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फिल्म: हिसाब बराबर
रेटिंगः तीन स्टार
निर्माताः जियो स्टूडियो और एस पी क्रिएशन प्रोडक्शन
लेखकः अश्विनी धीर
निर्देशकः अश्विनी धीर
कलाकारः आर माधवन, नील नितिन मुकेष,कीर्ति कुल्हारी, रौनक दुग्गल, रष्मी देसाई,मनु ऋषि का चड्ढा,हिमांशु मलिक,राजेश जैस,योगेश त्रिपाठी व अन्य
अवधिः एक घंटा 51 मिनट
ओटीटी प्लेटफार्म जी 5 पर 24 जनवरी 2025 से ‘अतिथि तुम कब जाओगे’,‘सन ऑफ सरदार’ फिल्मों के अलावा हास्य टीवी सीरियल ‘आफिस आफिस’ के सर्जक अश्वनी धीर इस बार व्यंगात्मक शैली में ऐसी वित्तीय भ्रष्टाचार की कहानी को अपनी फिल्म ‘हिसाब बराबर’ में लेकर आए है,जो सम सामायिक होने के साथ ही जिसका संबंध हर उस आम आदमी के साथ है.यह फिल्म लचीलापन,अडिग और साहसी आम इंसान की कहानी है.
स्टोरी
फिल्म की कहानी के केंद्र में भारतीय रेलवे का एक इमानदार, कर्मठ टीटीई राधे मोहन शर्मा (आर माधवन ) हैं. यह कहानी उस इंसान की कुंठा की है जो कि भ्रष्टाचार के खिलाफ झुकने को तैयार नही है.वह मेहनती हैं और गणित यानी कि हिसाब किताब में माहिर है.उनकी पत्नी उन्हे छोड़कर जा चुकी हैं.वह अपने आठ साल के बेटे के साथ साधारण सी जिदंगी जी रहे हैं.मगर उनकी जिंदगी में उस वक्त तूफान आ जाता है जब वह अपने ‘डू बैंक’ के खाते में 27 रूपए पचास पैसे की गड़बड़ी पाते हैं.यह गड़बड़ी शुरूआत में तो एक छोटी सी भूल नजर आती है,मगर बहुत जल्द यह बहुत बड़े भ्रष्टाचार का सुराग साबित होती है. राधे मोहन अपने तरीके से पूरी जांच करते हैं और फिर वह 150 लोगों के बैक एकाउंट की जांच कर डू बैंक पर 22 लाख से अधिक के भ्रष्टाचार का आरोप लगा देते हैं. जिसके चलते राधे मोहन शर्मा और डू बैंक के मालिक मिकी मेहता(नील नितिन मुकेश ) आमने सामने आ जाते हैं.मिकी मेहता एक चालाक बैंकर है और उसने वित्तीय मामले का एक विस्तृत घोटाला किया है.मिकी मेहता जोड़तोड करने वाला और निर्दयी इंसान है.जबकि राधे मोहन इमानदारी व नैतिकता में यकीन करने वाला इंसान है.धीरे धीरे राधे इस घोटाले की तह तक पहुंचने का प्रयास करता है,त्यों त्यों पता चलता है कि मिकी मेहता ने बड़ी चालाकी से अपनी बैंक के चार करोड़ खाता धारकों के साथ धोखा कर रहे हैं.राधे की समझ में आ जाता है कि किस तरह यह संस्थान आम लोगों को ठग रहे हैं.राधे की शिकायत पुलिस लिखने से मना कर देती है,तब राधे मोहन ‘डू बैंक’ के खिलाफ वित्तीय घोटाले की जांच के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं.मिकी को जब अदालत से नोटिस मिलती है,तो वह दयाल (मनु ऋषि का चड्ढा) की मदद से पुलिस को अपने पक्ष में कर लेती है और पुलिस कमिष्नर महिला पुलिस अधकारी पी सुभाष को जांच का काम सौंपते हैं,जिसे कभी राधे मोहन ने फेल कर दिया था.पी सुभाष (कीर्ति कुल्हारी ) अपने सहयोगियों के सामने कड़े सवाल पूछते हुए राधे मोहन को संकेत देती हैं कि अब वह उससे अपना पुराना हिसाब बराबर करेंगी. लेकिन पी सुभाष तो अपनी रिपोर्ट में राधा की ही बात को सच बताती हैं.पर पुलिस कमिश्नर उस रिपोर्ट को बदलकर अदालत में पेष कर बैक व मिकी मेहता को सही ठहराते हैं.अदालत इस रिपोर्ट के आधार पर राधे मोहन को एक दिन की जेल की सजा सुनाती है.एक दिन जेल में रहने के बाद राधे मोहन अपनी सारी जांच रिपोर्ट रिजर्व बैंक की गर्वनर रंगनाथन को ईमेल कर देते हैं.रंगनाथ ,मिक्की मेहता से सच जानना चाहती हैं,तब दयाल के कहने पर मिक्की, सरकारी अधिकारियों को अपने पेसे की ताकत पर खरीदकर गलत तरीके से राधे मोहन का घर तुड़वाने,नौकरी से अपदस्थ कराने सहित कइ्र तरह से परेशान करते हैं. इतना ही ही एक दिन रात में मिकी अपने सहयोगियों के साथ सड़क पर राधे व उसके बेटे को परेशान करने पहुंचते है,तब कई सफाई कर्मी वहां इकट्ठा होकर मिकी का विरोध करते हैं.उसके बाद राधे मोहन शर्मा, पी सुभाष और कई सफाईकर्मी एक साथ मिलकर मिकी व दयाल को उनकी सही जगह यानी कि जेल भिजवाने में सफल होते हैं.
