ULAJH FILM REVIEW : सिर्फ दर्षकों को बोर करती कहानी 2020 में लघु फिल्म "नॉक नॉक नॉक" के लिए सर्वश्रेष्ठ डायरेक्टर का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीत चुके फिल्मकार सुधांशु सरिया इस बार सह लेखक व निर्देशक के तौर पर जासूसी थ्रिलर फीचर फिल्म ‘उलझ’ लेकर आए हैं... By Shanti Swaroop Tripathi 02 Aug 2024 in रिव्यूज New Update Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 Follow Us शेयर रेटिंगः दो स्टारनिर्माताः विनीत जैनलेखकः परवेज शेख और सुधांशु सरियासंवाद लेखकः अतिका चैहाणनिर्देशक: सुधांशु सरियाकलाकारः जान्हवी कपू, रोशन मैथ्यू, गुलशन देवैय्या, आदिल हुसेन, राजेंद्र गुप्ता, मियांग चैंग, राजेश तैलंग, जीतेंद्र जोशीअवधिः दो घंटे चैदह मिनट 2020 में लघु फिल्म "नॉक नॉक नॉक" के लिए सर्वश्रेष्ठ डायरेक्टर का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीत चुके फिल्मकार सुधांशु सरिया इस बार सह लेखक व निर्देशक के तौर पर जासूसी थ्रिलर फीचर फिल्म ‘उलझ’ लेकर आए हैं, उन्होने विषय सही चुना, मगर विषय की उन्हें व उनकी लेखकीय टीम को कोई समझ नही है. जिसके चलते उन्होने पूरे विषय का कबाडा कर डाला. यह फिल्म बोर करने की बजाय कुछ नही करती. सुधांशु सरिया ने डिप्लोमैटिक प्रोटोकॉल व सुरक्षा से संबंधित नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई हैं. स्टोरी: कहानी देश के बेहद सम्मानित डिप्लोमैटिक घराने की तीसरी पीढ़ी की अफसर सुहाना भाटिया के इर्द गिर्द घूमती है। सुहाना भाटिया (जान्हवी कपूर) के पिता धनराज भाटिया (आदिल हुसैन) यूएन काउंसिल के लिए भारतीय प्रतिनिधि नियुक्त किए जाते हैं, जबकि सुहाना को भी उसकी चतुर डिप्लोमैटिक रणनीतियों के कारण ब्रिेटेन में सबसे युवा डिप्टी हाई कमिश्नर के तौर पर लंदन में पोस्टिंग मिल जाती है। सुहाना भाटिया (जाह्नवी कपूर) का नाम जब लंदन दूतावास के ‘डिप्टी हैड’ के तौर पर चुना जाता है तो पिता धनराज भाटिया (आदिल हुसैन) भी चैंक जाते हैं, लेकिन बेटी को लगता है कि पापा को पसंद नहीं आया। सुहाना की इस नियुक्ति से पहले से ही लंदन स्थित भारतीय दूतावास में कार्यरत जैकब तमांग (मियांग चैंग) और सेविन (रोशन मैथ्यू) जैसे कर्मियों को नेपोटिज्म की बू आती है। उधर सुहाना के सामने अपनी पारिवारिक विरासत व अपने पिता के साथ अपनी काबिलियत साबित करने की चुनौती है। इसी बीच एंबेसी की एक पार्टी में सुहाना की मुलाकात कई भाषाओं के जानकार और बेहतरीन कुक नकुल शर्मा (गुलशन देवैया) से होती है,और वह नकुल से इस कदर प्रभावित हो ती है कि नकुल के साथ उसके घर जाकर हमबिस्तर हो जाती है। सुहाना ने नकुल की असलियत जानने की कोइ्र कोशिश नही की। यहां तक कि वह अपने ड्राईवर सलीम की चेतावनी को भी अनदेखा किया। सुबह होते ही नकुल की असलियत सामने आती है। अब नकुल, सुहाना को उसके प्राइवेट विडियो के आधार पर ब्लैकमेल करके गोपनीय सूचनाएं हासिल करने लगता है और सुहाना इस जाल में बुरी तरह उलझ जाती है। जी हां! सुहाना को तमाम गुप्त कागजात और सूचनाएं देश के दुश्मनों को देनी पड़ती हैं, जो बेहद संवेदनशील हैं। इधर भारत के स्वतंत्रता समारोह की वर्षगांठ पर पाक के प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रची जा रही है। अब सुहाना इस जाल से बाहर कैसे निकलती है? उसको फंसाने की यह साजिश किसने रची होती है? उनका मकसद क्या होता है? इसके लिए तो फिल्म देखनी पड़ेगी। रिव्यू: फिल्म की कहानी व पटकथा बहुत ही ज्यदा कमजोर व घटिया है। किरदारों में गहराई की भी कमी है। कुल