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निर्माताः रौनीस्क्रूवाला और प्रज्ञा कपूर
लेखकः रितेश शाह, सुरेश नायर, अभिषेक कपूर व चंदन अरोड़ा
निर्देशकः अभिषेक कपूर
कलाकार: अजय देवगन, अमन देवगन, राशा थडाणी, डायना पेंटी, मोहित मलिक, पियूष मिश्रा, नताशा रस्तोगी व अन्य..
अवधिः दो घंटे 28 मिनट
रेटिंगः डेढ़ स्टार
इंसान और जानवर के रिश्ते पर अतीत में तमाम बेहतरीन फिल्में बन चुकी हैं, मगर अजय देवगन, अजय देवगन के भांजे व रवीना टंडन की बेटी राशा थडानी के अभिनय से सजी तथा अभिषेक कपूर निर्देर्शित फिल्म "आजाद" में 'लगान' सहित कई फिल्मों के कथानको का मिश्रण कर अति घटिया वर्जन परोसा गया है. 'आजाद' में नायक व घोड़े के बीच के रिश्ते के साथ ही 'लगान' की ही तरह अंग्रेजों के शासन में शर्त जीतकर गांव को बचाने की कहानी भी है. 'लगान' में क्रिकेट था और 'आजाद' में घुड़दौड़ है. मजेदार बात यह है कि बागी के घोड़े आजाद की तुलना महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक संग भी कर दी गयी.
स्टोरी:
यह कहानी 1920 के काल्पनिक भासूर गांव की है. जहां अंग्रेज शासक गांव के लालची जमींदार (पीयूष मिश्रा) के साथ मिलकर गरीब जनता पर जुल्म ढाते हैं. इस गांव के लोगों को यहां से अफ्रीका में मजदूरी यानी कि गुलामी करने के लिए जबरन भेजा जाता है. जमींदार का बेटा (मोहित मलिक) व बेटी जानकी (राशा थडानी) है. बेटे ने जबरन ठाकुर विक्रम सिंह (अजय देवगन) की प्रेमिका (डायना पेंटी) से विवाह कर ठाकुर विक्रम सिंह के बागी बनने पर मजबूर किया है. कहानी के अनुसार 'आजाद' उस घोड़े का नाम है, जो समय से पहले जन्मा होने की वजह से शरीर से कमजोर था तो अंग्रेज अफसर ने उसे बंदूकी की गोली से मार देने का मन बनाया, लेकिन किसान बने ठाकुर विक्रम सिंह उसे अपनी मेहनत की कमाई के पांच रूपए में खरीद लेते हैं. इस तरह आजाद व ठाकुर विक्रम सिंह की दोस्ती परवान चढ़ती है. आजाद बड़ा होकर एक ऐसा घोड़ा बनता है जो है तो मारवाड़ी लेकिन अपनी चाल, ढाल, फुर्ती और चपलता से कतई अरबी लगता है. वही एक दिन जमींदार के बेटे के जुल्म से छुड़ाकर बीहड़ में ले जाता है. आजाद दारू पीता है. ठाकुर के सिवा किसी दूसरे को अपनी काठी पर सवार नहीं होने देता. इस गांव में अर्धकुंभ में घुड़दौड़ की परंपरा है, जिससे युवाओं में घोड़ों के प्रति विशेष लगाव होता है. जमींदार की घुडसाल में भी कई घोड़े हैं. जमींदार के घोड़ों की देखभाल करने वाला गांव का ही युवक गोविंद (अमन देवगन) अपना खुद का घोड़ा होने का सपना देखता है, जो एक गरीब के लिए बड़े दूर की कौड़ी है. एक बार गलती से जमींदार की बेटी जानकी (राशा थडानी) के घोड़े पर बैठने के चलते उसे जमींदार की तरफ से सजा के तौर पर कोड़े खाने पड़ते हैं. इसलिए, होली पर जानकी को रंग लगा देने के बाद जमींदार की सजा के खौफ में गोविंद गांव से ही भागता है और उसकी मुलाकात बागी ठाकुर विक्रम सिंह (अजय देवगन) के खूबसूरत घोड़े आजाद से होती हैं. नानी का दुलारा नवासा गोविंद जब आजाद को देखता है तो देखता ही रह जाता है. उसे बागी सरदार के इस घोड़े से प्यार हो जाता है. फिर वह खुद भी बागी होकर विक्रम सिंह के साथ हो लेता है. गोविंद अब आजाद को पटाने की हर कोशिश करता है, लेकिन आजाद अपने सरदार विक्रम सिंह के अलावा किसी को घास भी नहीं डालता. पर जमींदार के बेटे की चाल में फंसकर विक्रम सिंह के बागी गिरोह का एक सदस्य ऐसी चाल चलता है कि विक्रम सिंह मारे जाते हैं, मरने से पहले अपनी आखिरी सांसें गिनते हुए विक्रम सिंह खुद आजाद को गोविंद के हवाले नहीं कर जाते है. लेकिन ठाकुर विक्रम सिंह को खोने के गम में दुखी आजाद गोविंद को अपना सरदार मानने को तैयार नहीं होता. पर एक बार जब उनका रिश्ता बन जाता है तो यह आजाद ना सिर्फ गोविंद को गांव का हीरो बना देता है, बल्कि पूरे गांव वालों को अंग्रेजों और जमींदार के जुल्म से आजाद करता है.
