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विश्वास, धोखा और प्रेम का सफर 1963 की फ़िल्म 'Yeh Raaste Hain Pyaar Ke'

1960 के दशक की शुरुआत में, भारतीय सिनेमा एक महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहा था. उन दिनों बॉलीवुड, अपनी पारंपरिक कहानियों से निकलकर पेंचिदी कहानियाँ  ढूंढने लगी थी...

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The journey of trust betrayal and love in the 1963 film Yeh Raaste Hai Pyar Ke
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1960 के दशक की शुरुआत में, भारतीय सिनेमा एक महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहा था. उन दिनों बॉलीवुड, अपनी पारंपरिक कहानियों से निकलकर पेंचिदी कहानियाँ  ढूंढने लगी थी. 'यह रास्ते हैं प्यार के' एक ऐसी ही फिल्म है जिसने फिल्मी पर्दे पर उकेरने वाली कहानी  के ढंग को बदलने का काम किया. यह फ़िल्म एक असली अपराध केस से प्रेरित कहानी थी जो पूरे देश में उन दिनों  चर्चा का विषय बना हुआ था.

आइए जानते हैं कि इस फिल्म के पीछे की सच्ची कहानी क्या है.

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यह फिल्म बहुचर्चित, के एम नानावटी केस पर आधारित है. इस केस का उल्लेख भारतीय कानून के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण रहा है. कमांडर कावस मानेकशॉ नानावटी, जो भारतीय नौसेना में अधिकारी थे, ने अपनी पत्नी के प्रेमी प्रेम आहूजा को क्रोध और नफरत की भावना के साथ गोली मार दी थी. यह मामला भारतीय न्यायिक इतिहास का एक मील का पत्थर माना जाता है. ध्यान रहे कि यह भारत में होने वाली आखिरी ज्यूरी ट्रायल था, इसके बाद ज्यूरी सिस्टम को खत्म कर दिया गया. इस वजह से बॉलीवुड के बदलते परिदृश्य में इस फिल्म का निर्माण और पृष्ठभूमि आज भी महत्वपूर्ण माना जाता है.

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क्लासिक बन चुके इस फ़िल्म का निर्देशन आर.के. नायर ने कुछ हद तक किया था और इसके निर्माता थे सुनील दत्त (यह उनकी पहली निर्माण फिल्म थी) इस अभूतपूर्व फ़िल्म का संगीत निर्देशन दिया था रवि ने और बेहद भावुक गीत लिखे थे गीतकार राजेंद्र कृष्ण ने.

सुनील दत्त, जो पहले से ही एक स्थापित अभिनेता थे, ने इस फिल्म को अपने  प्रथम प्रोडक्शन के रूप में चुना था. उन्हें इस कहानी में एक ऐसा जादू नजर आया जो न केवल सनसनीखेज था, बल्कि मानव मन के गहरे हलचल को भी दर्शाता था.

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फिल्म की कहानी अनिल साहनी (सुनील दत्त द्वारा निभाया गया) के चारों ओर घूमती है, जो एक वाणिज्यिक पायलट हैं. उनका जीवन एकदम खुशहाल है. पत्नी नीना (लीला नायडू) एक खूबसूरत और आत्मनिर्भर महिला हैं जो विदेश में पली बढ़ी है और उनकी शादी को एक प्यार भरा और एकदूसरे के प्रति विश्वास रखने वाला रिश्ता दिखाया गया है. उनके दो बच्चे भी हैं.

लेकिन कहानी में अचानक एक भयंकर मोड़ तब आता है जब अनिल चार महीने के लिए  काम के सिलसिले में विदेश जाते हैं. उनकी अनुपस्थिति में,  अनिल के एक करीबी दोस्त अशोक श्रीवास्तव के साथ नीना का गहरा प्रेम संबंध बन जाता है. यह धोखा केवल एक साधारण एक्सट्रामैरिटल  अफ़ेयर नहीं था बल्कि एक गहरा भावनात्मक और शारीरिक आकर्षण था जो विश्वास और शादी की नींव को चुनौती देता है.