मिलाकर, जो कुछ भी आपके सामने आता है वह या तो सड़ा हुआ होता है या आधा-अधूरा। आप एअरपोर्ट या किसी भी साधारण सरकारी कार्यालय में नही घुस सकते, मगर इस फिल्म के लेखक व निर्देशक की समझ के अनुसार लंदन स्थित भारतीय दूतावास, डिप्टी हाई कमिश्नर के घर वगैरह कहीं कोई सुरक्षा व्यवस्था नही होती है। डायरेक्टर सुधांशु सरिया ने एंबेसी और हाई कमिशन जैसी अति सुरक्षा वाली जगहों पर सुरक्षा और प्रोटोकॉल की जिस तरह धज्जियां उड़ाई हैं, उससे यह कहानी अपनी विश्वसनीयता खो देती है। नेपाल में जिस सुहाना काी बुद्धिमत्ता समाने आती है,वह लंदन में डिप्टी हाई कमिश्नर बनते ही एकदम मूर्ख कैसे हो जाती है। कई दृष्यों में तो सुहाना महज एक आम काॅलेज गर्ल की तरह नजर आती है। यह लेखक व निर्देशक की नासमझी का सबसे बड़ा प्रतीक है। कितनी अजीब बात है कि वह पहली ही मुलाकात में एक अंजान नुकल पर अंधविष्वास कर उसके साथ सेक्स संबंध बनाने उसके घर चली जाती हैं। इतना ही नही क्या पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भारत में किसी धार्मिक स्थल पर जाएं और वहां उस वक्त भी आम श्रद्धालुओं का आना-जाना जारी रहना संभव है? खैरात पाने वाले कतारों में बैठे हों और आसपास प्रधानमंत्री के लिए संकट पैदा करने वाले लोग बहुत आरामतलबी से घूमते रहें, क्या यही प्रोटोकॉल होता है। फिल्म का क्लायमेक्स अति घटिया और अविश्वस्निये है। फिल्म निर्देशक सुधांशु सरिया की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी यह है कि वह आदिल हुसैन, राजेन्द्र गुप्ता, मैयांग चैंग, साक्षी तंवर और किसी हद तक राजेश तैलंग को भी सही से ढंग से इस्तेमाल नहीं कर पाए,वह तो पूरी फिल्म में सिर्फ जाह्नवी कपूर को हीरो बनाने में इस तरह जुटे रहे कि सब कुछ बर्बाद कर दिया। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी, बैकग्राउंड स्कोर, कॉस्ट्यूम जैसे तकनीक पक्ष मजबूत हैं। फिल्म का ‘शौकन’ गाना सोशल मीडिया पर हिट हो चुका है। प्लेबैक संगीत अनावश्यक लगता है और इसकी खरा एक जासूसी थ्रिलर होने के नाते "उलझ" को ठेठ बॉलीवुड ग्लैमर, गाने और मेलोड्रामा से दूर रखना चाहिए था, लेकिन अमरीका में सिनेमा पढ़कर आए सुधांशु सरिया को कौन समझाएगा। एक्टिंगः एक्टिंग की बात करें तो जान्हवी को अभिनय नही आता यह एक बार साबित हो गया। फिल्म में उसका जो सुहाना का किरदार है,उस के लिए उसका ग्लैमरस नजर आना जरुरी नहीं था। फिल्म के डायरेक्टर ने इस फिल्म में सुहाना के एक्सप्रेशन से ज्यादा कॉस्ट्यूम पर ध्यान दिया, क्योंकि उन्हे तो जान्हवी को हीरो बनाना था। नकुल के करेक्टर में गुलशन देवैया सारी प्रशंसा बटोर ले जाते है। भारतीय विदेश मंत्री रावल के किरदार में राजेंद्र गुप्ता ने कमाल का अभिनय किया है। लंबे अरसे बाद उन्हें किसी फिल्म में एक सही किरदार मिला है। काश लेखक टीम ने इनके किरदार को लिखने में थोड़ी और मेहनत की होती और फिल्म अच्छी बनी होती। मेयांग चांग,राजेश तैलंग,अली खान, आदिल हुसैन और जैमिनी पाठक के जिम्मे फ्रेम सजाने के अलावा कुछ नही आया।सेबिन जोसेफकुट्टी के किरदार में रोसान मैथ्यू ने काफी उम्मीदें बढ़ाई हैं। Read More: कैंसर से जंग लड़ रही Hina Khan ने मुंडवाया सिर, दिखाया बालों का झड़ना इस एक्शन-थ्रिलर से अपना ओटीटी डेब्यू करने के लिए तैयार हैं समर्थ जुरेल Bigg Boss OTT 3: टॉप 5 में बाहर होने वाली पहली कंटेस्टेंट बनेगी कृतिका Adil Hussain ने Sridevi के साथ काम करने की यादें की शेयर हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article