Ravi Tandon Birthday: भीड़ में से उभरे थे निर्माता निर्देशक रवि टंडन आज से करीब 20 साल पहले फिल्मीस्तान में एस. मुखर्जी का दबदबा था। ऐसा लगता था जैसे फिल्मीस्तान एक बहुत बड़ा फिल्मी कल्चरल (Filmi Cultrural) फार्म बन गया है। एस. मुखर्जी की देखरेख में वहां नई-नई फिल्मों के निर्माण By Mayapuri Desk 17 Feb 2024 in गपशप New Update Follow Us शेयर -ज़े एन कुमार आज से करीब 20 साल पहले फिल्मीस्तान में एस. मुखर्जी का दबदबा था। ऐसा लगता था जैसे फिल्मीस्तान एक बहुत बड़ा फिल्मी कल्चरल (Filmi Cultrural) फार्म बन गया है। एस. मुखर्जी की देखरेख में वहां नई-नई फिल्मों के निर्माण के साथ नये-नये निर्देशकों और नये-नये तकनीशियनों की जैसे खेती होने लगी थी। उन्हीं दिनों की बात है। फिल्मीस्तान में दिन-रात एक्स्ट्राओं की भीड़ लगी रहती थी। इसी भीड़ में एक दुबला-पतला गोरा युवक भी था जो कभी मूंछ लगा कर लाठी हाथ में लेकर खड़ा हो जाता या कभी गले में रेशमी रूमाल डाल कर अपनी बड़ी-बड़ी आंखो को बिजली की तरह चमकाता या फिर कभी तलवार हाथ में लेकर बहादुरी का स्वांग भरता शायद यह जताने के लिए कि वह दुबला पतला होते हुए भी कुछ दम रखता है। वह दमदार एक्सट्रा था पर वह एकस्ट्रा बनने के लिए अपने सुखों को छोड़ कर आगरा से मुंबई नहीं आया था। यह फिल्मों का शौक था जो उसे सुखी परिवार की छाया से अलग कर संघर्षो की कड़कड़ाती धूप में लाकर खड़ा कर दिया। उसके पिताजी सेशन जज थे जो प्राय: आगरा, भिंड, मुरेना जैसे खौफनाक इलाकों में डाकुओं और क्रिमनल लोगों के भयानक केसों को निबटाया करते थे। जज थे इसलिए चाहते थे कि उनका बेटा उन्हीं के पद चिन्हों पर चलते हुए फौजदारी मामलों का ख्याति प्राप्त वकील बने इसी लक्ष्य को सामने रख कर उन्होंने अपने इस होनहार लड़के को पढ़ाया लिखाया और कॉलेज तक पहुंचा दिया। पर लड़का भाग आया मुंबई किसी ने उसके कान में फूंक मारी। तुम गोरे हो, तुम खूबसूरत हो, तुम्हारी आंखे बड़ी-बड़ी हैं, तुम बांके जवान लगते हो, फिल्मों के हीरो बन सकते हो। फिल्मों का शौक पहले से ही था बस उन बातों ने आग में घी का काम किया और वह सब कुछ छोड़ छाड़ कर आरामदेह बिस्तरों का त्याग कर मुंबई की सड़कों पर चला आया। इस युवक को मुंबई आने पर काफी संघर्ष करना पड़ा कई दिनों तक फाकामस्ती भी करनी पड़ी। वह चाहता तो वापस अपने घर जा सकता था पर भिंड और मुरैना के पहाड़ी खूंखार इलाकों में बचपन बिताने पर वह भी अपने आप में कठोर हो गया था। उसने संघर्षो भरी जिंदगी को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया। और अंत में संघर्ष करते-करते वह फिल्मीस्तान में एक्स्ट्राओं की भीड़ में शामिल हो गया। प्राय: यह देखा जाता है कि एक्स्ट्राओं की भीड़ में शामिल हो जाने वाला जिंदगी भर उसी भीड़ में रहता है। वह बूढ़ा हो जाता है पर एक्स्ट्रा का एकस्ट्रा बना रहता है। पर यह युवक केवल एक्स्ट्रा बनने के लिए नहीं आया था। इसलिए वह फिल्मीस्तान में रह कर वहां बनने वाली फिल्मों के आसपास की सारी गतिविधियों को बारीकों से देखने लगा, समझने लगा। कभी-कभी वह कैमरा मैन के निकट जा कर खड़ा हो जाता और उसकी हरकतों को देखता। कभी वह निर्देशक के इशारों को समझने का प्रयास करता। कभी लाइटिंग करने वालों के पास खड़े होकर लाइटिंग की बारीकियों के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश करता था तो वह वह एक्स्ट्रा पर फिल्मों के सारे विभागों में घुसपैठ करने की कोशिश करने लगा। फिल्मों के बारे में उसके भीतर जो बेचैनी थी, वह छुपी न रह सकी सबसे पहले निर्देशक आर.