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जब अनिल लौटते हैं और उन्हें इस अफेयर का पता चलता है, तो वह मानसिक और भावनात्मक रूप से टूट जाता है. गुस्से से भरा हुआ अनिल का अशोक के साथ सामना, एक वो महत्वपूर्ण पल बन जाता है, जो एक जानलेवा मुठभेड़ साबित होकर सबकी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल देता है. अशोक का मर्डर हो जाता है.

अनिल साहनी के रूप में सुनील दत्त ने इस भूमिका में ऐसी गहराई और तीव्रता दिखाई जो आज भी उनकी बेहतरीन अदाकारी वाली फिल्मों में से एक मानी जाती है. मिसेज नीना साहनी की भूमिका में अभिनेत्री लीला नायडू ने उस जमाने में एक बोल्ड किरदार को निभाने का साहस दिखाया जो साठ के दशक में कोई भी हीरोइन करने को तैयार नहीं थी.

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लीजेंड आशोक कुमार ने इस फ़िल्म में वकील की एक महत्वपूर्ण सहायक भूमिका निभाई.

सह अभिनेता रहमान ने उस शख्स अशोक श्रीवास्तव की भूमिका निभाई जिसने कथा की दिशा ही बदल दी. फिल्म के अन्य कलाकार थे मोतीलाल शशि कला राजेंद्र नाथ हरि शिवदासानी इफ्तिखार.

इस फ़िल्म के सभी कलाकारों ने अपने किरदारों में अद्भुत गहराई लाकर फिल्म को एक साधारण अपराध कहानी से उठा कर एक एतिहासिक क्लासिक बना दिया.

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हालांकि यह फ़िल्म एक मर्डर थ्रिलर जोनर की फ़िल्म है और अक्सर मर्डर मिस्ट्री फिल्म में कई बार गानों की कोई खास गुंजाइश नहीं होती है लेकिन यह फिल्म अपनी तरह की एक अद्भुत कहानी है जिसमें संगीत का जादू उतना ही अपीलिंग है जितनी फ़िल्म की कहानी. तो इस फिल्म का संगीत, जिसे रवि ने तैयार किया, अविस्मरणीय बन गया.

इसमें कुछ सर्वाधिक यादगार गाने हैं: 

"कोई मुझसे पूछे", "तुम जिस पे नज़र डालो", "यह रास्ते हैं प्यार के चलना संभल संभल के, ये खामोशियाँ, ये तन्हाइयां, जान-ए-जान पास आओ, आज यह मेरी ज़िन्दगी, रूह खत्म हो गई. ये गाने न केवल चार्टबस्टर बने, बल्कि फिल्म की भावनात्मक स्तर को भी ये अच्छी तरह से दर्शाते हैं.

साठ के दशक में इस फ़िल्म का सामाजिक प्रभाव भारी पड़ा. 'यह रास्ते हैं प्यार के' सिर्फ प्यार में धोखे के कारण मर्डर वाली फिल्म नहीं थी, क्योंकि ये टीवी में प्रसारित होने वाली सिरीज़ जैसे पुलिस फाइल, सनसनी, वारदात में दिखने वाली प्रेम, प्यार, सेक्स अपराध, की आम तौर पर घटने वाली कहानी नहीं थी बल्कि यह एक सामाजिक टिप्पणी थी जिसने विवाह, विश्वासघात और नैतिकता की धारणाओं को चुनौती दी. फिल्म ने कठिन सवाल पूछे: एक व्यक्ति को एक असंभव कार्य या अपराध करने के लिए क्या प्रेरित करता है? समाज की अपेक्षाएं व्यक्तिगत चुनावों पर कैसे असर डालती हैं? इसमें कानूनी और सांस्कृतिक महत्व की भी बात की गई. फिल्म का अंत भी दर्शकों के मन में सवाल छोड़ता है. क्या कभी अनिल साहनी को अपने कार्य के लिए पछतावा हुआ? या क्या उन्होंने अपने निर्णय को सही मान लिया? ये ऐसे सवाल हैं जो आज भी लोग आपस में चर्चा करते हैं.

