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उसकी आंखें नम हो गयी थी अपने अतीत को याद करते हुए- "शरद, 50 साल हो गए हैं मुझे इस फिल्म इंडस्ट्री में.मैंने दिलीप कुमार से लेकर अर्जुन कपूर तक को कैद करके रखा है अपने कैमरे में. आज मुझे फख्र है कि मैं ऐसी इंडस्ट्री में हूं जहां इंसानियत की जिंदा मिसालें हैं, जज्बा है और मुझ जैसे आदमी के लिए भी जगह है."अपने जीवन काल मे, कुछ समय पहले प्रेस फोटोग्राफर बी.के.तांबे ने मुझे अपने जीवन का किस्सा सुनाया था, कहते हुए कि मेरे मरने के बाद मेरे बारे में लिखना जरूर. और, यह संस्मरण हमने उसी समय 'मायापुरी' में छाप दिया था.
"सचमुच मेरे जीवन की गाथा बेहद तनाव पूर्ण, उबड़ खाबड़ संघर्षों की कहानी है.आज के फोटोग्राफर 'तांबे' के लिए हर स्टार के मन मे प्यार है पर कुछ साल पहले...?" अपनी स्मृतियों में सीनियर प्रेस फोटोग्राफर बीके तांबे डुबकी मारने लगते हैं. "एक छोटा सा बच्चा, जिसकी कमीज के बटन टूटे हुए रहते थे, चिल्लाता हुआ प्लेटफॉर्म से प्लेटफॉर्म घूमता रहता था- 'पॉलिस करा लो...पॉलिस!' यह किसी फिल्म का डायलॉग नहीं मेरी जिंदगी की कहानी है." कहा तांबे ने. "चर्चगेट से ग्रांटरोड स्टेशन तक मैं बूट पॉलिस करने के लिए दौड़ता रहता था. अगर ऐसा नहीं करता तो मैं और मेरी बहन (शांता) भूंखे सोने के लिए मजबूर थे. हमारी उम्र तब दस-बारह साल की रही होगी. बूट पॉलिस के बाद... शंकर विलास होटल में चाय पहुंचाने का काम करने लगा था. उसी समय एक और धंधा किया था. सिर पर बांगड़ी (चूड़ी) उठाकर बेचने के लिए घूमता था. यहसब मैं किसी की सहानुभूति पाने के लिए नहीं बता रहा हूं बल्कि इसलिए बता रहा हूं कि मेरे अनुभवों से लोगों को सीख मिल सके कि जीवन निराशा से नहीं, संघर्षों से चलता है.
"मेरे पिताजी एक पारसी बिल्डिंग में लिफ्ट चलाने का काम करते थे. यहां विनोद खन्ना, साउंड रिकॉर्डिस्ट मीनू कातरत जैसे लोग रहते थे. यहां मैं आता था और मेरा फिल्मी प्रेम यहां से अंकुरित होना शुरू हुआ था. संघर्ष के पांव जीवन की जमीं पर अपने निशान अंकित करते चलते हैं. मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. अमिताभ बच्चन, सुनील दत्त, शाहरुख खान, आमिर खान , सलमान खान की नियमित शूटिंग पर जाकर उनको कैमरे में चित्रबन्द करनेवाला वह लड़का कभी एक फोटो स्टूडियो में झाड़ू लगाने का काम किया था.वह लड़का...यानी-मैं, स्टूडियो में झाड़ू लगानेके बाद स्टूडियो मालिक से बारीकियां भी सीखता था. डिंगू स्टूडियो (ग्वालिया टैंक) को उनदिनों मेहबूब स्टूडियो में काम मिल गया था और उनके साथ मैं भी स्टूडियो जाने लगा. वहां सब सितारों को देखता और उनसे 'सलाम साब' कहकर बातें करने की कोशिश करता था. सब मुझे टिंगू कहकर बुलाने लगे थे. फिर मैं किराए पर कैमरा लेकर सितारों को शूट भी करने लगा था. कैमरे का भाड़ा जेब से भरता था- मिलता कहीं कुछ नहीं था. हैं, पहचान बनती गयी और मैं भी रिगुलर फोटोग्राफरों में शामिल हो गया. मेरा किस्सा धर्मेंद्र को मालूम था, वह बहुत समय तक मेरी चुटकी लेते थे-'ऐ कैमरा लिया क्या?' हलांकि धरमेंद्र और हेमा ने मुझे फाइनेंशियली मदत किया है.