रिव्यू:
फिल्म देखकर अहसास होता है कि महलों में रहने वाले जिन लेखकों व निर्देशक ने अंग्रेजों के जमाने के बारे में न कुछ पढ़ा है, न कोई शोध किया है, वह भी 1920 के गांव या बीहड़ या बागी न देखे हैं और न उस काल के बारे में बीहड़ इलाके व बागियों के बारे में बिना कुछ जानकारी हासिल किए एक फिल्म 'आजाद' इस सोच के साथ लेकर आ गए हैं कि वह जो कुछ भी परोसेंगे, दर्शक उसे ही सारा सच मानकर सिनेमाघर में देखते हुए उनकी झोली भर देगा. पर इन्हे अहसास नही है कि कि आज का दर्शक जागरूक है. वह किसी का गुलाम नही है कि आप फिल्मकार के तौर पर जो भी कूड़ा कचरा परोसेंगे, उसके लिए वह अपनी मेहनत की कमायी खर्च करता रहेगा. इतना ही नही कहानी 1920 की है,लेकिन डायना पेंटी और राशा थडानी तो अत्याधुनिक ज्वेलरी पहने हुए नजर आती है. लेखकों के साथ साथ सह लेखक व निर्देशक अभिषेक कपूर के दिमागी दिवालियापन की दाद देनी पड़ेगी कि उनके 1920 के बागी रात होते ही इक्कीसवीं सदी के संगीत पर बने आइटम नंबर को देखते हुए एन्जॉय करते हैं. लेखक व निर्देशक इस बात का जवाब ही नही दे पाए कि आम गांव वासियों के लिए लड़ने वाले ठाकुर विक्रम सिंह के प्रति गांव वालों का कोई जुड़ाव या विक्रम सिंह से सहानुभूति भी क्यों नहीं है? ठाकुर विक्रम सिंह की लड़ाई को लेकर भी यह फिल्म खामोश रहती है. कहीं न कहीं यह जमींदार के बेटे व ठाकुर विक्रम सिंह की निजी लड़ाई ही उभरकर आती है, जो कि गलत है. गोविंद और घोड़े आजाद के बीच रिश्ता जोड़ने में फिल्मकार ने बेवजह फिल्म की लंबाई बढा दी, जबकि सच तो यह है कि हर जानवर बहुत जल्द इंसान के साथ रिश्ता जोड़ लेता है. जानवर तो प्यार का भूखा हेाता है. हकीकत यह है कि यह फिल्म अजय देवगन के भांजे अमन देवगन के लिए ही बनायी गयी है. इसीलिए फिल्म में जमींदार की बेटी, बेटे, बहू या यॅूं कहें कि ठाकुर विक्रम सिंह की प्रेमिका व ठाकुर विक्रम सिंह व उनके साथियों के किरदार भी ठीक से लिखे ही नहीं गए. महिला किरदरों का जिस तरह से इस फिल्म में अपमान किया गया है, उसे तो क्षमा नहीं किया जा सकता. फिल्म कहानी, पटकथा और संवाद तीनों स्तर पर बेहद कमजोर है. फिल्म का क्लायमेक्स भी घटिया है. बतौर अभिनेता अपने करियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता जीतेंद्र के भांजे तथा ट्विंकल खन्ना के पूर्व प्रेमी गट्टू की पहचान रखने वाले अभिषेक कपूर की बतौर निर्देशक यह सातवीं फिल्म है. इससे पहले वह 'आर्यन', 'रॉक ऑन', 'कई पो चे', 'फितूर', 'रॉक ऑन 2', 'केदारनाथ' और 'चंडीगढ़ करे आषिकी' जैसी फिल्मों का निर्देशन करने के बाद अपनी सातवी फिल्म 'आजाद' का निर्देशन करते समय वह सिनेमा, कहानी व निर्देशन की समझ ही भुला बैठे. उनका निर्देशन अति कमजोर है.
