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धर्मेंद्र और दिलीप कुमार की दोस्ती का सफर किसी पुरानी किताब में रखी गुलाब के फूल की तरह सहेजी कहानी है। आज, ना दिलीप साहब है और ना धर्मेंद्र पाजी। बस, अगर कुछ बाकी है तो वो है यादें।
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आइए जानते हैं कि बॉलीवुड के उन दो दिग्गजों की दोस्ती किन हालातों में शुरू हुई और कैसे धीरे धीरे उस मुकाम तक पहुंच गई जहां वे दोनों एक दूसरे के भरोसा बन गए। इस दोस्ती के रिश्ते की शुरुआत ही इतनी दिलचस्प है कि सुनकर हंसी भी आती है और दिल भी पिघल जाता है। यह किस्सा आज से 73 साल पुराना है। लेकिन अभी भी ये कहानी गर्माजोशी से सुनाया जाता है। (Dharmendra Dilip Kumar friendship story)
1952 की बात है। पंजाब का एक लंबा, कद काठी वाला शर्मिला सा लड़का पहली बार मुंबई आया था। नाम था धर्मेंद्र। उस समय वह कॉलेज में सेकेंड ईयर में पढ़ते थे। हालांकि उन्हें फिल्में देखने का बहुत शौक था और उनका फेवरेट एक्टर था दिलीप कुमार लेकिन फिल्मों में हीरो बनने का कोई बड़ा सपना नहीं था उनके मन में। बस एक ख्वाहिश थी, अपने आइडियल, अपने दिल के हीरो, दिलीप कुमार को एक बार सामने से देख लेने की। फिल्म ''शहीद (1948) देखने के बाद तो उन्हें लगा था कि एक बार दिलीप कुमार को मिल लूं तो जरूर उन्हें भाई बना लूंगा।
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तो धर्मेंद्र ने दिलीप कुमार के घर का पता किसी तरह से जुगाड़ किया और एक दिन पहुंच गए मुंबई के पाली माला स्थित दिलीप साहब के बंगले के गेट पर। धर्मेंद्र की किस्मत अच्छी थी कि उस वक्त गेट पर कोई पहरेदार उपस्थित नहीं था। धर्मेंद्र ने सोचा कि यहां भी पंजाब जैसा रीत रिवाज़ होगा। यह उस जमाने की बात है जब पंजाब में, सबके घर खुले रहते थे। हर कोई बिना द्वार खटखटाए, किसी के भी घर में घुस सकता था। । बस यही सोच कर धरम जी ने गेट खोला और सीधे अंदर घुस गए। सामने सीढ़ियां दिखी तो सीधा दनदनाते हुए चढ़े और जिस कमरे में पहुंचे… वह दिलीप कुमार का बेडरूम था। दिलीप साहब गहरी नींद में सो रहे थे। धर्मेंद्र ने कमरे के अंदर कदम रखा तो वहां रखी किसी चीज से टकरा गए। आवाज़ होते ही अचानक दिलीप कुमार की नींद खुली तो उन्होंने अपने सामने एक बिल्कुल अनजान, हट्टे कट्टे लड़के को अपनी ओर घूरते देखा। दिलीप साहब चौंके और गुस्से में बोले, "कौन? यह सुनते ही धर्मेंद्र की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। वे डर के मारे वापस भागे… नीचे उतरे, सड़क पार किया और वहां एक छोटे से कैफे में जाकर बैठ गए। उन्हें तो बस छिपना था। वहां बैठकर लस्सी पीते हुए वे सोचते रहे कि यह मैंने क्या कर दिया। (First meeting of Dharmendra and Dilip Kumar)
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लेकिन किस्मत को तो वही करना था जो आगे चलकर इनके रिश्ते के लिए मजबूत बंधन बनने वाला था। डर के मारे भागे हुए उस लड़के को पता नहीं था कि एक दिन वही दिलीप साहब खुद उसे गले लगाकर आशीर्वाद देंगे और एक दिन उन्हीं के साथ वह रिश्ते में बड़े भाई जैसे बन जाएंगे।
