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अमेज़ॉन प्राइम विडिओ के ओटीटी प्लेटफॉर्म पर एक कटे पिटे जख्मी आदमी के चेहरे वाला विज्ञापन देखकर इच्छा नहीं होगी कि फिल्म देखी जाए! लेकिन जब आप अनिच्छा से ही फिल्म देखते बैठ जाएंगे तब मुश्किल होगा कि आप चलती फिल्म छोड़कर वॉशरूम के लिए भी जाना पसंद करें. ज्यों ज्यों कहानी की कड़ियाँ खुलती जाएंगी आप उतना ही उस कथानक में जुड़ते- उलझते जाएंगे. जब उलझाव में आगे क्या होगा न समझते हुए भी आप कहानी का हिस्सा बनते जाते हैं. डेब्यू डायरेक्टर करन तेजपाल की फिल्म "स्टोलेन" (यानी- चोरी किया हुआ) की खासबात यही है.
अब जब बीजिंग इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (IFF) में 'स्टोलेन' ने झंडा गाड़ दिया और वेनिस में फ़िल्म प्रीमियर के लिए चुनी गयी, फिल्म बनने की कहानी सामने आई है कि कैसे फिल्म शुरू हुई, कैसे बजट की व्यवस्था हुई, कैसे कास्टिंग हुई और भारत मे रिलीज की दिक्कतें क्या रही? अब लोगों का रुझान फिल्म देखने की ओर बढ़ा है.
'स्टोलेन' (यानी 'चोरी किया हुआ') अमेजन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम है और इसकी कहानी भी एक लाइन की है. क्यों हो रहा है, क्या हो रहा है... के थ्रिल के साथ आगे बढ़ती हुई इस एक लाइन की कहानी में असहायता, मानवीयता, अक्रांतता , संवेदनहीनता, पुलिसिया हथकंडा और सोशल मीडिया के गलत उपयोग किए जाने का एहसास होता है.कहानी एक बच्ची के चोरी होने की जगह पर खड़े दो भाइयों की मुश्किलों में आने से आगे बढ़ती है. फिल्म के आरंभ में बताया गया है कि सत्य घटनाओं से प्रेरित है.
राजस्थान के किसी स्टेशन के बाहर रात के समय कुछ मुसाफिर सोये हुए हैं, उन्ही में एक आदिवासी शरीकी औरत झम्पा अपनी बच्ची को चंपा चंपा पुकारती खोजनी शुरू करती है. उसके जोर से रोने- चीखने से वहां लोगों की भीड़ जमा हो जाती है. छोटे भाई करन को स्टेशन पर लेनेआया बड़ा भाई गौतम भी वहां पहुच जाता है. दोनो भाई अपनी मां की शादी में जा रहे होते हैं और पोलिस इनको विटनेस मानकर कार्यवाही शुरू करती है. एक पांच महीने की बच्ची को दूसरी औरत चुरा ले गयी हैं इस बात की तहकीकात में पोलिस दोनो भाइयों को लेकर चोर की खोज में जाती है. इस बीच स्टेशन पर झम्पा और इनदोनो भाइयों की तस्वीर वाला वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर देता है और लोग इन्हें ही बच्चा चोर समझ लेते हैं और उनकी जान की मुसीबत बन जाती है. कैसे गौतम, करन और झम्पा जगह जगह सड़क पर भारी भीड़ से मार खाते, अधमरे बचते बचाते चोरी के असली वजह तक पहुंचते हैं यही फिल्म की कहानी है.
बड़े भाई गौतम (अभिषेक बनर्जी) के किरदार में अभिनय के कई मानदंड हैं. वह अपने लिए सोचने वाला, उदासीन, थोड़ा घमंडी सा करेक्टर है जो अंततः मानवीयता में आजाता है. छोटा भाई रमन (सुभम वर्धन), सहानुभूतिक, मदतगार और यथार्थ जीवन के लिए लड़ने वाले व्यक्ति के रोल में लोगों को पसंद आता है और तमाम पर्दे पर काम कर चुके अभिषेक बनर्जी पर भारी लगता है. झंपा (मिया मेलजर) की भूमिका सब पर भारी है. एक अनपढ़ गवार सी लड़की जिसकी 5 महीने की बेटी चंपा चोरी हो गयी है, उस मां के क्रंदन को वह जिस तरह जीवंत की है उसका जवाब नहीं. नारी शक्ति की अभिव्यक्ति भी झंपा से बेहतर शायद ही किसी तारिका ने जीया है.
रात की शूटिंग, सुनसान सड़कें और दृश्यों का फिल्मांकन कमाल का है. खासकर वे दृश्य जिसमे लोग हाथों में लट्ठ लिए गौतम को मार रहे हैं या रमन को घायल हालात में बचाने की कोशिश होती है. या फिर जब झंपा हाथ मे कुल्हाड़ी लेकर चीखती हुई हमलावरों पर झपट्टा मारती है.वह उस समय शक्तिस्वरूपा लगती है. निर्देशक करन तेजपाल अपनी इस पहली फिल्म से अपना असर छोड़ते हैं. यह एक नॉन म्यूजिकल फिल्म है.बैक ग्राउंड म्यूजिक भी बहुत धीमा है. एक छोटी सी सत्य घटना 90 मिनट की अवधि में जो थ्रिल देती है, रोमांचक है.
इस फिल्म की मेकिंग को लेकर करन तेजपाल ने अपनी मन की बातें अब साझा किया है. हालांकि 'स्टोलेन' के निर्माण में कई बड़े नाम जुड़े हैं. पर करन के शब्दों में- "फिल्म को पहले विदेश में स्टैम्प मिलता है भारत मे तब उसपर चर्चा होती है." यानी-फिल्म का प्रदर्शन भी 'स्टोलेन' वाला ही मामला है.
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