के नैय्यर की नज़र इस युवक पर पड़ी। वे कई दिनों तक उसकी हरकतों को देखते रहे। और अंत में, एक दिन उसे बुलाकर कुछ सवाल जवाब किये और उसकी प्रतिभा और सहज बुद्धि से प्रभावित होकर उसे अपना तीसरा सहायक बना दिया. एक्स्ट्राओं की भीड़ चीर कर सहायक निर्देशकों की श्रेणी तक पहुंचने वाले इस युवक का नाम या रवि टण्डन। जो अब उच्चकोटि के निर्माता निर्देशकों की श्रेणी में आ चुके हैं। रवि टण्डन आर.के.नैयर के यूनिट में शामिल होकर शीघ्र ही उनके सबसे अधिक विश्वसनीय बन गये कुछ ही दिनों में सहायक निर्देशक के बतौर कार्य करते हुए उन्होंने अपनी प्रतिभा, योग्यता और कार्य कुशलता का विस्तृत परिचय दिया। परिणामस्वरूप लव इन शिमला की शूटिंग के समय वे केवल सहायक निर्देशक ही नहीं रहे बल्कि आर.के. नैय्यर के बायें हाथ बन गये। कहते हैं जो व्यक्ति अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करता है, उसे भाग्य भी सहारा देता है। यही बात रवि टण्डन के जीवन में। उनके भाग्य ने भी कुछ चमत्कार दिखाया। फिल्म ‘इंतकाम’ की शूटिंग कश्मीर में होने वाली थी। फिल्म की शूटिंग की सारी तैयारियां कर ली गयी थी। लोकेशन पर एडवांस पार्टी भी पहुंच गयी थी। अचानक नैय्यर साहब बिमार पड़ गये। अब क्या हो? शूटिंग स्थगित होती है तो हज़ारों का घाटा। इस बारे में जब एस. मुखर्जी ने नैय्यर साहब से पूछा तो उन्होंने बड़े विश्वास के साथ कहा फिल्म की शूटिंग स्थगित नहीं होगी। मेरे असिस्टेंट रवि टण्डन सब संभाल लेंगे। मुझे उन पर पूरा भरोसा है। इस तरह रवि टण्डन को कश्मीर में फिल्म ‘इंतकाम’ की स्वतंत्र रूप से शूटिंग करने का मौक मिला। उन्होंने बड़े आत्म विश्वास के साथ चंद नाटकीय दृश्य फिल्माये और दो गानों का नैय्यर साहब के गाने फिल्माने की टैकनीक में ही इस खूबी के साथ फिल्मीकरण किया कि नैय्यर साहब ने उनके शॉट्स देखने के बाद उनकी पीठ थपथपायी और भविष्यावाणी की कि ‘भविष्य’ में तुम बहुत अच्छे और नामी निर्देशक बन जाओगे और हुआ भी ऐसा ही... कुछ ही दिनों में आर.के. नैय्यर के प्रयत्नों से रवि टण्डन फिल्म ‘सेहरा’ के निर्देशक बन गये। उस फिल्म के प्रमुख कलाकार थे मनोज कुमार और नूतन इस फिल्म की शूटिंग के दौरान मनोज कुमार रवि टण्डन की निर्देशन शैली से प्रभावित हुए और उन्होंने अपने प्रयत्नों से ‘बलिदान’ फिल्म का निर्देशन उन्हें दिलाया। यद्यपि ‘बलिदान’ फिल्म बॉक्स ऑफिस खिड़की पर हिट नहीं हुई। पर उसके निर्देशक रवि टण्डन की गणना स्व. गुरूदत्त, पी.एल संतोषी और राज खोसला जैसे निर्देशकों में होने लगी जो गानों को खास शैली में फिल्माने के लिए विख्यात हो चुके थे कुछ लोगों ने इस शैली का नाम ‘जूम’ (Zoom) शैली रख दिया था। जो आज भी इसी नाम से विख्यात हैं। ‘सेहरा’ और ‘बलिदान’ फिल्मों के प्रदर्शन के बाद रवि टण्डन निर्देशक के रूप में विख्यात हुए। उनके नाम और उनकी शैली की महक धीरे-धीरे फैलती चली गयी। इसी बीच उनका सम्पर्क हुआ आकांक्षी एवं साहसिक फिल्म फायनेंसर गुलू कोचर से उन दोनों की दोस्ती फिर व्यापारिक हिस्सेदारी बनी और किंग प्रोडक्शन्स के नाम से एक नयी फिल्म निर्माण संस्था का जन्म हुआ। इस निर्माण संस्था के बैनर के अंतर्गत ‘अनहोनी’ का निर्माण हुआ। इस फिल्म के नायक थे संजीव कुमार और नायिका थी लीना चंदावरकर। ‘अनहोनी’ हिट हुई। इस फिल्म के हिट होते ही जहां एक और संजीव कुमार और लीना चंदावरकर कर की रोमांटिक जोड़ी हिट हुई तो दूसरी और निर्माता निर्देशक के रूप में रवि टण्डन भी हिट हो गये और