रिव्यू
यूं तो बौलीवुड में स्कैम यानी घोटालों पर कई फिल्में व वेब सीरीज बन चुकी हैं.अब अश्विनी धीर बैंक के द्वारा आम इंसानों के साथ किए जा रहे स्कैम पर भी फिल्म‘हिसाब बराबर’’ लेकर आए हैं. ‘हिसाब बराबर’ एक अति साधारण कहानी होते हुए भी अश्वनी धीर के चुस्त लेखन व निर्देशन के चलते एक मनोरंजक फिल्म बनकर उभरती है। लेकिन वित्तीय षोषण की बात करने वाली यह फिल्म काफी धीमी गति से आगे बढ़ती है.आधी फिल्म खत्म होने के बाद इसे गति मिलती है और कहानी में रोमांच के पल भी पैदा होते हैं.उसके बाद ही दर्शक इस फिल्म के साथ जुड़ पाता है.यह लेखक व निर्देशक की कमजोरी है.एक बैंक के मालिक मिकी मेहता जिस तरह से राधे मोहन को हड़काने के लिए सड़क पर अपनी पलटन के साथ उतरते हैं,वह बड़ा अजीब सा लगता है.यूं तो हास्य व्यंग शैली के साथ इस तरह के विषयों पर काम करने में अश्वनी धीर को महारत हासिल है पर इस फिल्म की शुरूआत में कहीं न कहीं वह चूक गए हैं. यह फिल्म हर आम व गरीब इंसान को भी अपने अधिकार के लिए आवाज उठाने की प्रेरणा देती है.फिर चाहे वह कार्य कितना ही मुश्किल क्यों न लग रहा हो. फिल्म में अखंडता व लचीलेपन की भी पड़ताल की गयी है.फिल्म के व्यंगात्मक संवाद विषयवस्तु की गंभीरता को बनाए रखने में योगदान देते हैं. अश्वनी धीर की इस बात के लिए प्रशंसा की जानी चाहिए कि वह अपनी फिल्म ‘हिसाब बराबर’ में भारत में भ्रष्टाचार, धन की असमानता और छोटे आदमी के लिए लड़ाई के विषयों को सफलतापूर्वक उठाने मे कामयाब हुए हैं। मगर उपदेश देने की शैली से वह पूरी तरह खुद को दूर रखने में सफल रहे हैं.
एक्टिंग
नैतिकता की बात करने वाले एक इमानदार रेलवे टीटीई राधे मोहन षर्मा के किरदार में आर माधवन का अभिनय षानदार है.गणित के जुनूनी होते हुए वित्तीय घोटाले के खिलाफ मुहीम चलाने वाले आम इंसान के किरदार में उनका अभिनय दमदार है. आर माधवन अपने अभिनय से किरदार में प्रमाणिकता के साथ ही गहराई भी लाते हैं.पुलिस अफसर पी सुभाष के किरदार में कीर्ति कुल्हारी का अभिनय शानदार है.कीर्ति कुल्हारी अपने अभिनय से कहानी को जमीनी व भावनात्मक बल प्रदान करने में सफल रही हैं.फिल्म के विलेन मिकी मेहता के छोटे किरदार में नील नितिन मुकेश थोड़ा निराश करते हैं.उन्हे एक कुटिल बैंकर नजर आना चाहिए थ्रर,मगर वह अति घटिया दर्जे के दुष्ट बैंकर बनकर उभरते हैं.उनका इस किरदार को निभाने की बात भी समझ से परे है. रश्मि देसाई,राजेश जैस,हिमांशु मलिक व योगेश त्रिपाठी छोटे छोटे किरदारों में भी लोगों को अपनी तरफ खींचने मं कामयाब रहे हैं.
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