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कभी एक समय था जब भारतीय समाज में महिलाओं को सिर्फ घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिया गया था. उन्हें पढ़ने-लिखने, अपने विचार रखने, या अपनी राह खुद चुनने का अधिकार नहीं था. उनका संसार बस घर, बच्चे और रसोई तक सिमट कर रह जाता था. उनके सपनों पर समाज की बंदिशें हावी थीं. फिल्मों और साहित्य में भी उन्हें ‘अभला’, ‘लाचार’ और ‘निर्भर’ नारी के रूप में दिखाया जाता था — मानो वे अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद नहीं ले सकतीं, बल्कि दूसरों के इशारों पर चलने वाली एक भावनात्मक कठपुतली हों. उस दौर में नारी को ऐसा प्रस्तुत किया गया, जैसे उसका अस्तित्व केवल बच्चे पैदा करने और परिवार संभालने तक सीमित है. (Status of women in Indian society article)
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लेकिन वक्त के साथ समाज की सोच बदली, और नारी ने यह साबित कर दिखाया कि वह किसी भी मायने में पुरुष से कम नहीं. उसने अपने संघर्षों, सपनों और कर्म से यह साबित किया कि अगर अवसर मिले तो वह न केवल अपने परिवार, बल्कि पूरे समाज का चेहरा बदल सकती है. अब वह ‘घर की रानी’ भर नहीं, बल्कि ‘देश की शिल्पकार’ बन चुकी है. आज की नारी आत्मनिर्भर है, आत्मसम्मान से भरी है, और अपनी पहचान खुद गढ़ रही है. वह अब किसी की छाया नहीं, बल्कि अपनी रोशनी से दूसरों को दिशा देने वाली शक्ति बन चुकी है. (Story of women empowerment in India)
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प्रधानमंत्री मोदी का नारी सशक्तिकरण मॉडल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं की उस “छिपी हुई शक्ति” को पहचाना, जिसे समाज ने सदियों तक अनदेखा किया था. उन्होंने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, उज्ज्वला योजना, जनधन योजना, और स्वच्छ भारत मिशन जैसे अभियानों के ज़रिए महिलाओं को नई गरिमा दी. गाँव की महिलाओं के लिए जनधन खाते खुलवाकर उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता दी, जिससे वे अपने निर्णय खुद लेने लगीं. स्वच्छ भारत अभियान के तहत देशभर में शौचालय बनवाए, जिससे नारी को न केवल स्वास्थ्य, बल्कि सम्मान भी मिला. उन्होंने महिलाओं को “उड़ने के लिए पंख” दिए — आज महिलाएँ भारतीय वायुसेना में फाइटर पायलट बन रही हैं, सेना में नेतृत्व की भूमिका निभा रही हैं, और वैज्ञानिक मिशनों की कमान संभाल रही हैं. ग्रामीण महिलाओं को बैंकिंग प्रणाली से जोड़कर, सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स के माध्यम से आज लाखों महिलाएँ छोटे-छोटे उद्योग चला रही हैं.
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वित्तमंत्री निर्मला सीतारामन के साथ मिलकर प्रधानमंत्री मोदी भारत को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना रहे हैं, जहाँ महिलाओं की भूमिका केंद्र में है. दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को राजधानी के विकास की जिम्मेदारी देकर प्रधानमंत्री ने महिला नेतृत्व में भरोसा जताया है. वहीं हेमा मालिनी को मथुरा-वृंदावन के विकास का दायित्व सौंपना भी इस बात का संकेत है कि सरकार महिलाओं को नीति-निर्माण से लेकर जनसेवा तक के हर क्षेत्र में अग्रणी भूमिका दे रही है.
