Death Anniversary: जब K. L. Saigal ने मुकेश का एक गाना सुनकर कहा... जुलाई 1923 में जन्में मुकेश बचपन से ही संगीत प्रेमी रहे थे. वह दस भाई बहन थे जिसमें मुकेश चंद माथुर छठे नंबर पर थे. उनके इंजिनियर पिता जोरावर ने उनकी बहन के लिए संगीत मास्टर बुलाया था By Mayapuri Desk 18 Jan 2024 in गपशप New Update Follow Us शेयर 22 जुलाई 1923 में जन्में मुकेश बचपन से ही संगीत प्रेमी रहे थे. वह दस भाई बहन थे जिसमें मुकेश चंद माथुर छठे नंबर पर थे. उनके इंजिनियर पिता जोरावर ने उनकी बहन के लिए संगीत मास्टर बुलाया था पर जब संगीत मास्टर ने मुकेश की बहन के साथ साथ मुकेश को भी सुना तो उन्हें भी अपने साथ ही बिठा लिया. यहाँ से मुकेश के जीवन में संगीत ने पहली बार प्रवेश किया. काल बीता, उसी बहन की शादी में 1941 के वक्त, जब मात्र 17 साल के मुकेश अपनी बहन की शादी में के-एल सहगल का गाना गा रहे थे कि उनके दूर के रिश्तेदार और भारतीय सिनेमा के मशहूर एक्टर मोतीलाल की नजर उनपर पड़ी और वह मुकेश को मुम्बई ले गये. मुम्बई में पंडित जगन्नाथ प्रसाद के पास उन्हें छोड़, बेसिक से शुरू कर संगीत की शिक्षा लेने के लिए समय दिया. आप अगर मुकेश के गाने सुनकर उनकी पर्सनालिटी का अंदाजा लगाते आ रहे हैं आप बिल्कुल गलत हैं, मुकेश के चेहरे पर अमूमन हँसी और शक्ल बिल्कुल हीरो वाली लगती थी. यही वजह थी कि 1941 में आई फिल्म निर्दोष में वह एक्टर और सिंगर दोनों बने और बॉलीवुड के लिए उन्होंने अपना पहला गाना गाया- “दिल ही बुझा हुआ हो..” इस ब्रेक के बाद उन्हें लम्बा अरसा इंतजार करना पड़ा. मुकेश ने दसवीं पास करके पब्लिक सर्विस में काम करना भी शुरू कर दिया. लेकिन मोतीलाल ने एक बार फिर उनके कंधे पर हाथ रखते हुए उन्हें अपनी ही फिल्म पहली नजर में पहली बार गाना गाने का मौका दिया. उस गाने को कम्पोज अनिल बिस्वास ने किया था और वो गाना था “दिल जलता है तो जलने दे, आँसू न बहा, फरियाद न कर” कुछ याद आया? जी हाँ, 2001 में आई फिल्म गदर में सनी देओल ने इन्हीं मुकेश के इसी गाने को दोहराते हुए अमीषा पटेल के सामने कहा था कि “उस नए गायक मुकेश ने तो कमाल ही कर दिया, क्या गीत गाया... दिल जलता है तो जलने दे” मुकेश पर के एल सहगल साहब का इतना इन्फ्लुएंस था और वह इस कदर सैगल साहब के स्टाइल में गाने लगे थे कि इस गाने को सुनने के बाद खुद सहगल साहब हैरान हुए बिना न रह सके थे और बोल पड़े थे “मुझे याद नहीं आ रहा कि ये गाना मैंने कब गाया था” यानी कि वो मुकेश की आवाज को ही अपनी आवाज समझ बैठे थे. यहाँ मुकेश की जिन्दगी में सुपरस्टार संगीतकार नौशाद की एंट्री हुई और उन्होंने मुकेश को सहगल साहब की कॉपी के टैग से बाहर निकाला और उन्हें उनकी अपनी आवाज में, अपने स्टाइल में गाना गाने का हुनर दिया. नौशाद ने मेला, अनोखी अदा और अंदाज जैसी फिल्मों में मुकेश से गाने गवाए और आप जानकर