Sai Paranjpye Birthday

एंटरटेनमेंट: भारतीय सिनेमा की दुनिया में साई परांजपे एक ऐसा नाम है, जिन्होंने अपनी अनूठी शैली और संवेदनशील कहानियों से दर्शकों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ी. उनका सिनेमा मुख्यधारा से अलग था, लेकिन फिर भी उसने हर वर्ग के दर्शकों को आकर्षित किया. साई परांजपे ने अपने निर्देशन में मानवीय संवेदनाओं, सामाजिक मुद्दों और हास्य का एक सुंदर संतुलन बनाए रखा.

जीवन और परिवार

Birthday Special Sai Paranjpye

साई परांजपे का जन्म 19 मार्च 1938 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था. उनका बचपन एक साहित्यिक और सांस्कृतिक माहौल में बीता. उनकी मां शकुंतला परांजपे मराठी लेखिका और समाजसेवी थीं, जबकि उनके नाना प्रसिद्ध शिक्षाविद् सर रघुनाथ पुरुषोत्तम परांजपे थे. ऐसे बौद्धिक और कला-प्रेमी परिवार में पली-बढ़ी साई परांजपे का रुझान बचपन से ही कला, साहित्य और सिनेमा की ओर था.उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज से पूरी की और बाद में फिल्म निर्माण की दुनिया में कदम रखा. उनका झुकाव शुरू से ही ऐसे सिनेमा की ओर था, जो मनोरंजन के साथ-साथ समाज को कुछ नया सोचने पर मजबूर करे.

कलाकारों के परिवार से ताल्लुक रखती हैं

सई परांजपे

सई का जन्म 19 मार्च 1938 को मुंबई में हुआ था. उनकी प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने महज आठ साल की उम्र में एक किताब लिखी थी. वह कलाकारों के परिवार से ताल्लुक रखती थीं. उनके पिता वाटर कलर आर्टिस्ट थे, जबकि उनकी मां एक अभिनेत्री थीं, बता दे परांजपे के पिता एक रूसी कलाकार थे, लेकिन चूंकि उनकी शादी लंबे समय तक नहीं चल पाई, इसलिए जब साईं केवल छह महीने की थीं, तब उनकी मां भारत लौट आईं. शुरू से ही, अपनी संकर भारतीय-रूसी विरासत के कारण वह अपने साथियों के बीच अलग दिखाई दीं. बड़े होने के दौरान, उनके घर में किताबों का बहुत बड़ा जुनून था. बचपन में भी, वह एक कहानीकार थीं. आठ साल की उम्र में, उन्होंने अपनी खुद की परीकथाओं की एक किताब प्रकाशित की.

थिएटर और दूरदर्शन से फिल्मों तक का सफर

 Sai Paranjpye

साई परांजपे ने अपने करियर की शुरुआत थिएटर और रेडियो से की. वे पुणे के राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार (NFAI) और ऑल इंडिया रेडियो (AIR) से जुड़ी रहीं. रेडियो के लिए उन्होंने कई नाटकों का लेखन और निर्देशन किया. उनके रेडियो नाटकों और नाट्य प्रस्तुतियों की गहराई और संवेदनशीलता ने उन्हें एक अलग पहचान दिलाई.1970 के दशक में जब दूरदर्शन ने भारतीय टेलीविजन जगत में अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू की, तब साई परांजपे ने इसके लिए कई यादगार कार्यक्रम और फिल्में बनाईं. इसी दौरान उन्होंने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की.

फिल्मों की दुनिया में साई परांजपे की पहचान

 Sai Paranjpye,

साई परांजपे को मुख्य रूप से उनकी संवेदनशील, यथार्थवादी और सौम्य हास्य से भरपूर फिल्मों के लिए जाना जाता है. उनकी फिल्मों की खासियत यह थी कि वे रोजमर्रा की जिंदगी के छोटे-छोटे पलों को खूबसूरती से दिखाती थीं. उनकी कहानियों में आम आदमी की संवेदनाएं, संघर्ष और सपने झलकते थे.

1. स्पर्श (1980)

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साई परांजपे की पहली बड़ी और महत्वपूर्ण फिल्म स्पर्श थी, जिसमें उन्होंने एक दृष्टिहीन शिक्षक (नसीरुद्दीन शाह) और एक विधवा महिला (शबाना आज़मी) के बीच की संवेदनशील प्रेम कहानी को पर्दे पर उतारा. इस फिल्म ने समाज में दृष्टिहीन लोगों की समस्याओं और उनकी आत्मनिर्भरता को बहुत खूबसूरती से दिखाया. फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और यह उनके करियर की एक बड़ी उपलब्धि बनी.

2. चश्मे बद्दूर (1981)

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1981 में आई फिल्म चश्मे बद्दूर साई परांजपे की सबसे चर्चित और लोकप्रिय फिल्मों में से एक है. यह फिल्म तीन दोस्तों (फारूख शेख, राकेश बेदी और रवि बसवानी) की हल्की-फुल्की कहानी थी, जिसमें कॉमेडी और रोमांस का अनूठा मेल था. दीप्ति नवल के मासूम किरदार ने दर्शकों का दिल जीत लिया था. यह फिल्म आज भी हिंदी सिनेमा की सबसे शानदार कॉमेडी फिल्मों में गिनी जाती है.

3. कथा (1983)

Katha

कथा फिल्म साई परांजपे की बेहतरीन फिल्मों में से एक है. यह फिल्म एक आदर्शवादी और ईमानदार इंसान (नसीरुद्दीन शाह) और एक चालाक व्यक्ति (फारूख शेख) की कहानी थी, जिसमें मध्यमवर्गीय समाज की सच्चाई को बहुत प्रभावी तरीके से दिखाया गया था. फिल्म में अमोल पालेकर और दीप्ति नवल ने भी शानदार अभिनय किया.

4. धूम धड़ाका (1985) और जादू का शंख (1990)

धूम धडाका

इन दोनों फिल्मों में भी साई परांजपे की खास शैली दिखाई दी. धूम धड़ाका हल्की-फुल्की हास्य फिल्म थी, जबकि जादू का शंख बच्चों के लिए बनाई गई फिल्म थी, जिसमें कल्पनाशीलता और फैंटेसी का शानदार मेल था.

साई परांजपे की लेखन शैली

साईं परांजपे

साई परांजपे न केवल एक उम्दा निर्देशिका थीं, बल्कि एक संवेदनशील लेखिका भी थीं. उन्होंने कई नाटक, कहानियां और टेलीविजन धारावाहिक लिखे. उनकी लेखनी में मानवीय रिश्तों की गहराई, समाज की सच्चाई और मध्यमवर्गीय जीवन की संवेदनशीलता साफ झलकती थी.

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