फिल्म इंडस्ट्री में यह आम धारणा है कि एक्टर्स की तुलना में एक्ट्रेस का फिल्मी जीवन कम होता है. आज की तारीख में प्रियंका चोपड़ा जैसी कुछ ही एक्ट्रेस, अब भी सिर्फ बॉलीवुड में ही नहीं बल्कि हॉलीवुड में भी अपनी पकड़ मजबूत की हुई है, जबकि चन्द एक्ट्रेस उम्र के तीसरे दशक को थामे चल रही है, लेकिन इस असामान्य स्त्री का माद्दा देखिये, जो पचास वर्षों से ज्यादा फिल्मों में रही और अंत तक उनकी पकड़ मजबूत बनी रही.श्री अम्मा यंगर अय्यपन (जी हां, यह श्रीदेवी का असली नाम है) ने, कई भाषाओं की फिल्मों जैसे तेलुगू, तमिल, मलयालम, कन्नड, हिंदी और हिंगलिश में बेहतरीन अभिनय द्वारा अपना नाम, बतौर एक्ट्रेस, बुलंदी के शिखर पर पहुंचा दिया. जिन में से जो इस दुविधा में है कि छप्पन वर्षीय अभिनेत्री श्रीदेवी किस तरह फिल्मों में पचास वर्ष पूरे कर सकती है? तो मैं उन्हें बता दूँ कि श्रीदेवी ने चार वर्ष की उम्र में फिल्मों में अभिनय करियर शुरू किया था और उनको बाद उन्हें आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं पाया. उन्होंने बेबी श्रीदेवी के रूप में कई फिल्मों में काम किया जैसे ‘जूली’, जो कई भाषाओं में बनकर हिट हुई थी. लेकिन बतौर हीरोइन उन्होंने तमिल फिल्म ‘मूँदरू मोडीचु’ में पहला ब्रेक हासिल किया था. इसके बाद कई और फिल्मों में उनकी प्रतिभा और भाग्य ने उन्हें सफलतम नायिकाओं की श्रेणी में ला खड़ा किया.
श्रीदेवी ने अपना हिंदी फिल्म डेब्यू, एक छोटी सी फिल्म, ‘सोलवा सावन‘ से किया, जिसमें उनके हीरो थे अमोल पालेकर. वो फिल्म नहीं चली और श्रीदेवी वापस हैदराबाद के अपने सफल करियर में लौट गई, परंतु जल्दी ही एक डेयरिंग अवतार में हिंदी फिल्म ‘हिम्मतवाला’ के साथ लौटी, जिसमें दक्षिणी फिल्म मेंकर्स द्वारा हिंदी में बनाई जाने वाली फिल्मों के सुपर हिट प्रिय हीरो जीतेन्द्र नायक थे. उस फिल्म के पोस्टर्स, देशभर में चर्चित हो गए जिसमें स्विमिंग कॉस्ट्यूम वाली तस्वीर में श्रीदेवी की खुली जांघें नजर आ रही थी. उस पोस्टर ने उन्हें एक नया नाम दिया, ‘मिस थंडर थाईज’. वो फिल्म बम्पर हिट हुई, इससे श्रीदेवी के लिए उनके करियर के नये द्वार खुलते गए और वे एक के बाद एक सफलतम हिंदी फिल्में देती रही, जैसे ‘तोहफा’, ‘मवाली’, ‘मकसद’ तथा कई और फिल्में, जिसकी आलोचनाएं तो खूब हुई लेकिन फिल्म में श्रीदेवी की सेक्सी जीतेन्द्र के साथ लगभग वल्गर डांस और कादर खान (जो उन दिनों दक्षिण में बनने वाली हिंदी फिल्मों के संवाद भी लिखते और चटपटे रोल भी करते थे) के डबल मीनिंग वाले डायलॉग्स के कारण पब्लिक इन फिल्मों को लपक लेती थी.
इस तरह की फिल्मों में प्रेम चोपड़ा, शक्ति कपूर, असरानी, और कई बार अमजद खान भी काम करते थे. हिंदी फिल्मों के कई अन्य एक्टर, गीतकार और संगीतकार जैसे बप्पी लहिरी, अनु मलिक, यहां तक की लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने भी साउथ का रूख करना शुरू कर दिया, क्योंकि वहां फिल्में झटपट बनती थी और अच्छा पैसा मिलता था. अलबत्ता, जीतेन्द्र और श्रीदेवी, दक्षिण में बनने वाली इन हिंदी फिल्मों वाले राज पाठ के राजा रानी थे. इन मसाला फिल्मों में भी श्रीदेवी ने अपनी प्रतिभा की झलक दिखाई और तब, निर्माता बोनी कपूर ने श्रीदेवी को लेकर मुंबई से हिंदी फिल्म बनाना तय किया. यह सिलसिला अनिल कपूर के साथ श्रीदेवी का, “मिस्टर इंडिया’ में काम करने के दौरान शुरू हुआ था, जिस में अनिल कपूर का किरदार सबसे खास था. लेकिन श्रीदेवी की शानदार प्रतिभा ने अनिल कपूर को फिल्म की सफलता का सारा श्रेय लेने नहीं दिया.