हैरान होंगे कि राज कपूर से पहले मुकेश दिलीप कुमार की आवाज बनकर आए थे और राज कपूर के लिए मोहम्मद रफी पार्श्वगायन करते थे. महबूब खान की फिल्म अंदाज से गाने चहुओर पसंद किये गए. “तू कहे अगर, मैं जीवन भर, तुझे गीत सुनाता जाऊं” “हम आज कहीं दिल खो बैठे” टूटे न, दिल टूटे न” यह गाने लोगों को बहुत पसंद आए और दिल में दर्द भर सके ऐसी आवाज के लिए मुकेश एक गायक के रूप में स्थापित हो गये. मुकेश जब 23 साल के थे तब उन्हें सरल से मुहब्बत हो गयी. लेकिन सरल के पिता की नजर में फिल्मों में गायन एक ऐसा काम था जो बिल्कुल भी इज्जतदार नहीं कहलाता था. उनकी नजर में मुकेश तब बेहतर होते जब वो अपने पिता की तरह इंजिनियर होते. सरल के पिता करोड़पति आदमी थे, उनका कहना भी सही था. लेकिन मुकेश और सरल ने ठान ली थी कि वो शादी तो करेंगे ही, उन्होंने एक मंदिर में 22 जुलाई 1946 को शादी की, डेट पर गौर करिए., आज ही की तारीख में उनका जन्मदिन और शादी की सालगिरह दोनों हैं. तब दोनों पक्ष के रिश्तेदारों ने यही कहा कि सरल इतनी कम आय में गुजारा नहीं कर पायेगी और कुछ समय में ही दोनों अलग हो जायेंगे पर अलग? यह दोनों ऐसे साथ हुए कि मौत ही इन्हें जुदा कर सकी, उसके अलावा किसी की हिम्मत न हुई कि मुकेश से उनकी सरल छीन सके. मुकेश के अपने पिता के मुकाबले आधे, पाँच बच्चे हुए जिनमें नितिन मुकेश अपने पिता की ही तरह पार्श्व गायन में उतरे और कुछ यादगार गाने फिल्म इंडस्ट्री को दिए. हम मुकेश के संगीत कैरियर पर लौटें तो नौशाद के साथ उन्होंने 133 इसके बाद दिलीप कुमार ने मुकेश की बजाए मुहम्मद रफी को अपने गाने गाने के लिए चुन लिया और उधर राज कपूर को अपनी आवाज मुकेश के अन्दर नजर आई. मुकेश और राज कपूर का साथ ऐसा बना कि दो एक गाने छोड़ उन्होंने आखिरी दम तक मुकेश के साथ ही काम किया. अब क्योंकि राजकपूर की फिल्मों में फिक्स शंकर जयकिशन का संगीत होता था, इसलिए मुकेश के १३०० में से 133 गाने शंकर जयकिशन के संगीत में ही बंधे लेकिन मुकेश के ज्यादातर चार्टबस्टर गाने कल्याणजी आनंदजी के साथ रहे. इस जोड़ी के साथ मुकेश ने 99 गाने रिकॉर्ड किए, मात्र एक गाने से सेंचुरी रह गयी. इनमें खास-खास गाने हैं फिल्म बेदर्द जमाना क्या जाने (1958) में कल्याणजी की कम्पोजीशन में बना गाना “नैना है जादू भरे” से लेकर 1977 में आई फिल्म दरिंदा के गाने “चाहें आज मुझे नापसंद करो” तक एक से बढ़कर एक गाने दिए. इनमें “छलिया मेरा नाम”, “मेरे टूटे हुए दिल से पूछे, डमडम डिगा डिगा मौसम भीगा भीगा, मुझको इस रात की तन्हाई में, हमने तुमको प्यार किया है जितना, चाँद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था, वक्त करता जो वफा, कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे, जो तुमको हो पसंद वही बात करेंगे” आदि बहुत फेमस गाने हुए. मुकेश के गानों की सबसे अच्छी खासियत