क्या महात्मा गांधी जी की याद में शास्त्री जी को भूल गया है Bollywood? अगर मैं आपसे 2 अक्टूबर कहूँ तो आप तुरंत कहेंगे गाँधी जयंती, देश को अंहिंसा के बल पर स्वतंत्रता दिलवाने और देश का बटवारा करवाने के चलते ही सिर्फ गांधी जी को याद नहीं किया जाता... By Siddharth Arora 'Sahar' 02 Oct 2024 in एंटरटेनमेंट New Update Follow Us शेयर अगर मैं आपसे 2 अक्टूबर कहूँ तो आप तुरंत कहेंगे गाँधी जयंती, देश को अंहिंसा के बल पर स्वतंत्रता दिलवाने और देश का बटवारा करवाने के चलते ही सिर्फ गांधी जी को याद नहीं किया जाता, बल्कि उनके आदर्श, उनका संयम और उनके अनेकोनेक असफल यात्राओं और अनशनों के लिए भी हम उन्हें याद करते हैं. हम से यहाँ तात्पर्य बॉलीवुड और सम्पूर्ण भारतीय फिल्म उद्योगों से भी है. पर शायद हम भूल जाते हैं कि नेहरु जी के बाद देश के प्रधानमंत्री बने लाल बहादुर शास्त्री वो पहले प्राइम मिनिस्टर थे जिन्होंने पाकिस्तान को सबसे पहले मात दी थी. जो झुके नहीं थे, जिन्होंने डर के नहीं, डट के दुश्मनों का सामना किया था. लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर को होता है. तब के मुग़लसराय और आज के पंडित दीन दयाल उपाध्याय नगर में जन्में लाल बहादुर शास्त्री जी सादा जीवन उच्च विचार वाले व्यक्ति थे. लेकिन जंग पाकिस्तान से 1965 की जंग जीतने के बाद 'हमें लाहौर भी चाहिए' कहने की हिम्मत रखने वाले भी लाल बहादुर शास्री जी ही थे. मंत्रीपद की शपथ लेने से लेकर अपनी अंतिम सांस तक, उन्होंने सिर्फ और सिर्फ देश हित के बारे में सोचा और देश हित के लिए ही प्रयास किए. लेकिन ऐसा तो हम किसी भी पुराने नए मंत्री के बारे में कह/लिख सकते हैं, इस कहानी में अबतक कोई ऐसी बात तो नज़र नहीं आती जिसके चलते उनपर फिल्म बनाई जाए. पर आगे ये जानिए कि मात्र दो साल के लिए प्रधानमंत्री बने लाल बहादुर शास्त्री जी की मौत आज तक एक रहस्य है. उनकी मृत्यु सोवियत यूनियन की बैठक अटेंड करते वक़्त, उज्बेकिस्तान में हुई थी. जब उनके शरीर को वापस भारत लाया गया तो उनके चेहरे पर नीले निशान थे पर लाल बहादुर शास्त्री जी का पोस्टमोर्टेम नहीं किया गया. कोई सीरियस इन्क्वारी नहीं बैठाई गयी, कोई जांच नहीं की गयी. वह गुलज़ारीलाल नंदा के बाद प्रधानमंत्री बने थे और उनके मरते ही गुलज़ारी लाल नंदा फिर प्रधानमंत्री चुन लिए गए. कमाल की बात तो ये है कि जब उनकी पत्नी ललिता ने ये साफ़ कहा कि उनको ज़हर दिया गया था, क्योंकि उनका शरीर नीला पड़ गया था, तो ये कहकर जांच करने से मना कर दिया गया कि ऐसा करके हम विदेशों में रिश्ते नहीं बिगाड़ना चाहते. इसपर क्रांत एमएल वर्मा ने एक काव्यात्मक वर्णन लिखा जिसे उन्होंने नाम दिया ‘लतिका के आँसू’ पर ये किताब 1978 में यह किताब प्रकाशित हुई और गायब हो गयी. आज इसकी एक भी कॉपी कहीं नज़र नहीं आती. एक तरफ जहाँ गांधी जी पर ढेरों फ़िल्में हैं. ‘गाँधी (बेन किंग्सले), मैंने गांधी को क्यों मारा, नाइन आवर्स टू रामा, सरदार, द मेकिंग ऑफ द महात्मा, स्वदेस, गांधी माय फादर, हे राम, लगे रहो मुन्ना भाई आदि दर्जन के क़रीब कमर्शियल फ़िल्में बन चुकी हैं. डॉक्यूमेंट्रीज़ की तो गिनती ही नहीं है. पर आप शास्त्री जी पर फिल्में ढूँढने निकलेंगे तो आपको डॉक्यूमेंट्री भी गिनी चुनी मिलेंगी और हिन्दी कमर्शियल सिनेमा में सिर्फ एक फिल्म दिखेगी – द ताशकेंट फाइल्स. इस फिल्म की कहानी भी आपको शास्त्री के जीवन पर कम और उनकी मृत्यु पर ज़्यादा फोकस करती नज़र आयेगी. अब इसे देश का दुर्भाग्य कहें या आने वाली पीढ़ी के फूटे करम कि हमारी फिल्म इंडस्ट्री में गाँधी जी और शास्त्री जी पर मिलाकर जितनी फिल्में बनी हैं उससे दोगुनी मुम्बई के गुंडे दाऊद इब्राहीम पर बन चुकी हैं. और यकीन जानिये, उनमें से आधी तो ऐसी हैं कि दाऊद को बाकायदा मसीहा दिखाया गया है, हीरो दर्शाया गया है. पर फिर भी उम्मीदजदा होने में क्या जाता है कि आज नहीं कल, कल नहीं परसों कोई तो हिम्मत करेगा और हमें देश के गिने चुने अच्छे मंत्रियों के बारे में भी जानने को मिलेगा. सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर' Read More: बॉय कट लुक में स्कूल जाती थी प्रियंका, एक्ट्रेस ने शेयर की तस्वीर Tripti Dimri ने सॉन्ग ‘मेरे महबूब’ की ट्रोलिंग पर तोड़ी चुप्पी चेन्नई के हॉस्पिटल में एडमिट हुए Rajinikanth, सामने आया हेल्थ अपडेट Govinda के पैर में लगी गोली, हॉस्पिटल में कराया गया एडमिट हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Latest Stories Read the Next Article