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शेखर सुमन एक ऐसा नाम जो एक एक्टर, प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, सिंगर और पॉलिटिशियन भी हैं. शेखर ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत फिल्म 'उत्सव' से किया था जिसमें उनकी हीरोइन का किरदार रेखा निभा रहीं थीं. इसके अलावा शेखर ने अपने करियर में 'मानव हत्या', 'नाचे मयूरी', 'संसार', 'अनुभव', 'त्रिदेव', 'पति परमेश्वर', और 'रणभूमि' जैसी फिल्मों में काम किया. फिल्मों के अलावा शेखर ने कई टीवी सीरियल में काम करने से लेकर 'कॉमेडी सर्कस' जैसे रियलिटी शोज में जज भी बने हैं. इसके साथ हीं शेखर ने बीजेपी पार्टी को ज्वाइन करते हुए वापस पॉलिटिक्स में एंट्री मारी है. हाल हीं में नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई सीरीज 'हीरामंडी: द डायमंड' बाज़ार में शेखर नवाब जुल्फीकार के किरदार में नज़र आयें हैं, जिसको दर्शकों के द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है. आइये जानते हैं इस सीरीज, बेटे अध्ययन के साथ स्क्रीन शेयर करने और पॉलिटिक्स में वापस आने को लेकर क्या कहते हैं शेखर सुमन.
‘हीरामंडी’ से आपको दर्शकों का बेहद प्यार मिल रहा है. इसके बारे में क्या कहना चाहेंगे?
मै तो बहुत कुछ कह रहा हूँ हर चैनल, हर इंटरव्यू में मै बस अपनी ख़ुशी हीं जाहिर कर रहा हूँ. सबसे पहले तो मायापुरी का शुक्रिया अदा करना चाहूँगा जिसको पढ़ कर बड़े-बड़े सितारों का निर्माण हुआ. मुझे याद है कि जब भी कभी ट्रेन से सफ़र करते थे और ट्रेन कहीं रूकती थी तब दौड़ कर स्टेशन से मायापुरी खरीद लेते थे ताकि आगे का सफ़र अच्छे से कट जाये. हीरामंडी का सफ़र भी काफी खुशनुमा रहा है. जिंदगी की सबसे अच्छी बात यही है कि जब आपको उससे कोई उम्मीद नहीं है तभी वो आपको ढेर सारी खुशियाँ दे जाती है. हीरामंडी का हिस्सा होना मेरे हिसाब से बेहद खुशकिस्मती की बात है, ये खुशकिस्मती दुगनी है क्योंकि इसमें मेरे सुपुत्र भी हैं. इस शो को पहले उन्होंने ज्वाइन किया था उसके बाद मैंने ज्वाइन किया. हम नवाब का किरदार निभा रहे हैं. खुशी की बात यह है कि आज के ज़माने में दर्शक इतने अच्छे हैं कि एक एक्टर को पूरी फिल्म में दिखने की जरूरत नहीं है, अगर आपके पास कुछ सीन्स है और आपने उसमें अच्छा काम किया है तब दर्शक भी एक एक्टर की ईमानदारी और मेहनत को देखते हैं. इससे बड़ी बात क्या होगी कि दर्शकों से हमने अपनी तारीफ सुनी.
संजय लीला भंसाली के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
वो जो भी बनाते हैं वो बहुत हीं सोच समझकर एक मास्टरपीस बनाते हैं. भंसाली साहब ने पीरियड ड्रामा बनाने के ऊपर पीएचडी कर लिया है. वो हर चीज के ऊपर बेहद हीं बारीकी से काम करते हैं. उनके द्वारा डिज़ाइन किया गया सेट भी अपने आप में एक करैक्टर है. संजय जी ने जो भी बनाया है वो बहुत हीं मुकम्मल चीज बनाई है. वो एक परफेक्शनिस्ट है. मुझे लगता है अगर कोई इन्सान परफेक्शनिस्ट नहीं है तो उसे कोई हक़ नहीं है कि वो निर्देशक, कलाकार या और कुछ बने. भंसाली साहब की ये खासियत है कि चाहे वो सीन छोटा हो या बड़ा वो पूरी तरह से उस सीन रम जाते हैं. हीरामंडी अपने आप में हीं एक अद्भुत कला का प्रदर्शन है जो हिंदुस्तान में हीं नहीं बल्कि हिंदुस्तान के बाहर भी इसका नाम रौशन करेगा. हम सबने जो काम किया है उससे एक मिसाल कायम की है कि इस तरह का भी काम होता है. वो इतनी सूक्ष्मता से काम करते हैं कि अगर उनको कोई चीज पसंद नहीं आये तो वो उस चीज को बदल देते थे. जैसे मेरा जो कैरेज वाला सीन है जहाँ मै ड्रंक हूँ वो उन्होंने पहले कुछ और लिखा था लेकिन बाद में उन्होंने उसको पूरा बदल दिया. एक एक्टर का काम यह है कि वो जो किरदार निभा रहा है उसकी खुशी, दुःख, व्यथा को कैमरे पर दर्शा सके. मुझे लगता है एक बार संजय साहब के साथ काम कर लेने के बाद एक्टर्स को भी किसी और के साथ काम करने में अच्छा हीं नहीं लगेगा.