ये थी कि ये आम आदमी को रेप्रेसेंट करते थे. उनकी आवाज ऐसी थी कि कोई भी उनके गाने गुनगुना सकता था. क्योकि उस दौर में मुहम्मद रफी और किशोर कुमार की तूती बोलती थी, इनके पास समय नहीं होता था इतने बिजी शेड्यूल होते थे लेकिन मुकेश इन सबसे विपरीत गिने चुने गाने ही किया करते थे. राज कपूर के बाद मनोज कुमार के लिए भी मुकेश ने कई गाने गाये जिनमें ऊपर लिखा पूरब और पश्चिम का गाना “कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे” बम्पर हिट रहा. 1968 में आई फिल्म मिलन में उन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के लिए भी गाना गाया और इसके गाने भी रिकॉर्ड तोड़ हिट हुए. गीत “सावन का महीना, पवन करे सोर” आज भी लोकप्रिय गानों में शुमार है. कमाल की बात ये भी है कि मुकेश ने सलिल चैधरी के लिए बहुत कम गाने गाये पर जो गाए, वो रिकॉर्ड तोड़ हिट हुए. मुलाहजा फरमाइए- “मैंने, तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने” “कहीं दूर जब दिन ढल जाए” ये दोनों गाने आनंद में थे और आप सब जानते हैं कि आनंद के गीत कितने पॉपुलर हुए थे. वहीँ उनको सलिल चैधरी की कम्पोजीशन में ही पहली और आखिरी बार नेशनल अवार्ड्स से भी नवाजा गया. फिल्म रजनीगन्धा में उनका गाना “कई बार यूँ भी देखा है, ये जो मन की सीमा रेखा है...” सोचिये, इस गाने को नेशनल अवार्ड मिला लेकिन फिल्मफेयर की किसी भी केटेगरी में नॉमिनेशन तक न मिली. पर मुकेश की जिन्दगी में चार मौके ऐसे आए जब उन्हें फिल्मफेयर अवाॅर्ड से नवाजा गया. इन चार में तीन गानों के संगीतकार शंकर जयकिशन रहे. उनका पहला अवाॅर्ड उनके कैरियर के 15 साल बाद राज कपूर की फिल्म अनाड़ी के गीत “सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी” के लिए मिला. ये अवाॅर्ड सिर्फ मुकेश का ही नहीं, फिल्मफेयर का भी पहला अवार्ड फंक्शन था. लेकिन इसके बाद उन्हें अगले अवाॅर्ड के लिए 11 साल और इंतजार करना पड़ा. अगला अवाॅर्ड उन्हें फिल्म पहचान के गीत “सबसे बड़े नादाँ” के लिए मिला. उन्हें फिर दो साल बाद ही फिल्म बेईमान के लिए “जय बोलो बेईमान की” नामक सर्कास्टिक गाने के लिए अवार्ड मिला. मजा तो तब हुआ जब मुकेश की ही तरह बहुत लिमिटेड फिल्मों में संगीत देने वाले खय्याम साहब ने उन्हें अपनी फिल्म कभी-कभी के गीतों को आवाज देने के लिए बुलाया. कभी कभी के गीत साहिर लुधिआनवी ने लिखे थे और हर गायक साहिर साहब के गीतों पर आवाज देने के लिए लालायित रहता था. बस जब ये टीम बनी तो गाने भी एक से बढ़कर एक निकले. 1976 में आई इस फिल्म के गानों की डिमांड ऐसी थी कि इसके लिए मुकेश लता मंगेशकर संग जगह-जगह कॉन्सर्ट करने के लिए विदेश भी जाने लगे थे. इसी फिल्म के गाने “कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है” को फिल्मफेयर अवार्ड मिला. लेकिन लोगों की नजर में इसी फिल्म का गीत “मैं पल दो पल का शायर हूँ” बहुत पसंद किया इस गाने और मुकेश का क्रिकेट कनेक्शन भी बहुत स्ट्रांग है.