एक्टिंग:
ठाकुर विक्रम सिंह इस फिल्म की कहानी की रीढ़ की हड्डी है. मगर यह तो इंटरवल से पहले ही चला जाता है. उपर से ठाकुर विक्रम सिंह के किरदार में अनुभवी अभिनेता अजय देवगन काफी निराश करते हैं. इस फिल्म में उनके कंधों पर अपने भांजे को सफल अभिनेता बनाने के साथ ही फिल्म को बाक्स आफिस पर हिट कराकर शायद अपनी बहन से किए गए वादे को पूरा करने सहित कई जिम्मेदारियां रही होंगी. इन जिम्मेदारियों को निभाने के बोझ के साथ ही स्क्रिप्ट व संवादों से मदद न मिलने के कारण उनक कंधे झुक गए होंगे. डायना पेंटी के हिस्से करने को कुछ खास आया ही नही. फिर भी जमींदारों के घरों में कैद एक प्रेमिका का किरदार बड़ी ही शालीनता के साथ निभामें में वह सफल रही है. क्रूर जमींदार के किरदार में पियूष मिश्रा से इस तरह की उम्मीद तो नही थी. टीवी सीरियलों में अभिनय कर शोहरत हासिल कर चुके मोहित मलिक की बतौर अभिनेता यह पहली फिल्म है, जिसमें मोहित ने गांव के क्रूर जमींदार के बेटे व मुख्य विलेन का किरदार निभाया है. लेकिन इस फिल्म में अपने अभिनय से उन्होने अपनी अब तक की साख पर बट्टा लगा दिया. गोविंद के किरदार को निभाने वाले अमन देवगन, अभिनेता अजय देवगन के भांजे है. उन्होंने अपने अभिनय से साबित कर दिखाया कि वह भी उन्ही नेपोकिड्स में से एक हैं,जिनका अभिनय से बैर है, सिर्फ नेपोटिजम के बल पर घुड़सवारी करते रहना चाहते हैं. उनके चेहरे पर कोई भाव ही नही आते, हर दृष्य में वही सपाट चेहरा... यदि वास्तव में अमन देवगन को सफल अभिनेता बनना है तो उन्हे काफी मेहनत करनी पड़ेगी. मशहूर अभिनेत्री रवीना टंडन और मशहूर फिल्म वितरक अनिल थडाणी की बेटी राशा थडाणी को भी इस फिल्म से किया गया है. फिल्म देखने के बाद तो हम यही कहेंगे सिर्फ नेपोकिड्स ही नहीं किसी भी कलाकार के अभिनय करियर की शुरुआत इस तरह की फिल्म व इस तरह किरदार के साथ नही होनी चाहिए.. सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या अनिल थडाणी व रवीना टंडन को पता नहीं था कि उनकी बेटी राशा के अभिनय करियर की शुरुआत किस तरह की फिल्म से हो रही है.. फिल्म में राशा थडाणी के फूहड़ 'इंट्रो' को क्या सोचकर उनके माता पिता ने इजाजत दी होगी, पता नही. पर करियर की शुरुआती फिल्म में 'उई अम्मा' जैसे आइटम सांग करना सही नहीं कहा जा सकता. इतना ही नही फिल्म में हीरोईन के नाम पर उनका करेक्टर दोयम दर्जे का है. वह फिल्म में खूबसूरत लगने के अलावा कुछ नही कर पायी. उनके अंदर अभिनय प्रतिभा फिलहाल शून्य है. जिसे निखारने की जरुरत है.
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