ये सभी महिलाएँ आधुनिक भारत की वही “नवदुर्गा” हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में शक्ति, सृजन, करुणा और साहस का प्रतीक बन चुकी हैं. (Women’s rights and struggles in India)
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फिल्मों की बात करें तो पर्दे पर महिलाओं की छवि में भी क्रांतिकारी बदलाव आया है. कभी फिल्मों में नारी सिर्फ आँसू बहाने वाली और दूसरों के फैसलों पर निर्भर रहने वाली दिखती थी, लेकिन अब वह अपने अधिकारों के लिए लड़ने वाली नायिका बन गई है. ‘क्वीन’ की रानी ने आत्मसम्मान की नई परिभाषा दी, ‘थप्पड’ की अमृता ने रिश्तों में बराबरी का हक माँगा, ‘छपाक’ की मालती ने साहस की मिसाल पेश की, और ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ की गंगूबाई ने यह दिखाया कि समाज चाहे कितना भी रूढ़िवादी क्यों न हो, एक महिला अपनी ताकत से सबको झुका सकती है.
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भारतीय सिनेमा और कला जगत में भी अनेक महिलाओं ने इतिहास रचा. मीना कुमारी ने अपने अभिनय से भावनाओं की गहराई को नई परिभाषा दी, दुर्गा खोटे ने अभिनेत्री और प्रोड्यूसर के रूप में ऐसे दौर में काम किया जब महिलाओं के लिए फिल्म जगत में जगह बनाना बेहद कठिन था. उषा खन्ना ने संगीत निर्देशन जैसे पुरुष-प्रधान क्षेत्र में अपनी धुनों से पहचान बनाई. मीरा नायर ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय सिनेमा की ताकत को दुनिया के सामने रखा. मेघना गुलज़ार ने अपनी फिल्मों से समाज की सच्चाई को संवेदनशीलता के साथ परोसा. और मेघना घई पुरी, जो “व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल” संस्था का नेतृत्व कर रही हैं, उन्होंने फिल्म शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं के लिए नए अवसर पैदा किए हैं.
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अब महिलाएँ पर्दे की सीमाओं से निकलकर निर्देशन, लेखन, सिनेमैटोग्राफी और प्रोडक्शन जैसे क्षेत्रों में भी अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. मेघना गुलज़ार, जोया अख्तर, और रेवती जैसी महिलाएँ यह साबित कर रही हैं कि कहानी कहने की कला लिंग से नहीं, दृष्टिकोण से तय होती है. (Essay on women’s position in society)
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फिल्मी पर्दे से आगे देखें तो देश की कई महिलाएँ आज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का नाम रोशन कर रही हैं. प्रियंका चोपड़ा ने हॉलीवुड में अपने काम से भारत की शक्ति का परिचय दिया. ऐश्वर्या राय ने मिस वर्ल्ड का ताज जीतकर विश्व में भारतीय सौंदर्य और गरिमा का मान बढ़ाया. दीपिका पादुकोण मानसिक स्वास्थ्य जैसे गंभीर मुद्दे पर खुलकर बोलकर समाज में नई सोच ला रही हैं. वहीं ऋचा चड्ढा जैसी अभिनेत्रियाँ अपनी फिल्मों के ज़रिए महिलाओं की वास्तविक कहानियाँ सामने ला रही हैं.
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राजनीति के क्षेत्र में भी महिलाओं ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है. भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं. एक साधारण पृष्ठभूमि से आने वाली आदिवासी महिला होकर उन्होंने देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक का सफर तय किया. उनका यह सफर न केवल प्रेरणादायक है बल्कि यह उस हर महिला के लिए उम्मीद की किरण है जो अपने सपनों को साकार करने का साहस रखती है.
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विज्ञान और अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी भारतीय नारी ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स ने अंतरिक्ष में भारत का झंडा लहराया. किरण मजूमदार शॉ ने बायोटेक्नोलॉजी की दुनिया में क्रांति लाई. मिताली राज और हरमनप्रीत कौर जैसी महिला खिलाड़ियों ने खेल जगत में देश को गौरवान्वित किया.
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इतिहास गवाह है कि भारतीय नारी हमेशा से शक्ति और साहस की प्रतीक रही है. देवी के नौ रूप — शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री — नारी की विविध शक्तियों के प्रतीक हैं. कभी वह कोमलता की मूर्ति है, तो कभी अन्याय के खिलाफ तलवार उठाने वाली दुर्गा. यही नारी का असली रूप है — जो जीवन भी देती है और जरूरत पड़ने पर संघर्ष भी करती है.
