शमशाद बेगम शमशाद बेगम का जन्म 14 अप्रैल, सन 1919 को पंजाब राज्य के अमृतसर में हुआ था. वह भारतीय सिनेमा में हिन्दी फ़िल्मों की शुरुआती पार्श्वगायिकाओं में से एक थीं. हिन्दी सिनेमा के प्रारम्भिक दौर में उनकी खनखती और सुरीली आवाज़ ने एक बहुत बड़ी संख्या में उनके प्रशसकों की भीड़ तैयार कर दी थी. हिन्दी फ़िल्मों के कई सुपरहिट गीत, जैसे- 'कभी आर कभी पार', 'कजरा मोहब्बत वाला', 'लेके पहला-पहला प्यार', 'बूझ मेरा क्या नाम रे' शमशाद बेगम के नाम पर दर्ज हैं.
इन गीतों की लोकप्रियता ने शमशाद बेगम को प्रसिद्धि की बुलन्दियों पर पहुँचा दिया था. वर्ष 2009 में भारत सरकार ने शमशाद बेगम को कला के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के लिए 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया था. वे अपनी युवावस्था से ही के. एल. सहगल की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं. फ़िल्में देखना और गीत सुनना उन्हें बहुत पसन्द था. फ़िल्में देखने का शौक़ शमशाद बेगम को इस कदर था कि उन्होंने फ़िल्म 'देवदास' चौदह बार देखी थी. शमशाद बेगम का विवाह गणपतलाल बट्टो के साथ हुआ था. वर्ष 1955 में पति की मृत्यु के बाद वे मुम्बई आ गई थीं और बेटी उषा रात्रा और दामाद के साथ रहने लगी थीं.
शमशाद बेगम की सुरीली आवाज़ ने सारंगी के उस्ताद हुसैन बख्शवाले साहेब का ध्यान भी अपनी ओर खींचा और उन्होंने इन्हें अपनी शिष्या बना लिया. लाहौर के संगीतकार गुलाम हैदर ने इनकी जादुई आवाज़ का इस्तेमाल फ़िल्म 'खजांची' (1941) और 'खानदान' (1942) में किया. वर्ष 1944 में शमशाद बेगम गुलाम हैदर की टीम के साथ मुंबई आ गई थीं. यहाँ इन्होंने कई फ़िल्मों के लिए गाया. इन्होंने पाश्चात्य से प्रभावित पहला गीत 'मेरी जान मेरी जान सनडे के सनडे' गाकर धूम मचा दी थी. इनकी गायन शैली पूरी तरह मौलिक थी. इन्हें लता मंगेशकर, आशा भोंसले, गीता दत्त और अमीरबाई कर्नाटकी से जरा भी कम नहीं आंका गया.
भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक होली पर यूँ तो हिन्दी फ़िल्मों में असंख्य गाने लिखे और गाये गए हैं, किंतु होली का सबसे लोकप्रिय गीत शकील बदायूँनी ने लिखा था. इस गीत को अपने समय के ख्यातिप्राप्त संगीतकार नौशाद ने संगीतबद्ध किया. शमशाद बेगम ने इस गीत को अपनी सुरीली आवाज़ से सजाकर अमर बना दिया. फ़िल्म 'मदर इंडिया' का यह गीत अभिनेत्री नर्गिस पर फ़िल्माया गया था और गीत के बोल थे- 'होली आई रे कन्हाई रंग छलके, सुना दे ज़रा बाँसूरी'. इस गीत में गोपियाँ नटखट कृष्ण से गुज़ारिश कर रही हैं कि वे होली के मौके पर अपनी जादूई बाँसुरी बजाना बंद न करें. यह गीत अपने समय के सबसे सफल गीतों में से एक था, जो लोगों के हृदय पर छा गया था.
अपनी सुरीली आवाज़ से हिन्दी फ़िल्म संगीत की सुनहरी हस्ताक्षर शमशाद बेगम के गानों में अल्हड़ झरने की लापरवाह रवानी, जीवन की सच्चाई जैसा खुरदरापन और बहुत दिन पहले चुभे किसी काँटे की रह रहकर उठने वाली टीस का सा एहसास समझ में आता है. उनकी आवाज़ की यह अदाएँ सुनने वालों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है और उनके गानों की लोकप्रियता का आलम यह है कि आज भी उन पर रीमिक्स बन रहे हैं. शमशाद बेगम को 'प्रेस्टिजियस ओ.पी. नय्यर अवार्ड' (2009) और उसी साल उन्हें 'पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया.
भारतीय सिनेमा में अपनी सुरीली आवाज़ से लोगों का दिल जीत लेने वाली मशहूर पार्श्वगायिका शमशाद बेगम का निधन 23 अप्रैल, 2013 को मुम्बई में हो गया. शमशान बेगम ने हिन्दी फ़िल्म जगत से भले ही कई वर्ष पहले दूरियाँ बना ली थीं, किंतु अपने पूरे करियर में बेशुमार और प्रसिद्ध गानों को अपनी आवाज़ दी. उन्होंने न जाने कितने ही अनगिनत गानों को अपनी आवाज़ से सजाकर हमेशा-हमेशा के लिए ज़िंदा कर दिया. उनकी बेटी उषा का कहना था कि- 'मेरी माँ हमेशा यही कहती थीं की मेरी मौत के बाद मेरे अंतिम संस्कार के बाद ही किसी को बताना कि मैं अब इस दुनिया से जा चुकी हूँ, और मैं कहीं नहीं जाउँगी जहाँ से आई थी, वहीं वापस जा रही हूँ, मैं सदा सबके साथ हूँ. ये खनकती आवाज़ अब अपनी जुबान से गाये गए गानों से ही सबके दिलों को सुकून देगी.'