आज भी यह फिल्म भारत की कल्ट फिल्मों में से एक है. उसके बाद बोनी कपूर ने फिर से अनिल और श्रीदेवी को लेकर फिल्म ‘रूप की रानी चोरों का राजा’ बनाकर वही ‘मिस्टर इंडिया’ वाली जादू जगाने की कोशिश की लेकिन इस बार यह फिल्म जिस तरीके से फ्लॉप हुई वह बोनी कपूर आज भी नहीं भूल पाते हैं. अलबत्ता इस फिल्म की असफलता ने श्रीदेवी और अनिल कपूर के करियर पर कोई असर नहीं डाला. तत्पश्चात श्री, (अब वे इस नाम से पुकारा जाने लगी थी) दक्षिण की अपनी बुनियाद त्यागकर मुंबई में पाई सफलता की नई बुनियाद में हमेशा के लिए आ गई.
अब वे मुंबई के बेस्ट फिल्मेकर्स, जैसे मुकुल एस आनंद तथा के भाग्य राज के साथ ‘खुदा गवाह’, आखरी रास्ता’ जैसी फिल्मों में अमिताभ बच्चन की नायिका के रूप में काम करने लगी. इन फिल्मों में, बतौर अभिनेत्री कदम जमाने के साथ साथ वे यश चोपड़ा की फिल्मों ‘लम्हे’, ‘चांदनी’ तथा पंकज पाराशर की फिल्म “’चालबाज’ (जिसमें रजनीकांत और सनी देओल के साथ श्री ने डबल रोल किया था) में सुपर हिट हो कर इन फिल्म मेकर्स की पहली पसंद बन गई. श्रीदेवी ने राज कंवर निर्देशित फिल्म ‘लाडला’ (अनिल कपूर के साथ) और स्व. विनोद मेहरा निर्देशित फिल्म ‘गुरुदेव’ (ऋषि कपूर अनिल कपूर) में भी काम किया. ‘गुरुदेव’ के बारे में कुछ ज्यादा पता नहीं लग पाया क्योंकि इसके निदेशक विनोद मेहरा की मेजर हार्ट अटैक से डेथ हो गई थी.
अभी वे अपने करियर की चोटी पर थी कि उनकी बहन श्रीलताः जो श्रीदेवी के करियर की मैनेजमेंट करती थीः ने उनका काम छोड़ दिया. उन्हीं दिनों श्री के पिता (अपने समय के छोटे-मोटे राजनीतिज्ञ) की डेथ हो गई और मां गंभीर रुप से बीमार पड़ गई, जिनके ट्रीटमेंट के लिए उन्हें अमेरिका ले जाना पड़ा. यह वह वक्त था जब श्री की मदद कोई नहीं कर रहा था. ऐसे समय में बोनी कपूर ने श्री देवी और उनकी माँ को अमेरिका ले जाने और उनकी ट्रीटमेंट कराने में बहुत मदद की. ट्रीटमेंट के दौरान पूरे समय बोनी वहीं पर रहें, लेकिन ईलाज के दौरान श्री की माँ की अजीब परिस्थितयों में मौत हो गयी और बोनी ने श्री को इसके कंपनसेशन की लड़ाई में उनकी बहुत मदद करके कम्पनसेशन भी दिलाया. बोनी कपूर का उनकी प्रथम पत्नी मोना से डायवोर्स हो चुका था.
