मुंबई के कई एक्टिंग स्कूलों में से एक में अभिनय सीखने वाले छात्रों के एक ग्रुप ने कहा कि वे मुझे देखना चाहते थे, और उन्होंने मुझसे संजीव कुमार के बारे में बात करने के लिए कहा, मैं छात्रों को ज्ञान प्राप्त करने से नहीं रोक सकता, न ही उन्हें वह ज्ञान देने से मना कर सकता हूँ जो मेरे पास है और चूंकि संजीव कुमार जो मेरे अनुसार सबसे अच्छे अभिनेताओं में से एक थे. - अली पीटर जॉन
जब मुलाकात हुई तो बात हुई
मैनें उस ग्रुप को अपने कैफे बुलाया और अगर मैंने उनसे संजीव के कौशल या भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के बारे में मुझेसे गंभीर सवाल पूछे जाने की उम्मीद की थी, तो मैं बेवकूफ और गलत था, सबसे पहले उनमे से कुछ लड़कियों ने उनके महिलाओं के साथ अफेयर के बारे में पूछा था, और मैंने उन्हें ऐसे देखा, जिसमें अपनी बात को बेतुके सवाल के साथ शुरू करने को लेकर मेरी नाराजगी दिखाई दी और मुझे लगता है कि वह इस बात को समझ गए होंगे, लेकिन अगले सवाल ने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया था, उस ग्रुप की लीडर की तरह दिखने वाली उस लड़की ने मुझसे पूछा, “क्या हरिभाई कंजूस थे?”
जब फिल्मे आधी कीमत या मुफ्त में भी करने से मना न किया
मैंने उनसे कोई और सवाल पूछने से इनकार कर दिया, और उन सब से पूछा कि क्या वे चाय लेना पसंद करेंगे और मैं गंभीरता से उस सवाल के बारे में सोचने लगा जो उन्होंने मुझसे पूछा था, क्या संजीव कुमार वाकई में एक कंजूस आदमी थे? क्या संजीव कंजूस थे, जब वह अपने आदर्श दिलीप कुमार की तरह कभी भी उन कीमतों की मांग नहीं करते थे, जो निर्माता अदा नहीं कर सकते थे और यहां तक कि उन्होंने कई फिल्में ‘मुफ्त’ या ‘आधी’ या उससे भी कम कीमत पर की थी! क्या संजीव कुमार एक कंजूस व्यक्ति थे, जब वह अपने सपनों के शहर में एक बहुत अच्छा अपार्टमेंट खरीद सकते थे, लेकिन वह पाली हिल पर स्थित ‘पेरिनविला’ नामक एक बहुत पुरानी बिल्डिंग में एक दो बेडरूम के घर में सेटल हो गए थे, जहा उनका अपना एक कमरा था जो उनके लिए क्यूबिकल की तरह था और बाकी घर उनके छोटे भाई निकुल और उनके परिवार के लिए था. कोई हरिभाई को कंजूस कैसे कह सकता था, जब उन्होंने जुहू में या कहीं भी अपने कई करोड़पति प्रशंसकों से मिले अपना खुद का घर होने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था. इससे पहले कि मैं किसी और प्रश्न में जाऊं, मुझे इस छोटी सी कहानी को साझा करने दें।
हरिभाई मैं यहाँ फिल्म बनाने आया हूँ, बंगले बनाने नहीं
एक दोपहर संजीव और के.आसिफ जुहू की गलियों में घूम रहे थे, यह एक समय था जब मनोज कुमार, धर्मेंद्र और यहां तक कि दारा सिंह जैसे नए सितारों और सभी प्रमुख फिल्म निर्माताओं ने उस समय भविष्य में अपने स्वयं के ‘बंगले’ और ‘मेन्शन’ के लिए जमीन खरीदी थी, संजीव ने आसिफ की तरफ देखा और आसिफ से पूछा, “आसिफ साहब, देखो कैसे-कैसे लोग यहां बंगले बनाने का ख्वाब देख रहे है, आप क्यों नहीं एक बंगला बनाते है अपने लिए?” आसिफ ने एक स्टाइल में अपनी सिगरेट से एक गहरा कश लिया और कहा, “हरिभाई मैं यहां फिल्मे बनाने आया हूँ बंगले नहीं” यह बहुत अजीब दोपहर थी क्योंकि न तो संजीव और न ही आसिफ के पास बहुत अंत तक अपने घर थे। आसिफ की मृत्यु एक पुराने दो बेडरूम के अपार्टमेंट में हुई थी, और संजीव की मृत्यु पेरिनविला के उसी अपार्टमेंट में उनके कमरे में हुई थी......