हीरामंडी में आपके किरदार जुल्फीकार को निभाने का अनुभव आपके लिए कैसा था?
ये तजुर्बा हीं अलग है. जब ऐसा कुछ काम होता है तो हम खुद भी ये देख कर हैरान हो जाते हैं कि ये मैंने कैसे किया. एक एक्टर के बेहतरीन अभिनय का श्रेय निर्देशक को भी जाता है जिन्होंने उसके छिपे हुए टैलेंट को बाहर निकाला है. संजय लीला भंसाली के साथ काम करने का बहुत हीं खुबसूरत अनुभव मुझे हुआ. मै इस तरह उस किरदार में ढल चूका था कि अभी भी मेरे अन्दर से वो किरदार गया नहीं है. मेरी पत्नी अभी भी मुझे टोकती हैं कि मै अब जुल्फीकार नहीं हूँ. मैंने पहले कभी किसी भी सीरीज का ऐसा जबरदस्त असर देखा नहीं है.
मनीषा कोइराला के साथ आपकी केमेस्ट्री को बहुत पसंद किया गया इसके बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
वो एक मंझी हुई अभिनेत्री हैं और सबकी चहेती हैं. वो बहुत दिल से काम करती हैं. हम सभी उनके मुरीद हैं. उनकी सभी फ़िल्में मुझे बहुत पसंद हैं. मैंने उनका कहा भी था कि आपकी खासियत है कि आप आँखों से बाते करती हैं. इस सीरीज के लिए तो उन्होंने अपने पुरे व्यक्तित्व को बदल लिया था, उन्होंने इसके लिए अपनी आवाज़ भी बदली. उनका हाव-भाव सबकुछ बेहद हीं खुबसूरत है. सीरीज में तीन बड़े सीन हैं मेरे उनके साथ. ये भी एक संयोग है कि उनके साथ काम करने का मौका मिला क्योंकि अपनी बीमारी के कारण उन्होंने ये कह दिया था कि वो अब फिल्मों में काम नहीं करेंगी. ये हमारी खुशकिस्मती है कि वो वापस आयीं और मुझे उनके साथ ये यादगार रोल करने का मौका मिला.
जब आपके पास इस किरदार को करने का ऑफर आया तब आपका क्या रिएक्शन था क्योंकि आपके फैंस ने आपको इससे पहले कभी भी इस तरह के किरदार में नहीं देखा है?
बहुत बहुत अच्छा रहा. एक एक्टर की यही तो खूबसूरती है कि वो कुछ ऐसी अदायगी लेकर आये जो फैंस ने पहले नहीं देखा है या आपसे उस तरह के किरदार की उम्मीद नहीं की थी. इस तरह का किरदार करने में ज्यादा मज़ा आता है जो आपको चैलेंज करे और आपको कुछ नया ट्राई करने के लिए प्रेरित करे. क्योंकि एक हीं तरह का किरदार बार बार करना कोई बड़ी बात नहीं है. मुझे मालूम था कि मै इस तरह के किरदार को बखूबी निभा सकता था और मुझे ये भी मालूम है कि अगर मुझे अच्छे निर्देशक मिले तो मै और भी बहुत कुछ नया ट्राई करना चाहूँगा. मेरी उन निर्देशकों से भी अपील है जो मुझे देख रहे हैं कि मै तरस गया हूँ इस किस्म के रोल करने के लिए, मुझे उम्मीद है कि अगर किसी के पास ऐसा कोई रोल होगा तो वो मुझ तक जरुर लेकर आयेंगे.
इस सक्सेस को आपने अपने बेटे अध्ययन के साथ शेयर किया है, ये कितना स्पेशल है आपके लिए?
बहुत हीं स्पेशल है. अगर जीवन में मै कभी अपने जीवन जीवन पर कोई किताब लिखूंगा तो उसमें ये लम्हा जरुर बयाँ करूँगा. मै उसमें ये लिखूंगा कि किस तरह जब एक सीन में मै और अध्ययन साथ थे तो उस सीन में मै एक एक्टर, एक अभिनेता, और एक पिता तीनों एक साथ था. एक सीन में जब वो मनीषा जी के साथ था और जैसे हीं कट हुआ मनीषा जी ने मुड़कर संजय जी से कहा “ये एक्टर इतने दिनों से कहाँ था, इंडस्ट्री ने इसकी कद्र क्यों नहीं की” वो एक लम्हा जहाँ संजय जी ने अध्ययन के काम से खुश होकर आँखों में आंसू के साथ उसको गले लगाया था, और फ़ोन करके मेरे बेटे की मुझसे तारीफ करना, इससे बेहतर और क्या हो सकता है. ऐसी निर्देशक के मुंह से उसके काम की तारीफ सुनना जो अपने काम बेस्ट हैं, इससे ज्यादा बेहतरीन कुछ नहीं हो सकता था. इस ख़ुशी को लफ्जों में बयाँ कर पाना मुश्किल है.