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दिलीप कुमार के साथ उस बेअदब मुलाकात के छह साल बाद धर्मेंद्र की जिन्दगी ने अचानक एक खूबसूरत मोड़ लिया। धर्मेंद्र यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स और फिल्मफेयर टैलेंट कॉन्टेस्ट जीत गए। वे मुंबई शिफ्ट हो गए और फिल्मों में काम करने लगे। किस्मत देखिए कि जो मेक-अप वुमन उन्हें तैयार करने आती थी वह दिलीप साहब की बहन फरीदा थी। जैसे ही यह बात धर्मेंद्र को पता चली उन्होंने फौरन उनसे रिक्वेस्ट किया कि वो उसे दिलीप कुमार से मिलवा दें। फरीदा ने अप्वाइंटमेंट फिक्स कर दिया। अगले दिन धरम जी दिलीप साहब के घर पहुंचे और इस बार उनका स्वागत खुद दिलीप कुमार ने किया। (Dharmendra Dilip Kumar 73 years old story)
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दिलीप साहब धर्मेंद्र को अपने लॉन में ले गए। दोनों वहां बैठ गए। धर्मेंद्र ने उन्हें अपने स्ट्रगल की बात बताई तो दिलीप कुमार ने भी अपने शुरुआती दिनों की कहानी धर्मेंद्र को सुना दिया। धर्मेंद्र चुपचाप बच्चे की तरह सुनते रहे। दोनों ने चाय नाश्ता किया। शाम उतर आई थी। वो सर्दी का सीजन था और धर्मेंद्र ने एक पतला सा शर्ट पहन रखा था। दिलीप कुमार ने देखा धर्मेंद्र कुछ सिहर रहे थे। जब धर्मेंद्र ने उठकर दिलीप साहब से जाने की इजाजत मांगी तो दिलीप साहब उन्हें अपने कमरे में ले गए, अलमारी खोली और एक गरम स्वेटर उन्हें दे दिया। बोले, "तुम इतनी पतली कॉटन की शर्ट में ठंड कैसे झेलोगे?" धर्मेंद्र की खुशी का ठिकाना नहीं था। कोट को गले से लगाकर वे वहां से निकल गए। (Dharmendra early days with Dilip Kumar)
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धर्मेंद्र के लिए यह महज एक जरूरी तोहफ़ा नहीं था – यह रिश्ते की पहली ईंट थी। इसके बाद यह रिश्ता दिन पर दिन बढ़ता ही गया। दिलीप कुमार ने कई बार इंटरव्यू में कहा था कि वे धर्मेंद्र में अपनी जवानी का सच्चा, मासूम अक्स देखते थे और खुदा ने उन्हें भी धरम जैसा हैंडसम क्यों नहीं बनाया? दूसरी तरफ धर्मेंद्र कहते थे कि अगर कोई हीरो होना चाहिए, तो वह दिलीप कुमार जैसा। उनका स्टाइल, उनका सलीका, उनकी नफ़ासत सब कुछ सीखने लायक था।
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दोनों की दोस्ती आज सिर्फ पुराने दिनों की बात नहीं रही। पिछले कुछ सालों से धर्मेंद्र सोशल मीडिया पर दिलीप साहब के साथ पुरानी तस्वीरें डालते रहते थे। दिलीप साहब के बीमार रहने के दौरान धर्मेंद्र कई बार चुपचाप उनके घर जाकर हाल-चाल ले आते थे। वे कहते थे, “मैं उनके कमरे में बैठकर बस उन्हें देखता था। दिल असल में वहीं सुकून पाता था।”
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धर्मेंद्र के निधन के बाद, दिलीप कुमार के परिवार ने भी हाल ही में कहा कि जब भी धरम जी और दिलीप साहब मिलते थे, घर में एक अजीब सी रौनक आ जाती थी। सायरा बानो ने भी एक इंटरव्यू में बताया था कि"उन्हें धर्मेंद्र का बचपना बहुत पसंद था। उन्होंने कहा था “धर्मेंद्र बाहरी तौर पर ही-मैन थे, लेकिन दिल के बिल्कुल बच्चे जैसे थे।”
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धर्मेंद्र का पूरा सफर भी कम शानदार नहीं रहा। शोले, अनुपमा, सत्यकाम, या फिर चुपके चुपके जैसी फिल्मों ने उन्हें करोड़ों दिलों का चहेता बनाया। खासकर 'चुपके चुपके- कॉमेडी तो आज भी लोग याद करते हैं। (Dilip Kumar influence on Dharmendra)
धर्मेंद्र और दिलीप कुमार की पहली मुलाकात भले ही एक मज़ाकिया घटना से शुरू हुई थी, लेकिन इसी एक घटना ने फिल्म इंडस्ट्री को दो ऐसे सितारे दिए जिन्होंने एक-दूसरे को सिर्फ स्क्रीन पर नहीं, दिल में भी हमेशा के लिए जगह दी। यह दोस्ती, वक्त से भी ज़्यादा लंबी चली – और अब भी लोगों की यादों में उतनी ही ज़िंदा है।
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