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सीता माता इसका सर्वोत्तम उदाहरण हैं. राजकुमारी होते हुए भी उन्होंने अपने पति राम के साथ 14 वर्षों का वनवास सहर्ष स्वीकार किया. उन्होंने यह दिखाया कि त्याग और धैर्य भी शक्ति का ही रूप हैं. वहीं रानी लक्ष्मीबाई ने अपने पराक्रम से अंग्रेजों को यह एहसास कराया कि भारतीय नारी कमज़ोर नहीं, बल्कि रणभूमि की अजेय योद्धा है. (Portrayal of women in Indian cinema)
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Narendra Modi: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी: भारतीय खेल जगत के सच्चे प्रेरणास्रोत
हाल ही में भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने वर्ल्ड कप जीतकर इतिहास रचा. कप्तान हरमनप्रीत कौर और उनकी टीम की यह जीत सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं, बल्कि एक संदेश है — कि अगर हौसला और मेहनत साथ हो, तो कोई भी मंज़िल असंभव नहीं. इस जीत ने देशभर की बेटियों के दिल में नया आत्मविश्वास जगाया है कि वे भी मैदान में उतरकर इतिहास बना सकती हैं.
ये सभी महिलाएँ आधुनिक भारत की वही “नवदुर्गा” हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में शक्ति, सृजन, करुणा और साहस का प्रतीक बन चुकी हैं.
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कभी जहाँ औरत को केवल बच्चे पैदा करने और घर संभालने तक सीमित कर दिया गया था, वहीं आज वही औरत अर्थव्यवस्था, राजनीति, विज्ञान, खेल और सिनेमा — हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है. अब औरत सिर्फ घर नहीं संभालती, बल्कि देश भी चला रही है. वह संवेदनशील भी है और सशक्त भी, करुणामयी भी है और कठोर निर्णय लेने की क्षमता भी रखती है. वह अब किसी की ‘अभला’ नहीं, बल्कि “अजेय शक्ति” की पहचान बन चुकी है. समाज के हर कोने में नारी परिवर्तन की धारा बन गई है — चाहे वह गाँव की पंचायत में बैठी सरपंच हो, किसी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने वाली शिक्षिका, किसी प्रयोगशाला में शोध कर रही वैज्ञानिक या किसी स्टार्टअप की युवा उद्यमी. आज की नारी सिर्फ सपने नहीं देखती, बल्कि उन्हें साकार भी करती है.
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Vande Mataram के 150 साल होने पर पीएम मोदी बोले- ‘वंदे मातरम्’ हर दौर, हर काल में प्रासंगिक है
‘मायापुरी’ परिवार कहता है — नारी शक्ति का सम्मान करो, क्योंकि वही समाज की असली आधारशिला है. जब हर महिला को बराबरी का हक़ मिलेगा, तभी सच्चे अर्थों में देश आगे बढ़ेगा.
FAQ
Q1: पुराने भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति कैसी थी?
A1: पुराने समय में भारतीय समाज में महिलाओं को घर की सीमाओं में रखा जाता था। उन्हें शिक्षा, रोजगार या अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता नहीं दी जाती थी।
Q2: फिल्मों और साहित्य में महिलाओं को कैसे दिखाया जाता था?
A2: फिल्मों और साहित्य में महिलाओं को अक्सर ‘अभला’ या ‘निर्भर’ नारी के रूप में प्रस्तुत किया गया, जो अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद नहीं ले सकती थीं।
Q3: क्या उस दौर में महिलाओं को शिक्षा का अधिकार था?
A3: नहीं, समाज के कई हिस्सों में महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति नहीं थी। उनका जीवन घर और परिवार तक सीमित माना जाता था।
Q4: समाज में महिलाओं पर बंदिशें क्यों थीं?
A4: उस समय पितृसत्तात्मक सोच और परंपरागत मान्यताओं के कारण महिलाओं की स्वतंत्रता और अधिकारों पर रोक लगाई गई थी।
Q5: आज की महिलाएँ पुराने समय की महिलाओं से कैसे अलग हैं?
A5: आज की महिलाएँ शिक्षित, आत्मनिर्भर और अपने फैसले खुद लेने में सक्षम हैं। वे समाज, राजनीति, खेल और विज्ञान हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं।
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