आपके हिसाब से इस प्रोजेक्ट की क्या खास बात है कि हर तरफ से ऑडियंस का प्यार इस प्रोजेक्ट को मिल रहा है?
इस प्रोजेक्ट की सच्चाई. मेरा मानना है कि अगर हम कोई चीज बनाते हैं तो उसमें एक सच्चाई होनी चाहिए. अगर कोई सीन चल रहा है तो ऐसा लगना चाहिए कि वो सच में वो हो रहा है और किरदार उस सीन में जिस भी स्थिति से गुज़र रहा है वो सच लगना चाहिए. संजय लीला भंसाली ने जो बारीकी हर चीज में दिखाई है चाहे वो सेट हो, कपड़े हो या गहने हो या किरदार के इमोशन वो काबिल-ए-तारीफ है. सबसे खास बात है इसकी सिनेमेटोग्राफी जो सुदीप चैटर्जी ने की है. उन्होंने कागज पर लिखे गए चीजों को इतनी खूबसूरती के साथ परदे पर दिखाया जिसका कोई जवाब नहीं है. संजय लीला भंसाली ने जो खुबसूरत और नायाब लेकिन जो सच्ची दुनिया बनाई है यही कारण है कि लोग इसको देख रहे हैं और इतना पसंद कर रहे हैं. मेरा तो ये भी मानना है कि इस सीरीज की जो भव्यता है उसके हिसाब से इसे फिल्म के तौर पर रिलीज़ करना चाहिए.
15 साल बाद आपने फिर से पॉलिटिक्स की दुनिया में कदम रखा है, इसके बारे में कुछ कहना चाहेंगे?
पॉलिटिक्स तो हमारी जिंदगी का एक हिस्सा है. हम अगर किसी पार्टी से नहीं भी जुड़े हुए हैं फिर भी तो हम देश में क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए के बारे में बात करते हीं हैं. आम जनता सिर्फ संसद में नहीं लेकिन बाकी सारी बातें तो हम घर बैठ कर हीं कर लेते हैं. मुझे लगता है कभी कभी व्यवस्था के अन्दर जाकर सरकार और देश का हाथ मजबूत करना भी जरुरी होता है. मै ये बात बार-बार दोहरा रहा हूँ कि मै एक नेता के रूप में नहीं बल्कि अभिनेता के रूप में हीं पॉलिटिक्स में आया हूँ. मै कोई राजनीती नहीं करना चाहता हूँ, मै कुछ अच्छी नीतियों को समझना चाहता हूँ और उनको अडॉप्ट करना चाहता हूँ. यहाँ आकर अगर मै अपनी फिल्म इंडस्ट्री के लिए कुछ कर पाया तो बहुत अच्छी बात होगी और ऐसा करना मेरी खुशकिस्मती होगी. मुझे आज जो कुछ भी मिला वो बिहार, पटना की वजह से मिला है. मै वहीँ पला बढ़ा हूँ. मुझे लगता है अब मेरा उनको कुछ लौटने का वक़्त है. मैंने एक बार 2009 में किसी और पार्टी से एक एमपी के लिए चुनाव लड़ने की कोशिश की थी इस उम्मीद में की अगर मै चुना गया तो मै ऐसा कुछ कर पाऊंगा जिससे लोगों का भला हो लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. जब रामलला की स्थापना हुई तब मुझे लगा कि अब देश का अस्तित्व वापस आ गया है और हिंदुस्तान की सभ्यता, संस्कृति फिर से वापस लौट आई है, लोगों के बीच फिर से आस्था जागी है और मुझे भी इस धारा में शामिल होना है. मै एक खास मंशा लेकर आया हूँ कि मुझे काम करना है, और अगर मै उस निर्धारित समय में वो काम नहीं कर पाया तो फिर मै अलविदा कह दूंगा. मुझे लगता है कि दो बार कोशिश काफी होती है तो फिर मै वापस नहीं आऊंगा लेकिन मै इस बार पॉजिटिविटी के साथ आया हूँ कि जो मै करने आया हूँ वो मुझे करने दिया जायेगा.
अपने फैंस के लिए क्या कहना चाहेंगे?
आज के ज़माने में फैंस थोड़े से कठोर हो गए हैं, सोशल मीडिया पर बरस जाते हैं. एक एक्टर जो खासतौर पर नाजुक दिल का होता है वो ऐसी चीजों से दहल जाता है लेकिन छोटी-छोटी प्रशंसा से बहल भी जाता है. आपकी छोटी सी प्रशंसा और हौसलाअफजाई हमें मीलों दूर तक ले जाती है. काम को लेकर आलोचना कर सकते हैं लेकिन अगर किसी के निजी जिंदगी के बारे में ये आलोचना नहीं करें तो शायद बेहतर होगा. प्रोफेशनल लेवल पर अगर आपका प्यार मिलता रहे तो हौसला दोगुना हो जाता है. ऐसी अपना प्यार बनाये रखियेगा और आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया कि आपने इतने लम्बे वक़्त तक मेरा साथ दिया.
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