछ करना चाहती थी…’

Tags : Pahalgam terror attack | Celebs ANGRY REACTION On Pahalgam Terror Attack | Sunil Shetty Interview on Pahalgam Terror Attack | Bollywood Reaction on Pahalgam | Pahalgam Terrorist Attack | Jammu Kashmir Terror Attack arzoo

Advertisment
Latest Stories