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रेटिंग: तीन स्टार
निर्माता: हेमवंत तिवारी और सुधा तिवारी
लेखक: हेमवंत तिवारी
निर्देशक: हेमवंत तिवारी
कलाकार: हेमवंत तिवारी, औरोषिखा डे, उदय चंद्रा, संदीप आनंद, अनिल पांडे, शिल्पा सबलोक, रवि साह, रत्ना नीलम पांडे, रूई जलगांवकर, रोमी सिद्दीकी और अन्य
अवधि: दो घंटे 14 मिनट
2023 में एक घंटा 37 मिनट की अवधि वाली वन टेक फिल्म ‘लोमड़’ बना चुके हेमवंत तिवारी अब दो घंटे 14 मिनट लंबी ‘वन टेक दोहरी भूमिका वाली फिल्म ‘कृष्णा अर्जुन’ लेकर आए हैं, जिसे सेंसर बोर्ड ने प्रमाणपत्र देने से इंकार कर दिया तो अब इसे सीधे यूट्यूब पर रिलीज किया गया है.
कहानी:
यह कहानी बिहार के एक गांव के दो जुड़वां भाइयों और भ्रष्ट व लालची विधान सभा सदस्य (एमएलए) गिरिराज यादव (विनीत कुमार) के साथ उनके टकराव की है. जिसे स्थानीय पुलिस द्वारा एक मामले को दबाने के लिए समर्थन दिया जाता है. जिसमें उसकी बलात्कार पीड़िता कुसुम (औरोषिखा डे) गर्भवती हो जाती है, और अब एक बच्चे को जन्म देने वाली है. अपराध के लिए एक मुकदमे के दौरान उसे जेल में डाल दिया गया था, लेकिन पर्याप्त सबूतों और मुख्यमंत्री (सीएम) की मदद के अभाव में उसे छोड़ दिया गया था. सीएम, विधायक जितना ही या शायद उससे भी ज्यादा अनैतिक है, और विधायक ने गुप्त रूप से सीएम का तीन महिलाओं के साथ रोमांस व सेक्स करते हुए एक वीडियो बनाया है, जिसका इस्तेमाल वह उसे ब्लैकमेल करने और मामले में हस्तक्षेप करने के लिए करता है. अर्जुन ने एक बार उसके लिए एक हिट-मैन के रूप में भी काम किया था, जो उन लोगों को मारने के असफल मिशन में था जिन्होंने उसे लूटा था और लूट के साथ भाग गए थे. जिस महिला के साथ विधायक गिरिराज यादव ने बलात्कार किया, वह अर्जुन के दिल की धड़कन थी. जबकि इस बात से लड़की अनभिज्ञ है, पर अर्जुन उसे समर्पित कविताएं लिखता था.
अर्जुन एक अजीबोगरीब काम करता है, स्थानीय मुस्लिम पुजारी मौलाना (उदय चंद्रा) के लिए कपड़े धोने, सुखाने और इस्त्री करने का काम करता है, जो लॉन्ड्री सेवा चलाता है. वह अन्य अंशकालिक नौकरियां भी करता है, लेकिन ज्यादा कमाई नहीं कर पाता है, और उसका परिवार गहरे कर्ज में डूबा हुआ है. गांव की सुंदरी है जिसे उसने बलात्कार से बचाया था और जो अब उसके लिए वासना करती है, यहां तक कि उसे ‘महिला-संभाल’ भी रही है और उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए उकसा रही है. एक दिन, जब वह अपने दोस्त गोपाल (संदीप आनंद) से बात कर रहा था, जो बीयर पी रहा था, दो पुलिसवाले वहां आ गए और लड़की से छेड़छाड़ करने की कोशिश की. अर्जुन और उसका दोस्त विरोध करते हैं और हस्तक्षेप करने की कोशिश करते हैं. इसके परिणामस्वरूप उन्हें पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन ले जाया जाता है और, सबसे अधिक संभावना है, लॉक-अप के लिए. पूरा पुलिस स्टेशन पूरी तरह से भ्रष्ट और बड़बोले कर्मचारियों से बना हुआ लगता है. अचानक, कुसुम नामक लड़की आती है, जिसका यादव ने बलात्कार किया था. विधायक खुद भी कुछ देर बाद पहुंचते हैं. और फिर सब कुछ बिगड़ जाता है. अर्जुन और उसका दोस्त आग्नेयास्त्रों को पकड़कर और पुलिस और विधायक को रोककर लड़की और खुद को पुलिस से बचाने की कोशिश करते हैं. लेकिन जब गोलीबारी शुरू होती है, तो गोपाल मारा जाता है और उसके तुरंत बाद अर्जुन भी मारा जाता है. कुछ देर में अर्जुन का भाई, कृष्णा बदला लेने के लिए सामने आ जाता है. पुलिस स्टेशन के अंदर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंततः कई पुलिसवाले, विधायक और मजिस्ट्रेट मारे जाते हैं. कृष्णा बुरी तरह घायल हो जाता है. मुख्यमंत्री के इशारे पर एसपी अपनी रिपोर्ट बनाती है.