अमेरिका में साथ साथ होने के दौरान दोनों में प्यार हो गया और मुम्बई लौटकर दोनों ने शादी कर ली. इस तरह श्रीदेवी बन गयी श्रीमती श्रीदेवी कपूर. इसके बाद श्री ने एक लंबा ब्रेक लेते हुए दो बेटियों को जन्म दिया, जहान्वी और मेकर्स में यह चर्चा होती रही कि क्या श्रीदेवी वापस फिल्मों में लौटेगी? श्री देवी ने एक टीवी सीरियल, ‘मिसेस मालिनी अय्यर’ में काम करके सबको उनके प्रश्नों का जवाब दे दिया. उसके बाद श्रीदेवी ने गौरी शिंदे कृत फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ में लीडिंग रोल निभा कर यह जता दिया कि वे आज भी स्टार है अब अपने करियर के पचासवें वर्ष में वे एक और फिल्म ‘मॉम’ के साथ फिर एक बार लौटीं जिसमें उनके साथी कलाकार अक्षय खन्ना और नवाजुद्दीन सिद्दीकी थे. फिल्म के टाइटल से ही पता चलता है कि यह नारी प्रधान फिल्म है और श्रीदेवी की भूमिका बहुत ही सशक्त है वरना वे इस फिल्म को क्यों करती.
श्रीदेवी ने फिल्म इंडस्ट्री के सारे नियम और सोचो को गलत साबित कर दिया. मुझे नहीं लगता कि आज की नायिकाएं, श्री के करियर जीवन का, आधा रास्ता भी तय कर पाएंगी. इस लेख का लेखक, पिछले तीस वर्षों से श्रीदेवी द्वारा ली जाने वाली महत्वपूर्ण फैसलों और कदमों के गवाह है और उनके अनुसार वे दावे के साथ कह सकते हैं कि श्रीदेवी अगर आज होतीं तो कई और रिकॉर्ड और नियम तोड़ देतीं. श्रीदेवी के इस सफल और लंबे करियर का कुछ महत्वपूर्ण श्रेय कई निर्देशकों को भी जाता है, जैसे, के राघवेंद्र राव, बालू महेंद्र, के बालाचंद्रन, के विश्वनाथ, तथा मुंबई के फिल्म मेकर्स, यश चोपड़ा, शेखर कपूर तथा सबसे ज्यादा बोनी कपूर, जो श्रीदेवी के हर बुरे वक्त में उनका साथ देते रहे. 24 फरवरी को दुबंई के होटल में उनका देहान्त हो गया था. चंद अन्य नायिकाएं, जो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में तीस वर्षों से ज्यादा समय तक बनी रही, वे भी साउथ से थी. गुरुदत्त ने आंध्र प्रदेश के एक गांव से वहीदा रहमान को खोज निकाला था. वे उन्हें मुंबई ले आये और राज खोसला निर्देशक फिल्म में प्रथम मौका दिया, फिर अपनी मास्टर पीस फिल्म ‘कागज के फूल’ में नायिका बनाया, जिसके पश्चात वहीदा हिंदी फिल्मों पर वर्षों तक राज करती रही और आज भी अर्थपूर्ण चरित्र भूमिकाएं निभा रही है.
वैजंतीमाला भी मुंबई में पचास के शुरुआती दशक में आई और यहां कई बेहतरीन फिल्मों में बड़े-बड़े हीरो के साथ काम करती रही. जब यश चोपड़ा ने उन्हें फिल्म ‘दीवार’ में अमिताभ बच्चन और शशि कपूर की मां की. ( भूमिका निभाने का ऑफर दिया तो उन्हें एक बड़ा धक्का लगा.तब उन्होंने फिल्मों में काम ना करने का फैसला ले लिया.) हेमा मालिनी को उनके मेंटर, बी अनंतास्वामी मुम्बई लेकर आए थे और उन्होंने उनका परिचय निर्देशक महेश कौल और राज कपूर के साथ करवाया, जिससे फिल्म सपनों का सौदागर’ फिल्म में राज कपूर ने हेमा को अपने ऑपोजिट नायिका के रूप में साइन किया. यह आज से कई दशक पहले की बात है, लेकिन आज भी हेमा उतनी ही फ्रेश नजर आती है जैसे पहले थी और आश्चर्य की बात तो यह है कि जो लड़की हिंदी में लिखी, एक पंक्ति भी नहीं पढ़ पाती थी, वह आज बतौर एक महत्वपूर्ण बीजेपी लीडर, लंबे-लंबे भाषण हिंदी में बोलती है.
रेखा चेन्नई से मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में साठ के दशक के अंतिम वर्षों आई थी और अपनी प्रथम फिल्म में नायक विश्वजीत के साथ एक चुम्बन दृश्य देने पर मजबूर की गई थी. उस समय वे सिर्फ तेरह वर्ष की थी. उसके बाद फिल्म ‘सावन भादो’ की अपार सफलता के साथ ही वे कामयाबी की बुलंदी छूती चली गयी. आज भी वे अपनी शर्तों पर काम करती है. वे राज्यसभा की सदस्य भी हैं.
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