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1960 की बॉलीवुड फ़िल्म 'गर्ल फ्रेंड' उन फिल्मों में से एक है जिन्हे भुला दिया गया है लेकिन सिर्फ एक यादगार गीत के कारण गर्ल फ्रेंड को आज भी गुगल में खंगाला जाता है. वह गीत 'कश्ती का खामोश सफर है, रात भी है तन्हाई भी, आज मुझे कुछ कहना है' अपने भावपूर्ण अभिनय, काव्यात्मक संगीत और ईमानदार प्रस्तुति केकारण आज भी खास माना जाता है. इस फ़िल्म में खूबसूरत और प्रतिभाशाली वहीदा रहमान ने मुख्य भूमिका निभाई थी, और नायक थे हर दिल अजीज़, महान गायक, एक्टर, निर्माता निर्देशक किशोर कुमार.
गर्ल फ्रेंड (1960) फ़िल्म उस दौर में बनी थी जब कहानियाँ साधारण होती थीं, लेकिन भावनात्मक गहराई से भरी होती थीं. हालाँकि यह फ़िल्म ज़्यादा मशहूर नहीं हुई और न ही बॉक्स ऑफ़िस पर ज़्यादा सफल रही, फिर भी इसमें एक सूक्ष्म सौंदर्य था, प्यारी कॉमेडी और सुंदर कहानी थी जिसने संवेदनशील दिलों को छुआ, खासकर किशोर कुमार और वहीदा रहमान के मनमोहक अभिनय और भावपूर्ण गीत संगीत के कारण.
इस फ़िल्म का निर्देशन सत्येन बोस ने किया था, जो उस दौर के एक जाने-माने फ़िल्म मेकर थे तथा संवेदनशील और भावनात्मक कहानियों के निर्देशन के लिए जाने जाते थे. वे वही निर्देशक थे जिन्होंने इससे पहले जागृति (1954), चलती का नाम गाड़ी (1958), दोस्ती (1964) रात और दिन (1967 जैसी क्लासिक फ़िल्में बनाई थीं. उन्होंने हमेशा मानवीय भावनाओं और रिश्तों पर ध्यान केंद्रित किया, और गर्ल फ्रेंड भी इससे अलग नहीं थी. फ़िल्म की कहानी एक युवक युवती के शांत प्रेम की कहानी है. कथानक धीरे-धीरे आगे बढ़ा, मानो एक खूबसूरत पेंटिंग को स्ट्रोक दर स्ट्रोक बनाया जा रहा हो. उसकी प्रेम कहानी लाउड या नाटकीय नहीं थी, बल्कि इंतज़ार, खामोशी और आंतरिक उदासी से भरी थी.
किशोर कुमार तो सुपर एक्टर और प्रख्यात गायकथे ही, वहीदा रहमान, जो उस समय तक एक प्रतिष्ठित अभिनेत्री बन चुकी थीं, भी फ़िल्म के आकर्षण का केंद्र थी. उन्होंने बेहद स्वाभाविक अभिनय से अपने किरदार को जीवंत कर दिया. फिल्म देखने वालेउस जमाने के लोगों ने कहा कि जब वह एक शब्द भी नहीं बोलती थीं, तब भी उनकी आँखें और चेहरा दर्शकों से बात कर रहे थे. उनके हाव-भाव सब कुछ बयां कर रहे थे - प्यार, दर्द, उम्मीद और अकेलापन.
इस फिल्म में मुख्य पुरुष नायक किशोर कुमार थे,लेकिन क्योंकि यह फिल्म काफी दुर्लभ है और आधुनिक फिल्म रिकॉर्ड में इसके बारे में ज़्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है तो कुछ लोगों को इस बात पर संशय था. ऐसे में मैंने किशोर कुमार जी के सुपुत्र महान गायक अमित कुमार से पूछा कि इस फ़िल्म में किशोर कुमार जी ने नायक की भूमिका निभाई थी या वे सिर्फ फ़िल्म में सिंगर थे. अमित दा ने बताया कि फ़िल्म के नायक भी उनके पिता किशोर कुमार थे और गायक भी किशोर कुमार थे. फ़िल्म के अन्य कलाकार थे, नासिर हुसैन, बिपिन गुप्ता, लीला मिश्रा, धूमाल, डेज़ी ईरानी.
'गर्ल फ्रेंड' का सबसे खूबसूरत और अविस्मरणीय हिस्सा इसका संगीत है. फ़िल्म का संगीत भारतीय सिनेमा के सबसे सम्मानित संगीत निर्देशकों में से एक, हेमंत कुमार ने रचा था. वे अपनी कोमल और भावनात्मक रचनाओं के लिए जाने जाते थे. गीत उर्दू शायरी के उस्ताद साहिर लुधियानवी ने लिखे थे. उनके शब्द हमेशा दिल को छू जाते थे, और इस फ़िल्म में उन्होंने नायिका के सफ़र की शांत उदासी से मेल खाते हुए, दर्द और कोमलता से लिखा.
