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मोहम्मद रफ़ी भारतीय संगीत की धरोहर हैं और उनके योगदान को शब्दों में व्यक्त करना लगभग असंभव है. उनके संगीत और गायकी ने ना सिर्फ़ उनके समकालीनों को प्रेरित किया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के कलाकारों के लिए एक मार्गदर्शक का कार्य किया. रफ़ी साहब के बारे में कई कलाकारों ने अपनी भावनाओं का इज़हार किया है. उन्होंने रफ़ी साहब की सादगी, उनके संगीत में एक अनोखा जादू और उनके व्यक्तित्व की महानता को सच्चे दिल से सराहा है. आइए, रफ़ी साहब के बारे में कुछ महान कलाकारों द्वारा कही गई कुछ खास बातें जानते हैं.
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लता मंगेशकर
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सुरों की मल्लिका लता मंगेशकर रफी साहब के बारे कहती हैं, “सरल मन के इंसान रफी साहब बहुत सुरीले थे. ये मेरी खुस्किस्मती है कि मैंने उनके साथ सबसे ज्यादा गाने गाए. गाना कैसा भी हो वो ऐसे गा लेते थे कि गाना ना समझने वाले भी वाह-वाह कर उठते थे .ऐसे गायक बार-बार जन्म नहीं लेते.”
गीतकार नौशाद
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मशहूर गीतकार नौशाद ने मोहम्मद रफी के निधन पर लिखा था, 'गूंजती है तेरी आवाज अमीरों के महल में, झोपड़ों के गरीबों में भी है तेरे साज, यूं तो अपने मौसिकी पर साहब को फक्र होता है मगर ए मेरे साथी मौसिकी को भी आज तुझ पर है नाज.”
शैलेंद्र सिंह
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शैलेंद्र सिंह ने रफी के साथ अपनी पहली मुलाकात के बारे में बताया है जहाँ उन्होंने कहा है कि मेरी पहली मुलाकात उनसे 1977 में फिल्म "चाचा भतीजा" के टाइटल ट्रैक के लिए हुई थी, जो फ़ेमस स्टूडियो में रिकॉर्ड होना था. उस रात मैं सो नहीं सका. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं उस व्यक्ति के साथ कैसे गाऊं, जिसे मैं भगवान की तरह मानता था. मुझे आज भी याद है, वह सफेद शर्ट और पैंट पहने हुए थे. जब मैंने उनके पैर छुए, तो वह मुस्कुराए और बोले, "अब भी पैर छूने का रिवाज है, बेटा? मैं तो समझता था कि आजकल हाथ मिलाते हैं." मैंने कहा, "नहीं, नहीं रफी साहब, हमें तो बड़ों ने यही सिखाया है." फिर उन्होंने पूछा, "तू पंजाबी है?" मैंने कहा, हां! तो वह बोले, "अब हम पंजाबी में बात करेंगे." लेकिन जब मैंने बताया कि मुझे पंजाबी ठीक से नहीं आती, तो वह थोड़े नाराज हो गए. मैंने उन्हें बताया कि यह इसलिए है क्योंकि मेरी मां उत्तर प्रदेश से थीं. वह बोले, "तू पंजाबी सीख (तू पंजाबी सीख)." मैंने कहा, "आप मुझे पंजाबी सिखा दो." फिर हम रिकॉर्डिंग में लग गए.
शब्बीर कुमार
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शब्बीर कुमार ने मोहम्मद रफी से अपनी मुलाकात के बारे में बताते हुए कहा, “1972 में, एक संगीतकार जिसे मैं जानता था, मुझे फ़ेमस स्टूडियो में ले आया, जहाँ रफी साहब 'कोई फूल ना खिलता' (फिल्म: पैसे की गुड़िया, 1972) गा रहे थे, जिसे लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने संगीतबद्ध किया था. उस समय मैं ड्राइंग किया करता था. रफी साहब का इंतजार करते हुए मैंने उनका स्केच तैयार किया. जब वह बाहर आए, तो मैंने उन्हें यह स्केच पेश किया और उनके हाथ को चूमा.”
शम्मी कपूर
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सुजाता देव की किताब 'मोहम्मद रफ़ी- ए गोल्डन वॉयस' में शम्मी कपूर ने रफी साहब के बारे में कहा हैं, “ गाना रिकॉर्ड करना था. रात भर मैं सो नहीं पाया. मैं चाहता था कि ये जुमला बार-बार दोहराया जाए और फिर गाने का अंत हो. लेकिन संगीतकार ओपी नैय्यर को मेरी सलाह पसंद नहीं आई.” “मेरी निराशा देखकर रफ़ी ओपी नैय्यर से बोले- पापा जी, आप कंपोज़र हो. मैं गायक हूँ पर पर्दे पर तो शम्मी कपूर को ही एक्टिंग करनी है. उन्हें करने दो. अगर अच्छा नहीं लगेगा तो हम दोबारा कर लेंगे. रफ़ी साहब ने वैसे ही गाया, जैसा मैंने सोचा था.” जब ओपी नैय्यर ने गाना देखा तो मुझे बाँहों में भर लिया और दुआएँ दीं. रफ़ी साहब ने अपनी शरारती पर नरम आवाज़ में कहा-अब बात बनी न? रफ़ी साहब चुटकी में दिल जीत लेते थे. मैं मोहम्मद रफ़ी के बग़ैर अधूरा हूँ.”
फिल्म- कश्मीर की कली
गाना- ‘ये चांद सा रोशन चेहरा’
मुखड़ा- तारीफ करूं क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया…
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सोनू निगम
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सोनू निगम ने रफी साहब के बारे में कहा, “मैं आज जो कुछ भी हूं, वह बनने में उनसे (रफी) जी ने मुझे बहुत मदद मिली है और मैं अब भी उनसे सीखता रहता हूं. वह संगीत की दुनिया में मेरे लिए पिता समान हैं. साथ ही उन्होंने कहा, “वह हमेशा मेरे में बसे हैं, इसलिए मुझमें वास्तव में उनसे न मिल पाने की कसक नहीं है.” रफ़ी साहब के बारे में यह कहना बिल्कुल सही है कि उनके द्वारा गाए गए गीत आज भी पुराने दिनों की याद दिलाते हैं. उनकी आवाज़ को हर संगीत प्रेमी और कला की कद्र करने वाला महसूस करता है.
साभार- CNN IBN
By- Priyanka yadav
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