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फिल्म में असली नानावटी केस का अक्स था , जिसका महत्वपूर्ण कानूनी प्रभाव साफ दिखाई दिया. यह भारत में आखिरी ज्यूरी ट्रायल था, और इस अंतिम केस ने अंततः देश में ज्यूरी प्रणाली के खत्म होने की दिशा में काम किया. 

यह रास्ते हैं प्यार के फ़िल्म की आलोचनात्मक समीक्षा भी खूब हुई.

हालांकि फिल्म को शुरुआत में मिश्रित समीक्षाएं मिलीं, लेकिन आगे चलकर इसे उस समय के एक  इनोवेटिव फ़िल्म के रूप में देखा गया जो अपने समय से आगे थी. आलोचकों ने इसकी साहसी कहानी और नाजुक प्रदर्शन की प्रशंसा की.

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वाकई में यह फ़िल्म हिंदी सिनेमा जगत के लिए एक धरोहर है. इस फिल्म ने सिर्फ दर्शकों को नहीं बल्कि सिनेमा को भी एक नया दृष्टिकोण दिया है. इसके बाद की कई फिल्मों में इसी तरह के जटिल और संवेदनशील मुद्दों को उठाया गया. यह एक महत्वपूर्ण फिल्म मानी जाती है जिसने कई सिनेमैटिक परंपराओं को तोड़ा. यह साठ दशक की फ़िल्म आने वाले समय की फिल्में जैसे "अचानक  (1973) और 'रुस्तम' (2016) के लिए प्रेरणा बनी.  इन फिल्मों में भी नानावटी केस पर आधारित कहानियों का निर्माण था.

इस फ़िल्म को लेकर कुछ दिलचस्प बातें:

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सुनील दत्त ने उस समय यह फिल्म बनाई जब वह एक गंभीर अभिनेता और फिल्म निर्माता के रूप में खुद को स्थापित कर रहे थे. यह फ़िल्म ज्यादातर फिल्मालय स्टूडियो शूट हुई थी.

सुनील दत्त के पसंदीदा लेखक आघाजानी कश्मीरी ने इसकी पटकथा लिखी थी.

यह फिल्म भारत में महत्वपूर्ण सामाजिक बदलाव के दौर में फिल्माई गई थी.

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कमांडर कावस मानकशॉ नानावटी को 27 अप्रैल 1959 को प्रेम आहूजा के हत्या के आरोप में रखा गया था और अंततः उन्हें राष्ट्रपति द्वारा माफी दी गई. यह फ़िल्म 50 साल बाद 'रुस्तम' के रूप में फिर से बनाई गई, जिसमें अक्षय कुमार ने मुख्य भूमिका निभाई.  हालांकि असली नानावती केस के अंत में पति कमांडर कावस मानकशॉ ने अपने बच्चों के खातिर पत्नी को माफ कर दिया और परिवार सहित भारत छोड़ कैनेडा चले गए जबकि फ़िल्म में आत्म ग्लानि के चलते पत्नी मृत्यु को गले लगाती दिखाया गया.

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कुछ पुरानी खबरों के मुताबिक निर्देशक आर.के. नाय्यर ने इस फ़िल्म को अधूरा छोड़ दिया था , जिसे सुनिल दत्त ने पूरा किया. यह फिल्म निर्माता के रूप में सुनिल दत्त की पहली फ़िल्म और अजंता आर्ट्स बैनर की भी पहली फ़िल्म थी. सुनिल दत्त ने इस फ़िल्म के लिए आर.के. नाय्यर को साइन किया था और विडंबना देखिए, लगभग 30 वर्षों बाद आर.के. नाय्यर ने सुनील दत्त के बेटे संजय दत्त के साथ 'ये जो मोहब्बत है' के लिए साइन किया था हालाकि ये भी पूरी नहीं हुई.

यह फ़िल्म विभिन्न शैलियों का संगम है - अपराध, ड्रामा, रोमांस और थ्रिलर. इसे भारत में विभिन्न स्थानों पर फिल्माया गया और इसकी भाषा हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी है. इसका निर्माण अजान्टा आर्ट्स और लोन्स्टार्स प्रोडक्शन द्वारा किया गया था.

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