कोई भी हरिभाई को कंजूस नहीं कह सकता
जब सच्चाई यह थी कि वह अपना अधिकांश पैसा अपने भाइयों, नकुल और किशोर और अपने निजी कर्मचारियों जैसे प्रसिद्ध मेकअप मैन, सरोशमोदी, अपने सेक्रेटरी जुमुनदास और नारायण पर खर्च करते थे? और यह उनके मनोरंजन के अलावा था, कि वह अपने थिएटर के दिनों के कई दोस्त सुभाष इंदौरी, सुरूर लखनऊवी और सतपाल जैसे कई अन्य के परिवारों की देखभाल भी करते थे? हरिभाई को एक कंजूस आदमी कैसे कहा जा सकता है कि जब उन्होंने एक बेहतरीन जीवन शैली के साथ एक राजा का जीवन जिया था, जिसमें उनके पास सबसे अच्छा भोजन, सबसे अच्छी शराब और सबसे अच्छी कंपनी (संगत) थी.
सबसे अच्छी पार्टी यह है कि आप खुद को आमंत्रित करें, अपने स्वयं के साथ पीयें और खुद से बात करें
क्या हरिभाई की सभी बेहतरीन होटलों में नियमित पार्टी नहीं होने से वह एक कंजूस आदमी बन गए थे? उन्होंने एक बार मुझसे कहा था कि उन्हें पार्टियां करना या उनमे शामिल होना पसंद नहीं है, और यहां तक कि वह पार्टियों को अवॉयड भी करते थे, क्योंकि वह कभी भी ऐसी जगहों पर कम्फर्टेबल महसूस नहीं करते थे और एक बार उन्होंने कहा, “सबसे अच्छी पार्टी यह है कि आप खुद को आमंत्रित करें, अपने स्वयं के साथ पीयें और खुद से बात करें।”
संजीव कुमार की गोद में विक्रम भट्ट
और अगर आप मुझसे पूछते हैं, मुझे लगता है कि वह जो कुछ भी थे, वह सही थे क्योंकि वह कहीं न कहीं अपने भीतर खुद को जानते थे, और माफ करना, लेकिन उन्हें पता था और यकीन था कि वह 50 साल के होने से पहले ही मर जाएगे। यह एक भविष्यवाणी थी, जो उन्होंने खुद के लिए की थी। जब मैं उनसे होटल बैंगलोर इंटरनेशनल में मिला था जिसमें उन्होंने मुझे बताया था जब वह काफी नशे में थे, कि उनके परिवार का कोई भी पुरुष सदस्य 50 से आगे नहीं जीता, मेरे मित्र हरिभाई, जिन्होंने मुझे उन सभी शामों के दौरान एक राजा की तरह महसूस कराया, जिन्हें हमने साथ बिताई थी। उनकी उसी क्यूबिकल में मृत्यु हो गई जब वह वहा केवल अपने एक प्रशंसक सचिन के साथ अकेले थे, और उन्हें मृत देखने वाला पहला स्टार महान दिलीप कुमार थे, जिन्होंने उन्हें कहा, ‘एक अभिनेता जिस पर भगवान और मनुष्य दोनों को गर्व होगा’
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