रिव्यू:
सिंगल शॉट यानी कि वन टेक फिल्म और वह भी कई लोकेशन, दोहरी भूमिका तथा दो घंटे 14 मिनट लंबी फिल्म शूट करना आसान तो कदापि नहीं है. और जब निर्देशक खुद ही मुख्य और दोहरी भूमिका निभा रहा हो तब तो कुछ ज्यादा ही कठिन हो जाता है. इसके बावजूद इस कीर्तिमान को स्थापित करने के लिए अभिनेता, लेखक और निर्देशक हेमवंत तिवारी बधाई के पात्र हैं. यह सुनिश्चित करने के लिए कि पात्र और वस्तुएं फ्रेम में रहें, कलाकारों के साथ-साथ कैमरामैन और यूनिट के अन्य सदस्यों का एक साथ कई दिन तक रिहर्सल करना बहुत जरूरी रहा होगा. पर रिहर्सल ज्यादा करने से दृश्यों और अभिनय में नेचुरैलिटी का अभाव होना स्वाभाविक है, जो कि इस फिल्म में कई जगह नजर आता है. ऑपरेटिव कैमरामैन/कैमरामैन (एक हैंड-हेल्ड कैमरा का उपयोग किया जाता है) के लिए भी रिहर्सल अनिवार्य है, ताकि दोनों सुनिश्चित हो सकें. कैमरे की पोजीशंस के लिए स्पष्ट दृष्टिकोण, और घटनाओं को दृश्यमान बनाने के लिए पर्याप्त रोशनी. यह सब इतना ध्यान और योजना लेता है कि अभिनेताओं को भाव व्यक्त करने के लिए निर्देशित करना आसान नहीं हो सकता और इस फिल्म में तो हर दृश्य में निर्देशक स्वयं बतौर अभिनेता मौजूद है, तो कल्पना की जा सकती है कि वह कितने प्रतिभाशाली कलाकार और निर्देशक हैं. और कितनी मेहनत से इस फिल्म को अंतिम परिणाम तक पहुंचाया है. लेकिन अगर यह फिल्म ज्यादा से ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंच सके तो सारा गुड़ गोबर ही माना जाएगा... अरे भाई, जंगल में मोर नाचा किसने देखा... ऐसे में जरूरी हो जाता है कि माध्यम की जरूरत को समझते हुए अपनी बात कहने के लिए उस तरह के दृश्य और संवाद रखे जाएं कि आपकी मेहनत और आपकी अनूठी तकनीक लोगों तक पहुंच सके... लेकिन अफसोस लेखक और निर्देशक ने ऐसे संवाद रख दिए कि फिल्म आम लोगों तक नहीं पहुंच पाई.
तो वहीं कहानी के स्तर पर कुछ भी नयापन नहीं है. इस तरह की कहानी हजारों फिल्मों में दोहराई जा चुकी है. लेखक और निर्देशक ने जाति व्यवस्था, कामुकता और समलैंगिकता का तड़का जरूर पिरोया है. पुरुष कलाकारों के साथ-साथ महिला कलाकारों द्वारा गंदी गालियों से युक्त संवादों को बड़ी सहजता से बोलते हुए देखना आश्चर्यजनक लगता है. क्या बिहार की औरतें इसी तरह फर्राटेदार गालियां बकती हैं? गोपाल का किरदार तो ठूंसा हुआ लगता है, उसकी बकबक से हास्य के पल पैदा नहीं होते.
एक्टिंग:
अर्जुन और कृष्ण की दोहरी भूमिका में अभिनेता हेमवंत तिवारी ने बेहतर प्रदर्शन किया है. कुसुम के किरदार में औरोषिखा डे ने एक बार फिर साबित कर दिखाया कि वह बेहतरीन अदाकारा है. विधायक के किरदार में विनीत कुमार और मौलाना के किरदार में उदय चंद्रा का अभिनय सराहनीय है. अनिल पांडे, शिल्पा सबलोक, रवि साह, रत्ना नीलम पांडे, रूई जलगांवकर, रोमी सिद्दीकी और अन्य कलाकार ठीक-ठाक हैं.
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