आरके स्टूडियो में अमिताभ बच्चन 'खुदा गवाह' की शूटिंग कर रहे थे. मेरी लड़की (अनिता) की शादी थी. तीन बच्चे थे मेरे अनिल, अनिता और सुनीला. मैंने बच्चन साहब को कहा- 'आप हमारी लड़की की शादी में आओगे?' वह हां में सिर हिलाए. शादी बांद्रा में नेशनल कालेज में थी. अमिताभ जी वहां आगए. उनको देखकर लड़के वाले और बाराती सब फफला गए. इस शादी में मैंने कई सितारों को पूछा था 'आप आओगे?' सब बोलते थे कार्ड तो तुम देनेवाला नहीं है!' और, जब मैं सितारों को आते देखा, मैं आवाक था कि सचमुच सब आरहे हैं! अमिताभ (मनोज देसाई जी के साथ), शत्रुघ्न सिन्हा (पहलाज निहलाणी जी के साथ), अकबर खान, पिनाज मसानी, जैकी श्रॉफ, सलमान खान, अनिल मोरारका, विलास राव देशमुख...मेरी सोच में भी इतना नहीं था. रजनीकांत और कमल हासन ने मद्रास से संदेश भेजा था. स्मिता ठाकरे ने पैसा भेजा था. मराठी फिल्म इंडस्ट्री से महेश मांजरेकर, अशोक श्रॉफ, सचिन और कई सितारे इस शादी में आए थे. उस दिन बूट पॉलिस करनेवाले लड़के की आंखों में लगातार आंसू थे.
"बादमें, मेरे पोते का नामकरण (मनीष) बच्चन साहब ने रखा था. एक और बात का जिक्र भी यहां करना चाहूंगा.अभिषेक और ऐश्वर्या एक इवेंट से जा रहे थे, वे मुझे देख लिए...अभिषेक ने ऐश्वर्या को पीछे आने के लिए खींच, बोले- 'मेरे डैड का दोस्त फोटोग्राफर है, उनको मिलते हैं.' सच कहूं तो मेरा मन भर आया. कभी सुनिला दत्त साहब ने संजय दत्त को मेरे लिए ऐसे ही शब्द कहे थे. और, कभी मेरे लिए दिलीप साहब ने हाजी मस्तान को फोन किया था.... कोई हाजी मस्तान का भांजा बनकर हमसे टेढ़ी बात किया था जो सचमुच मस्तान साहब का कुछ नहीं था. साहब ने उस आदमी की खबर लिया था और मुझे उससे पैसे दिलवाए थे. बहुत सारे किस्से हैं किस किस के बारे में कहूं!
एकबार मिथुन(चक्रोबोरती) ने मेरे लिए कहा था-किस किस को लेकर आजाते हो, बगल में वहां जितेंद्र थे सुन लिए. जीतू ने मिथुन को मेरे बारे में बताया कि मेरे बारे में ऐसा न कहा करें. मायापुरी पत्रिका के मालिक- संपादक पी.के.बजाज साहब का जिक्र जरूर करना चाहूंगा. वह एक बुरे समय मे मुझे खाना खिलाए और घर ले जानेबकेन्लिए पार्सल कराकर दिए थे.वह पैसे से भी मेरी मदत किए हैं और हमेशा प्रोत्साहन दिए हैं. इस इंडस्ट्री के सभी लोग फोटोग्राफर्स, पत्रकार सभी ने मुझे खूब सहयोग दिया है. अगर सभी का सहयोग नहीं मिलता तो फुटपाथ पर बूट पॉलिस करनेवाला लड़का सितारों का चहेता नहीं होता. सचमुच मुझे फख्र है कि मैं इतने चाहनेवालों की फिल्म इंडस्ट्री में काम करता हूं.
नमन...तांबे जी, बहुत याद आओगे!
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