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जब बात बॉलीवुड की सबसे भावनात्मक और यादगार मेलोडीज़ की होती है, तो राजेश खन्ना (Rajesh Khanna) की करिश्माई स्क्रीन प्रेजेंस और किशोर कुमार (Kishore Kumar) की आत्मा को छू लेने वाली आवाज़ को नज़र अंदाज़ करना मुश्किल हो जाता है. ये जोड़ी हिंदी सिनेमा की सबसे आइकोनिक जोड़ियों में से एक रही है, जिन्होंने मिलकर न जाने कितनी यादगार धुनें दी हैं,— "Yeh Shaam Mastani," "Kuch Toh Log Kahenge," and "Humein Tumse Pyaar Kitna" जैसी सैकड़ों नग़में आज भी सुनने वालों को पुरानी यादों में खो जाने पर मजबूर कर देते हैं.
लेकिन, एक ऐसा भी गाना था जिसे किशोर कुमार ने गाने से मना कर दिया था, और उसी गाने ने फिल्म की कहानी में वो जादू भर दिया, जिसे देखने-सुनने वाला आज भी अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाता.
'हाथी मेरे साथी' का भावुक मोड़ (The Emotional Turn in 'Haathi Mere Saathi')
1971 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ (Haathi Mere Saathi), राजेश खन्ना और उनके चार प्यारे हाथियों की दोस्ती की एक इमोशनल कहानी थी. उनके साथ फिल्म में बॉलीवुड एक्ट्रेस काजोल और तनीषा की माँ तनुजा (Tanuja) थी. इसी फिल्म का एक गाना —'नफरत की दुनिया को छोड़ के प्यार की दुनिया में खुश रहना मेरे यार' (Nafrat Ki Duniya Ko), जिसे सुनकर आज भी लोगों की आँखें भर आती है.
इस गाने के बोल जब पहली बार किशोर कुमार के हाथ में आए, तो उन्होंने तुरंत लक्ष्मीकांत–प्यारेलाल (Laxmikant–Pyarelal) से कह दिया, “मैं ये गाना नहीं गा सकता.” उन्होंने साफ मना कर दिया कि यह गीत को उनके स्वभाव और गायन शैली के हिसाब से गाना सही नहीं होगा. किशोर ने सुझाव दिया कि इस गाने को मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) से गवाना चाहिए, क्योंकि इसका भावनात्मक भार बहुत गहरा था.
राजेश खन्ना की नाराज़गी, लेकिन... (Rajesh Khanna’s Disappointment)
जब यह बात राजेश खन्ना तक पहुंची, तो वो थोड़े नाराज़ हो गए. उनके लिए किशोर कुमार की आवाज़ एक आदत बन चुकी थी. दर्शकों ने भी प्रेम, दर्द और खुशी के हर पल को इस जोड़ी के साथ महसूस किया था. लेकिन किशोर ने उन्हें समझाया कि यह गाना ‘कलात्मक दृष्टिकोण’ से रफी साहब की आवाज़ में ही उभरकर सामने आएगा.
राजेश खन्ना को यह बात समझ में आ गई और फिर मोहम्मद रफी ने इस गाने को अपने पूरे भाव के साथ रिकॉर्ड किया. जब ये गाना बड़े पर्दे पर आया तो राजेश खन्ना और उनके प्यारे हाथी के आखिरी विदाई दृश्य के साथ—सिनेमा हॉल में सन्नाटा और सिसकियों की गूंज सुनाई दी.
जो आवाज़ किशोर ने छोडी, वो अमर हो गई (The Voice Kishore Left Behind, Became Immortal)
जो गाना किशोर कुमार गाने से झिझक रहे थे, वही गाना दर्शकों की भावनाओं की सबसे गहरी परत को छू गया. रफी साहब की आवाज़ में गुंजता ये गीत मौत, दोस्ती और त्याग जैसी भावनाओं की मिसाल बन गया. आज भी जब यह गाना बजता है तो हर उम्र का इंसान पल भर के लिए वही थम जाता है और उसे अपने पालतू जानवर की याद आ जाती है, जो यह एहसास दिलाता है कि यह गाना उनके दिल के कितना करीब है.
किशोर कुमार और राजेश खन्ना का यह किस्सा याद दिलाता है कि कभी-कभी कलाकार के इनकार में भी एक गहरी सोच होती है—और वही समझदारी किसी गीत को अमर बना देती है.
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