लीजेंड्री लेग स्पिनर भगवत चन्द्रशेकर मुकेश के बहुत बड़े वाले फैन थे. आलम ये था कि जब कभी तत्कालीन कप्तान सुनील गावस्कर को उन्हें बूस्टअप करना होता था तो वो मुकेश के गाने सुनाया करते थे. और हमारे पूर्व और अब तक के बेस्ट भारतीय टीम के कप्तान, वल्र्डकप विनर महेंद्र सिंह धोनी को “मैं पल दो पल का शायर हूँ” बहुत पसंद है. धोनी को ये गाना इतना पसंद है कि उन्होंने अपने रिटायरमेंट की खबर भी इसी गाने के माध्यम से दी थी. इस गाने और अन्य गानों के कॉन्सर्ट के लिए मुकेश जी 1976 में अपनी पत्नी संग मिशिगन यूनाइटेड स्टेट्स गये थे. 27 अगस्त की सुबह वह बाथरूम गये और तकरीबन तुरंत ही दिल पर हाथ रखते हुए वापस आए और बोले मेरे सीने में दर्द हो रहा है. उनकी ये कंडीशन से सब वाकिफ थे. दिल की कमजोरी की वजह से ही उन्होंने गाना भी कम कर दिया था वर्ना उनके समकालीन किशोर कुमार 2600 से ज्यादा गाने गा चुके थे. उन्हें तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया और डॉक्टर्स ने नब्ज थामते ही कह दिया “ही इज नो मोर” उस कॉन्सर्ट को पूरा करने के लिए लता मंगेश्कर और नितिन मुकेश ने भीगी हुई आँखों से उस कॉन्सर्ट को पूरा किया. लता मंगेशकर उनके पार्थिव शरीर को भारत ले आईं. जब यह खबर राज कपूर ने सुनी तो उनके आँसू न रुके. उनके रुंधे गले से कहा “मेरी आवाज चली गयी” पूरा बॉलीवुड इस खबर से सन्न रह गया था. मुकेश जी की उम्र मात्र 53 साल थी. मुकेश तो चले गये पर उनकी आवाज, उनकी लेगेसी सदा के लिए बरकरार रही. लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल संग मनमोहन देसाई खुद को किस्मतवाला मानते थे कि उन्होंने भारतीय फिल्म संगीत का एक ऐसा गाना रिकॉर्ड कर लिया जो पहले कभी नहीं हुआ था, जो फिर कभी नहीं हो सकता था. जी हाँ मैं फिल्म अमर अकबर एंथनी के गाने “हमको तुमसे हो गया है प्यार” की बात कर रहा हूँ. इस गाने में मुहम्मद रफी, किशोर कुमार, मुकेश खुद और लता मंगेशकर थीं. इस जैसा गाना न कभी दुबारा बना, न बन सकता था. मुकेश के जाने के बाद भी उनकी कई फिल्में अगले ३ साल तक आती रहीं और लोग उनकी आवाज को पसंद करते रहे. कोई मुझसे पूछे कि मुकेश का वो कौन सा गाना है जो मुझे सबसे पहले याद आता है, तो मैं बिना दोबारा सोचे, इस गीत का नाम लूँगा Tags : K. L. Saigal | Kundan Lal Saigal READ MORE: बिग बी ने किया था इस फिल्म के क्रू को परेशान, उड़ाई थी रातों की नींद राम मंदिर : इन प्रस्तावों पर होगा अयोध्या का विकास पूर्व क्रिकेटर Yuvraj Singh चाहते है उनकी बायोपिक में ये एक्टर काम करे Ram Mandir Inauguration: Vindu Dara Singh रामलीला में करेंगे परफॉर्म #K L Saigal #Kundan Lal Saigal हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article