उनकी मांग दिल प्रति दिन बढ़ती चली गयी... उसके बाद तो रवि टण्डन, रवि टण्डन ही हो गये। उन्होंने ‘अनहोनी’ की कामयाबी के बाद प्रसिद्ध निर्माता प्रेम जी के लिए मजबूर फिल्म का निर्देशन किया जिसके हीरो थे अमिताभ बच्चन और हीरोइन थी परवीन बॉबी हाल ही में उनकी अपनी फिल्म अपने रंग हजार प्रदर्शित हुई है जिसमें संजीव कुमार और लीना चन्दावरकर की ‘अनहोनी’ वाली जोड़ी ने ही अपने अभिनय के कई नये रंग प्रगट किये है। यद्यपि यह फिल्म ‘अनहोनी’ की तरह हिट नहीं हुई पर उससे निर्देशक के रूप में रवि टण्डन की प्रतिष्ठा में कोई फर्क नहीं पड़ा। अब प्रतीक्षा है आर.एम. फिल्म्स के बैनर के अंतर्गत उनके निर्देशन में बनी फिल्म ‘खेल खेल’ में जो प्रदर्शित होने के पहले ही फिल्मी अंचलो में चर्चा का विषय बन गयी है। इस फिल्म की रोमांटिक जोड़ी हैं चिंटू कपूर और नीतू सिंह की जिन्होंने ‘खेल खेल’ में अपना बहुत खेल दिखा दिया है। पिछले दिनों जूहू स्थित पांडूरंग सोसायटी में बने उनके फ्लैट पर जब उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने बातों ही बातों में बताया कि मुझे कलाकारों को प्रारम्भ से लेकर अंत तक इतना सहयोग मिला है कि मैं कभी सोच ही नहीं सकता था। आजकल बड़े कलाकारों को लेकर बड़ी फिल्म बनाना इतना आसान नहीं है। कई तरह की मुसीबतें पैदा हो जाती हैं। पर इस मामले में मैं इतना भाग्यशाली हूं कि अब तक मेरी किसी भी फिल्म में किसी तरह की बाधा नहीं आयी संजीव कुमार तो मेरे दोस्त की तरह हो गये हैं, लीना चंदावरकर मेरा आदर करती हैं, अमिताभ बच्चन ‘मजबूर’ में इतने कॉऑपरेटिव रहे कि मैं उनकी जितनी प्रशंसा करूं वह कम है। इसी वजह चिंटू ‘खेल खेल में’ इस तरह मेरे साथ जुटा रहा जैसे मैं उसका अंकल हूं। कलाकारों का इस तरह सहयोग पा लेना किसी भी निर्देशक के लिए बहुत बड़ी सफलता है। मैंने पूछा क्या ‘मजबूर’ के कथा लेखक सलीम जावेद ने भी आपको इसी तरह सहयोग दिया? रवि टण्डन ने मुस्करा कर कहा हां। उन्होंने तो फिल्म प्रारम्भ होने के पहले ही मुझे सारी स्क्रिप्ट सौंप दी थी जिससे मुझे शॉट लेने में बड़ी सुविधा हुई। जब फिल्म बन कर तैयार हो गयी तो उन्होंने उसे देख कर मुझे बधाई दी और कहा स्क्रिप्ट जिस तरह से लिखी गयी थी फिल्म हुबहू वैसी ही तैयार हो गयी है। यदि स्क्रिप्ट राइटर और निर्देशक मैं इसी तरह का सहयोग बना रहे तो मैं समझता हूं कि फिल्में सहज और आसानी से बन सकेंगी। फिल्म की सफलता का श्रेय आप पटकथा लेखक को देते हैं या निर्देशक? मेरे इस प्रश्न पर रवि टण्डन ने मुस्कुरा कर कहा जब फिल्म कामयाब हो जाती है तो सारे लोग उसकी सफलता का सेहरा अपने सिर पर बांधने को तैयार हो जाते हैं। वस्तुत: फिल्म के निर्माण में किसी एक व्यक्ति का नहीं, सब व्यक्तियों को निर्देशक से लेकर स्पॉट ब्यॉय तक का हाथ रहता है। इसलिए फिल्म की कामयाबी और नाकामयाबी का दायित्व किसी एक पर नहीं डाला जा सकता। फिल्म निर्माण डेमोक्रेसी की तरह है सारी सत्ता और प्रजा यूनिट और दर्शक-सब लोग उसकी कामयाबी और नाकामयाबी के लिए जिम्मेदार है। Tags : Ravi Tandon birthday Read More: अलगाव के बीच दलजीत कौर ने इंस्टाग्राम पर पति निखिल को अनफॉलो किया? Sara Ali Khan फिल्म दिल चाहता है के रीमेक में आ सकती है नजर? वैलेंटाइन डे पर बिग बॉस फेम अभिषेक कुमार ने आयशा खान को किया प्रपोज ज़ीनत अमान राज कुमार-स्टारर हीर रांझा के लिए ऑडिशन में क्यों हुई असफल #Ravi Tandon #Ravi Tandon birthday हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article