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इस फ़िल्म का सबसे मशहूर गाना है 'कश्ती का खामोश सफ़र है, रात भी है, तन्हाई भी'. यह गाना किशोर कुमार ने गाया और संगीत की रचना की हेमंत कुमार. किशोर कुमार की गहरी और शांत आवाज़, शांत दिलमें उमड़ती लहरों को बखूबी बयां करती है. साथ में फीमेल सिंगर है मखमली आवाज़ की धनी महान गायिका 'सुधा मल्होत्रा. गाने के बोल एक खामोश अंधेरी रात मेंतैरती नाव की बात करते हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि प्यार के होने पर किसी और की जरूरत नहीं होती. संगीत में कोई तेज़ धड़कन या भारी वाद्य नहीं हैं ल, सिर्फ़ शुद्ध धुन है जो श्रोता को अंदर की शांत उदासी का एहसास कराती है. यह गीत मायापुरी के संस्थापक ए. पी. बजाज जी के फेवरेट गीतों में से एक था.
कहा जाता है कि इस गाने के दृश्य की शूटिंग के दौरान वहीदा रहमान इतनी भावुक हो गईं कि उनकी आँखों से आँसू निकल आए. उन्होंने शूटिंग से पहले यह गाना कई बार सुना था, इसलिए उन्होंने इसके भावों को गहराई से आत्मसात कर लिया था. उस दृश्य में उनका चेहरा अभिनय जैसा नहीं लगता, बल्कि बिल्कुल स्वाभाविक लगता है. सेट पर मौजूद क्रू ने शॉट के बाद ताली तक नहीं बजाई, क्योंकि हर कोई खामोश था, हवा में तैरती असली भावनाओं से अभिभूत.
एक कम ज्ञात तथ्य यह है कि इस फिल्म की शूटिंग में निर्माता बासु चित्र मंदिर को कई वित्तीय समस्याएँ आईं.अक्सर, तकनीकी समस्याओं या पैसों की कमी के कारण शूटिंग रोकनी पड़ती थी. लेकिन किशोर कुमार और वहीदा रहमान तथा निर्देशक सत्येन बोस ने पूरी लगन से काम जारी रखा. बताया जाता है कि बेहद व्यस्त किशोर कुमार और वहीदा रहमान ने फिल्म के लिए अपना शेड्यूल भी खुद एडजस्ट किया और अपनी पूरी फीस भी नहीं ली. उन्हें फ़िल्म की कहानी, अपने किरदार और संगीत से प्यार था.
खबरों के मुताबिक यह भी दिलचस्प है कि फिल्म के कॉस्ट्यूम किसी मशहूर मास्टर ने नहीं, बल्कि मुंबई के एक छोटे दर्जी ने डिज़ाइन किए थे, जो आम महिलाओं के लिए साड़ियाँ सिलता था. सुनने में आया है कि यह सुझाव खुद वहीदा रहमान ने दिया था. वे चाहती थीं कि उनका किरदार सादा और वास्तविक लगे. इससे फिल्म को एक स्वाभाविक, मध्यमवर्गीय रूप मिला, जिससे महिला दर्शक वर्ग फ़िल्म के साथ जुड़ सकीं. फिल्म का संपादन धीमा और सॉफ्ट था, जो कहानी की गति और मनोदशा के अनुरूप था. बैकग्राउंड स्कोर का इस्तेमाल भी बहुत ही सौम्यता से किया गया था.
हालांकि 'गर्लफ्रेंड' ने कोई बड़ा पुरस्कार नहीं जीता और न ही बहुत लोकप्रिय हुई, लेकिन इसने भावनात्मक सिनेमा को महत्व देने वालों पर अपनी छाप छोड़ी. पुराने हिंदी फ़िल्मी गीतों के प्रेमियों के लिए, 'कश्ती का खामोश सफ़र है' आज भी रोंगटे खड़े कर देता है और अक्सर खामोश प्रेम की मिसालें कायम करती है. यह फिल्म ज़्यादा जानी-पहचानी नहीं, लेकिन इसे देखने वालों के मन में इसका गहरा सम्मान है.
आज भी जो लोग इतने दशकों बाद इस फिल्म को देखते हैं, वे अक्सर यही कहते हैं - कि किशोर कुमार की आवाज़, उनका अभिनय, वहीदा रहमान का चेहरा और नाव का सफ़र फिल्म खत्म होने के बाद भी लंबे समय तक उनके ज़हन में रहता है. 'गर्लफ्रेंड'वर्षों-वर्षों बाद मिले एक भूले हुए ख़त की तरह है, पुराना, धुंधला, और सच्ची भावनाओं से भरा हुआ.
Welcome to my heartfelt cover of the timeless classic ‘Aaj Rona Pada To Samjhe’ from the 1960 film Girl Friend. Sung originally by the legendary Kishore Kumar, with soul-stirring music by Hemant Kumar and poignant lyrics by Sahir Ludhianvi, this song captures the essence of love,… pic.twitter.com/vih2yM5e33
— Dr. Sanjay Mukherjee (@DrSanMukherjee) May 23, 2025